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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 

komaalrani

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भाग ६७ -होलिका माई

https://exforum.live/threads/छुटकी-होली-दीदी-की-ससुराल-में.77508/page-643

अपडेट पोस्टेड

प्लीज पढ़िए, लाइक करिये, इंज्वाय करिये

लेकिन, लेकिन,... कमेंट भी जरूर करिये

यह पोस्ट कुछ अलग सी है धीमी आँच वाली, रुक रुक के पढ़ने वाली,... इसलिए जरूर बताएं कैसी लगी
 
कोमल जी आपकी छुटकी को सेव कर रहा हूँ , बाकी के इमेज जिसमे इंडियन्स को छोडकर बाकि सभी बोर करने लगे हें , वही बार २ दुहराव ,पर एक बात अच्छी लगी आपने काफी कुछ सुधार किया हे , कोमल जी अगर १००० पेज हें तो नए पाठक को कहानी के पेज ढूंढने में बहुत समय लग जायेगा पर आपने इस कहानी में सही किया हे पहले पेज पर इंडेक्स देकर , अगर पार्ट एक से ज्यादा पेज पर हे उसके लास्ट में ये लिखकर की कहानी का ये पार्ट अगले पेज पर भी हे इससे बहुत आसानी हो जाएगी , काफी सारे लेखक ये गलतियाँ करते हें , पर पाठक कहानी अगर १०० पेज पर हे तो कमेन्ट के २०० या ३०० पेज पलटना समय बर्बाद करने वाला हे और तकलीफदेह भी

वेसे रेलयात्रा का आपने बखूबी सदुपयोग किया हे कहने की जरूरत नही हे , पर मेने भी काफी रेलयात्रा की हें लम्बी दुरी की भी , अगर अपने देश को जानना हे तो रेलयात्रा से बढकर कोई विकल्प नही हे , ट्रेन से सिटी का व्रहद रूप नजर आ जाता हे
 

komaalrani

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कोमल जी आपकी छुटकी को सेव कर रहा हूँ , बाकी के इमेज जिसमे इंडियन्स को छोडकर बाकि सभी बोर करने लगे हें , वही बार २ दुहराव ,पर एक बात अच्छी लगी आपने काफी कुछ सुधार किया हे , कोमल जी अगर १००० पेज हें तो नए पाठक को कहानी के पेज ढूंढने में बहुत समय लग जायेगा पर आपने इस कहानी में सही किया हे पहले पेज पर इंडेक्स देकर , अगर पार्ट एक से ज्यादा पेज पर हे उसके लास्ट में ये लिखकर की कहानी का ये पार्ट अगले पेज पर भी हे इससे बहुत आसानी हो जाएगी , काफी सारे लेखक ये गलतियाँ करते हें , पर पाठक कहानी अगर १०० पेज पर हे तो कमेन्ट के २०० या ३०० पेज पलटना समय बर्बाद करने वाला हे और तकलीफदेह भी

वेसे रेलयात्रा का आपने बखूबी सदुपयोग किया हे कहने की जरूरत नही हे , पर मेने भी काफी रेलयात्रा की हें लम्बी दुरी की भी , अगर अपने देश को जानना हे तो रेलयात्रा से बढकर कोई विकल्प नही हे , ट्रेन से सिटी का व्रहद रूप नजर आ जाता हे
पहली बात छुटकी वाली कहानी में इंडेक्स एकदम शुरू से ही था, जब से कहानी शुरू हुयी

दूसरी बात यह कहानी क्योंकि सीक्वेल है इसलिए इसमें एक तो पूर्वाभास में उसका सार संक्षेप भी दिया है, इंडेक्स में भी पूर्वाभास है

तीसरी बात छुटकी - होली दीदी की ससुराल में शायद ही ऐसी कोई पोस्ट होगी जो दूसरे तीसरे पेज पर होगी, सभी पोस्ट्स इंडेक्स में दिए नंबर पर मिलजाती है और जहाँ दो पेज पर कहानी चली भी है जैसे भाग ६ में तो इंडेक्स में २९-३० दोनों पेज नंबर दिए हैं। और २९ पेज के अंत में भी लिखा है की यह कहानी अगले पेज पर जारी रहेगी और काम मैंने १४ अप्रेल २०२२ को ही किया था, किसी भी सुझाव से पहले

और अब मैं प्रयास करती हूँ की कहानी उस पेज के पहले पोस्ट से ही शुरू हो,...

और अब आपसे और आपके बहाने समग्र पाठकों से अनुरोध

लिखने वाला यह काम पूर्णतया अवैतनिक करता है और एक पोस्ट को पोस्ट करने में ही ३-४ घण्टे लगते हैं और लिखने का समय जोड़ें तो कम से कम ८ घंटे

तो क्या पाठकों से अपेक्षा यह करनी क्या गलत है की पाठक भी थोड़ा समय अगर कहानी पढ़ने में लगाए और उसके बाद लाइक या कमेंट करने पर वो भी कहानी की पोस्ट के बाद या उसी थ्रेड पर,..

पिछली पोस्ट के बाद २७, ००० लोगो ने यह कहानी पढ़ी लेकिन मात्र ६ लोगों ने कमेंट किया, मुझे क्या पता किसी को अच्छी लग रही, नहीं लग रही और मैं फालतू में मेहनत कर रही हूँ, नाइस और ओके लिखने में भी परेशानी है

और यह अनुरोध है जो कहानी हो उसी थ्रेड पर कमेंट करे, जैसे यह कमेंट छुटकी - होली दीदी की ससुराल में आता तो ज्यादा उचित होता,

दूसरे कमेंट अगर स्पेसिफिक पोस्ट्स के बारे में हो, क्या लिखा गया है ट्रीटमेंट के बारे में हो तो ज्यादा अच्छा होगा।

तीसरी बात चित्रों के बारे में आपकी राय और अधिकतर पाठको की राय में मतांतर है, पिक्चर्स रिप्रजेनेटशनल होती है और मैं भी उसी मत को मानती हूँ,... तो उस बात पर अलग मत को स्वीकार किया जा सकता है , न तो जिंदगी में न तो इस फोरम पर अपेक्षा करना उचित है की सब लोगों के विचार एक जैसे हों,...


मैंने आपके तीन महीने के सारे कमनेट्स का विश्लेषण किया आपको बताया भी, मेरा सुझाव है की आप कोई भी चार पांच कहानियां चुन ले और उन्हें पढ़ के कहानी के सतह जुड़े रहें कमेंट देते रहें तो लिखने वाले को ज्यादा फायदा होगा।

उम्मीद है आपका अगला कमेंट मेरी दोनों चल रही कहानी पर ही आएगा।
 
पहली बात छुटकी वाली कहानी में इंडेक्स एकदम शुरू से ही था, जब से कहानी शुरू हुयी

दूसरी बात यह कहानी क्योंकि सीक्वेल है इसलिए इसमें एक तो पूर्वाभास में उसका सार संक्षेप भी दिया है, इंडेक्स में भी पूर्वाभास है

तीसरी बात छुटकी - होली दीदी की ससुराल में शायद ही ऐसी कोई पोस्ट होगी जो दूसरे तीसरे पेज पर होगी, सभी पोस्ट्स इंडेक्स में दिए नंबर पर मिलजाती है और जहाँ दो पेज पर कहानी चली भी है जैसे भाग ६ में तो इंडेक्स में २९-३० दोनों पेज नंबर दिए हैं। और २९ पेज के अंत में भी लिखा है की यह कहानी अगले पेज पर जारी रहेगी और काम मैंने १४ अप्रेल २०२२ को ही किया था, किसी भी सुझाव से पहले

और अब मैं प्रयास करती हूँ की कहानी उस पेज के पहले पोस्ट से ही शुरू हो,...

और अब आपसे और आपके बहाने समग्र पाठकों से अनुरोध

लिखने वाला यह काम पूर्णतया अवैतनिक करता है और एक पोस्ट को पोस्ट करने में ही ३-४ घण्टे लगते हैं और लिखने का समय जोड़ें तो कम से कम ८ घंटे

तो क्या पाठकों से अपेक्षा यह करनी क्या गलत है की पाठक भी थोड़ा समय अगर कहानी पढ़ने में लगाए और उसके बाद लाइक या कमेंट करने पर वो भी कहानी की पोस्ट के बाद या उसी थ्रेड पर,..

पिछली पोस्ट के बाद २७, ००० लोगो ने यह कहानी पढ़ी लेकिन मात्र ६ लोगों ने कमेंट किया, मुझे क्या पता किसी को अच्छी लग रही, नहीं लग रही और मैं फालतू में मेहनत कर रही हूँ, नाइस और ओके लिखने में भी परेशानी है

और यह अनुरोध है जो कहानी हो उसी थ्रेड पर कमेंट करे, जैसे यह कमेंट छुटकी - होली दीदी की ससुराल में आता तो ज्यादा उचित होता,

दूसरे कमेंट अगर स्पेसिफिक पोस्ट्स के बारे में हो, क्या लिखा गया है ट्रीटमेंट के बारे में हो तो ज्यादा अच्छा होगा।

तीसरी बात चित्रों के बारे में आपकी राय और अधिकतर पाठको की राय में मतांतर है, पिक्चर्स रिप्रजेनेटशनल होती है और मैं भी उसी मत को मानती हूँ,... तो उस बात पर अलग मत को स्वीकार किया जा सकता है , न तो जिंदगी में न तो इस फोरम पर अपेक्षा करना उचित है की सब लोगों के विचार एक जैसे हों,...


मैंने आपके तीन महीने के सारे कमनेट्स का विश्लेषण किया आपको बताया भी, मेरा सुझाव है की आप कोई भी चार पांच कहानियां चुन ले और उन्हें पढ़ के कहानी के सतह जुड़े रहें कमेंट देते रहें तो लिखने वाले को ज्यादा फायदा होगा।

उम्मीद है आपका अगला कमेंट मेरी दोनों चल रही कहानी पर ही आएगा।
कोमल जी मेने कमेन्ट छुटकी वाली कहानी पर ही दिया हे , और आपकी बात सही हे की जरूरी नही मेरे मत के अनुसार ही सब हो या सब चले अब देखिये मुझे हिंदी में लिखी कहानियां ही पसंद आती हें ,काफी लोगो से कहा भी की हिंदी में ही ज्यादा से ज्यादा लिखे अब जरूरी नही की वो सब मेरी बात माने कोई बात नही गूगल देवता जिंदाबाद ,जब हिंदी में ही पड़ना हे तो थोडा श्रम और सही , आप कृपया नाराज न हो , बल्कि छुटकी वाली कहानी बहुत बेहतर हे जितनी भी पढ़ पाया हूँ खासकर होली वाले प्रसंग , मुझे भी गाँव की काफी सारी होली की यादें सामने आ गई हें प्लीज ये सब तो चलता रहेगा जो मन में था बोल दिया
 

Shetan

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ग्लाक 19 जेन 4

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कुछ देर पहले की ही तो बात थी , खेल खेल में और गुड्डी की जिद्द,

----

गुड्डी सब दराज चेक कर रही थी और, अचानक एक सामान निकालकर उसने दिखाया और पूछा- “और ये। और ये किसका है?”

मेरी तो जान सूख गई गई- “ये, यहाँ कैसे, मैंने तो बहुत सम्हालकर…” लेकिन था तो मेरा ही। और गुड्डी के आगे झूठ बोलने का तो सोच ही नहीं सकते- “वो। असल में मेरा ही है। लेकिन लगता है कल किसी सामान के साथ, अभी रख देता हूँ…” मैंने जुर्म का इकबाल किया।

गुड्डी के हाथों में मेरी ग्लॉक थी।
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दुनियां की सबसे पापुलर हैंडगन्स में से एक। और किसी के भी हाथ में तुरंत अड्जस्ट हो जाने वाली, उसका रफ टेक्स्चर ग्रिप बहुत स्ट्रांग कर देता है, चाहे पहली बार इश्तेमाल करने वाला हो या प्रोफेशनल, हैंडगन में ग्रिप बहुत जरूरी चीज होती है। इसके हल्के वजन, स्लिम स्ट्रक्चर और छोटी साइज की वजह से ये कन्सील्ड वेपन की तरह आसानी से इश्तेमाल की जा सकती थी।

इसलिए मैं इसे रखता था। और इसमें मैंने बहुत सी चीजें और लगा रखी थी, जैसे ट्रीजिकान एच॰डी॰ नाइट साइट्स।


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इसके साथ-साथ ट्राइटियम लैम्प्स अँधेरी रात में भी निशाना लगाने में मदद करते हैं। लेकिन सबसे खास बात ये थी की, अपनी साइज की वजह से ये लेडीज गन की तरह से भी इश्तेमाल होती है क्योंकी पर्स में ये आसानी से आ जाती है।

और बस इसी चक्कर में मुझे डांट पड़ गई- “रीत के पास यही वाली है न?” ग्लाक को घुमा के देखते हुये गुड्डी ने पूछा।

“हाँ ये लेडीज गन है…” मेरे मुँह से निकलना था की मेरी मुसीबत हो गई।



“ये तुम्हें लेडीज चीजें क्यों पसंद है, कुछ गड़बड़ लगता है मुझे…” मुड़कर मेरी नाक पकड़कर वो बोली।

“नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं, असल में…” मैंने डिफेंड करने की कोशिश की लेकिन, गुड्डी के आगे।



“नहीं नहीं क्या, साले, झूठे, भोंसड़ी के मैं शुरू से देख रही हूँ अभी तूने बोला था न लेडीज गन…”

गुड्डी अब अपने बनारसी और मेरे ससुराली अवतार में आ गई थी, गाली-मय रूप में, और फिर बारिश पूरी तेजी से चालू हो गई-

“अब हो सकता है तेरी पसंद ही ऐसे हो बचपन से आदत लग गई हो, बोल ये भी झूठ है की चंदा भाभी के नीचे के बाल साफ करने वाली क्रीम तूने अपने गाल में लथड़-लथड़ के पोती थी और ढाढ़ी के साथ अपनी मर्दानगी का झंडा भी साफ कर लिया था, बन गए थे चिकनी चमेली। बोलो बोलो, तेरी बहन की…”
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बात सच थी लेकिन अब ये कौन बोले की गुड्डी ने खुद मुझे चंदा भाभी की हेयर रिमूविंग क्रीम इम्पोर्टेड शेविंग क्रीम कहकर मेरे पूरे चेहरे पे लगाई थी, और मेरी आँखें भी बंद करवा रखी थी।

गुड्डी की अदालत में दूसरा चार्ज भी लग गया-


“और उसके भी पहले रात में चंदा भाभी की साड़ी पहनकर सोये थे, तुझे लड़कियों के कपड़े पहनने का शौक है। चल यार है तो है अब ससुराल पहुँचना न, बनारस में, मेरे गाँव में तो बस करवा दूंगी इंतजाम। लेकिन कबूल करो, शर्माते क्यों हो, तेरी बहनें तो पूरे मुहल्ले में बाँटते नहीं शर्माती, तू ही लौंडिया स्टाइल शर्मा रहे हो…”

और इस बार भी गुड्डी से ये कौन कहे की उसने मुझे वापस नहीं जाने दिया था, मेरे कपड़े ले उड़ी थी और मजबूरन मैंने साड़ी लूंगी की तरह पहनी थी, वो भी बस थोड़ी देर। उसके बाद तो चंदा भाभी की पाठशाला में ककहरा सिखने लग गया था।

गुड्डी के हमले चालू थे। अभियोग पक्ष की ओर से उसने अगला चार्ज पेश किया-

“चलो, तुम कहोगे तुम्हारे पास कोई कपड़ा सोने के लिए नहीं था इसलिए भाभी की साड़ी उधार ले ली। लेकिन अगले दिन, गुंजा का बरमुडा। वो भी पहनने का शौक तुम्हें चर्राया था? मेरे तो कुछ समझ में नहीं आता वैसे तो तुम ठीक ठाक लगते हो लेकिन, और उस दिन छत पर, रीत, दूबे भाभी सब गवाह हैं कि कैसे साड़ी ब्लाउज़ पहनकर मटक रहे थे…”

मैं चुप का चुप। कौन कहे, होली में चंदा भाभी, दूबे भाभी, रीत, गुड्डी और साथ में संध्या भाभी भी। मैं अकेले द्रौपदी की तरह और वो पांच। बस उनकी मर्जी चली।

और जवाब गुड्डी ने ही फिर दिया-

“चलो ससुराल में थे, साली, सलहज। लेकिन अपने मायके में, अपनी बहनों के सामने, ऐन होली के दिन, सिर्पफ साड़ी साया ब्लाउज़ ही नहीं पहना, पूरे मुहल्ले में चक्कर भी काटा। मेरे पास सारे फोटोग्राफ मौजूद हैं और तेरे फेसबुक पे पोस्ट भी करूंगी जानू…”

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था की गुड्डी ने हमले की धार और तेजी कर दी-

“अब मेरी समझ में आ गया है, तेरी सास हैं चाभी। जब तुम ससुराल में रहोगे न। बल्की शादी के पहले भी तो आओगे न। तो बस और आखीरकार, दामाद की पसंद तो बिचारे ससुराल वालों को पूरी ही करनी पड़ती है तो बस मांग लेना, खोलकर…” वो दुष्ट बोली।

“क्या मांग लूंगा यार? पहेली क्यों बुझा रही हो?” मैंने झुंझला के पूछा।

“अरे यार सिंपल, अपनी सास से कहना कि तेरे लिए बाजार से कुछ अच्छी ब्रा-पैंटी खरीदवा देंगी। रूपा साफ्टलाइन चलेगी या कोई और फैंसी, अब बनारस में जो मिलेगी वही तो दिलवाएंगी बिचारी…”
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“लेकिन ब्रा-पैंटी क्यों?” मैंने पूछा।

“सिम्पल यार। तेरे को लड़कियों का सामान इश्तेमाल करने का शौक है अब देख ये लेडीज गन लटका के टहलने का शौक है तुझे, लड़कियों के कपड़े पहनते हो मौका मिलते ही। तो फिर अब ब्रा-पैंटी तो तुझे किसी और के नाप के आएंगी नहीं। फिर बाकी चीजें टाइट ढीली चलती है, ब्रा और पैंटी लेकिन एकदम फिटमफिट होनी चाहिए, आखीरकार, शेप साइज तो उसी से पता चलता है। पक्का न फिर मम्मी से क्या शर्माना?”

मेरी कुछ भी नहीं समझ में आ रहा था कि मैं क्या बोलूं?

इसलिए बात गुड्डी ने ही जारी रखी-


“अरे यार समझा कर, तेरी इस गोरी लचकीली देह पे साड़ी ब्लाउज़ बहुत जमेगा। अब साड़ी तू अपनी सास की पहन लेना, चंदा भाभी की साड़ी तो पहले ही पहन चुके हो, वो मना थोड़े ही करेंगी। रही बात ब्लाउज़ की, वो भी टांक टूंक के री-फिट करके मैं या मम्मी तेरे नाप की कर देंगे, लेकिन ब्रा तो सही चाहिए न। तो बोल देना, खरीद देंगी। सिगरा वाले माल से लेकर गोदौलिया और मैदागिन तक उनकी बहुत जान पहचान है। और आप जाओगे तो फिटिंग रूम में जो सेल्सगर्ल हैं न, बस अपने हाथ से नाप नाप के एकदम सही साइज की दिलवाएंगी…”

मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था बात का ट्रैक कैसे बदलूं। गुड्डी खिंचाई मेरी कर रही थी लेकिन निगाह उसकी बार-बार ग्लाक पे जा रही थी। हाथ में पकड़कर कभी वो उसे सहलाती तो कभी उसे ठीक से पकड़ने की कोशिश करती, तो कभी जैसे निशाना साध रही हो।

मैंने पेंच पकड़ ली- “चलाना सीखोगी?” मैंने पूछा।

“क्यों नहीं? आखीरकार, रीत चला सकती है तो थोड़ा बहुत मैं भी सीख सकती हूँ…” ठसके से वो बोली।

तो असली बात ये थी लेकिन मैंने तुरंत 500 ग्राम मस्का मारा- “अरे यार तुम तो अँखियों से गोली मारे टाइप बनारसी बाला हो, आँखें कटार, जुबना बरछी की धार, तुझे बन्दुक पिस्तौल की क्या जरूरत?” और ये कहते हुए मैंने हल्के से उसके खड़े, टाइट निपल दबा दिये।

वो मुश्कुराई एकदम हँसी तो फँसी वाले अंदाज में, फिर बोली- “सीधे से सीखा दो, वरना जो नीचे से बुलबुल आएगी न अभी, तड़पा दूंगी उसके लिए…”

और मैं तुरंत चालू हो गया, ग्लाक के बारे में, उसकी तारीफ, अंग्रेजी में।
Wah maza aa gaya. Action aur masti dono ke sath. Me to kuchh shararat padhne aai thi par starting kab action padh kar laga ki shararat masti vala kuchh milega nahi. Amezing. Dropati ban ne me harj hi kya he. Chir haran me maza to tumhe bhi aaega. Superb update.

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Shetan

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गुड्डी, ग्लाक और ट्रेनिंग



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मैंने पेंच पकड़ ली- “चलाना सीखोगी?” मैंने पूछा।

“क्यों नहीं? आखीरकार, रीत चला सकती है तो थोड़ा बहुत मैं भी सीख सकती हूँ…” ठसके से वो बोली।

तो असली बात ये थी लेकिन मैंने तुरंत 500 ग्राम मस्का मारा-

“अरे यार तुम तो अँखियों से गोली मारे टाइप बनारसी बाला हो, आँखें कटार, जुबना बरछी की धार, तुझे बन्दुक पिस्तौल की क्या जरूरत?” और ये कहते हुए मैंने हल्के से उसके खड़े, टाइट निपल दबा दिये।

वो मुश्कुराई एकदम हँसी तो फँसी वाले अंदाज में, फिर बोली- “सीधे से सीखा दो, वरना जो नीचे से बुलबुल आएगी न अभी, तड़पा दूंगी उसके लिए…”

और मैं तुरंत चालू हो गया, ग्लाक के बारे में, उसकी तारीफ, अंग्रेजी में।



***** *****

गुड्डी जोर-जोर से बहुत देर तक खिलखिलाती रही, फिर रुक के बोली-

“तुम पक्के सेल्समैन लग रहे हो। अरे बेचने का इतना शौक है न तो जो तेरी बहिनिया कम माल है, अभी आएगी नीचे से, उसे बेचो न। बहुत नगदी मिलेगी। हजारों का तो सिर्फ उसके जुबना का दाम लग जाएगा। अरे मुझे खरीदना नहीं है, सिर्फ जानना है कैसे चलाते हैं। सीधे से समझाओ वरना रात भर बैठकर तड़पना, हाथ न लगाने दूंगी उस बुलबुल को। और वैसे भी कल तेरे भैया भाभी आ जाएंगे। और उसके बाद बनारस, वहां तो आगे से ही उसकी बुकिंग है बस तुम देखते रहना और गिनते रहना, कितने पार उतरेंगे उसकी तलैया में। सिखाओ…”

कोई रास्ता बचा नहीं था। पहले मैंने उसे ग्लाक 19 जेन 4 के बारे में बताया, बैरेल 4 इंच की, पूरी पिस्टल 7॰2 इंच की, लेकिन गुड्डी भी न, वो मेरे ठीक आगे खड़ी थी, ग्लाक मेरे हाथ में थी।

उसने पीछे हाथ बढ़ाकर मेरे बाक्सर शार्ट के ऊपर से तने तम्बू को जोर से दबाया, और खिलखिलाते हुये बोली- “यार मेरी वाली पिस्टल तो तेरी ग्लाक से भी बड़ी है, और जोरदार भी, खैर चलो आगे बताओ…”
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और मैंने फिर उसको एक-एक पार्ट के बारे में बताना शुरू किया, ट्रिगर, साइट, कैसे पकड़ते हैं?

और गुड्डी फिर चालू हो गई बाक्सर के ऊपर से दबाकर बोली-

“अपनी उस छिनार को समझाना कैसे पकड़ते हैं, वैसे भले सील तुमने खोली हो, लेकिन पकड़ने में उसकी प्रैक्टिस पुरानी है। कित्ते मोहल्ले वाले का उसने पकड़ा और कितनों से उसने अपना पकड़वाया, उसकी गिनती उसके पास भी नहीं है…”
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गुड्डी की हरकतों और बातों से बचने का मेरे पास एक ही रास्ता था, मैंने उसे ग्लाक पकड़ा दी और बोला-


“दोनों हाथों से पकड़ो। सही ग्रिप, सही स्टांस, हाथ की पोजीशन सारी बातें और साथ में कैसे दूसरे हाथ से पकड़कर पिस्टल को एकदम स्टीडी पोजीशन में रखें…”

दो-चार बार की कोशिश के बाद उसने ग्रिप और स्टांस सीख लिया। मैंने पहले ही चेक कर लिया था की पिस्टल अनलोडेड है। उसकी मैगजीन बगल में रखी थी। गुड्डी ट्रिगर दबाने के लिए बेताब थी, लेकिन मैंने कहा की पहले पकड़ना अच्छी तरह सीख लो, फिर दबाना सीखना।

इस डबल मीनिंग डायलाग का उसपर कोई असर नहीं हुआ, इसका मतलब वो बड़ी तल्लीनता से ध्यान लगाकर प्रैक्टिस कर रही थी। ट्रिगर पकड़ना, उसपर कैसे दबाव बनाये अब मैंने ये समझाया।

दो-चार बार उसने प्रैक्टिस की लेकिन उसका ध्यान नाइट साइट्स की ओर गया, और बच्चों की तरह पूछ बैठी- “ये क्या है?”


मैंने ट्रीजिकान हाई डिफिनशन नाइट साइट्स के बारे में उसे समझाया और ये भी की कैसे बहुत कम रोशनी में ये निशाना सेट करने में मदद करती है। लेकिन सबसे कठिन था मैं उसे निशाना क्या बताऊँ? हम लोग भाभी के कमरे में थे, जो छत पर पहली मंजिल पे था और अकेला कमरा। बाहर बड़ी खुली छत थी। एक बड़ी सी खुली खिड़की थी, जिससे फगुनाहट वाली हवा आ रही थी।



और वहां से एक बड़ा सा आम का पेड़ भी दिख रहा था, जिसकी डालें हमारी छत पर आलमोस्ट झुक जाती थी। आम के बौर से भरा, रात की मस्ती से भरा वो भी झूम रहा था। लेकिन उसकी छाया में थोड़ा अँधेरा था और नाइट साइट के लिए वो परफेक्ट था। कमरे से मुश्किल से 15-20 गज की दूरी पे। और उसके ठीक नीचे छत की पैरापेट वाल थी, बहुत ऊँची नहीं करीब चार-पाँच फीट। उसपर रंग जगह-जगह उखड़ गया था और तरह-तरहकर शेप बन गए थे।


बस गुड्डी को मैंने वो समझाया और कहा की उसे 1, 2, 3, नंबर मान ले। फिर उसे फ्रंट सीट, रियर साइट और टारगेट कैसे मैच कराएं ये बताया।


गुड्डी भी, गुड्डी क्या कोई भी लड़की काम निकलने के बाद टाटा बाई-बाई कर देती है। गुड्डी ने यही किया, बोली-

“अच्छा अब पांच मिनट तक मुझे डिस्टर्ब न करो, मुझे ट्राई करने दो…”
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Wow.. dekh lo sahabji. Hathiyar aur hasina dono ek sath bahot khatarnak hote he. Amezig update.

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Shetan

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परफेक्ट स्टांस

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“तो जरा जाकर देख न नीचे, किससे मरवा रही है वो। यार यहाँ बिचारा उसका तड़प रहा है। और हाँ जरा कुछ नीचे से खाने का भी सामान मिल जाय तो ले आना। कुछ नहीं हो तो अपनी झटपट सैंडविच ही बना लाना। तेरे माल की सैंडविच बनाने के चक्कर में शाम का सब कुछ खाया पिया पच गया…” गुड्डी ने समझाया। और झटपट मैं सीढ़ियों से नीचे उतर गया।

भूख वाली बात गुड्डी की एकदम सही थी। शाम का खाया पिज्जा कहाँ गायब हो गया पता नहीं चला। पूरा घर अँधेरे में डूबा था। सिर्फ एक कमरे में हल्की सी रोशनी जल रही थी जहाँ जी-टाक पर रंजी अपनी डायटसियन से बातें कर रही थी।

मुझे देखते ही मेरी बेबसी, मेरी बेताबी का अहसास उसे तुरंत हो गया और मुश्कुराकर, हल्के से हँसकर दोनों हाथों की उंगलियों से उसने इशारा किया- “बस दस मिनट…” और साथ में उसने हल्के से झटक के चेहरे पे आई लट को हटाया। कुछ लड़कियों के खिलखिलाने पे गालों पे गड्ढे पड़ते हैं लेकिन रंजी तो बस जरा सा फूलझड़ी की तरह हँस दे तो बस उसके गुलाबी गालों में गहरे गड्ढे पड़ जाते थे। तभी तो जिल्ला टाप माल थी वो और अब जग जीतने जा रही थी।

पूछा जो उनसे चाँद निकलता है किस तरह,

जुल्फों को रूख पे डालकर झटका दिया कि यूँ।

स्टार्च, कार्बोहाइड्रेट, डाइट, वाटर इनटेक और न जाने क्या-क्या खाने पीने की बातें हो रही थी। बल्की न खाने की बातें हो रही थी। और ये बातें सुनकर मेरी भूख और बढ़ गई। किचेन में कुछ भी नहीं मिला। मिलता कैसे, रंजी और गुड्डी दोनों मुझे खाने के फिराक में थी तो उन्होंने खाना कुछ बनाया नहीं। फ्रिज भी खंगाला, लेकिन सब बेकार।

अंत में मिली जुली सरकार टाइप अपनी झटपट सैंडविच ही बनानी पड़ी। गुड्डी को पसंद भी थी और जल्दी से बन भी जाती थी। 5-6 मिनट में एक प्लेट सैंडविच बनाकर मैं दबे पाँव ऊपर बढ़ा। रंजी के खाने के बारे में चर्चा खत्म होने के कगार पे थी, वो कुछ सीरियसली नोट कर रही थी।

मैंने दबे पाँव दरवाजा खोला, और वहीं दरवाजे पे खड़ा हो गया।

गुड्डी स्टांस लेकर खड़ी थी। परफेक्ट स्टांस। दोनों पैर फैले हुए थे, उसके कंधे की लम्बाई के बराबर, घुटना बहुत हल्का सा मुड़ा, और हाथ की पोजीशन भी, उसका दायां हाथ (गन हैंड) परफेक्ट ग्रिप की पोजीशन में और अंगूठा, हथेली बैक ग्रिप को पकड़े। दूसरा हाथ (सपोर्ट हैंड) भी उसी तरह ग्लॉक के दूसरी साइड को पकड़े, अंगूठा आगे की ओर जिधर स्लाइड फ्रेम से मिलती है, बाकी चार उंगलियां ट्रिगर गार्ड के नीचे जोर से दायें हाथ को दबाये।

लेकिन सबसे जबरदस्त था जिस तरह उसने अपनी आँख को ट्रेन किया था, फ्रंट साइट, रियर साइट उसकी आँख के अलाइनमेंट पे और जो तीन टारगेट उसे मैंने दिखाए थे उस पे बारी-बारी से निशाना लगाकर वो ट्रिगर पुल कर रही थी, पूरे कांफिडेंस के साथ। मैं हाथ में सैंडविच की ट्रे लिए दरवाजे पर खड़ा बस गुड्डी को देखता रहा।

गुड्डी का ध्यान सिर्फ पिस्टल पर था और टारगेट पर।

मेरा सिर्फ गुड्डी पर। ये बनारस वालियां कुछ भी सीखने में कितनी तेज होती हैं। अभी थोड़ी देर पहले ही इसने पहली बार स्ट्रैप आन डिल्डो अपनी कमर में बाँधा था और कैसे जबरदस्त, रंजी की कसी टाइट गाण्ड का हलवा बना दिया था।

रंजी मुझसे कभी न पटती, लेकिन इतनी जल्दी न,उसने रंजी को शीशे में उतार दिया, रंजी को माडल बनाने में भी वही पीछे पड़ी थी। और अब ये नया शौक?

धीमे-धीमे मैं अंदर घुसा और टेबल पर सैंडविच की ट्रे रखकर अन्नाउंस किया- “टन टना टन सैंडविच रेडी, मेरी स्पेशल सैंडविच…”

बिना निगाह हटाये वो बोली- “जानू साथ में कुछ पीने का है क्या? अभी तेरी कोई मायकेवाली न गाभिन हैं न दुधारू, हाँ 25 मई को जब लेकर आओगे न तो पक्की गारंटी आधी से ज्यादा गाभिन होकर लौंटेंगी…”

मैंने एक बार फिर उस आलमारी को खोला जिसमें भाभी ने चिट लगा रखी थी और जिन की एक बोतल (ब्लैकवुड 120 प्रूफ) निकालकर टेबल पे रख ली। ग्लास और आइस भी- “रेडी, सैंडविच भी और जिन भी…” मैंने फिर अनाउंस किया।

“और जिसकी सैंडविच बनेगी वो किधर है जानू? तेरी और तेरे पूरे शहर की फेवरिट छिनार…” गुड्डी ने फिर सवाल दागा।

“घबड़ा मत बस आ रही हूँ…” जवाब रंजी का मिला, दरवाजे के बाहर से।

और गुड्डी ने बिना घबड़ाये, पलक झपकते पिस्टल बेड के बगल की साइड टेबल पे रख दी और उसके ऊपर एक मैगजीन।



जब रंजी आई तो हम दोनों उस टेबल के सामने थे, जिसपर मैंने सैंडविच और जिन रख रखी थी।

“वाउ… मस्त सैंडविच, मेरे पेट में चूहे कूद रहे हैं, किसने बनायी है?” रंजी ने भूखी, नदीदी की तरह जोर से बोला।

“मैंने…” सीना फुलाकर मैं बोला।

“बधाई…” जोर से रंजी बोली और जैसा मेरे साथ अक्सर होता है, मुझे इग्नोर मारकर सीधे वो गुड्डी की ओर बढ़ी और उसे बाँहों में भींचकर बोली- “बधाई हो, तुझे इतनी सुघड़ गृहणी मिली है, घरेलू कामों में दक्ष, किचन में एक्सपर्ट…”

गुड्डी कौन कम थी उसने और जोर से दबोचा और अपने रैप में मुश्किल से ढके उभारों को, उसके ब्रा मुक्त, लेकिन मेरी लांग शर्ट में छुपे उरोजों पे जोर से रगड़ती, रंजी के होंठों को दबोच के चूम लिया और बोली- “अरे यार बधायी तुझे भी हो, आखीरकार, ये गृहिणी हम दोनों की साझे की है। जितनी मेरी उत्ती तेरी। तभी तो हम दोनों मिलकर इसकी नथ साथ-साथ उतार रहे हैं…”

रंजी खिलखिलाने लगी, अगर गुड्डी और रंजी एक साथ मिल जायँ न तो उस डबल पेस अटैक का मुकाबला कोई नहीं।

गुड्डी ने टोका- “अरे यार बोल तो, क्या सोच रही है?”

“जब ये सज धज के ट्रे में चाय लेकर गए होंगे, और तुम लोग इनको देखने गए होगे, तो कितना मजेदार सीन रहा होगा…”

और अब गुड्डी भी उस खिलखिलाने में शामिल हो गई और बोली- “सही कह रही हो, इतनी तेज ट्रे खड़खड़ा रही थी की मैं तो समझी कहीं भूकम्प तो नहीं आया, वो तो मम्मी मेरी, उन्होंने उठकर ट्रे इनके हाथ से थाम ली और समझा के बोली- “घबड़ा मत बेटी, इसमें डरने की क्या बात है, ये दिन तो हर लड़की की जिंदगी में एक दिन आता है। धीरे-धीरे प्रैक्टिस हो जायेगी…”
गुड्डी अकेले ही काफी है और अगर उसे किसी का साथ मिल जाये मेरी होने वाली दोनों सालियों का, उसकी सहेलियों का तो मेरी तो,...

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लेकिन बस दस पंद्रह मिनट में ग्लाक की उस ट्रेनिंग ने, ... हम सब को बचा लिया,... कालिया का वार आज तक खाली नहीं गया, लेकिन कंधे में घुसी गुड्डी के ग्लाक से चली गोली और मिल गया वो मौका,... कालिया जिससे कोई नहीं जीत पाया था, गुड्डी की गोली,
Wow bas thode se romance me bhi MRD ki feeling aa rahi he. Amezig

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कालिया, ज़ेड बनारस और रीत
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और अगर मैं गुड्डी से कहता की, " अगर तुम न होती तो शायद,... "

उस घायल हालात में भी वो पहले तो मेरा मुंह बंद करती और दस बात सुनाती,...

" क्यों न होती मैं,... और कौन होता मेरी जगह, ज़रा बोल तो, मुंह नोच लूंगी उसका, तेरी जितनी मां बहने हैं सब के अगवाड़े पिछवाड़े चढ़ो उतरो कबड्डी खेलो,... जितनी मर्जी उतना लेकिन मैं तो मैं हूँ ,... और सात जनम का तो लिखवा के आयी हूँ ऊपर से, आठवें तुझे अपनी सजनी बना के रगडूंगी और बताउंगी की कैसे जबरदस्ती, जब चाहो तब बिन पूछे रगड़ना चाहिए,... उसके बाद की देखी जाएगी।


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कहानी कालिया की शुरू हुयी थी , बल्कि इस कहानी में वो आया था बनारस से, जेड के चक्कर,... कौन जेड , चलिए बस थोड़े से पन्ने पलटिये

लेकिन बस दस पंद्रह मिनट में ग्लाक की उस ट्रेनिंग ने, ... हम सब को बचा लिया,... कालिया का वार आज तक खाली नहीं गया, लेकिन कंधे में घुसी गुड्डी के ग्लाक से चली गोली और मिल गया वो मौका,... कालिया जिससे कोई नहीं जीत पाया था, गुड्डी की गोली,

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सब को अंदाज था की हर जगह अलग अलग स्लीपर सेल होंगे, और उसके हेड को भी सेल से ज्यादा शायद ही मालूम हो, लेकिन उसके भी पकडे जाने से कुछ तार तो जुड़ते, आगे का पता चलता,... लेकिन कालिया के हाथ कानून के हाथ से भी लम्बे थे, पकडे जाने के ठीक पहले, पत्ता साफ़

बनारस के आपरेशन के सेंटर में था जेड, और बड़ी मुश्किल से रीत ने कुछ कार्लोस कुछ अपनी ठरकी सेना कुछ इधर उधर,... पर जेड के पकडे जाने के पहले ही

बात शुरू हुयी थी आर डी एक्स से, बनारस में बम बम तो होता ही रहता है, छुटभैये इधर उधर दिवाली के पटाखे की तरह और पहले तो लगा चुम्मन भी उसी तरह,... कोई पटाखा नुमा,... लेकिन रीत की जिद,... और एक एक कर के सब तार जुड़ते चले गए

चुम्मन को लेकर स्निफर डाग्स के साथ वो लोग काशी करवट की उस जगह पे भी गए।

स्निफर डाग्स ने उस जगह आर॰डी॰एक्स॰ को भी स्निफ किया और डिटोनेटर्स को भी। ये साफ लग रहा था की बाम्ब वहीं असेम्बल हुए हैं और ये हुजी के उस आपरेटिव के अलावा किसी के बस की बात नहीं। डाग्स ने उसको ट्रेस करने की भी कोशिश की। लेकिन सारी सेंट गंगा के पास जाकर खतम हो गई थी। इसका मतलब था की नदी के रास्ते ट्रांसपोर्ट किया गया है। ये भी अंदाज लग रहा है की वो बाम्ब मेकर कम से कम 36 घंटे वहां था।

चुम्मन ने उसके पास एक काठमांडू जाने का एयर टिकट भी देखा था।

दूसरी इम्पार्टेंट बात जो पता चली की अब ये अंदाजा लग गया है की आर॰डी॰एक्स॰ कैसे आया। कई बार स्मगलर्स जानबूझ के कुछ सामान कस्टम्स को पकड़वा देते हैं जिससे कुछ दिन तक हीट कम हो जाय। लेकिन ये हाल बहुत बड़ा नहीं होता।



अभी लेकिन कुछ दिन पहले कस्टम्स को एक अब्नार्मल हाल का अंदाज लगा और उन्होंने काफी पुलिस की भी सहायता लेकर सुनौली बार्डर पे हिरोइन की एक रिकार्ड खेप पकड़ी। शुक्ला ने गोरखपुर के एक गैंग, से बात करके पता किया की वो शायद कैमफ्लाज था।

सारी की सारी पुलिस 15-20 किलोमीटर में लग गई थी और वहां से 40 किलोमीटर दूर एक नाले के रास्ते से दो-चार बोरे कोई सामान स्मगल हुआ। जो एक भरी हुई गारबेज ट्रक में रखकर बनारस आया। गार्बेज ट्रक के दो एडवांटेज थे। एक तो उसे कोई अन्दर तक चेक नहीं करता और दूसरे उसकी बदबू में आर॰डी॰एक्स॰ की महक दब जाती है। वो ट्रक 15 दिन पहले आजमगढ़ म्युनिस्पिलीटी से चोरी हुआ था। टोल के सी॰सी॰टीवी से उसका डिटेल मिल गया, पर ट्रक नहीं मिला, ...


लेकिन रीत को अंदाज था की जेड ( ये नाम भी रीत ने रखा था ) ने नाव का इस्तेमाल किया होगा आने जाने के लिए इसलिए स्नीफर डॉग्स को कुछ पता नहीं चल रहा है, जेड का भी पता रीत ने लगाया, वो सोनारपुरा में रहता था और साड़ियों का कारोबार ये भी रीत ने पता किया कपड़ो की गाँठ उसने बनारस से बड़ौदा भेजा है


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लेकिन जब एकदम पुलिस उसे पकड़ने वाली थी तो कालिया,...

मेरे दिमाग में सब बातें पिक्चर के रील की तरह घूम रही थीं
Are jiyo komalji. Bas esi hi masti ki to talash thi. Amezing.

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वाई











बड़ौदा में जो स्लीपर सेल हेड कर रहा था उसे रीत ने कोड नेम ' वाई ' दिया था,... और वहां प्लान था इंडियन आयल की रिफायनरी और आस पास के पावर हाउसेज को ध्वस्त करने का रेलवे के वैगनों की सहायता से,... वैगनों में वो कुछ डिवाइस लगाते और जब वो रेल टैंकर पेट्रोलियम की लोडिंग के लिए रिफायनरी में जाते तो आधे से ज्यादा लोडिंग पूरा होने के बाद वो डिवाइसेज एक्टिवेट हो जातीं,... एक साथ तीन चार टैंकर रेक की लोडिंग वहां होती थी और उन के साथ साथ विस्फोट से न सिर्फ रिफायनरी बल्कि आस पास के इलाके में, उसी तरह से कोयले से लदे वैगन आस पास के पावर हाउसेज में तो वहां भी उसी तरह,... जब वह कोयला ब्व्यालर में जाता तो,...


रीत को मैंने मीनल का रिफरेंस दिया था, बड़ौदा में एम् एस युनिवरसिटी में फाइन आर्ट्स में पढ़ती थी और वहां के गली कूचे का उसे उसी तरह पता था जैसे रीत को बनारस की गलियों का,


और रीत ने तय कर लिया था की अबकी वाई को जिन्दा ही पकड़ना है, कुछ भी हो उसे किसी तरह कालिया के हाथ नहीं लगने देना है , जेड से तो न तो कुछ पूछताछ हो पायी न उस के तार कहाँ से जुड़े हैं ये पता चल पाया तो ये वाई के साथ न हो ,



उसे पहचाना भी रीत ने जिन्दा पकड़वाया भी,...



रीत ने जंग का मैदान तलाश लिया था। किसी भी लड़ाई में पहला कदम यही है की मैदान आपके अनुकूल हो और उसके चारों ओर की जानकारी आपको अच्छी तरह हो। इस जगह पे रिपयेर वाले स्टाफ कहीं से दिख नहीं रहे थे। दूसरे रिफायनरी की ओर से आने वाली सड़क का गेट बहुत पास था और सड़क वहाँ तक आ आ रही थी।



उसने फ्रेंडशिप ऐसे अपने कलाई पे बंधे बैंड का पीला बटन दबा दिया। उससे अब करन का डायरेक्ट कांटेक्ट स्टैब्लिश हो गया। उस बैंड का स्पेशल ऐप मोबाइल में था, उसके जी॰पी॰एस॰ पे अब साफ था जहाँ करन था, वहाँ से यहाँ क्या है और पहुँचने का समय चार मिनट दिखा रहा था।



रीत अब तैयार थी- अटैक।



मीनल अब तक उसे बातों में उलझाए थी, जब की वाई चाहता था की जल्द से जल्द उसे फुटाए। मीनल ने उससे बोला की बस वो उसे उससे दो-चार बातें लेना चाहती है, सिर्फ इस बात को हाइलाइट करने के लिए की जब लोग होली की छुट्टी मना रहे हैं तब भी आप लोग लगन से काम कर रहे हैं। बस वो जो मेरी असिस्टेंट खड़ी है न दो मिनट लगेगा वहीं।



वो घबड़ाया- “नहीं कोई फोटो वोटो नहीं, हमारे यहाँ परमिटेड नहीं है…”



मीनल ने उसे समझाया- “नहीं हम कोई इलेक्ट्रानिक मिडिया वाले नहीं है बस वो अभी सीख रही है न, तो मैं सवाल करूंगी, वो जवाब नोट करेगी…” और मीनल चलती हुई रीत के पास आ गई और पीछे-पीछे वो। मीनल और रीत इस तरह खड़ी थी की यार्ड में से कोई भी देखता, वही दोनों दिखती और वो उन दोनों के बीच, छिपा, ढंका।


सवाल मीनल ने शुरू किया और रीत वाई के पीछे खड़ी थी। मीनल ने कहा- “आप छुट्टी के दिन भी इतनी मेहनत से काम कर रहे हैं…”

वाई ने बोला- “जी…” लेकिन उसकी निगाहें इधर-उधर घूम रही थी, और हाथ में वो रेग्जीन वाला बैग बहुत कसकर पकड़े था। वही जिसमें से वो डिवाइसेज निकालकर लोगों को दे रहा था लगाने के लिए।

मीनल ने अगला सवाल किया- “लेकिन आप किस देश के लिए काम कर रहे हैं?”

अब वो चौंका, गुस्से में बोला- “मतलब?”

“मतलब, ये आप वैगन में बम क्यों लगा रहे हैं?” मीनल ने बोला।

जवाब उसके चाकू ने दिया, जिस फुर्ती से उसने चाकू से मीनल पे हमला किया।

रीत मान गई उसे।

लेकिन उतनी ही फुर्ती से मीनल का पेपर स्प्रे चला, वो सबसे ज्यादा पावरफुल स्प्रे था जिसमें आसाम की मशहूर भूत जोलकिया चिली का इश्तेमाल किया गया था।

साथ ही रीत के दोनों चले उसके घुटनों के जोड़ पे। नतीजा वही हुआ जो होना था, वो जमीन पे और चाकू ने सिर्फ मीनल के टाप को हाथ के पास से चीर दिया था और उसे हल्की खरोंच लगी थी। रीत ने साथ में ही अपने कलाई में बंधे बैंड पे रेड बैंड दबा दिया और उसी के साथ अपनी टेजर गन से गिरे हुए वाई के बाडी से सटाकर दो शाट मार दिए।

अब वो आधे एक घंटे के लिए बेकार था।


मीनल ने जमीन पे गिरा वाई का मोबाईल उठाकर अपने पर्स के हवाले किया और रीत ने अपने झोलेनुमा लेडीज पर्स में उसका वो रेग्जीन का बैग, जिसमें वो डिवाइसेज थी। इस सब में उन दोनों को एक मिनट से ज्यादा नहीं लगा। उसको उकसाना इसलिए जरूरी था जिससे कन्फर्म हो जाए की वो दुश्मन का एजेंट है, और दूसरे गुस्से में वो अपना कंट्रोल खो देगा और उसे न्यूट्रलाइज करना ज्यादा आसान होगा।

और वही हुआ।

तभी रीत ने अपनी पेरीफेरल विजन से देखा उसे कोई देख रहा है। और सतर्क हो गई। उसने मीनल को भी इशारा किया।

रीत ने झुक कर ‘वाई’ के गले के पास की एक नस दबा दी, सिर्फ दस सेकंड के लिए, और उसका असर ये हुआ की अब वो किसी तरह एक घंटे के पहले होश में नहीं आने वाला था। उससे भी ज्यादा ये हुआ की अब उसके सारे सिम्पटम हार्ट अटैक के थे, नब्ज़ स्लो हो गई थी, खून दबाव कम हो गया था। कोई डाक्टर भी बिना ई॰सी॰जी॰ किये ये नहीं कह सकता था कि, इसे हार्ट अटैक नहीं हुआ।

तब तक वही हुआ जिसका रीत को डर था। ढेर सारे काम करने वाले इकट्ठे हो गए, मारो मारो करते, और पीछे वही आदमी था जिसे रीत ने पेरीफेरल विजन से देखा था, वो सामने नहीं आ रहा था, लेकिन लोगों को उकसा रहा था- “यही दोनों हैं, क्या किया तुम दोनों ने मारा है इन्हें?”

मोर्चा मीनल ने फिर सम्हाला- “तुम लोग समझते क्यूँ नहीं, इन्हें हार्ट अटैक हुआ है, तुरंत हास्पिटल ले जाना जरूरी है…” वो बोली।

“हास्पिटल ले चलना है तो रेलवे हास्पिटल ले चलना है, प्रतापनगर…” एक बोला।

रीत अभी भी झुकी उसकी नब्ज़ देख रही थी। उसने कनखियों से देखा, वही आदमी अभी भी भीड़ को उकसा रहा था।

वो उठकर खड़ी हुई और बोली- “मैंने रिफायनरी की एम्बुलेंस को फोन कर दिया है वो अभी आ रही होगी…” उसने उस बैंड के सहारे जब रेड अलर्ट किया था तभी करन को बोल दिया था की वो रिफायनरी के एम्बुलेंस से आये।

“अरे रिफायनरी वाले कभी एम्बुलेंस नहीं भेजंगे, पहले इनको उठाओ आफिस में ले चलो…” एक कोई और चिल्लाया।

यही रीत नहीं चाहती थी। एक बार अगर वाई को वो उठा ले आते तो क्या होता पता नहीं। उसे वाई जिन्दा चाहिए था। वो जेड का हश्र बनारस में देख चुकी थी। आई॰बी॰ और पुलिस वाले देखते रह गए और भारी भीड़ में उसे गोदौलिया में खतम कर दिया। रीत ने फिर करन को फोन लगाया। करन ने बोला वो एम्बुलेंस में निकल गया है बस दो-तीन मिनट में पहुँच रहा है।



लेकिन दो-तीन मिनट भी मुश्किल पड़ रहे थे।
Reet ka to pura jivan hi badal gaya. Masum ladki se mission tak. Par amezing . Kuchh hat kar likha he. Superb...

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वाई, बड़ोदा और रीत
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तभी रीत ने अपनी पेरीफेरल विजन से देखा उसे कोई देख रहा है। और सतर्क हो गई। उसने मीनल को भी इशारा किया। रीत ने झुक कर ‘वाई’ के गले के पास की एक नस दबा दी, सिर्फ दस सेकंड के लिए, और उसका असर ये हुआ की अब वो किसी तरह एक घंटे के पहले होश में नहीं आने वाला था। उससे भी ज्यादा ये हुआ की अब उसके सारे सिम्पटम हार्ट अटैक के थे, नब्ज़ स्लो हो गई थी, खून दबाव कम हो गया था। कोई डाक्टर भी बिना ई॰सी॰जी॰ किये ये नहीं कह सकता था कि, इसे हार्ट अटैक नहीं हुआ।

तब तक वही हुआ जिसका रीत को डर था। ढेर सारे काम करने वाले इकट्ठे हो गए, मारो मारो करते, और पीछे वही आदमी था जिसे रीत ने पेरीफेरल विजन से देखा था, वो सामने नहीं आ रहा था, लेकिन लोगों को उकसा रहा था- “यही दोनों हैं, क्या किया तुम दोनों ने मारा है इन्हें?”


मोर्चा मीनल ने फिर सम्हाला- “तुम लोग समझते क्यूँ नहीं, इन्हें हार्ट अटैक हुआ है, तुरंत हास्पिटल ले जाना जरूरी है…” वो बोली।

“हास्पिटल ले चलना है तो रेलवे हास्पिटल ले चलना है, प्रतापनगर…” एक बोला।

रीत अभी भी झुकी उसकी नब्ज़ देख रही थी। उसने कनखियों से देखा, वही आदमी अभी भी भीड़ को उकसा रहा था।

वो उठकर खड़ी हुई और बोली- “मैंने रिफायनरी की एम्बुलेंस को फोन कर दिया है वो अभी आ रही होगी…” उसने उस बैंड के सहारे जब रेड अलर्ट किया था तभी करन को बोल दिया था की वो रिफायनरी के एम्बुलेंस से आये।

“अरे रिफायनरी वाले कभी एम्बुलेंस नहीं भेजंगे, पहले इनको उठाओ आफिस में ले चलो…” एक कोई और चिल्लाया।

यही रीत नहीं चाहती थी।

एक बार अगर वाई को वो उठा ले आते तो क्या होता पता नहीं। उसे वाई जिन्दा चाहिए था। वो जेड का हश्र बनारस में देख चुकी थी। आई॰बी॰ और पुलिस वाले देखते रह गए और कालिया ने भारी भीड़ में उसे गोदौलिया में खतम कर दिया। रीत ने फिर करन को फोन लगाया। करन ने बोला वो एम्बुलेंस में निकल गया है बस दो-तीन मिनट में पहुँच रहा है।

लेकिन दो-तीन मिनट भी मुश्किल पड़ रहे थे।

तब तक ऐम्बुलेंस के सायरन की आवाज भी सुनायी पड़ने लगी। दो आर॰पी॰एफ॰ वालों के पास गए और यार्ड का गेट भी खुलवा दिया। वो आदमी जो लोगों को भड़काने में लगा था, अब नहीं दिख रहा था। तब तक ऐम्बुलेंस आ गई और ऐम्बुलेंस से करन उतरा, एक डाक्टर की ड्रेस में, और पीछे से चार स्ट्रेचर बियरर, रीत समझ रही थी जैसे करन डाक्टर नहीं था, वैसे वो स्ट्रेचर बियरर नहीं थे बल्की स्पेशल फोर्स के थे। और तभी रीत को फिर वो दिखा, वो आगे बढ़ा उठाने में सहायता करने के लिए।

लेकिन अबकी करन ने उसे डांटा- “हार्ट पेशेंट है सब लोग नहीं हैंडल कर सकते, सब लोग हटिये दूर हटिये…” और स्ट्रेचर बियरर ने उसे उठाकर अंदर डाल दिया।

करन ने रीत से बोला- “असलं में ऐम्बुलेंस का ड्राइवर नहीं मिल रहा था इसलिए मैं खुद ही ड्राइव करके आया हूँ, यहाँ से हम सीधे भाईलाल ले जायेंगे, तुरंत ऐंजियोप्लास्टी करनी पड़ेगी…”


सब लोग अब तारीफ की नजर से रीत की ओर देख रहे थे।

तब तक वो फिर नजर आया, और कुछ ढूँढ़ने लगा- “यहाँ इनका एक बैग था…”

रीत समझ गई वो किस बैग की बात कर रहा था। अब तो करन आ गया था रीत को किस बात का डर, उसने जोर से उसे डांटा- “जरा सी देर होने से इनके जान जा सकती है और तुम्हें बैग की पड़ी है?”

रीत ने करन से पूछा- “डाक्टर साहेब, हम लोगों की बाइक भी गेट के पास है, आपके रास्ते में पड़ेगी अगर आप हम दोनों को वहाँ ड्राप कर देते, बज गया है और हम दोनों को…”

उसकी बात काटकर बहुत सीरियस आवाज में करन बोला- “जल्दी बैठो…”

और बाकी इकठ्ठा लोगों से उसने कहा की- “आप में से जो लोग आना चाहते हों कल भाईलाल में आ जाइयेगा, आज तो ये आई॰सी॰यू॰ में ही रहेंगे और हमने रेलवे हास्पिटल को भी बोल दिया है वहाँ से भी एक डाक्टर पहुँच रहे हैं, चिंता की कोई बात नहीं है…”

ऐम्बुलेंस यार्ड से पल भर में बाहर हो गई। अब रीत और मीनल मुश्कुरायीं और दोनों ने जोर से हाई फाइव किया। मुर्गा पिंजड़े में था।
Reet ek bhi moka chhodna nahi chahti. Par trep 100% to kamyab nahi bol sakte. Amezig superb..

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