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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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*चौतीसवीं फुहार - चढ़ जा शूली ओ बाँकी छोरी



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ननद भौजाई

भाभी मुश्कुराते हुए बोलीं।



मैं शर्मा गई।



“हाँ एक बात और, जब आता है न तो खूब ढीला छोड़ दो लेकिन एक बार जब सुपाड़ा अच्छी तरह अंदर घुस जाए न तो बस तब कस के भींच दो, निकलने मत दो साल्ले को, असली मजा तो मर्द को भी और तोहूँ को भी तभी आयेगा, जब दरेरते, फाड़ते, रगड़ते घुसेगा अंदर-बाहर होगा।


और एक प्रैक्टिस और, अपनी गाण्ड के छल्ले को पूरी ताकत से भींच लो, सांस रोक लो, 20 तक गिनती गिनो और फिर खूब धीमे-धीमे 100 तक गिनती गिन के सांस छोड़ो और उसी के साथ उसे छल्ले को ढीला करो, खूब धीमे-धीमे। कुछ देर रुक के, फिर से। एक बार में पन्दरह बीस बार करो। क्लास में बैठी हो तब भी कर सकती हो। सिकोड़ते समय महसूस करो की, अपने किसी यार के बारे में सोच के कि उसका मोटा खूंटा पीछे अटका है…”



वास्तव में कामिनी भाभी के पास ज्ञान का पिटारा था। और मैं ध्यान से एक-एक बात सुन रही थी, सीख रही थी। शहर में कौन था जो मुझे ये बताता, सिखाता।



अचानक कामिनी भाभी ने एक सवाल दाग दिया- “तू हमार असली पक्की ननद हो न?”


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“हाँ, भौजी हाँ… एहु में कोई शक है?” मैंने तुरंत बोला।



“तो अगर तू हमार असल ननद हो तो पक्की गाण्डमरानो बनने के लिए तैयार रहो। असली गाण्डमरानो जानत हो कौन लौंडिया होती है?” भाभी ने सवाल फिर पूछ लिया।





जवाब मुझे क्या मालूम होता लेकिन मैं ऐसी मस्त भाभी को खोना नहीं चाहती थी, तुरंत बोली-

“भौजी मुझे इतना मालूम है की मैं आपकी असल ननद हूँ और आप हमार असल भौजी, और हम आपको कबहुँ नहीं छोड़ेंगे…”

ये कहके मैंने भौजी को दुलार से अंकवार में भर लिया।


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प्यार से मेरे चिकने गाल सहलाते भौजी बोलीं-

“एकदम मालूम है। एही बदे तो कह रही हूँ तोहें पक्की गाण्डमरानो बना के छोडूंगी। असल गाण्डमरानी ऊ होती है जो खुदे आपन गाण्ड चियार के मर्द के लण्ड पे बैठ जाय और बिना मर्द के कुछ किये, मोटा लौंड़ा गपागप घोंटे और अपने से ही गाण्ड मरवाये…”


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मेरे चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आईं। मेरी आँखों के सामने भैया का मोटा लण्ड नाच रहा था।



भाभी मन की बात समझ गईं। साड़ी के ऊपर से मेरे उभारों को हल्के-हल्के सहलाते बोलीं-

“अरे काहें परेशान हो रही हो हम हैं न तोहार भौजी। सिखाय भी देंगे ट्रेनिंग भी दे देंगे…”



“लेकिन इतना मोटा?” मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा थाभाभी- “अरे बताय रही हूँ, न गाण्ड खूब ढीली कर लो और दोनों पैर अच्छी तरह फैलाय के, खूंटे के ऊपर, हां बैठने के पहले अपने दोनों हाथों से गाण्ड का छेद खूब फैलाय लो। उहू क रोज प्रैक्टिस किया करो, बस। अब जब सुपाड़ा सेंटर हो जाय ठीक से, छेद में अटक जाय तो बस जहाँ बैठी हो पलंग पे, कुर्सी पे जमीन पे, दोनों हाथ से खूब कस के पकड़ लो और अपनी पूरी देह का वजन जोर लगाकर, हाँ ओकेरे पहले लण्ड को खूब चूस-चूस के चिक्कन कर लो। धीमे-धीमे सुपाड़ा अंदर घुसेगा। असली चीज गाण्ड का छल्ला है, बस डरना मत। दर्द की चिंता भी मत करना, उसको एकदम ढीला छोड़ देना…”

भाभी की बात से कुछ तो लगा शायद, फिर भी, मुझे भी डर उसी का था, वो तो सीधे लण्ड को दबोच लेता है।



और भाभी ने शंका समाधान किया-

“जब छल्ले में अटक जाय न तो बजाय ठेलने के, जैसे ढक्कन की चूड़ी गोल-गोल घुमाते हैं न… बस कभी दायें कभी बाएं बस वैसे, और थोड़ी देर में बेड़ा पार, उसके बाद तो बस सटासट, गपागप।"


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मारे खुशी के मैंने भाभी को गले लगा लिया और जोर-जोर से उनके गाल चूमने लगी।



वो मौका क्यों छोड़ती, दूने जोर से उन्होंने मुझे चूमा, और साथ में जोर से मेरे उभार दबाती बोलीं-

“इसके बाद तो वो मर्द तुझे छोड़ेगा नहीं। लेकिन ध्यान रखना चुदाई सिर्फ बुर और गाण्ड से नहीं होती, पूरी देह से होती है। जोर-जोर से उसे अपनी बाँहों में भींच के रखना, बार-बार चूमना और सबसे बढ़ के अपनी ये मस्त जानमारू कड़ी-कड़ी चूचियां उसके सीने पे कस-कस के रगड़ना। सबसे बड़ी चीज है आँखें और मन। जो भी तेरी ले न उसे लगना चाहिए की तेरी आँखों में मस्ती है, तुझे मजा आ रहा है, तू मन से मरवा रही है। उसके बाद तो बस…”



कामिनी भाभी कहीं थ्योरी से प्रक्टिकल पर न आ जाएं उसके पहले मैंने बात बदल दी और उनसे वो बात पूछ ली जो कल से मुझे समझ में नहीं आ रही थी- “भाभी, आप तो कह रही थीं की भैय्या कल रात बाहर गए हैं, नहीं आएंगे लेकिन अचानक? मैंने बोला।



वो जोर से खिलखिला के हँसी और बोलीं-

“तेरी गाण्ड फटनी थी न, अरे उन्हें अपनी कुँवारी बहन की चूत की खूशबू आ गई थी…”

फिर उन्होंने साफ-साफ बताया की भैय्या को शहर में दो लोगों से मिलना था। एक ने बोला की वो कल मिलेगा, इसलिए वो शाम को ही लौट आये और बगल के गाँव में अपने दोस्त के यहाँ रुक गए थे। तब तक तेज बारिश आ गई और उन्होंने खाना वहीं खा लिया। लेकिन जब बारिश थमी तो वो…”


बात काट के मैं खिलखिलाते हुए बोली- “तो रात को जो चूहा आप कह रही थीं, वो वही…”



भाभी- “एकदम बिल ढूँढ़ता हुआ आ गया। चूहे को तो बिल बहुत पसंद आई लेकिन बिल को चूहा कैसा लगा?” कामिनी भाभी भी हँसते मुझे चिढ़ाते बोलीं।



“बहुत अच्छा, बहुत प्यारा लेकिन भौजी मोटा बहुत था…” मैंने ने भी उसी तरह जवाब दिया।



तब तक बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई। हँसते हुए भाभी बोलीं- “चूहा…”






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पैंतीसवीं फुहार - भैय्या





भैया थे, नहा के निकले। सिर्फ एक छोटा सा गीला अंगोछा पहने, जो ‘वहां’ पर एकदम चिपका था, सब कुछ दिखने वाले अंदाज में।



भाभी और उनके पीछे मैं वहीं पहुँच गए। मैं बस, पागल नहीं हुई।



देखा तो उन्हें कल रात में भी था। लेकिन धुंधली रोशनी उसपर चांदनी और बादलों की लुकाछिपी का खेल, फिर कभी मैं दर्द में डूबती, कभी मजे में उतराती और सबसे बढ़कर भाभी आधे समय मेरे ऊपर चढ़ी हुई थीं, इसलिए कल देखने से ज्यादा उन्हें मैंने महसूस किया था।



लेकिन इस समय तो बस, क्या मेल माडल्स की फोटोग्राफ्स होंगी? सबसे दुष्ट होती हैं आँखें। और उनकी बड़ी-बड़ी खुश-खुश आँखों में जो मस्ती तैर रही थी, जो नशा तारी हो रहा था, वो किसी भी लड़की को पागल बनाने के लिए काफी था।



चार आँखों का खेल कुछ देर चला, फिर मैंने आँखें थोड़ी नीचे कर लीं। पर वो जादू कम नहीं था। वो जादू क्या जो सर पे चढ़ के न बोले? और उनके देह का तिलश्म, बस मैं हमेशा के लिए उसमें कैद हो चुकी थी। जैसे साँचे में बदन ढला हो, एक-एक मसल्स, और क्या ताकत थी उनमें, जोश और जवानी दोनों छलक रही थीं। फिल्मी हीरों के सिक्स पैक्स सुना भी था और देखा भी था, लेकिन आज लगा वो सब झूठ था। असली जो था मेरे सामने था।



सीना कितना चौड़ा और एकदम फौलादी, लेकिन कमर वैसी ही पतली, केहरि कटि, एकदम ‘वी शेप में, और उसके नीचे, एक पल के लिए, मेरी आँखें अपने आप मुंद गई, लाज से।



आप कहोगे रात भर घोंटने के बाद भी?



लेकिन रात की बात और थी, यहां दिन दहाड़े, बल्की सुबह सबेरे, लेकिन नदीदी आँखें, लजाते शर्माते, झिझकते सकुचाते आँखें मैंने खोल ही दीं। ढका था वो, अपनी सहेलियों की भाषा में कहूँ तो सबसे इम्पार्टेंट मेल मसल। लेकिन ढका भी क्या, गीले गमछे में सब कुछ दिख रहा था। था भी मुश्किल से डेढ़ बित्ते का वो और गीली देह से एकदम चिपका। सब कुछ दिख रहा था, शेप, साइज।



बाकी लोगों का जो एकदम तन्नाने के बाद जिस साइज का होता है, 5-6 इंच का उतना बड़ा तो वो इसी समय लग रहा था। खूब मोटा, प्यारा सा, मीठा और सबसे बढ़कर उसका सर, एकदम लीची सा, मन कर रहा था झट से मुँह में ले लूँ। मेरी आँखें अब बस यहीं चिपक के रह गईं। अगर मेरे नैन चोर थे तो उनकी आँखें डाकू। अगर मेरी निगाहें गीले गमछे के अंदर उनके ‘वहां’ चिपकी थीं, तो उनकी आँखें भी मेरे किशोर नए आये उभारों पे।



और वहां भी तो सिर्फ पतली सी साड़ी से मेरे जुबना ढके थे, न ब्रा न ब्लाउज। और उन्हें छिपाने के लिए जो मैंने कस के साड़ी उनके ऊपर बाँधी थी वही मेरा दुश्मन हो गई। पूरे उभार, उनका कटाव और यहाँ तक की गोल-गोल कड़े कंचे के शेप और साइज के निपल्स, सब कुछ दिख रहा था।



दिख रहा था तो दिखे, मुझे भी अब ललचाने में रिझाने में मजा आने लगा था। और मैं ये भी जानती थी की मेरे जोबन का जादू सर चढ़ के बोलता है।



हम दोनों का देखा देखी का खेल पता नहीं कितने देर तक चलता रहता, मैच ड्रा ही रहता अगर कामिनी भाभी ने थर्ड अंपायर की तरह अपना फैसला नहीं सुनाया होता।


“आपसे कहा था न, सारे गीले कपड़े वहीं बाथरूम में, तो ये गीला-गीला गमछा पहने, उतारकर वहीं, जहाँ बाकी गीले कपड़े हैं…”




भाभी ने बोला भैय्या से था, लेकिन जिस तरह से मेरी ओर देखकर वो मुश्कुराई थीं, मैं समझ गई, हुकुम मेरे लिए है। बस अगले ही पल, मैंने झट से गमछा खींच के उतार दिया और गोल-गोल लपेट के, पूरी ताकत से, एकदम लांग आन बाउंड्री से सीधे विकेट पर। गीले कपड़ों वाली बाल्टी में।



और इधर भी नतीजा जो होना था वही हुआ, पूरे 90° डिग्री पे, एकदम टनटनाया, खूब मोटा, लेकिन कल के अपने अनुभव से मैं कह सकती थी अभी भी वो पूरी तरह, थोड़ा सोया थोड़ा जागा। लेकिन अब जागा ज्यादा। लीची ऐसा रसीला सुपाड़ा भी अब खूब तन्नाया, मोटा, पूरे जोश में।



भौजी ने चिढ़ाया- “क्यों हो गया न सबेरे-सबेरे दर्शन? अब दिन अच्छा बीतेगा…”



मैं लजा गई लेकिन आँखें वहां से नहीं हटीं।



“हे गुड्डी, ढेर भइल चोरवा सिपहिया, अरे यार एक छोटी सी चुम्मी तो बनती है…” भौजी ने मुझे चढ़ाया।
 

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जादूगर सैयां, बना मोरा भैय्या










लेकिन अंदर कुछ भी नहीं बदला था।

भैय्या का ‘वो’, वो लण्ड अभी भी पूरी तरह पैबस्त था, एकदम जड़ तक, मेरी कुँवारी चूत में।

उनके हाथ अभी भी मेरी पतली कमरिया को पकड़े थे जोर से। उनकी जादू भरी आँखें मेरे चेहरे को टकटकी लगाए देख रही थीं, जैसे कोई नदीदा बच्चा हवा मिठाई देखता है।





कामिनी भाभी अभी भी अपनी गोद में मेरा सर रखे हल्के प्यार से मेरा सर सहला रही थीं। झड़ते समय तो लग रहा था मैं हवा में उड़ रही थी, लेकिन अब… मेरी पूरी देह टूट रही थी, दर्द में डूबी थी। खासतौर से दोनों फैली खुली जांघें फटी पड़ रही थीं। ऐसी थकान लग रही थी की बस…

मेरी खुली आँखों को देखकर भैय्या की आँखें मुश्कुराईं।

भाभी ने भी शायद कुछ इशारा किया, और जैसे कोई फिल्म जो फ्रीज हो गई,

एक बार फिर से स्लो मोशन में शुरू हो जाए बस उसी तरह।

भैय्या ने अपनी पोज जरा भी नहीं बदली, उनके हाथ मेरी कमर को थामे रहे।

उन्होंने अपने उसको भी न ही बाहर निकाला न धक्के शुरू किये। लण्ड उसी तरह पूरी तरह मेरी चूत में… बस, उनके लण्ड के बेस ने मेरी क्लिट को हल्के-हल्के रगड़ना शुरू किया,


पहले बहुत धीमे-धीमे, जैसे बाहर से हल्की-हल्की पुरवाई अंदर आ रही थी। कोई धीरे से आलाप छेड़े

लेकिन कुछ देर में रगड़न का जोर और स्पीड दोनों बढ़ने लगी।






भौजी ने ऊपर की मंजिल सम्हाली। पहले तो माथे से उनका एक हाथ मेरे चिकने-चिकने गाल को सहलाता रहा लेकिन जैसे ही भैय्या के लण्ड के बेस ने क्लिट को रगड़ने की रफ़्तार तेज की उन्होंने मेरे दोनों जुबना को दबोच लिया,


लेकिन बहुत हल्के से, प्यार से, कभी सहलाती, तो कभी धीरे से मीज देती। झुक के उन्होंने मेरे होंठ भी चूम लिए।





मुझसे ज्यादा कौन जानता था उनकी उंगलियों के जादू को। और भैया और भौजी के दुहरे हमले का असर तुरंत हुआ, एक बार फिर मेरे तन और मन दोनों ने मेरा साथ छोड़ दिया। दर्द से देह टूट रही थी लेकिन मेरे चूतड़ हल्के-हल्के भैय्या के लण्ड के बेस की रगड़ाई के लय में ऊपर-नीचे होने लगे।


जैसे ही भौजी मेरे निपल्स पिंच किये मस्ती की सिसकी जोर से मेरे होंठों से निकली।





दिल का हर तार हिला छिड़ने लगी रागिनी, और कुछ ही देर में भइया ने लण्ड हल्के से थोड़ा सा बाहर निकाला और बहुत हल्के से पुश किया।

जिस तरह से उनका मोटा लण्ड मेरी चूत की दीवालों को रगड़ते दरेरते अंदर-बाहर हो रहा था, मस्ती से मैं काँप रही थी।

भौजी ने झुक के एक निपल मेरे होंठों में भर लिया और लगी पूरी ताकत से चूसने,






दूसरी चूची उनके हाथों से रगड़ी मसली जा रही थी।

बहुत समय नहीं लगा मुझे उस आर्केस्ट्रा का हिस्सा बनने में।


मैं कमर हिला रही थी, चूतड़ उचका रही थी। और जब मेरी दोनों लम्बी गोरी टांगों ने भैया की कमर को लता की तरह घेर के दबोच लिया, अपनी ओर खींचना शुरू कर दिया, मेरे दोनों हाथ उनके कंधे पे थे, मेरे लम्बे नाखून उनके शोल्डर ब्लेड्स पे धंस रहे थे और जब मैंने खुद बोल दिया-


“ओह्ह… आह्ह… भैय्या करो न… आह्ह्ह्ह्ह…”

फिर तो कमरे में वो तूफान मचा।

एक बारगी उन्होंने लण्ड आलमोस्ट बाहर निकाल लिया और मेरे दोनों चूतड़ों को पकड़ के वो करारा धक्का मारा की सीधे सुपाड़ा बच्चेदानी पे।







बालिश्त भर का उनका पहलवान अंदर। दर्द से मेरी जान निकल गई लेकिन साथ-साथ मजे से मैं सिहर गई।

लेकिन मेरा सैयां बना भैय्या जानता था मुझे क्या चाहिये? आज की पूरी रात उनके नाम थी।

और बचा खुचा बताने के लिए थीं न मेरी भौजी-



अरे चोदो न हचक-हचक के, मुझे तो इतनी जोर से… और तुम्हारी बहन है तो रहम दिखा रहे हो, फाड़ दो इसकी आज…”




भौजी ने मौके का फायदा उठाया, और साथ उनकी ननद यानी मैंने भी दिया, अपना चूतड़ जोर से उचकाकर।


और खूब जोर से भैय्या को अपनी ओर खींचकर। फिर क्या था, एक बार फिर से मेरी दोनों उभरती चूचियां भैय्या के कब्जे में आ गईं और अब वो बिना किसी रहम के उसे मसल रहे थे थे, रगड़ रहे थे और धक्के पर धक्के मसर रहे थे।




“दोनों जुबन जरा कस के दबाओ, लगाय जाओ राजा धक्के पे धक्का…”


भौजी ने एक बार फिर भैय्या को उकसाया।

चूत दर्द से फटी जा रही थी, फिर भी मस्ती में चूर मेरी देह उनके हर धक्के का जवाब धक्के से दे रही थी।


जब उनका सुपाड़ा मेरी बच्चेदानी से टकराता तो रस में डूबी चूत जोर से उनके मोटे लण्ड को भींच लेती जैसे कभी छोड़ेगी नहीं।

और कामिनी भाभी अब भैया के पास बैठी कभी उन्हें उकसातीं कभी छेड़ती, और मेरी भौजी हो तो बिना गालियों के… लेकिन अब गालियों की रसीली दरिया में मैं और भैय्या भी खुल के शामिल हो गए थे। और अक्सर मैं और भैया एक साथ…

“क्यों मजा आ रहा है भैया को सैयां बना के चुदवाने का?”



भौजी ने मुझे चिढ़ाया।



लेकिन मैंने भी जवाब उसी लेवल का दिया-


“अरे भौजी रोज-रोज हमरे भैया से चुदवावत हो तो एक दिन तो हमारा भी हक बनता है न, क्यों?”


भैय्या की आँखों में झांक के मैंने बोला और भौजी को सुना के गुनगुनाया-

“सुन सुन सुन मेरे बालमा…”

और सीधे उनके होंठों को चूम लिया।

भैया ने भी जवाब अपने ढंग से दिया, आलमोस्ट मुझे दुहरा करके वो धक्का मारा की, बस जान नहीं निकली। और भौजी को सुनाते मुझसे बोले-





“तू एकदम सही कह रही है। एक दिन क्यों? हर रोज, बिना नागा, जब तक तू है यहां पे, अरे मेरी बहन पे जोबन आया है तो मैं नहीं चोदूंगा तो कौन चोदेगा?”

दर्द बहुत हुआ लेकिन मजा भी बहुत आया, उस धक्के में।


अरे चोदो न हचक-हचक के, मुझे तो इतनी जोर से… और तुम्हारी बहन है तो रहम दिखा रहे हो, फाड़ दो इसकी आज…”



“तू एकदम सही कह रही है। एक दिन क्यों? हर रोज, बिना नागा, जब तक तू है यहां पे, अरे मेरी बहन पे जोबन आया है तो मैं नहीं चोदूंगा तो कौन चोदेगा?”


mast likha hai🔥🔥🔥🔥🔥
 

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एक छोटी सी चुम्मी





भौजी ने चिढ़ाया- “क्यों हो गया न सबेरे-सबेरे दर्शन? अब दिन अच्छा बीतेगा…”



मैं लजा गई लेकिन आँखें वहां से नहीं हटीं।



“हे गुड्डी, ढेर भइल चोरवा सिपहिया, अरे यार एक छोटी सी चुम्मी तो बनती है…” भौजी ने मुझे चढ़ाया।



मन तो मेरा भी कर रहा था। अब तो भौजी का हुकुम, मैं घुटने के बल बैठ गई सीधे ‘उसके’ सामने, और गप्प से मुँह में ले लिया।



पहले तो अपने रसीले होंठों से बहुत प्यार से सुपाड़े पर से दुलहन का घूंघट हटाया, और फिर एक बार खुल के अब, एकदम खुशी से फूल के कुप्पा सुपाड़े को देखा मन भर के। खूब बड़ा खूब रसीला। ललचाई निगाह से थोड़ी देर देखती रही, फिर अपनी तर्जनी के टिप से सुपाड़े के पी-होल (पेशाब के छेद) को बस छूकर सुरसुरा दिया। मेरी आँखें भैय्या की आँखों से जुडी थीं, उनकी प्यास देख रही थीं।



न उनसे रहा जा रहा था न मुझसे। मैंने फिर उन्हें कुछ चिढ़ाते, कुछ छेड़ते अपनी लम्बी रसीली जीभ से उसी पेशाब के छेद में सुरसुरी करनी शुरू कर दी।



बिचारे भैय्या, उनकी हालत खराब हो रही थी, और कुछ देर तंग करने के बाद मैंने गप्प से पूरा सुपाड़ा एक बार में गप्प कर लिया। कितना कड़ा लेकिन कितना रसीला, एकदम रसगुल्ला। अब सब कुछ भूल के मैं बस उसे चूस रही थी, चुभला रही थी, मेरे होंठ दबा-दबा के मोटे कड़े सुपाड़े का मजा ले रहे थे और साथ में जीभ नीचे से चाट रही थी।



मैंने तो अपने हाथों को मना कर रखा था, आज सिर्फ मुँह से।



लेकिन भैय्या भी तो पागल हो रहे थे, उन्हें कौन रोकता? उन्होंने दोनों हाथों से कस के मेरे सर को पकड़ लिया और फिर, एक झटके में हचक के आधा लण्ड उन्होंने मेरे किशोर मुँह में पेल दिया।



यही तो मैं चाहती थी। भैय्या के साथ पहली बार मुझे रफ एंड वाइल्ड सेक्स का मजा मिल रहा था।



कामिनी भाभी लेकिन मेरे साथ थीं, उन्होंने हल्के से भैय्या को धक्का दे दिया और अब वो बिस्तर पे बैठ गए, वही बिस्तर जहाँ रात भर हम लोगों ने कबड्डी खेली थी और जहां से थोड़ी देर पहले ही मैं सो के उठी थी। अब वो आराम से बैठे थे और मैं आराम से उनकी टांगों के बीच बैठकर चूस रही थी, चाट रही थी सपड़-सपड़।




कभी चूसती तो कभी उन्हें दिखा के अपनी कुँवारी किशोर जीभ उनके सीधे बाल्स से शुरू करके लण्ड के सुपाड़े तक हल्के-हल्के चाटती और जब भैय्या तड़पने लगते तो मुश्कुरा के एक बार फिर से लण्ड में मुँह में।



भइया से कुछ देर में नहीं रहा गया और उन्होंने लगाम अपने हाथ में ले ली। अब बजाय मैं भैय्या का लण्ड चूसने के, वो मेरा मुँह चोद रहे थे, पूरी ताकत से। एक से एक धक्के, और कुछ ही देर में मैं गों-गों कर रही थी। उनका मोटा सुपाड़ा सीधे मेरे गले के अंदर तक धक्के मार रहा था जोर-जोर से।



मेरे गाल फूले हुए थे, आँखें उबल रही थीं, मैं बुरी तरह चोक कर रही थी,।



लेकिन उन्होंने जोर से मेरा सर पकड़ के, मेरे किशोर मुँह में, एकदम अंदर तक अपना, मेरी कलाई से भी मोटा, लण्ड ठूंस रखा था और बार-बार धक्का मार रहे थे। 5-6 मिनट मैंने उनका साथ दिया, लेकिन मेरे गाल अब दुखने लगे थे। एक पल के लिए वो रुके तो मैंने अपना मुँह बाहर हटा लिया। लण्ड खूब तन्नाया, मोटा कड़ा, पगलाया था।



मुझे एक शरारत सूझी, जैसे लड़कियां बबल गम के थूक के गोले बनाती हैं, एक खूब बड़ा सा गोला बना के उनके मोटे सुपाड़े पर सीधे-सीधे, वो खूब गीला लसलसा हो गया। फिर एक बार और थूक का गोला।



कामिनी भाभी मेरी शरारत भरी हरकतों को देखकर मुश्कुरा रही थी।



मैंने भैया की लालची आँखों की ओर देखा और उनकी चोरी पकड़ी गई। चूसने चाटने में, मेरी साड़ी जो बस ऐसे ही लपेटी थी कब की मेरे उभारों से हट चुकी थी और सिर्फ एक पतले से छल्ले की तरह मेरी पतली कमरिया में बस टंगी सी थी। उनकी नदीदी आँखें मेरे गोल-गोल, कड़े-कड़े, किशोर उभारों पे टंगी थी, प्यासी बेताब।



मैंने मुश्कुरा के एक बार उनकी ओर देखा और फिर अपनी गुरू कामिनी भाभी की ओर। दोनों जोबनों के बीच मैंने उस शैतान लण्ड को पकड़ लिया और थोड़ी देर अपनी चूचियों से बस दबाती रही।



और थोड़ी देर में ही आगे-पीछे, ऊपर-नीचे, यही तो सिखाया था कामिनी भाभी ने चोदना सिर्फ लड़कों का काम थोड़े ही है। मैं अपनी गोल-गोल चूची से, अपने नए-नए आये उभारों से उन्हें चोद रही थी, और भैया सिसक रहे थे, तड़प रहे थे।



एक किशोर कुँवारी कन्या अपने छोटे-छोटे उभारों के बीच किसी मर्द के मोटे मूसल ऐसे लण्ड को लेकर आगे-पीछे करे, बस आप सोच सकते हैं कैसा लगेगा?



भइया को वैसे ही लग रहा था।



लेकिन उनके गोल-गोल सुपाड़े को देखकर मुझसे रहा नहीं गया। दोनों उंगलियों से जो मैंने उसे दबाया तो गौरेया की चोच की तरह उसने चियार दिया, वही पी-होल (पेशाब का छेद) और बस, मेरी जीभ की नोक सुरसुरी करने लगी। टिट फक और साथ में जीभ की नोक से पी-होल में सुरसुरी।



हममें से किसी को ये ध्यान नहीं था की खिड़की जो बाहर धान के खेत और आम के बगीचे की ओर खुलती थी पूरी तरह खुली थी। धान के खेत में रोपनी वालियों के गाने की आवाजें अभी भी सुनाई पड़ रही थीं।

असल में न मुझे फरक पड़ता था न भैय्या को। हम दोनों को एक दूसरे के अलावा कुछ भी न सुनाई पड़ रहा था न दिखाई।



लेकिन भाभी ने भैय्या को हड़काया- “तुम बिस्तर पर बैठे हो, अरे गुड्डी बिचारी कब से जमीन पर… तुम्हारी छोटी बहन है, जरा उसे प्यार से गोद में तो बिठाओ…”
 

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***** *****इकतीसवीं फ़ुहार

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मेरी नींद जब खुली तो बाहर अभी भी पूरा अँधेरा था। मैं करवट लिए लेटी थी, सामने की ओर कामिनी भाभी और पीछे उनके पति, भैया।

सोते समय भी उन्होंने पीछे से मुझे कस के दबोच रखा था, एक हाथ उनका मेरे एक उभार पे था।


दूसरा उभार भौजी के हाथ में था।



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रात अभी बाकी थी। मैंने फिर सोने की कोशिश की तो लगा मेरे उठने के चक्कर में कामिनी भाभी की नींद भी टूट गई थी। कामिनी भाभी की उंगलियां अब मेरे जोबन पे हल्के-हल्के रेंगने लगी थीं।

मै डर गई।

कहीं भैय्या भी जाग गए, और वो दोनों लोग मिल के चालू हो गए तो?





अभी भी नीचे बहुत दर्द हो रहा था। मैंने झट से आँखें बंद कर ली और फिर से सोने की ऐक्टिंग करने लगी।



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लेकिन बचत नहीं थी। लगता है मेरे हिलने डुलने से कामिनी भाभी के पति की भी नींद खुल गई और मेरे उभार पे जो उन्होंने हाथ सोये में रखा था, वो हल्के-हल्के उसे दबाने सहलाने लगा।





मैंने खर्राटे की एक्टिंग की और ऐसे की जैसे मुझे पता न चल रहा हो की वो दोनों जग गए हैं।

लेकिन कामिनी भाभी भी न… उनसे कौन ननद बच पाई है जो मैं बच पाती? झट से दूसरे हाथ से गुदगुदी लगानी शुरू कर दी और बोलीं-




“मेरी बिन्नो, आई छिनारपना कहीं और करना, मुझे सब मालूम है कि अच्छी तरह जग गई हो, अब नौटंकी मत करो…”


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खिलखिलाते हुए मैंने आँखें खोल दी और करवट से अब सीधे पीठ के बल लेट गई।

बस मुझे दोनों ने बाँट लिया, एक उभार भैया के हाथ में तो दूसरा भौजी ने दबोच रखा था। और सिर्फ चूचियां ही नहीं गाल भी, एक पे कामिनी भौजी हल्के-हल्के किस कर रही थी

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तो दूसरे पे लिक करते-करते उन्होंने कचकचा के गाल काट लिया।

“उईई… आह्ह्ह… लगता है…”

मैं जोर से चीखी। नींद अच्छी तरह भाग गई।

“सब कुछ तो ले लिहला, गाल जिन काटा, भैय्या बहुते खराब तू त बाटा…”




भौजी ने मुझे चिढ़ाया लेकिन भैय्या को और उकसाया-

“अरे अस मालपुआ जस गाल है, खूब मजे ले कचकचा के काटा, दो चार दिन तक तो निशान रहना चाहिए। अरे पूरे गाँव को पता तो चलना चाहिए न की छुटकी ननदिया केहसे गाल कटवा के आय रही हैं…”

भैय्या कभी भौजी की बात टालते नहीं थे, तो उन्होंने एक फिर उसी जगह पे दुहरी ताकत से… और अबकी जो गाल पे निशान पड़ा तो सचमुच में तीन चार दिन से पहले नहीं मिटने वाला था। वो खूब मस्ता रहे थे।


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उन्होंने अपने हाथ से मेरी चूची अब जोर-जोर से पकड़ ली थी और खूब कस-कस के मीज रहे थे।

भौजी दोनों ओर से आग लगा रही थीं, वैसे उन्होंने मुझे खुद अपनी असली ननद बनाया था तो कुछ मेरा हक तो बनता ही था न। उन्होंने अब मेरी साइड ली और कान में फुसफुसाया-

“सिर्फ वही थोड़ी पकड़ सकते हैं, तू भी तो पकड़ा पकड़ी कर सकती है। उनके पास भी तो है पकड़ने के लिए?”

भौजी का इशारा काफी था। वैसे भी ‘वो’ थोड़ा सोया थोड़ा जागा बहुत देर से मेरे पिछवाड़े पड़ा था। और जब वो जग जाता तो इतना मोटा हो जाता की मेरी मुट्ठी में समाता ही नहीं। बस मैंने पकड़ लिया। अभी भी थोड़ा थोड़ा सोया ही था।



सिर्फ पकड़ने से थोड़े ही होता है, मैंने हल्के-हल्के मुठियाना भी शुरू कर दिया।



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डरती तो थी लेकिन इतना भी नहीं, अभी थोड़ी देर पहले ही पूरा घोंट चुकी थी। फिर अजय सुनील ने पकड़वाके और चन्दा मेरी सहेली, चम्पा भाभी, बसंती की संगत में मुठियाना, रगड़ना सीख भी गई थी। फिर जब हम तीनों अच्छी तरह जग गए थे तो उसके सोने का क्या मतलब?

भैया जोर-जोर से मेरी चूचियां मसल रहे थे, मजे ले ले के मेरे मुलायम मुलायम गाल काट रहे थे। कामिनी भाभी भी दूसरे उभार को अपनी मुट्ठी में ले के मजे ले रही थी। और मैं भी इन दोनों के साथ, और ‘उसे’ ले के जोर-जोर से मुठिया रही थी।

नतीजा वही हुआ जो होना था, शेर अंगड़ाई ले के जाग गया।

पर बसंती, गुलबिया का सिखाया पढ़ाया, मैंने एक झटके से खींचा तो सुपाड़ा खुल गया।





खूब मोटा, एकदम कड़ा, लेकिन था तो मेरी मुट्ठी में, मुझे एक और शरारत सूझी। मैंने अंगूठे से सुपाड़े पे रगड़ दिया, और वो मस्ती से गिनगिना उठे।

भौजी ने मस्ती से, कुछ तारीफ से मेरी ओर देखा।

मेरी शैतानी और बढ़ गई, और मैंने अंगूठे को सीधे ‘पी-होल’ (पेशाब के छेद) पे लगाकर हल्के से दबा दिया।



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अब भैय्या के पास जवाब देने के अलावा और कोई रास्ता नहीं था। उनका अपना एक हाथ मेरी दोनों जाँघों के बीच पहुँच गया और उंगलियां प्रेम गली की ओर बढ़ने लगीं।

बुर मेरी अभी भी किसी ताजी चोट की तरह दुःख रही थी। जांघें भी दर्द से फटी पड़ रही थीं। मुझे डर लगा की कहीं भैया दुबारा मेरी बुर तो नहीं… बुरी हालत थी बुर की। मैंने उसी अदालत में गुहार लगाई-


“भौजी, भैय्या से बोलिए वहां नहीं, प्लीज वहां नहीं…”

“अरे वहां नहीं, मतलब कहाँ नहीं? नाम डुबो देगी मेरा, बोल साफ-साफ?” उलटे कामिनी भाभी की डांट पड़ गई।

“भौजी, भैय्या से बोल दीजिये, उन्हें मना कर दीजिये, बहुत दुःख रहा है, भईया से कहिये दीजिये मेरी… मेरी चूत मत चोदें। चूत बहुत दुःख रही है…”

भैय्या ने दूसरा रास्ता निकाला, उन्होंने अपनी उंगली मेरी चूत के मुहाने पे लगा दी और अभी कुछ देर पहले लण्ड के जो धक्के उसने खाए थे, जो चोटें लगी थी, दर्द से मैं दुहरी हो गई।




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जोर से चीख उठी- “भौजी नहींईऽऽऽ उंगली भी नहीं, चूत में कुछ मत डालें, मना करिये न उन्हें…”

और अब डांट भैय्या को पड़ी-

“सुन नहीं रहे हो क्या बोल रही है बिचारी? इसकी चूत को हाथ भी मत लगाओ, न चोदना, न उंगली करना…”

भौजी को देखकर मैंने जोर-जोर से हामी में सर हिलाया।

भइया ने तुरंत हाथ हटा दिया। प्यार से मेरे बाल सहलाते बोले-

“न बुर चोदना है न बुर में उंगली करना है, क्यों बिन्नो?”

मैंने खुशी में मुश्कुराते हुए हामी में सर हिलाया। लेकिन भैया को भी तो थैंक्स देना था, उनके सामने से रसमलाई हटा ली थी मैंने, कहीं गुस्सा न हो जाएं। तो मुड़ के मैंने उन्हें देखकर भी एक किस सीधे उनके लिप्स पे दिया और फिर एक बार जोर से मुठियाने लगी।

भैय्या की जीभ मेरे मुँह में थी और मैं उसे प्यार से चूस रही थी। भैया मेरे दोनों उभार अब जोर-जोर से मसल रहे थे और मैं उनके भी दूने जोर से उनका लण्ड दबा रही थी, मसल रही थी, मुठिया रही थी।





भाभी मुझे हल्के-हल्के चूम रही थीं, फिर मेरे कान में बोली-


“तूने उसे तो एकदम खड़ा कर दिया और फिर चुदवाने से भी मना कर दिया। कम से कम एकाध चुम्मी तो दे दे उसे…”



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उसमें मुझे कोई ऐतराज नहीं था। अजय ने खूब चुसवाया था मुझे। तो भैय्या के लण्ड को चूसने में कौन ऐतराज हो सकता था।


“अरे अस मालपुआ जस गाल है, खूब मजे ले कचकचा के काटा, दो चार दिन तक तो निशान रहना चाहिए। अरे पूरे गाँव को पता तो चलना चाहिए न की छुटकी ननदिया केहसे गाल कटवा के आय रही हैं…”

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धंस गया














पिछवाड़े के खुले छेद से सटा के, टप-टप, टप-टप, कड़ुवा तेल।



लेकिन ध्यान मेरा कहीं और था, मेरे मुँह में, पूरा बाहर निकालकर एक झटके में… जैसे कोई चूत चोद रहा हो, एकदम वैसे… और मैं भी उनका पूरा साथ दे रही थी। मेरे रसीले गुलाबी होंठ उस मोटे कड़े लण्ड पे रगड़ते घिसते किस कर रहे थे। नीचे से मेरी मखमली जीभ चाट रही थी।



और मैं जोर-जोर से पूरी ताकत से चूस रही थी। सुपाड़ा आलमोस्ट मेरे गले में ठोकर मार रहा था। गाल मेरे एकदम फूले-फूले, बड़ी-बड़ी आँखें मेरी उबली पड़ रही थीं। सांसें भी बहुत मुश्किल से धीरे-धीरे… और उसी बीच कभी ये ध्यान जा पाता था। की…



भौजी पूरी ताकत से मेरी कसी गाण्ड जबरदस्ती फैला के, उसमें आधी से ज्यादा बोतल खाली कर दी होगी उन्होंने, कम से कम पांच दस मिनट, और फिर थोड़ा सा बाहर भी छेद के मुहाने पे, पूरी गाण्ड चपचप हो रही थी। दोनों नितम्बों को अपने हाथ से दबोच कर उन्होंने अब आपस में इस तरह मसला की तेल अंदर अच्छी तरह लिथड़ गया, कुछ देर टांग भी वो उठाये रहीं, जिससे तेल की एक बूँद भी अंदर से बाहर न आ पाये। और फिर आके एक बार मेरे सिरहाने वो बैठ गईं।



कुछ देर मेरा मुख चोदन देखती रहीं, फिर अपने ‘उनसे’ बोली- “अरे तुम्हारी बहन है तो क्या मतलब? आई लोहे के राड ऐसा इसके मुलायम मुँह में कब तक ठेलोगे। अरे तोहार बहिन है तो हमरो तो ननद है जरा हमहू…”



बड़े बेमन से भैया ने बाहर निकाला,



पहली बार मैंने उसे इतने नजदीक से देखा, एकदम तन्नाया, खूब कड़ा, मोटा और गुस्से में जैसे उससे उसका शिकार छीन लिया गया हो।



भाभी ने थोड़ी देर मेरा गाल सहलाया, मेरे जबड़ों को गालों को कुछ आराम मिला तो वो बोली-


“इतना देर इत्ता कड़ा-कड़ा चूसी हो तो चलो जरा कुछ देर कुछ मुलायम भी चूस लो…”

और मेरे समझने के पहले, मेरे मुँह को अपने हाथों से दबाकर, सीधे अपने निपल मेरे मुँह में।

निपल उनके पहले भी मैं चूस चुकी थी, लेकिन इस बार निपल के साथ उन्होंने अपनी बड़ी-बड़ी चूची भी ठेल दी और जैसे कार्क से कोई बोतल का मुँह बंद कर दे बस उसी तरह, मेरा मुँह बंद हो गया। वो मेरे गाल सहलाती रहीं, बाल सहलाती रहीं, दुलराती पुचकारती रहीं।



और उनका एक हाथ मेरे उभारों को भी सहला, दबा रहा था। मैं भी हल्के-हल्के उनकी बड़ी-बड़ी चूची चूसने का मजा लेने लगी। कभी निपल को चूसती तो कभी मेरी जीभ निपल को हल्के-हल्के फ्लिक करती। भाभी को भी मजा आ रहा था, वो खूब सिसक रही थीं। मेरे दोनों हाथ बंधे थे लेकिन मुँह जीभ तो आजाद थी। भैय्या, भाभी ने खूब मजे ले लिए थे अब नंबर मेरा था तो मैं क्यों छोड़ती।



लेकिन तभी कड़वा तेल का जोरदार भभका मेरे नथुनों में भर गया। शायद भैय्या ने, अपने मोटे सुपाड़े में,



लेकिन मेरा ध्यान फिर भौजी की ओर आ गया। उन्होंने अपने दोनों हाथों से मेरा सर पकड़कर पूरी ताकत से अपनी मोटी-मोटी चूची मेरे मुँह में पेल दी। वो ठेलती रहीं ठूसतीं रहीं।



एक बार फिर मेरे गाल फटे जा रहे थे, जबड़े दुःख रहे थे, लेकिन कामिनी भाभी ने अपनी चूची का प्रेशर कम नहीं किया। उनके दोनों हाथों ने इस तरह मेरे सर को पकड़ रखा था की मैं जरा भी सर हिला भी नहीं सकती थी। उनकी देह मेरे ऊपर इस तरह पसरी थी की मुझे कुछ और नहीं दिख रहा था। पूरी तरह दबी, मेरे दोनों हाथ कसकर पलंग के सिरहाने से बंधे…



जिस तरह कुछ देर पहले कामिनी भाभी ने मेरे पिछवाड़े के छेद को पूरी ताकत से चियार कर, आधी बोतल से भी ज्यादा वहां कड़वा पिलाया था, उसी तरह… लेकिन उससे 100 गुना ज्यादा ताकत से भैय्या के दोनों हाथों ने मेरी गाण्ड को फैला के, मैंने उनके सुपाड़े के टच को महसूस किया, लेकिन तभी।



पूरे जोर से, कककचा के कामिनी भाभी ने मेरे निपल काट लिए। उनके दांत गड़ गए और वो तब भी दबाती रही, चबाती रहीं।



मैं दर्द से बिलबिला रही थी, आँखों में आंसू छलक रहे थे लेकिन उसी समय कामिनी भाभी के लम्बे नाखूनों ने उससे भी जोर से मेरे क्लिट को नोच लिया और नाखून वहां भी दबा रहे थे।



दर्द से मैं तड़प रही थी, उलट पलट रही थी लेकिन मेरी सारी सिसकियां मेरी मुँह में घुट-घुट के दब रही थी। कामिनी भाभी ने इतनी जोर से अपनी चूची मेरे कोमल किशोर मुँह में ठेल रखी थी, कि, मैं बिलबिला रही थी और मुझे पता नहीं चला की कब मोटा कड़ा तगड़ा सुपाड़ा भैय्या ने ठेलना शुरू कर दिया मेरी गाण्ड में।



दोनों हाथ से उन्होंने गाण्ड के छेद को चियार रखा था और पूरी ताकत से अपने मोटे भाले को ठेल रहे थे, पेल रहे थे, धकेल रहे थे। बिना रुके वो पुश करते रहे।



उधर भाभी के दांतों का दबाव मेरे निपल पर कम नहीं हुआ, मेरा पूरा ध्यान उधर ही था। दर्द से मेरी चूची बिलबिला रही थी।


भैया ने मेरी लम्बी छरहरी टाँगें अपने कंधों पर कर रखी थी, उनके दोनों हाथ मेरे गोल-गोल चूतड़ों को पकड़ के लण्ड मेरी कसी कुँवारी गाण्ड पे अपनी पूरी ताकत से पेल रहे थे। चार पांच मिनट तक वो ठेलते रहे, और कलाई ऐसा मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में पूरी तरह पैबस्त हो गया।



और उसके बाद कामिनी भाभी ने अपने दाँतो का जोर मेरे निपल पर कुछ कम किया। लेकिन जैसे ही वहां का दर्द कुछ कम हुआ, गाण्ड का दर्द तेजी से महसूस हुआ। लग रहा था जैसे किसी ने लोहे का राड घुसेड़ दिया हो, मेरी कुँवारी गाण्ड में।






उनका लण्ड मोटा तो बहुत था ही कड़ा भी बहुत था। फिर चूस-चूसकर मैंने भी तो… मेरी गाण्ड फटी जा रही थी।

कामिनी भाभी ने अब दाँतो का जोर हटा लिया था, बल्की अब उनकी जीभ मेरी काटी कुचली चूची पे हल्के-हल्के, जैसे कोई मलहम लगा रहा हो, बस उस तरह से, और धीमे-धीमे दर्द भी कम होता जा रहा था। निपल चाटने में, चूसने में तो भौजी को महारत हासिल थी इसलिए थोड़े ही देर में दर्द की जगह चूचियों में एक अजब सनसनाहट महसूस हो रही थी।

मेरे मुँह में भी घुसी अपनी चूची का जोर उन्होंने कम कर दिया था, लेकिन निकाला भी नहीं था। मैं बोल तो नहीं सकती थी, लेकिन गाल और जबड़े अब दुःख नहीं रहे थे।


नीचे भैया ने भी अब लण्ड ठेलना बंद कर दिया था। उनके दोनों हाथ अभी भी मेरे गोल-गोल चूतड़ों पे थे, लेकिन बजाय दबोचने के अब उसकी गोलाइयों का वो सहलाते हुए मजा ले रहे थे। मुट्ठी ऐसा मोटा सुपाड़ा अभी भी मेरी गाण्ड में धंसा था। दर्द बहुत हो रहा था, लेकिन धीमे-धीमे मेरी गाण्ड अब उनके सुपाड़े की आदी होती जा रही थी।


दो चार मिनट के बाद भाभी ने मेरे थके फैले मुँह से अपनी बड़ी-बड़ी 38डी…डी साइज की चूची निकाली, और हल्के-हल्के मेरे गाल को सहलाया। कुछ देर बाद भैय्या को देखकर बनावटी गुस्से से बोलीं-

“ये क्या किया तुमने? माना तुम्हारी बहन है ये, ये भी माना की तेरी बहन होने के नाते नंबरी छिनार, चुदवासी है, लेकिन इसका क्या मतलब इस बिचारी की कसी-कसी कुँवारी गाण्ड में इतना मोटा सुपाड़ा तुमने पेल दिया। कितना दर्द हो रहा होगा बिचारी को?”



भैया खिस्स-खिस्स मुश्कुराये जा रहे थे।



बाहर काले बादलों ने आसमान में काली स्याही पोत दी थी। न तारे, न चाँद, न चांदनी। हवा एकदम रुकी हुई। भाभी उठी और उन्होंने लालटेन की रोशनी थोड़ी तेज कर दी। अब मुझे मेरी गाण्ड में घुसा हुआ उनका वो मोटा खूंटा साफ-साफ दिख रहा था।



भौजी, मेरी कमर के पास बैठ गईं और एक बार फिर प्यार से मेरी चुन्मुनिया सहलाते आँख मार के मुझसे बोलीं-


“मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?


“ये क्या किया तुमने? माना तुम्हारी बहन है ये, ये भी माना की तेरी बहन होने के नाते नंबरी छिनार, चुदवासी है, लेकिन इसका क्या मतलब इस बिचारी की कसी-कसी कुँवारी गाण्ड में इतना मोटा सुपाड़ा तुमने पेल दिया। कितना दर्द हो रहा होगा बिचारी को?”

“मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?

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अब मुझे मेरी गाण्ड में घुसा हुआ उनका वो मोटा खूंटा साफ-साफ दिख रहा था।





भौजी, मेरी कमर के पास बैठ गईं और एक बार फिर प्यार से मेरी चुन्मुनिया सहलाते आँख मार के मुझसे बोलीं-






मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?

दोनों हाथ तो कस के बंधे हुए हैं, हिला भी नहीं सकती। सुपाड़ा गाण्ड में धंस गया है, लाख चूतड़ पटको सूत भर भी नहीं हिलेगा। हाँ चीखने चिल्लाने पर कोई रोक नहीं है। फिर कुँवारी ननद की उसके भैय्या गाण्ड मारें और चीख चिल्लाहट न हो, ये तो सख्त नाइंसाफी है। जब तक आधे गाँव को तुम्हारी चीख न सुनाई पड़े तो न गाण्ड मारने का मजा न मरवाने का…”




और फिर उन्होंने भैया को भी ललकारा-

“देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है? तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं, तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के काहें छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दर्द होगा बुरचोदी को लेकिन गाण्ड मारने, मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को…”

और भैया ने, एक बार फिर जोर से मेरी टाँगें कंधे पे सेट की, चूतड़ जोर से पकड़ा सुपाड़ा थोड़ा सा बाहर निकाला, और वो अपनी पूरी ताकत से ठेला की…

मेरी फट गई। बस मैं बेहोश नहीं हुई। मेरी जान नहीं गई।






जैसे किसी ने मुट्ठी भर लाल मिर्च मेरी गाण्ड में ठूंस दी हो और कूट रहा हो-


“उईईई… ओह्ह्ह… नहींईईई…”

चीख रुकती नहीं दुबारा चालू हो जाती।

मैं चूतड़ पटक रही थी, पलंग से रगड़ रही थी, दर्द से बिलबिला रही थी। लेकिन न मेरी चीख रोकने की कोशिश भैया ने की न भाभी ने।

भैया ठेलते रहे, धकेलते रहे।

भला हो बंसती का, जब मैं सुनील से गाण्ड मरवा के लौटी थी, और वो मेरी दुखती गाण्ड में क्रीम लगा रही थी, पूरे अंदर तक। उसने समझाया था की गाण्ड मरवाते समय लड़की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, गाण्ड को और खास तौर से गाण्ड के छल्ले को ढीला छोड़ना। अपना ध्यान वहां से हटा लेना।

बसंती की बात एकदम सही थी।

लेकिन वो भी, जब एक बार सुपाड़ा गाण्ड के छल्ले को पार कर जाता तो फिर से एक बार वो उसे खींचकर बाहर निकालते, और दरेरते, रगड़ते, घिसटते जब वो बाहर निकलता तो बस मेरी जान नहीं निकलती थी बस बाकी सब कुछ हो जाता।

और बड़ी बेरहमी से दूनी ताकत से वो अपना मोटा सुपाड़ा, गाण्ड के छल्ले के पार ढकेल देते।






बिना बेरहमी के गाण्ड मारी भी नहीं जा सकती, ये बात भी बसंती ने ही मुझे समझायी थी। छ-सात बार इसी तरह उन्होंने गाण्ड के छल्ले के आर पार धकेला, ठेला। और धीरे-धीरे दर्द के साथ एक हल्की सी टीस, मजे की टीस भी शुरू हो गई। और अब जो उन्होंने मेरे चूतड़ों को दबोच के जो करारा धक्का मारा, अबकी आधे से ज्यादा खूंटा अंदर था, फाड़ता चीरता।

दर्द के मारे मेरी जबरदस्त चीख निकल गई, लेकिन साथ में मजे की एक लहर भी, एकदम नए तरह का मजा।

“दो तीन बार जब कामिनी भाभी के मर्द से गाण्ड मरवा लोगी न तब आएगा असली गाण्ड मरवाने का मजा, समझलू…”

बसंती ने छेड़ते हुए कहा था।

जैसे अर्ध विराम हो गया हो। भैय्या ने ठेलना बंद कर दिया था। आधे से थोड़ा ज्यादा लण्ड अंदर घुस गया था। गाण्ड बुरी तरह चरपरा रही थी। चेहरा मेरा दर्द से डूबा हुआ था।





लेकिन भैय्या ने अब अपनी गदोरी से मेरी चुनमुनिया को हल्के-हल्के, बहुत धीरे-धीरे सहलाना मसलना शुरू किया। चूत में अगन जगाने के लिए वो बहुत था, और कुछ देर में उनका अंगूठा भी उसी सुर ताल में, मेरी क्लिट को भी रगड़ने लगा। भैय्या के दूसरे हाथ ने चूची को हल्के से पकड़ के दबाना शुरू किया लेकिन कामिनी भौजी उतनी सीधी नहीं थी।

दूसरा उभार भौजी के हाथ में था, खूब कस-कस के उन्होंने मीजना मसलना शुरू कर दिया।



बस मैं पनियाने लगी, हल्के-हल्के चूतड़ उछालने लगी। पिछवाड़े का दर्द कम नहीं हुआ था, लेकिन इस दुहरे हमले से ऐसी मस्ती देह में छायी की…

“हे हमार ननदो छिनार, बुरियो क मजा लेत हाउ और गंड़ियो क, और भौजी तोहार सूखी-सूखी। चल चाट हमार बुर…”

वैसे भी कामिनी भाभी अगर किसी ननद को बुर चटवाना चाहें तो वो बच नहीं सकती और अभी तो मेरी दोनों कलाइयां कस के बंधी हुई थीं, गाण्ड में मोटा खूंटा धंसा हुआ था, न मैं हिल डुल सकती थी, न कुछ कर सकती थी।







कुछ ही देर में भाभी की दोनों तगड़ी जाँघों के बीच मेरा सर दबा हुआ था और जोर से अपनी बुर वो मेरे होंठों पे मसल रगड़ रही थीं, साथ में गालियां भी

“अरे छिनरो, गदहा चोदी, कुत्ताचोदी, तेरे सारे मायकेवालियों क गाण्ड मारूं, चाट, जोर-जोर से चाट, रंडी क जनी, हरामिन, अबहीं तो गाण्ड मारे क शुरुआत है, अभी देखो कैसे-कैसे, किससे-किससे तोहार गाण्ड कुटवाती हूँ…”

गाली की इस फुहार का मतलब था की भौजी खूब गरमा रही हैं और उन्हें बुर चूसवाने में बहुत मजा आ रहा है। मजा मुझे भी आ रहा था, गाली सुनने में भी और भौजी की रसीली बुरिया चूसने चाटने में भी।

मैंने अपने दोनों होंठों के बीच भौजी की रसभरी दोनों फांकें दबाई और लगी पूरे मजे ले ले के चूसने।






उधर भैया ने भी अपनी दो उंगलियों के बीच मेरी गुलाबी पुत्तियों को दबा के इतने जोर से मसलना शुरू कर दिया की मैं झड़ने के कगार पे आ गई। और मेरे भैय्या कोई कामिनी भाभी की तरह थोड़ी थे की मुझे झड़ने के किनारे पे ले आ के छोड़ देते।

उन्होंने अपनी स्पीड बढ़ा दी, और मैं, बस… जोर-जोर से काँप रही थी, चूतड़ पटक रही थी, मचल रही थी, सिसक रही थी।

भैया और भाभी ने बिना इस बात की परवाह किये अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। भैया ने अपना मूसल एक बार फिर मेरी गाण्ड में ठेलना शुरू कर दिया।

भाभी ने अब पूरी ताकत से अपनी बुर मेरी होंठों पे रगड़ना शुरू कर दिया, और मैं झड़ने से उबरी भी नहीं थी की उन्होंने अपना चूतड़ उचकाया, अपने दोनों हाथों से अपनी गाण्ड के छेद खूब जोर से फैलाया और सीधे मेरे मुँह के ऊपर-







“चाट, गाण्डचट्टो, चाट जोर-जोर से। तोहार गाण्ड हमार सैयां क लण्ड का मजा ले रही है त तनी हमरे गाण्ड के चाट चूट के हमहुँ क, हाँ हाँ ऐसे ही चाट, अरे जीभ गाण्ड के अंदर डाल के चाट। मस्त चाट रही हो छिनार और जोर से, हाँ घुसेड़ दो जीभ, अरे तोहें खूब मक्खन खिलाऊँगी, हाँ अरे गाँव क कुल भौजाइयन क मक्खन चटवाऊँगी, हमार ननदो…”

मैं कुछ भी नहीं सुन रही थी बस जोर-जोर से चाट रही थी, गाण्ड वैसे ही चूस रही थी जैसे थोड़ी देर पहले कामिनी भाभी की बुर चूस रही थी।

खुश होके भौजी ने मेरे दोनों हाथ खोल दिए और मेरी मेरे खुले हाथों ने सीधे भौजी की बुर दबोचा, दो उंगली अंदर, अंगूठा क्लिट पे। थोड़ी देर में भौजी भी झड़ने लगीं, जैसे तूफान में बँसवाड़ी के बांस एक दूसरे से रगड़ रहे हों बस उसी तरह, हम दोनों की देह गुत्थमगुत्था, लिपटी। जब भौजी का झड़ना रुका, भैय्या ने लण्ड अंदर पूरी जड़ तक मेरी गाण्ड में ठोंक दिया था। थोड़ी देर तक उन्होंने सांस ली फिर मेरे ऊपर से उतरकर भैया के पास चली गई।

पूरा लण्ड ठेलने के बाद भैय्या भी जैसे सुस्ता रहे थे। मेरी टाँगें जो अब तक उनके कंधे पे जमीं थीं, सीधे बिस्तर पे आ गई थीं। हाँ अभी भी मुड़ीं, दुहरी। हम दोनों की देह एक दूसरे से चिपकी हुई थी। भौजी ऐसे देख रही थीं की जैसे उन्हें बिस्वास नहीं हो रहा की मेरी गाण्ड ने इतना मोटा लंबा मूसल घोंट लिया।






बाहर मौसम भी बदल रहा था। हवा रुकी थी, बादल पूरे आसमान पे छाए थे और हल्की-हल्की एक दो बूंदें फिर शुरू हो गई थीं। लग रहा था की जोर की बारिश बस शुरू होने वाली है।

मेरे हाथ अब खुल गए थे तो मैंने भी भैय्या को प्यार से अपनी बाहों में भर लिया था।







मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?

दोनों हाथ तो कस के बंधे हुए हैं, हिला भी नहीं सकती। सुपाड़ा गाण्ड में धंस गया है, लाख चूतड़ पटको सूत भर भी नहीं हिलेगा। हाँ चीखने चिल्लाने पर कोई रोक नहीं है। फिर कुँवारी ननद की उसके भैय्या गाण्ड मारें और चीख चिल्लाहट न हो, ये तो सख्त नाइंसाफी है। जब तक आधे गाँव को तुम्हारी चीख न सुनाई पड़े तो न गाण्ड मारने का मजा न मरवाने का…”



“देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है? तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं, तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के काहें छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दर्द होगा बुरचोदी को लेकिन गाण्ड मारने, मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को…”

“चाट, गाण्डचट्टो, चाट जोर-जोर से। तोहार गाण्ड हमार सैयां क लण्ड का मजा ले रही है त तनी हमरे गाण्ड के चाट चूट के हमहुँ क, हाँ हाँ ऐसे ही चाट, अरे जीभ गाण्ड के अंदर डाल के चाट। मस्त चाट रही हो छिनार और जोर से, हाँ घुसेड़ दो जीभ, अरे तोहें खूब मक्खन खिलाऊँगी, हाँ अरे गाँव क कुल भौजाइयन क मक्खन चटवाऊँगी, हमार ननदो…”


Kamuk🔥🔥🔥🔥🔥
 
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