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*चौतीसवीं फुहार - चढ़ जा शूली ओ बाँकी छोरी
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ननद भौजाई
भाभी मुश्कुराते हुए बोलीं।
मैं शर्मा गई।
“हाँ एक बात और, जब आता है न तो खूब ढीला छोड़ दो लेकिन एक बार जब सुपाड़ा अच्छी तरह अंदर घुस जाए न तो बस तब कस के भींच दो, निकलने मत दो साल्ले को, असली मजा तो मर्द को भी और तोहूँ को भी तभी आयेगा, जब दरेरते, फाड़ते, रगड़ते घुसेगा अंदर-बाहर होगा।
और एक प्रैक्टिस और, अपनी गाण्ड के छल्ले को पूरी ताकत से भींच लो, सांस रोक लो, 20 तक गिनती गिनो और फिर खूब धीमे-धीमे 100 तक गिनती गिन के सांस छोड़ो और उसी के साथ उसे छल्ले को ढीला करो, खूब धीमे-धीमे। कुछ देर रुक के, फिर से। एक बार में पन्दरह बीस बार करो। क्लास में बैठी हो तब भी कर सकती हो। सिकोड़ते समय महसूस करो की, अपने किसी यार के बारे में सोच के कि उसका मोटा खूंटा पीछे अटका है…”
वास्तव में कामिनी भाभी के पास ज्ञान का पिटारा था। और मैं ध्यान से एक-एक बात सुन रही थी, सीख रही थी। शहर में कौन था जो मुझे ये बताता, सिखाता।
अचानक कामिनी भाभी ने एक सवाल दाग दिया- “तू हमार असली पक्की ननद हो न?”
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“हाँ, भौजी हाँ… एहु में कोई शक है?” मैंने तुरंत बोला।
“तो अगर तू हमार असल ननद हो तो पक्की गाण्डमरानो बनने के लिए तैयार रहो। असली गाण्डमरानो जानत हो कौन लौंडिया होती है?” भाभी ने सवाल फिर पूछ लिया।
जवाब मुझे क्या मालूम होता लेकिन मैं ऐसी मस्त भाभी को खोना नहीं चाहती थी, तुरंत बोली-
“भौजी मुझे इतना मालूम है की मैं आपकी असल ननद हूँ और आप हमार असल भौजी, और हम आपको कबहुँ नहीं छोड़ेंगे…”
ये कहके मैंने भौजी को दुलार से अंकवार में भर लिया।
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प्यार से मेरे चिकने गाल सहलाते भौजी बोलीं-
“एकदम मालूम है। एही बदे तो कह रही हूँ तोहें पक्की गाण्डमरानो बना के छोडूंगी। असल गाण्डमरानी ऊ होती है जो खुदे आपन गाण्ड चियार के मर्द के लण्ड पे बैठ जाय और बिना मर्द के कुछ किये, मोटा लौंड़ा गपागप घोंटे और अपने से ही गाण्ड मरवाये…”
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मेरे चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आईं। मेरी आँखों के सामने भैया का मोटा लण्ड नाच रहा था।
भाभी मन की बात समझ गईं। साड़ी के ऊपर से मेरे उभारों को हल्के-हल्के सहलाते बोलीं-
“अरे काहें परेशान हो रही हो हम हैं न तोहार भौजी। सिखाय भी देंगे ट्रेनिंग भी दे देंगे…”
“लेकिन इतना मोटा?” मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा थाभाभी- “अरे बताय रही हूँ, न गाण्ड खूब ढीली कर लो और दोनों पैर अच्छी तरह फैलाय के, खूंटे के ऊपर, हां बैठने के पहले अपने दोनों हाथों से गाण्ड का छेद खूब फैलाय लो। उहू क रोज प्रैक्टिस किया करो, बस। अब जब सुपाड़ा सेंटर हो जाय ठीक से, छेद में अटक जाय तो बस जहाँ बैठी हो पलंग पे, कुर्सी पे जमीन पे, दोनों हाथ से खूब कस के पकड़ लो और अपनी पूरी देह का वजन जोर लगाकर, हाँ ओकेरे पहले लण्ड को खूब चूस-चूस के चिक्कन कर लो। धीमे-धीमे सुपाड़ा अंदर घुसेगा। असली चीज गाण्ड का छल्ला है, बस डरना मत। दर्द की चिंता भी मत करना, उसको एकदम ढीला छोड़ देना…”
भाभी की बात से कुछ तो लगा शायद, फिर भी, मुझे भी डर उसी का था, वो तो सीधे लण्ड को दबोच लेता है।
और भाभी ने शंका समाधान किया-
“जब छल्ले में अटक जाय न तो बजाय ठेलने के, जैसे ढक्कन की चूड़ी गोल-गोल घुमाते हैं न… बस कभी दायें कभी बाएं बस वैसे, और थोड़ी देर में बेड़ा पार, उसके बाद तो बस सटासट, गपागप।"
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मारे खुशी के मैंने भाभी को गले लगा लिया और जोर-जोर से उनके गाल चूमने लगी।
वो मौका क्यों छोड़ती, दूने जोर से उन्होंने मुझे चूमा, और साथ में जोर से मेरे उभार दबाती बोलीं-
“इसके बाद तो वो मर्द तुझे छोड़ेगा नहीं। लेकिन ध्यान रखना चुदाई सिर्फ बुर और गाण्ड से नहीं होती, पूरी देह से होती है। जोर-जोर से उसे अपनी बाँहों में भींच के रखना, बार-बार चूमना और सबसे बढ़ के अपनी ये मस्त जानमारू कड़ी-कड़ी चूचियां उसके सीने पे कस-कस के रगड़ना। सबसे बड़ी चीज है आँखें और मन। जो भी तेरी ले न उसे लगना चाहिए की तेरी आँखों में मस्ती है, तुझे मजा आ रहा है, तू मन से मरवा रही है। उसके बाद तो बस…”
कामिनी भाभी कहीं थ्योरी से प्रक्टिकल पर न आ जाएं उसके पहले मैंने बात बदल दी और उनसे वो बात पूछ ली जो कल से मुझे समझ में नहीं आ रही थी- “भाभी, आप तो कह रही थीं की भैय्या कल रात बाहर गए हैं, नहीं आएंगे लेकिन अचानक? मैंने बोला।
वो जोर से खिलखिला के हँसी और बोलीं-
“तेरी गाण्ड फटनी थी न, अरे उन्हें अपनी कुँवारी बहन की चूत की खूशबू आ गई थी…”
फिर उन्होंने साफ-साफ बताया की भैय्या को शहर में दो लोगों से मिलना था। एक ने बोला की वो कल मिलेगा, इसलिए वो शाम को ही लौट आये और बगल के गाँव में अपने दोस्त के यहाँ रुक गए थे। तब तक तेज बारिश आ गई और उन्होंने खाना वहीं खा लिया। लेकिन जब बारिश थमी तो वो…”
बात काट के मैं खिलखिलाते हुए बोली- “तो रात को जो चूहा आप कह रही थीं, वो वही…”
भाभी- “एकदम बिल ढूँढ़ता हुआ आ गया। चूहे को तो बिल बहुत पसंद आई लेकिन बिल को चूहा कैसा लगा?” कामिनी भाभी भी हँसते मुझे चिढ़ाते बोलीं।
“बहुत अच्छा, बहुत प्यारा लेकिन भौजी मोटा बहुत था…” मैंने ने भी उसी तरह जवाब दिया।
तब तक बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई। हँसते हुए भाभी बोलीं- “चूहा…”
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ननद भौजाई
भाभी मुश्कुराते हुए बोलीं।
मैं शर्मा गई।
“हाँ एक बात और, जब आता है न तो खूब ढीला छोड़ दो लेकिन एक बार जब सुपाड़ा अच्छी तरह अंदर घुस जाए न तो बस तब कस के भींच दो, निकलने मत दो साल्ले को, असली मजा तो मर्द को भी और तोहूँ को भी तभी आयेगा, जब दरेरते, फाड़ते, रगड़ते घुसेगा अंदर-बाहर होगा।
और एक प्रैक्टिस और, अपनी गाण्ड के छल्ले को पूरी ताकत से भींच लो, सांस रोक लो, 20 तक गिनती गिनो और फिर खूब धीमे-धीमे 100 तक गिनती गिन के सांस छोड़ो और उसी के साथ उसे छल्ले को ढीला करो, खूब धीमे-धीमे। कुछ देर रुक के, फिर से। एक बार में पन्दरह बीस बार करो। क्लास में बैठी हो तब भी कर सकती हो। सिकोड़ते समय महसूस करो की, अपने किसी यार के बारे में सोच के कि उसका मोटा खूंटा पीछे अटका है…”
वास्तव में कामिनी भाभी के पास ज्ञान का पिटारा था। और मैं ध्यान से एक-एक बात सुन रही थी, सीख रही थी। शहर में कौन था जो मुझे ये बताता, सिखाता।
अचानक कामिनी भाभी ने एक सवाल दाग दिया- “तू हमार असली पक्की ननद हो न?”
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“हाँ, भौजी हाँ… एहु में कोई शक है?” मैंने तुरंत बोला।
“तो अगर तू हमार असल ननद हो तो पक्की गाण्डमरानो बनने के लिए तैयार रहो। असली गाण्डमरानो जानत हो कौन लौंडिया होती है?” भाभी ने सवाल फिर पूछ लिया।
जवाब मुझे क्या मालूम होता लेकिन मैं ऐसी मस्त भाभी को खोना नहीं चाहती थी, तुरंत बोली-
“भौजी मुझे इतना मालूम है की मैं आपकी असल ननद हूँ और आप हमार असल भौजी, और हम आपको कबहुँ नहीं छोड़ेंगे…”
ये कहके मैंने भौजी को दुलार से अंकवार में भर लिया।
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प्यार से मेरे चिकने गाल सहलाते भौजी बोलीं-
“एकदम मालूम है। एही बदे तो कह रही हूँ तोहें पक्की गाण्डमरानो बना के छोडूंगी। असल गाण्डमरानी ऊ होती है जो खुदे आपन गाण्ड चियार के मर्द के लण्ड पे बैठ जाय और बिना मर्द के कुछ किये, मोटा लौंड़ा गपागप घोंटे और अपने से ही गाण्ड मरवाये…”
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मेरे चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आईं। मेरी आँखों के सामने भैया का मोटा लण्ड नाच रहा था।
भाभी मन की बात समझ गईं। साड़ी के ऊपर से मेरे उभारों को हल्के-हल्के सहलाते बोलीं-
“अरे काहें परेशान हो रही हो हम हैं न तोहार भौजी। सिखाय भी देंगे ट्रेनिंग भी दे देंगे…”
“लेकिन इतना मोटा?” मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा थाभाभी- “अरे बताय रही हूँ, न गाण्ड खूब ढीली कर लो और दोनों पैर अच्छी तरह फैलाय के, खूंटे के ऊपर, हां बैठने के पहले अपने दोनों हाथों से गाण्ड का छेद खूब फैलाय लो। उहू क रोज प्रैक्टिस किया करो, बस। अब जब सुपाड़ा सेंटर हो जाय ठीक से, छेद में अटक जाय तो बस जहाँ बैठी हो पलंग पे, कुर्सी पे जमीन पे, दोनों हाथ से खूब कस के पकड़ लो और अपनी पूरी देह का वजन जोर लगाकर, हाँ ओकेरे पहले लण्ड को खूब चूस-चूस के चिक्कन कर लो। धीमे-धीमे सुपाड़ा अंदर घुसेगा। असली चीज गाण्ड का छल्ला है, बस डरना मत। दर्द की चिंता भी मत करना, उसको एकदम ढीला छोड़ देना…”
भाभी की बात से कुछ तो लगा शायद, फिर भी, मुझे भी डर उसी का था, वो तो सीधे लण्ड को दबोच लेता है।
और भाभी ने शंका समाधान किया-
“जब छल्ले में अटक जाय न तो बजाय ठेलने के, जैसे ढक्कन की चूड़ी गोल-गोल घुमाते हैं न… बस कभी दायें कभी बाएं बस वैसे, और थोड़ी देर में बेड़ा पार, उसके बाद तो बस सटासट, गपागप।"
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मारे खुशी के मैंने भाभी को गले लगा लिया और जोर-जोर से उनके गाल चूमने लगी।
वो मौका क्यों छोड़ती, दूने जोर से उन्होंने मुझे चूमा, और साथ में जोर से मेरे उभार दबाती बोलीं-
“इसके बाद तो वो मर्द तुझे छोड़ेगा नहीं। लेकिन ध्यान रखना चुदाई सिर्फ बुर और गाण्ड से नहीं होती, पूरी देह से होती है। जोर-जोर से उसे अपनी बाँहों में भींच के रखना, बार-बार चूमना और सबसे बढ़ के अपनी ये मस्त जानमारू कड़ी-कड़ी चूचियां उसके सीने पे कस-कस के रगड़ना। सबसे बड़ी चीज है आँखें और मन। जो भी तेरी ले न उसे लगना चाहिए की तेरी आँखों में मस्ती है, तुझे मजा आ रहा है, तू मन से मरवा रही है। उसके बाद तो बस…”
कामिनी भाभी कहीं थ्योरी से प्रक्टिकल पर न आ जाएं उसके पहले मैंने बात बदल दी और उनसे वो बात पूछ ली जो कल से मुझे समझ में नहीं आ रही थी- “भाभी, आप तो कह रही थीं की भैय्या कल रात बाहर गए हैं, नहीं आएंगे लेकिन अचानक? मैंने बोला।
वो जोर से खिलखिला के हँसी और बोलीं-
“तेरी गाण्ड फटनी थी न, अरे उन्हें अपनी कुँवारी बहन की चूत की खूशबू आ गई थी…”
फिर उन्होंने साफ-साफ बताया की भैय्या को शहर में दो लोगों से मिलना था। एक ने बोला की वो कल मिलेगा, इसलिए वो शाम को ही लौट आये और बगल के गाँव में अपने दोस्त के यहाँ रुक गए थे। तब तक तेज बारिश आ गई और उन्होंने खाना वहीं खा लिया। लेकिन जब बारिश थमी तो वो…”
बात काट के मैं खिलखिलाते हुए बोली- “तो रात को जो चूहा आप कह रही थीं, वो वही…”
भाभी- “एकदम बिल ढूँढ़ता हुआ आ गया। चूहे को तो बिल बहुत पसंद आई लेकिन बिल को चूहा कैसा लगा?” कामिनी भाभी भी हँसते मुझे चिढ़ाते बोलीं।
“बहुत अच्छा, बहुत प्यारा लेकिन भौजी मोटा बहुत था…” मैंने ने भी उसी तरह जवाब दिया।
तब तक बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई। हँसते हुए भाभी बोलीं- “चूहा…”
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