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Erotica सोलवां सावन

komaalrani

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छल्ला पार





लेकिन भौजी की लगातार बह रही गाली गंगा में मुश्किल था कुछ कहना। हाँ पल भर के लिए मैं गाण्ड में अंड़से मोटे सुपाड़े को भूल गई और मैंने भी टाँगें लता की तरह भैया की कमर में कस के लपेट ली थी। मेरी बाहें भी उनकी पीठ से चिपकी थीं। और मैं अपने मस्त उभार भैय्या के चौड़े सीने पे जोर-जोर से रगड़ रही थी, मेरे गुलाबी रसीले होंठ उनके होंठों को चूम, चूस रहे थे। और कान भाभी की मस्त गालियों का मजा ले रहे थे।



भाभी- “हरामन की जनी, भंड़ुओं की रखैल, रंडी की औलाद, तू तो पैदायशी खानदानी छिनार है। तेरा सारा खानदान गान्डू है, क्यों इतना नखड़ा दिखा रही है गाण्ड मरवाने में, भाईचोद?”



अचानक बहुत तेज दर्द हुआ। जैसे किसी ने तेजी से छूरा, बल्की तेज तलवार पूरी की पूरी एक बार में घुसा दी हो। हुआ ये की जब मस्ती में मैं डुबी थी, भैया को भाभी ने इशारा किया और भैय्या ने पूरी ताकत और तेजी से, कमर उचका के, उन्होंने दोनों हाथों से चूचियों को कस के दबोच रखा था और नीचे से अपना मोटा खूंटा पूरी ताकत से पुश किया।



भाभी ने भी साथ में कंधे को जोर से दबाया, और, अंदर तक, अंड़स गया, अटक गया, फाड़ दिया रे अंदर तक दरेरते रगड़ते छीलते घिसटते गाण्ड का छल्ला पार हो गया था।

मैं बड़ी जोर से चीखी, और किसी ने भी मेरी चीख रोकने की कोशिश नहीं की। भैय्या ने भी नहीं।


भाभी तो बोलीं- “अरे चीखने दो साल्ली को, बिना चीख पुकार के गाण्ड मरौवल का मजा क्या? रोने दो, चोदो हचक-हचक के। आखिर तेरी बहन भी तो इसका भाई बिना नागा रोज चोदता होगा। चोदो गाण्ड इस छिनार की हचक के, फाड़ दो साली की, मोची से सिलवा लेगी…”





भैय्या पे वही असर हुआ जो भौजी चाहती थीं। वो पूरे जोश में आ गये, हचक-हचक के पूरी ताकत से, दरेरते, रगड़ते, फाड़ते घुसा रहे था।


दर्द के मारे जान निकल रही थी, मैं गाण्ड पटक रही थी, चीख रही थी, आंसू मेरे गाल पे गिर रहे थे।

लेकिन भौजी की गालियां-

“काहें छिनरो मजा आ रहा है मोटा लौंडा घोंटने में? अबहिन तो बहुत मोट-मोट लौंड़ा घोंटोगी, मेरी रंडी की जनी। घोंटो घोंटो बहुत चुदवासी हो न… तेरी गाण्ड का भोसड़ा बनवा के भेजूंगी, कुत्ता चोदी…” अनवरत, नान स्टाप।

तबतक उन्होंने कुछ किया जिससे मेरी बस जान नहीं निकली, आधे से ज्यादा खूंटा मैं घोंट चुकी थी। भइया बजाय धक्का मारने के बस ठूंसे जा रहे थे, गजब की ताकत थी उनमें।



लेकिन भौजी ने मुझे पकड़ के ऊपर खींचा जोर से, और भैया ने भी नीचे, आलमोस्ट लण्ड बाहर हो गया सुपाड़ा भी काफी कुछ बाहर, लेकिन तभी… दोनों ने एक साथ, भौजी ने ऊपर से दबाया और भइया ने नीचे से पेलना शुरू किया और एक बार फिर, मेरी गाण्ड के छल्ले को चीरता फाड़ता वो मोटा सुपाड़ा,



और भौजी ने जोर से मेरे निपल की घुन्डियां मरोड़ दीं, और मुझसे बोलने को कहा-

“बोल छिनार बोल, वरना चाहे जितना चीखेगी छोडूंगी नहीं, बोल की मैं छिनार हूँ, भाईचोदी हूँ, चुदवासी हूँ…”



लेकिन बोलने से भी नहीं जान बची।



भाभी-

“जोर से बोल, और जोर से बोल… अरे पूरी ताकत से बोल, दस-दस बार, वरना गाण्ड में तेरे कुछ भी दर्द नहीं हो रहा है, छिनार की जनी, जिस भोसड़े से शहर भर के भड़ुओं के चोदने के बाद से निकली है न, उसी में इस गाँव के सारे मर्दों के घोड़े दौड़ा दूंगी उसमें…”



मैं- “मैं रंडी की जनी हूँ, मैं गाँव में चुदवाने, गाण्ड मरवाने आई हूँ, पूरे गाँव की रखैल हूँ, मैं पूरे गाँव से गाण्ड मरवाऊँगी। मैं नंबरी छिनार हूँ, और भी…” पांच दस मिनट तक, पूरे जोर से।



भौजी की धमकी-

“अगर एक बार भी धीमे बोली न तो पांच बार और… बोल भड़ुए की औलाद…”

और साथ में धमकी-

“तेरी गाण्ड में तो कुछ भी दर्द नहीं हो रहा है ननद रानी। अगर एक बार भी बोलने में हिचकी न, तो ये अपना हाथ कोहनी तक तेरी बुर में पेल दूंगी, कुँवारी आई थी गाँव में भोसड़ी वाली होकर जायेगी…”



और मुझे उनके बात पे पूरा विश्वास था।



उस दिन रात में मैं चम्पा भाभी के दरवाजे के बाहर से सुन चुकी थी, चम्पा भाभी मेरी भाभी से कह रही थीं की वो और कामिनी भाभी दोनों मिल के मुट्ठी करेंगी, एक गाण्ड में और दूसरी भाभी की बुर में। भाभी की माँ भी तो एक बार अपनी होली का किस्सा सुना रही थी, चम्पा भाभी और मेरी भाभी के सामने। कैसे अपनी शादी के चार पांच साल बाद, होली में मेरी भाभी की बुआ की (यानी अपनी ननद की) इसी आँगन, इसी आँगन में पहले नंगा करके रंग लगाया, रगड़ा और पूरी की पूरी मुट्ठी उनकी बुर में।




इसलिए कामिनी भाभी कर भी सकती थीं, और मैं उनकी बात मान के जोर-जोर से बोल रही थी-

“मैं रंडी की जनी हूँ, मैं गाँव में चुदवाने, गाण्ड मरवाने आई हूँ, पूरे गाँव की रखैल हूँ, मैं पूरे गाँव से गाण्ड मरवाऊँगी। मैं नंबरी छिनार हूँ…”

लेकिन जब पांच दस मिनट बोल के रुकी तो मैंने देखा, भैय्या मुश्कुरा रहे थे और उससे भी ज्यादा, भाभी।

“नीचे देख जरा छिनरो…” भौजी बोलीं।
 

komaalrani

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घोंटो अपने भैया का





जब पांच दस मिनट बोल के रुकी तो मैंने देखा, भैय्या मुश्कुरा रहे थे और उससे भी ज्यादा, भाभी।



“नीचे देख जरा छिनरो…” भौजी बोलीं।



मैंने नीचे देखा और दंग रह गई। आलमोस्ट पूरा, मुश्किल से दो ढाई इंच बचा होगा, छ सात इंच मैं घोंट गई थी। अब मैं भाभी की ट्रिक समझी, गाली दे दे के, मुझसे गालियां दिलवा के मेरा ध्यान उन्होंने गाण्ड में हो रहे दर्द से हटा दिया था। और भैय्या मेरी दोनों चूचियां पकड़ के, कस-कस के, हुमच-हुमच के अपना मोटा लण्ड उचका-उचका के मेरी कसी कुँवारी गाण्ड में ठेल रहे थे।



(हाँ ये बात अलग है जो मैं चिल्ला-चिल्ला के बोल रही थी- “मैं चुदवासी हूँ, पूरे गाँव की रखैल बनूँगी, मेरी गाण्ड को मोटे-मोटे लण्ड चाहिए…” बाहर धान के खेत में काम करने वालियां अच्छी तरह सुन रही थीं और जिस तरह से वो बातें बाटतीं हैं, पनघट पे, खेत में, गाँव के पोखर पे, शाम तक गाँव की सारी औरतों को ये बातें मालूम हो गईं।)





भाभी-

“बिन्नो अब तेरा नंबर है, घोंट चूतड़ उठा के, दिखा दे कैसी नंबरी चुदक्कड़ है तू, अपनी मायकेवाली रंडियों का नाम मत डूबा…”


मैंने हल्के-हल्के शुरू किया, लेकिन भैय्या पूरा साथ दे रहे थे। जब मैं ऊपर की ओर खींचती, तो वो मेरी पतली कमरिया पकड़े, मुझे ऊपर की ओर धकेलते, और जब मैं नीचे की ओर लण्ड घोंटने के लिए पुश करती तो भैय्या मुझसे दुगनी ताकत से अपने उस मस्ती के खम्भे पे, मेरी कमर पकड़कर, नीचे की ओर खींचते।





लगी मेरी भौजी भी थीं, लेकिन उनका सिंगल प्वाइंट प्रोग्राम था, मस्ती से मेरी हालत खराब करने का। भैय्या जिस तरह से मेरी चूचियां दबा रहे थे, उससे भी दूनी ताकत से कामिनी भाभी, और साथ-साथ उनकी खेली खाई उंगलियां कभी मेरी कसी चूत में तो कभी क्लिट पे, ननदों को झड़ने के नजदीक लाकर छोड़ने में उन्हें महारत हासिल थी और आज फिर वही।



मेरे लण्ड पे ऊपर-नीचे होने की स्पीड बढ़ गई।

साथ में जब आलमोस्ट पूरा लण्ड गाण्ड में घुस जाता तो बजाय ऊपर-नीचे करने के मैं कभी आगे-पीछे करती, गोल-गोल घुमाती, जिससे पूरे लण्ड का मजा मेरी गाण्ड को मिल सके। और साथ में भैया के सीने पे अपनी गोल-गोल चूचियां रगड़ती, उनकी पीठ पे मस्ती से अपने नाखून से नोचती, पूरी ताकत से, और साथ में जोर-जोर से भाभी की गालियों का जवाब भी दे रही थी।

पांच छ मिनट बाद एक मिनट के लिए मैं रुकी, और नीचे देखा तो बस जोर से शर्मा गई।



भैय्या के हाथ दोनों, पलंग पर थे। वो कब का मुझे ऊपर-नीचे करना बंद कर चुके थे, इसका मतलब सिर्फ मैं अपनी ताकत से लण्ड के ऊपर-नीचे कर रही थी, और लण्ड एकदम जड़ तक गाण्ड में घुसा हुआ था।



खुली खिड़की से आ रही ठंडी हवा के बावजूद मेरी देह पशीने-पशीने थी।



रुक काहें गई छिनरी चोदो न, घोंटो अपने भैया का लण्ड, भौजी खिलखिलाते बोलीं।



फिर तो जैसे बच्चे मस्ती से ट्रैम्पोलिन पे उछलते हैं बस उसी तरह से, बार-बार आलमोस्ट लण्ड के ऊपर तक से लेकर पूरे जड़ तक, उछल-उछलकर गाण्ड में लण्ड घोंट रही थी। लेकिन मेरी थकान की बात और कौन समझता, भौजी के अलावा।



उन्होंने भैया को चढ़ाया, बहुत देर रंडी बैठ ली गोदी में अरे कुतिया की तरह जब तक गाण्ड नहीं मारोगे न,



भैय्या ने उनको बात पूरा करने का मौक़ा भी नहीं दिया। ये बात भइया की माननी पड़ेगी, नंबरी चुदक्कड़ थे और गाण्ड मारने में तो एकदम एक्सपर्ट, इंच क्या एक सूत भी लण्ड टस से मस नहीं हुआ।
 
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घोंटो अपने भैया का




जब पांच दस मिनट बोल के रुकी तो मैंने देखा, भैय्या मुश्कुरा रहे थे और उससे भी ज्यादा, भाभी।



“नीचे देख जरा छिनरो…” भौजी बोलीं।



मैंने नीचे देखा और दंग रह गई। आलमोस्ट पूरा, मुश्किल से दो ढाई इंच बचा होगा, छ सात इंच मैं घोंट गई थी। अब मैं भाभी की ट्रिक समझी, गाली दे दे के, मुझसे गालियां दिलवा के मेरा ध्यान उन्होंने गाण्ड में हो रहे दर्द से हटा दिया था। और भैय्या मेरी दोनों चूचियां पकड़ के, कस-कस के, हुमच-हुमच के अपना मोटा लण्ड उचका-उचका के मेरी कसी कुँवारी गाण्ड में ठेल रहे थे।



(हाँ ये बात अलग है जो मैं चिल्ला-चिल्ला के बोल रही थी- “मैं चुदवासी हूँ, पूरे गाँव की रखैल बनूँगी, मेरी गाण्ड को मोटे-मोटे लण्ड चाहिए…” बाहर धान के खेत में काम करने वालियां अच्छी तरह सुन रही थीं और जिस तरह से वो बातें बाटतीं हैं, पनघट पे, खेत में, गाँव के पोखर पे, शाम तक गाँव की सारी औरतों को ये बातें मालूम हो गईं।)





भाभी-

“बिन्नो अब तेरा नंबर है, घोंट चूतड़ उठा के, दिखा दे कैसी नंबरी चुदक्कड़ है तू, अपनी मायकेवाली रंडियों का नाम मत डूबा…”


मैंने हल्के-हल्के शुरू किया, लेकिन भैय्या पूरा साथ दे रहे थे। जब मैं ऊपर की ओर खींचती, तो वो मेरी पतली कमरिया पकड़े, मुझे ऊपर की ओर धकेलते, और जब मैं नीचे की ओर लण्ड घोंटने के लिए पुश करती तो भैय्या मुझसे दुगनी ताकत से अपने उस मस्ती के खम्भे पे, मेरी कमर पकड़कर, नीचे की ओर खींचते।





लगी मेरी भौजी भी थीं, लेकिन उनका सिंगल प्वाइंट प्रोग्राम था, मस्ती से मेरी हालत खराब करने का। भैय्या जिस तरह से मेरी चूचियां दबा रहे थे, उससे भी दूनी ताकत से कामिनी भाभी, और साथ-साथ उनकी खेली खाई उंगलियां कभी मेरी कसी चूत में तो कभी क्लिट पे, ननदों को झड़ने के नजदीक लाकर छोड़ने में उन्हें महारत हासिल थी और आज फिर वही।



मेरे लण्ड पे ऊपर-नीचे होने की स्पीड बढ़ गई।

साथ में जब आलमोस्ट पूरा लण्ड गाण्ड में घुस जाता तो बजाय ऊपर-नीचे करने के मैं कभी आगे-पीछे करती, गोल-गोल घुमाती, जिससे पूरे लण्ड का मजा मेरी गाण्ड को मिल सके। और साथ में भैया के सीने पे अपनी गोल-गोल चूचियां रगड़ती, उनकी पीठ पे मस्ती से अपने नाखून से नोचती, पूरी ताकत से, और साथ में जोर-जोर से भाभी की गालियों का जवाब भी दे रही थी।

पांच छ मिनट बाद एक मिनट के लिए मैं रुकी, और नीचे देखा तो बस जोर से शर्मा गई।



भैय्या के हाथ दोनों, पलंग पर थे। वो कब का मुझे ऊपर-नीचे करना बंद कर चुके थे, इसका मतलब सिर्फ मैं अपनी ताकत से लण्ड के ऊपर-नीचे कर रही थी, और लण्ड एकदम जड़ तक गाण्ड में घुसा हुआ था।



खुली खिड़की से आ रही ठंडी हवा के बावजूद मेरी देह पशीने-पशीने थी।



रुक काहें गई छिनरी चोदो न, घोंटो अपने भैया का लण्ड, भौजी खिलखिलाते बोलीं।



फिर तो जैसे बच्चे मस्ती से ट्रैम्पोलिन पे उछलते हैं बस उसी तरह से, बार-बार आलमोस्ट लण्ड के ऊपर तक से लेकर पूरे जड़ तक, उछल-उछलकर गाण्ड में लण्ड घोंट रही थी। लेकिन मेरी थकान की बात और कौन समझता, भौजी के अलावा।



उन्होंने भैया को चढ़ाया, बहुत देर रंडी बैठ ली गोदी में अरे कुतिया की तरह जब तक गाण्ड नहीं मारोगे न,



भैय्या ने उनको बात पूरा करने का मौक़ा भी नहीं दिया। ये बात भइया की माननी पड़ेगी, नंबरी चुदक्कड़ थे और गाण्ड मारने में तो एकदम एक्सपर्ट, इंच क्या एक सूत भी लण्ड टस से मस नहीं हुआ।
“मैं चुदवासी हूँ, पूरे गाँव की रखैल बनूँगी, मेरी गाण्ड को मोटे-मोटे लण्ड चाहिए…” बाहर धान के खेत में काम करने वालियां अच्छी तरह सुन रही थीं और जिस तरह से वो बातें बाटतीं हैं, पनघट पे, खेत में, गाँव के पोखर पे, शाम तक गाँव की सारी औरतों को ये बातें मालूम हो गईं।)🔥🔥🔥🔥🔥
 

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“मैं चुदवासी हूँ, पूरे गाँव की रखैल बनूँगी, मेरी गाण्ड को मोटे-मोटे लण्ड चाहिए…” बाहर धान के खेत में काम करने वालियां अच्छी तरह सुन रही थीं और जिस तरह से वो बातें बाटतीं हैं, पनघट पे, खेत में, गाँव के पोखर पे, शाम तक गाँव की सारी औरतों को ये बातें मालूम हो गईं।)🔥🔥🔥🔥🔥


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komaalrani

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***** *****सैतीसवीं फुहार-




मोहे कुतिया बना के उर्फ गोलकुंडा पर चढ़ाई


खुली खिड़की से आ रही ठंडी हवा के बावजूद मेरी देह पशीने-पशीने थी।



"रुक काहें गई छिनरी चोदो न, घोंटो अपने भैया का लण्ड, "

भौजी खिलखिलाते बोलीं।



फिर तो जैसे बच्चे मस्ती से ट्रैम्पोलिन पे उछलते हैं बस उसी तरह से, बार-बार आलमोस्ट लण्ड के ऊपर तक से लेकर पूरे जड़ तक, उछल-उछलकर गाण्ड में लण्ड घोंट रही थी। लेकिन मेरी थकान की बात और कौन समझता, भौजी के अलावा।



उन्होंने भैया को चढ़ाया, बहुत देर आई रंडी बैठ ली गोदी में अरे कुतिया की तरह जब तक गाण्ड नहीं मारोगे न,



भैय्या ने उनको बात पूरा करने का मौक़ा भी नहीं दिया। ये बात भइया की माननी पड़ेगी, नंबरी चुदक्कड़ थे और गाण्ड मारने में तो एकदम एक्सपर्ट, इंच क्या एक सूत भी लण्ड टस से मस नहीं हुआ।

पूरा का पूरा लण्ड गाण्ड में और मुझे उन्होंने निहुरा के, और अब जो मेरी गाण्ड मराई शुरू हुई बस लग रहा था, अब तक जो था वो सिर्फ ट्रेलर था।



खूब दर्द, खूब मजा।

मेरी आधी देह बिस्तर पे थी, पेट के बल।

गोल-गोल, पथराई चूचियां बिस्तर से रगड़ती, चूतड़ हवा में उठा हुआ, भैय्या के दोनों हाथ मेरे चूतड़ों को थामे, और पैर मुश्किल से जमीन छूते, हाँ भाभी ने पेट के नीचे कुशन और तकिए लगा दिए थे ढेर सारे, इसलिए चूतड़ एकदम उठे हुए, डागी पोज में।



(मुझे राकी की याद आ गई)।



एक बात और, रात में तो चारों ओर सन्नाटा था, घुप्प अँधेरा था, कमरे में मुश्किल से लालटेन को रोशनी में कुछ झिलमिल-झिलमिल सा दिखता था, लेकिन इस समय तो दिन चढ़ आया था। सुनहली धूप खिड़की से होकर पूरे कमरे में पसरी थी, बाहर टटकी धुली अमराई, गन्ने और धान के खेत दिख रहे थे, धान के खेतों से रोपनी वालियों के गाने की मीठी-मीठी आवाजें सुनाई दे रही थी।



लेकिन मुझे न कुछ सुनाई दे रहा था, न दिखाई दे रहा था, न महसूस हो रहा था, सिवाय मेरी कसी कच्ची किशोर गाण्ड में जड़ तक घुसा हुआ, गाण्ड फाड़ू, भैय्या का खूब मोटा लण्ड। गाण्ड इतनी जोर से परपरा रही थी, फटी पड़ रही थी, की बस।



और भैय्या को भी मेरी कसी कम उम्र वाली गाण्ड के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था। डागी पोज में भी पूरा रगड़ते दरेरते अंदर तक जाता है। एक बार डागी पोज सेट करने के बाद, भइया ने धक्के लगाने शुरू किये और अब मेरी गाण्ड को भी उनके लण्ड की आदत पड़ती जा रही थी। उनके हर धक्के का जवाब मैंने भी कभी धक्के से तो कभी गाण्ड को सिकोड़ के, कभी निचोड़ के, उनके लण्ड को दबोच के देती थी।



लेकिन दो चार मिनट के बाद कामिनी भाभी ने उन्हें पता नहीं क्या उकसाया?



उन्होंने एक बार फिर मेरे चूतड़ों को हवा में जोर से उठाया, पूरे ऊपर तक, लण्ड को आलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाला और फिर एक धक्के में ही, पूरा जड़ तक,



मेरी बस जान नहीं निकली। हाँ चीख निकल गई, बहुत जोर से,-

“उई माँ, ओह्ह्ह… आह्ह… उईईई… उई माँ…”



यहाँ दर्द से जान निकल रही थी, और उधर भौजी खिलखिलाते हुए मुझे चिढ़ाने में लगी थी-


“अरे ओनके काहें याद कर रही हो, का उन्हु क गाण्ड मरवाने का मन है अपने भैय्या से? ले आना अगली बार, उन्हु के ओखली में धान कुटवाय दूंगी, तोहरे भैय्या से…”



चिढ़ाने में वो किसी को नहीं छोड़ती थी तो अपने सैयां को क्यों छोड़ती, उनसे बोली-

“अरे सिर्फ बहनचोद बनने से काम नहीं चलेगा, ये तुझे मादरचोद बनाने पे तुली है। बोलो है मंजूर, मादरचोद बनना?”



भैया ने एक बार फिर अपना मोटा मूसल आलमोस्ट एकदम बाहर निकाला धीमे-धीमे, मेरी गाण्ड के छल्ले से रगड़ते दरेरते, और हँस के कहा-

“एकदम, अरे जिस भोसड़े से ये मस्त सोने की गुड़िया, मक्खन की पुड़िया निकली है, वो भोसड़ा कितना मस्त होगा। उसको तो एक बार चोदना ही होगा, और मैं एक बार छोड़ भी देता लेकिन तुम्हारी छुटकी ननदिया, खुद बार-बार बोल रही है, तो अब तो बिना मादरचोद बने…”

और ये कह के उन्होंने पहली बार से भी करारा धक्का मारा।



दर्द से मेरी जोर से चीख निकल गई।



जवाब भौजी ने दिया-

“अरे बिचारी कह रही है, तो सिर्फ एक बार क्यों, उस छिनार की जिसकी बुर से ये जनी है एक लण्ड से… और एक बार से काम नहीं चलता। फिर सिर्फ भोसड़े से काम थोड़े ही चलेगा, हचक-हचक के उसकी गाण्ड भी कूटनी होगी…”



भैय्या के धक्कों की रफ़्तार अब बढ़ गई थी, और साथ में वो बोल भी रहे थे-

“एकदम सही बोल रही है, और जब इस नई कच्ची बछेड़ी के साथ इतना मजा मिल रहा है तो घाट-घाट का पानी पीकर, न जाने कितने लौंड़े घोंटी होगी, उसके भोसड़े में कितना रस होगा? एक बार क्यों बार-बार, और गाण्ड भी… एक बार इस गांव में आएंगी न अपने समधियाने, तो बस अपने सारे पुराने यारों को भूल जाएंगी…”



भैय्या के इन धक्कों में दर्द के मारे जान निकल जा रही थी





लेकिन एक बात और हो रही थी, न भौजी, न भइया कोई भी न मेरी क्लिट छू रहा था, न मेरी चूची। लेकिन एक अलग ढंग की मजे की लहर मेरी देह में दौड़ रही थी, मेरी चूत बार-बार सिकुड़ रही थी, अपने आप। अच्छी तरह पनिया गई थी। बस जैसे झड़ते समय होता है, वैसे ही। मुझे लग रहा था मैं अब गई तब गई।



पिछ्वाडे भैय्या के न धक्के कम हुए न उनका जोर। दर्द, छरछराहट भी वैसी ही थी, लेकिन अब अच्छा लग रहा था, मन कर रहा था और जोर से, और जोर से।



ये बात चम्पा भाभी ने भी बोली थी और बसंती ने भी, कि गाण्ड मरवाने का असली मजा तो दर्द में है, जिस दिन उस दर्द का मजा लेना आ जाएगा न… खुद गाण्ड मरवाने के लिए पीछे-पीछे दौड़ोगी।



भैय्या ने लण्ड बाहर निकाला, लेकिन अबकी अंदर नहीं घुसेड़ा, रुक गए। मैंने मुड़ के देखा, भौजी उनके कान में… और वो भी एकदम जोरू के गुलाम, मुश्कुरा के हामी भर रहे थे। डाला उन्होंने, लेकिन अबकी खूब धीमे-धीमे, मेरे दोनों पैरों को उन्होंने अपने पैरों के बीच डालकर जोर से सिकोड़ लिया और अब मेरी गाण्ड और भिंच गई। और आधा लण्ड घुसेड़ के वो रुक गए।



फिर एक हाथ से अपने खूंटे के बेस को पकड़ के गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया, पहले धीमे-धीमे, फिर जोर-जोर से चार पांच बार क्लाक वाइज, फिर एंटी क्लाक वाइज। चार पांच मिनट के बाद, मेरे पेट में जो घुड़मुड़ शुरू हो गई और कुछ देर में तो जैसे तूफान।



मैंने इशारे से भाभी को बुलाया और अपनी हालत बताई, बोला भी- “बस दो मिनट, पेट में गड़बड़ हो रहा है, भइया से बोलो न रुक जाएं…”



भाभी-

“धत्त, ऐसे समय कोई मर्द रुकता है क्या? घबड़ा मत तेरी गाण्ड में इतनी जोर की डाट लगी है, इतनी मोटी, एक बूँद भी बाहर नहीं आएगा। न तेरा मक्खन न उनकी मलाई…”



उन्होंने शायद भैया से कुछ बोला और उन्होंने फिर गोल-गोल घुमाना रोक के मुझे फिर से रगड़-रगड़ के गाण्ड मारना शुरू कर दिया।



मेरी देह बिस्तर से रगड़ रही थी मैं एकदम झड़ने के करीब थी। बीच-बीच में वो रोक के जैसे कोई मथानी से माखन मथे, उसी तरह से अपने हाथ से पकड़ के मेरी गाण्ड में। मेरी हालत खराब थी, मैं भी उनका लण्ड निचोड़ रही थी, दबा रही थी।



और कुछ देर में मेरी चूत को बिना कुछ किये मैं झड़ने लगी, खूब जोर-जोर से, इतना तो मैं चुदते समय भी नहीं झड़ती थी। मेरी देह काँप रही थी, मैं जोर-जोर से बोल रही थी-

“हाँ भैय्या हाँ… मार लो मेरी, चोद दो मेरी, मार लो गाण्ड, हो हो उह्ह्ह्ह्ह… आह्ह्ह्ह्ह…” कहकर मैं पलग पर ढेर हो गई, साथ में मेरी गाण्ड भी जोर-जोर से लण्ड निचोड़ रही थी, दबा रही थी।


और उसका असर उनपर भी पड़ा, दो चार धक्के पूरी ताकत से मार के, वो झड़ने लगे। खूंटा एकदम अंदर तक धंसा था। देर तक हम दोनों साथ-साथ झड़ रहे थे। दो कटोरी मलाई उन्होंने मेरी गाण्ड में तो छोड़ी ही होगी। वो मेरे ऊपर लेटे रहे और मैं बिस्तर पर पेट के बल।



मैं कटे पेड़ की तरह बिस्तर पर पड़ गई, संज्ञा शून्य, शिथिल, निश्चल, मेरी पलकें मूंदी हुई थीं, सांसें लम्बी लम्बी धीमे-धीमे चल रही थीं। पूरी देह में एक मीठे-मीठे दर्द की चुभन दौड़ रही थी। बस सिर्फ एक चीज का अहसास था, अभी भी मेरे पिछवाड़े धंसे, अंदर तक गड़े, मोटे खूंटे का।



कुछ देर में धीमे-धीमे हल्के से वो बाहर सरक गया, जैसे कोई मोटा कड़ियल सांप सरकते फिसलते हुए, बिल से निकल जाय। और मैंने अपना छेद भींच लिया, जोर से सिकोड़ के। साजन के जाने बाद जैसे कोई सजनी, अपने घर की सांकल बंद कर ले।



एक तूफान जो अभी-अभी मेरे ऊपर से गुजर गया था, उसका अहसास बस समेट के संजो के, बचा के मैं अपनी बंद पलकों में रखे हुए थी। आँखें भले बंद थी लेकिन मैं महसूस कर सकती थी।
 

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नया स्वाद



ए॰टी॰एम॰ (ऐस टू माउथ)

सिर्फ एक चीज का अहसास था, अभी भी मेरे पिछवाड़े धंसे, अंदर तक गड़े, मोटे खूंटे का।



कुछ देर में धीमे-धीमे हल्के से वो बाहर सरक गया, जैसे कोई मोटा कड़ियल सांप सरकते फिसलते हुए, बिल से निकल जाय। और मैंने अपना छेद भींच लिया, जोर से सिकोड़ के। साजन के जाने बाद जैसे कोई सजनी, अपने घर की सांकल बंद कर ले।



एक तूफान जो अभी-अभी मेरे ऊपर से गुजर गया था, उसका अहसास बस समेट के संजो के, बचा के मैं अपनी बंद पलकों में रखे हुए थी। आँखें भले बंद थी लेकिन मैं महसूस कर सकती थी।



भौजी मेरे पास आके बैठ गई थीं, कुछ देर उन्होंने बहुत दुलार से मेरे बाल, गाल सहलाए, और मेरा सर उठा के अपनी गोद में हल्के से रख लिया। और मुझे धीरे से सरका के। अब मैं आराम से पीठ के बल लेट गई थी, भौजी के गोद में सिर रखे। भौजी के प्यारे नरम हाथ मेरे गुलाबी गालों पे बहुत अच्छे लग रहे थे।




मानुष गंध, और इस महक को तो मैं अमराई के आर पार से भी पहचान सकती थी, कामिनी भाभी के सैयां, मेरे नए बने भैय्या।

मन तो मेरा कर रहा था पलकें खोल के उन्हें आँख भर के देखने का, लेकिन कुछ आलस, कुछ थकान और कुछ मस्ती भरी शरारत, मैंने आँखें और जोर से भींच ली।

लेकिन मेरे सबसे बड़े दुश्मन, मेरी मुश्कान ने मेरा भेद खोल दिया।


और भौजी ने मेरा मुँह खुलवा दिया, जैसे वो बाकी छोटी कच्चे टिकोरे वाली ननदों के साथ करती थी। चट से उन्होंने मेरे गोरे गुलाबी गाल पूरी ताकत से दबा दिया। पट से चिरई की चोंच की तरह मैंने मुँह चियार दिया, और सट से भैय्या ने अपना मोटा सुपाड़ा, मेरे खुले मुँह में।



भौजी अब कस के मेरा सर पकड़े थीं, मैं सूत भर भी हिल डुल नहीं सकती थी। भैया का मोटा सुपाड़ा अभी भी पूरी तरह कड़ा, खूब फूला, वही साइज, वही कड़ेपन के अहसास, जिसके लिए मैं तरसती थी, भरे बाजार में उसे घोंट सकती थी।

लेकिन स्वाद, स्वाद एकदम अलग।



और तब तक मुझे अचानक याद आया, भइया का, अभी थोड़ी देर, बल्की जस्ट, मेरी गाण्ड, उसमें, बस मैंने पूरी कोशिश की, उसे मुँह से बाहर करने की, पूरी ताकत से, मैं छटपटा रही थी, लेकिन जब भैया, भाभी की जुगलबंदी हो तो कुछ भी करना बेकार है, सिर्फ चुपचाप मजे लेना चाहिए।

पर सोच-सोचकर, अभी भी मैं पूरी कोशिश कर रही थी। ये भैया का लंड इत्ती देर से मेरी गाँड़ में घुसा था पूरी जड़ तक,... और सुबह का टाइम, अभी मैं ' फ्रेश ' भी नहीं,... इत्ता, उफ्फ्फ, भैया पूरा घुसा के , जब मैं निहुरी थी तब गोल गोल घुमा रहे थे , अच्छी तरह इसमें 'वो सब' ,...



लेकिन भाभी ने कस के मेरे सर को कंधों को दबोच रखा था और भैय्या ने पूरी ताकत से अपना सुपाड़ा पेल रखा था मेरे मुँह में।

भैया ने ठेलने के साथ साथ अपने दोनों हाथो से मेरे सर को जकड़ रखा था, इंच भर भी गर्दन नहीं हिला सकती थी , और उनसे कस के भौजी ने, अकेले भौजी ही काफी थीं मेरी ऐसी ननद के लिए और यहाँ तो भैया भी उन के साथ, ... फिर अब तक मैं समझ गयी थी लौंडों का, एक बार सुपाड़ा पेल दे चाहे बुर हो, गाँड़ हो , या मुंह , फिर लाख चूतड़ पटको चलती लौंडों की ही है ,

मैं गों गों कर रही थी, मेरी जीभ पर एकदम से , मुँह से धक्के देने की कोशिश कर रही थी , पर भैया पूरी ताकत से अंदर , मेरी गाँड़ से निकला सुपाड़ा, पेले हुए थे। मैं कुछ घबड़ाहट से कुछ शरम से अपनी आँखे बंद की थी जैसे मैं अगर नहीं देखूंगी तो मेरे मुंह ने जो घोंट रखा था,
पर कामिनी भाभी तो ,...

दो चार मिनट में मैंने हार मान ली।



और भौजी मुश्कुरा के बोली- “अरे ननदो, तेरा ही मक्खन है, चाट ले, स्वाद ले ले के। नीचे वाले मुँह में तो खूब मजे ले ले के घोंट रही थी…”



बाहर खेत में काम करने वाली तक सुन रही थी।कमरे से सटा हुआ ही उनका धान का खेत था , दर्जनों रोपनी करने वाली वहां रोपनी कर रही थीं , सोहनी गा रही थीं और कान पर कर अंदर होने वाली हर आहट सुन रही थीं, ...



“और अब काहे नखड़ा चोद रही हो, छिनार पना छोड़, रंडी क जनी, मजे ले ले के चूस…”भौजी ने हड़काया



मेरा तन कब का उनके कब्जे में हो चुका था। बहुत ऐसा वैसा लग रहा था, बस किसी तरह भैया बाहर निकाल ले, बस यही मन कर रहा था, मन गिनगिना रहा था।

लेकिन सब कुछ मेरे बस में था क्या? मेरी जीभ, कुछ देर बाद पहले उसकी टिप भैय्या के लिथड़े चुपड़े सुपाड़े, फिर जीभ हल्के-हल्के नीचे से।

भैया ने पूरी ताकत से सुपाड़ा मेरे मुँह में धकेल रखा था। और मेरी जीभ की हल्की-हल्की हरकतों से, सिसकियां भरने लगे थे।

पर अभी मैंने आँखे नहीं खोली थीं , बहुत शर्म लग रही थी , दिन पूरा चढ़ आया था , धूप कमरे में आ रही थी , खिड़की पूरी तरह खुली थी, अब जीभ तो मेरी थोड़ी बहुत,... लेकिन आँखे अभी भी लजा रही थीं, भैया का मूसल जो मेरे पिछवाड़े से निकला था , उसमे क्या क्या ,...

पर कामिनी भाभी , इतनी आसानी से बख्सने नहीं वाली थीं आज अपनी ननद सारे गुन सीखा के ही वो, ... उन्होंने हड़काया


"अरे काहें आंखियां मूंदले हउ। तनी खोल के देखा, कैसे मस्त मक्खन मलाई लगी है, खोलो सीधे से नहीं तो…”



और भौजी ने इन्तजार भी नहीं किया, जोर से मेरे निपल के कान उमेठ दिए पूरी ताकत से।



मैंने दर्द के मारे आँख खोल दी, भैया का मोटा लण्ड, लेकिन… लेकिन मेरी, जैसे भौजी कह रही थीं एकदम वैसे ही।



और भौजी ने दूसरी हरकत की, जिसके आगे हर ननद हार मान के मुँह खोल देती थी। उन्होंने कस के मेरे दोनों नथुने भींच लिए, सांस लेना है तो मुँह तो खोलना ही पड़ेगा, ऊपर से भैय्या ने भी जोर से निपल पकड़ के नोच लिया।



मेरा मुँह खुल गया, और उनका लिथड़ा चुपड़ा सीधे मेरे मुँह में। गों-गों, मैं आवाज कर रही थी, चोक हो रही थी, लण्ड पूरे गले तक, सांस भी फूल रही थी।



“चाट चूट के पहले जैसा कर जल्दी वरना?”

भौजी ने हड़काया, फिर प्यार से समझाया- “

अरे स्वाद ले ले के, मजे ले ले के चूस, कस के चाट, बहुत मजा आयेगा। जरा प्यार से, अभी कुछ देर पहले कैसे चूस चाट रही थी, वैसे ही। अरे तेरी गाण्ड का ही तो है…”



कुछ देर तक तो मैंने, फिर धीरे-धीरे, जब भैय्या ने 7-8 मिनट बाद निकाला तो एकदम साफ चिकना गोरा पहले जैसा था। जैसे कोई शैतान बच्चा कीचड़ में होली खेल के, खूब कीचड़ लपेट के आये और माँ उसको नहला धुला के, रगड़-रगड़ के, पहले जैसा सुथरा, चिक्कन कर दे। जब मेरे मुँह से निकला, तो खूब कड़ा भी हो गया था।

"अरे इसके बिना गाँड़ मरौव्वल का असली मजा पूरा नहीं होता, जब तक गाँड़ मारने वाले क चूस चूस के चाट चाट के साफ़ न कय दो, फिर तोहरे तो है,अरे जब भी असली गाँड़ मरवाने वाले से मरवाओगी न तो बिना चटवाये चुसवाये नहीं छोड़ेगा वो न तुझे बिना लंड पर से स्वाद लिए छोड़ना चाहिए, अरे एक साथ मलाई मक्खन दोनों का मजा,... "



कामिनी भाभी चिढ़ा भी रही थीं और समझा रही थीं, और भैया ने थोड़ा सोया थोड़ा जगा मूसल एक बार फिर मेरे मुंह में और अब मैं मुस्काते हुए मस्ती से मजे लेते चूस रही थी ,...

“अभी जाना नहीं होता न तो निहुरा के एक राउंड और लेता तेरी…” वो बोले।



“अरे जाओ जल्दी, बस छूट जायेगी। ये कहीं नहीं जा रही, तोहार बहिनियां अभी 7-8 दिन और रहेगी, कल आ जाना फिर…” हँसते हुए भौजी बोलीं और मारे खुशी पकड़ के चूम लिया सीधे मुँह पे।



मैं खड़ी हो गई थी। लेकिन मेरे पेट में अब फिर से एक बार तेजी से घूमड़ घूमड़, जोर से ‘आ रहा’ था, और मैं टायलेट की ओर भागी।



“दरवाजा अंदर से बंद नहीं होता, और फिर हम तुम ही तो हैं…” हँस के भाभी बोलीं।



दरवाजा बंद करने का टाइम भी नहीं था मेरे पास।



बाहर से छन-छन कर भाभी, भैय्या की आवाजें आ रही थीं।



“देर हो गई…” भैय्या बोल रहे थे।



“तुम्हीं तो मेरी छुटकी ननदिया पे, लेकिन कोई देर वेर नहीं हुई, मैंने आपका सामान, रास्ते के लिए खाना सब कुछ पैक कर दिया है…” खिलखलाती हुई कामिनी भाभी बोलीं।



“यार माल ही इत्ता मस्त है, मेरा तो मन भरा नहीं…” भईय्या की आवाज आई।



“अरे आप तो कल ही आ जाओगे शाम तक, और वो अभी हफ्ते भर तो है ही, ले लेना, मन भर के…” भाभी के बोलने और दरवाजा बंद करने की आवाज आई।




फिर रसोई से खटर-पटर, थोड़ी देर बाद दरवाजे पे फिर खट खट हुई।
 
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***** *****अड़तीसवीं फुहार- भौजी के संग मजे






“यार माल ही इत्ता मस्त है, मेरा तो मन भरा नहीं…” भईय्या की आवाज आई।

“अरे आप तो कल ही आ जाओगे शाम तक, और वो अभी हफ्ते भर तो है ही, ले लेना, मन भर के…” भाभी के बोलने और दरवाजा बंद करने की आवाज आई।

फिर रसोई से खटर-पटर, थोड़ी देर बाद दरवाजे पे फिर खट खट हुई।



.....



मेरा कान उधर ही चिपका था। रज्जो ग्वालन, भाभी के घर पर भी गाय भैंस वही दुहती थी और कामिनी भाभी के यहाँ भी, एक कजरी भैंस थी वो भी। वो और भाभी हल्की आवाज में बात कर रहे थे, लेकिन दोनों लोग हँस ज्यादा रही थीं, बात कम। कहीं कामिनी भाभी से वो मेरे बारे में तो बात, और तभी मुझे याद आया,




वो खिड़की, उसी के बगल में कजरी भैसं बंधती है, वहीं रज्जो दुहती है, और जब मुझे भैय्या, ‘इश्तेमाल के बाद’ शायद मैंने रज्जो की झलक खिड़की से, लेकिन तब तक आवाजें फिर शांत हो गईं। रज्जो चली गई थी और भाभी ने दरवाजा बंद कर लिया था। आगे के ही नहीं पीछे का भी दरवाजा बंद करने की आवाज आई। फिर किचेन में खटर पटर,



जब मैं बाहर निकली तो भौजी नाश्ते की टेबल लगा रही थीं और उनके हाथ में दूध का भरा ग्लास था, लबालब भरा और उसमें चार इंच मोटी साढ़ी।





भौजी मुश्कुराती हुई मुझे अजीब निगाहों से देख रही थीं। और जब मैंने खुद को देखा तो, मैं भी मुश्कुराए बिना न रह सकी। मेरा आँचल, सीने पर से छलक गया था, मेरी दोनों गोल-गोल गोलाइयां साफ दिख रही थीं, और उससे भी बढ़ के, उसपर रात के निशान… भैया के दांत के निशान मेरे खड़े निपल के चारों ओर, चूसने और रगड़ने से जगह-जगह लाल हो गया था, और नाखून के निशान तो भरपूर थे।



भौजी ने मुझे जोर से अपनी अंकवार में भींच लिया और बोलीं-

“नाश्ता लग गया है, चल, कल रात बहुत मेहनत की तूने, फिर सुबह-सुबह। नीचे का मुँह तो भर गया अब ऊपर की बारी है…”



भौजी से छुड़ाने की कोशिश करते मैं बोलीं-

“बस एक मिनट भौजी, मंजन करके आई…”



भौजी का एक हाथ कस के मेरी कमर को पकड़े था, वहां जकड़ और बढ़ गई। उनके हाथों की पकड़ भैय्या से भी कड़ी थी, एकदम सँड़सी की तरह। दूसरे हाथ ने मेरे साड़ी उठा दी और अंदर घुस के, सीधे, पहले हल्के-हल्के, फिर जोर-जोर से मेरे नितम्बों को सहलाने, दबाने लगा-

“अरे हमार छिनार ननदो, तोहार भौजी काहें को हैं, मैं करा देती हूँ न मंजन…”



भौजी ने भी सिर्फ साड़ी अपने तन पे बस लपेट रखी थी और उनका भी आँचल सरक कर, फिर तो उनकी खूब बड़ी-बड़ी, एकदम पत्थर की तरह कड़ी, मांसल गोलाईयां मेरे नए-नए आये किशोर उभारों पर, चक्की चल रही थी, दो पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।



मेरी क्या बिसात थी। कामिनी भाभी की खूब बड़ी-बड़ी कठोर चूचियां मेरे छोटे-छोटे किशोर जोबन को कुचल रही थीं, पीस रही थी। और उनका मेरे नितम्बों को सहलाता हाथ अब और दुष्ट, और शरारती हो गया था। पकड़ तेज हो गई थी और रेंगती सरकती उंगलियां अब सीधी गाण्ड की दरार तक पहुँच गई थी-




“गच्च…” एक उंगली भौजी ने अंदर ठेल दी।


“उईईई…” मेरी चीख और सिसकी निकल गई।

“गपाक…” दूसरी उंगली भी भौजी ने पेल दी, जड़ तक।



और अबकी मैं सिसक भी नहीं पाई, भौजी के होंठों ने मेरे होंठ सील कर दिए थे, और यही नहीं, उनकी जीभ मेरे मुँह में कबड्डी खेल रही थी। कुछ देर मेरा मुँह उनकी जीभ वैसे ही चूसने लगी जैसे कुछ देर पहले उनके सैयां का मोटा खूंटा चूस रहा था।



दोनों उंगलियां जड़ तक अंदर थीं, गाण्ड में, कुछ देर तक तो अंदर-बाहर, अंदर-बाहर, और जब उन्होंने अपनी जगह अच्छी तरह बना ली तो फिर गोल-गोल जोर-जोर से अंदर घूमने लगीं, और उसके बाद गाण्ड की अंदरूनी दीवालों पे रगड़-रगड़ के… साथ-साथ में भौजी की चूचियां भी हल्के-हल्के कभी जोर-जोर से मेरे उभार दबा रही थीं, रगड़ रही थी।



उनके दांतों के निशान मेरे होंठ पर बन रहे थे, जैसे कोई, टेढ़ी उंगली से कुछ, अब उंगलियां उस तरह से खरोंच-खरोंच कर गाण्ड की दीवालों से, खूब रगड़-रगड़कर, चार पांच मिनट…



अचानक भौजी अलग हो गईं और उनके एक हाथ ने जबरन मेरा मुँह खुलवा लिया, जैसे भाभियां नन्दों के मुँह होली में खुलवाती हैं, मंजन के लिए। फिर मेरी गाण्ड से निकली भौजी की दोनों उंगलियां, जब तक मैं समझूँ, कुछ सोचू, सीधे मेरे मुँह में। रगड़-रगड़कर, दांतों पर आगे से, पीछे से, मुँह के अंदर, गिन कर पूरे 32 बार, भौजी की पकड़ से छूटने का सवाल ही नहीं था।



दोनों उंगलियां, मुँह के अंदर, कहा-


“चल अब हो गया न मंजन, चल अब नाश्ता कर सीधे से…” भौजी छेड़ते मुश्कुराते बोलीं और दूध का भरा ग्लास सीधे मेरे मुँह में।



पीने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। और नाश्ता भी, भाभी के यहां जो मैं करती थी, उसका दूना। रोटियां खूब घर के निकले सफेद मक्खन से चुपड़ी, और मैंने जरा सा भी ना नुकुर की तो बस, कामिनी भाभी चालू-

“मत खाओ, अरे ऊपर के छेद से नहीं जाएगा तो मैं नीचे वाले छेद से घुसेड़ दूंगी, जाएगा तो दोनों ओर से पेट में ही। बोलो…”



अभी-अभी जिस तरह से उन्होंने दो-दो उंगली की थी और फिर मंजन, मैं बिना ची-चुपड़ किये खाने लगी। लेकिन जब नहीं रहा गया, तो बोल उठी- “भौजी, मेरा पेट फूल जाएगा…”



वो इतनी जोर से हँसी की पूछिए मत, मेरे गाल को जोर से चूम के बोलीं-

“अरे मेरी प्यारी बिन्नो, छिनरो, कुछ भी हो जाए लेकिन तेरा पेट नहीं फूलेगा। उहे गोली तो कल तुझे खिलाया है, एक गोली खाओ, महीने भर पेट फूलने के डर से छुट्टी। तुम्हें और गोली भी दे दूंगी, तीन चार महीने के लिए, बस जिस दिन माहवारी शुरू हो, उसके दूसरे दिन, एक गोली खा लेना, बस महीने भर बिना नागा अपने यारों से चुदवाना, भैय्या से चुदवाना, पेट फूलने का कोई डर नहीं…”



“और भौजी तीन चार महीने बाद…” आँखें नचा के मुँह बना के मैंने पूछा।



“अरे आओगी न तुम दिवाली में बस, ओही समय अगली खुराक मिल जायेगी, होली तक के लिए…”



होली में तो खैर मैंने पहले ही मन बना लिया थी की भाभी के साथ उनके गाँव आऊँगी। भाभी को आना ही था, उनके यहाँ रिवाज था लड़के के होने के बाद पहली होली मायके में मनाई जाती है। तो बस, और भाभी की माँ ने खुद भाभी को बोला था और मैंने भी, आखिर जब भाभी ही नहीं होंगी तो घर पे मैं होली किससे खेलूंगी? और यहाँ तो न भाभियों की कमी, न भाभी के भाइयों की?



“सिर्फ सफेद रंग से होली होगी तेरे साथ यहां, समझ ले…” भाभी ने डराया चिढ़ाया।



लेकिन उनकी मां और चम्पा भाभी एक साथ मेरी ओर से बोलीं-

“तो तुम कुा समझती हो ये डर जायेगी?”
 

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***** *****छत्तीसवीं फुहार- भैया की गोद में




और जैसे कोई फूल उठा ले, भैय्या ने मुझे उठाकर अपनी गोद में। लेकिन मैं गोद में बैठी नहीं। शायद भाभी पहले से ही ताक में थी। भइया भी शायद,



भाभी ने दोनों अंगूठों को पिछवाड़े के छेद में फंसा कर पूरी ताकत से, मेरी गाण्ड चियार दी थी।





और भैय्या ने अपना तन्नाया, बौराया मोटा, कड़ा खूंटा सीधे मेरे छेद पे सेट कर दिया। उसके साथ ही उन्होंने मेरी पतली कटीली कमरिया में हाथ डाल के मुझे अपने मोटे गुस्सैल सुपाड़े पे दबाना शुरू कर दिया। भौजी ने मेरे छेद को चियार भी रखा था और भैय्या के खूंटे को भी एकदम से सीधे वहीं… और थोड़ी ही देर में, सुपाड़ा मेरी गाण्ड के छेद में फँस गया।



भैया के दोनों हाथ अब मेरी कमर पे थे, और नीचे की ओर वो पूरी ताकत से अपने मोटे लण्ड पे पुल कर रहे थे। भौजी भी अब, उनके दोनों हाथ मेरे कंधे पे थे और वो खूब जोर-जोर से मुझे नीचे की ओर ढकेल रही थीं। मुझे भी कामिनी भाभी की सीख याद आ गई थी, और मैं भी पूरी ताकत से अपनी पूरी देह का वजन, पूरी ताकत से नीचे की ओर अब मैं भी डाल रही थी।



दर्द हो रहा था, एकदम फटा जा रहा था, छरछरा रहा था। लेकिन दाँतो से अपने होंठों को कस-कस के काट के किसी तरह मैं चीख रोक रही थी, दर्द को घोंट रही थी।



भैया का जोर कमर पे, भाभी का कंधे पे और मेरा खुद का प्रेशर, थोड़ी देर तक पूरी ताकत से- “गप्पाक…”



घचाक से मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में समा गया। मेरी गाण्ड ने जोर से भैय्या का सुपाड़ा भींच लिया, जैसे वो अब कभी नहीं छोड़ेगी उसे।



भैय्या का एक हाथ मेरी पतली कमर पे छल्ले की तरह कस के चिपका हुआ था और उनका प्रेशर जरा भी कम नहीं हुआ। लेकिन दूसरा हाथ सीधे वहीं जिसके लिए वो तब से ललचाये थे, जब से उन्होंने पहली बार मुझे गाँव के मेले में देखा था। मेरे रसीले नए-नए आये किशोर जोबन, जवानी के फूल। भैया का हाथ कभी उसे सहलाता, कभी दबाता तो कभी निपल पकड़ के हल्के से पुल कर लेता। दूसरा उभार भी अब उन्हीं के कब्जे में था, उनके होंठों के। कभी वह चूमते, कभी चूसते और कभी काटते।



साथ में भौजी की गालियां-


“साल्ली, हरामजादी, रंडी की जनी, छिनार अब लाख गाण्ड पटक, सुपाड़ा तेरी गाण्ड में अंड़स गया है। अब बिना तेरी गाण्ड मारे बाहर निकलने वाला नहीं, चाहे भोसड़ी के तू खुशी-खुशी गाण्ड मरवाये या रो-रो के, भाईचोद अब तो तेरी गाण्ड के चिथड़े उड़ने वाले हैं। तेरे सारे खानदान की गाण्ड मारूं, मरवा ले अब गाण्ड अपने भैय्या से…”



मेरे मुँह से निकलते रह गया- “भौजी आपके मुँह में घी शक्कर…” मैं भी तो सुबह से यही चाह रही थी।



लेकिन भौजी की लगातार बह रही गाली गंगा में मुश्किल था कुछ कहना। हाँ पल भर के लिए मैं गाण्ड में अंड़से मोटे सुपाड़े को भूल गई और मैंने भी टाँगें लता की तरह भैया की कमर में कस के लपेट ली थी। मेरी बाहें भी उनकी पीठ से चिपकी थीं। और मैं अपने मस्त उभार भैय्या के चौड़े सीने पे जोर-जोर से रगड़ रही थी, मेरे गुलाबी रसीले होंठ उनके होंठों को चूम, चूस रहे थे। और कान भाभी की मस्त गालियों का मजा ले रहे थे।



भाभी- “हरामन की जनी, भंड़ुओं की रखैल, रंडी की औलाद, तू तो पैदायशी खानदानी छिनार है। तेरा सारा खानदान गान्डू है, क्यों इतना नखड़ा दिखा रही है गाण्ड मरवाने में, भाईचोद?”



अचानक बहुत तेज दर्द हुआ। जैसे किसी ने तेजी से छूरा, बल्की तेज तलवार पूरी की पूरी एक बार में घुसा दी हो। हुआ ये की जब मस्ती में मैं डुबी थी, भैया को भाभी ने इशारा किया और भैय्या ने पूरी ताकत और तेजी से, कमर उचका के, उन्होंने दोनों हाथों से चूचियों को कस के दबोच रखा था और नीचे से अपना मोटा खूंटा पूरी ताकत से पुश किया।

भाभी ने भी साथ में कंधे को जोर से दबाया, और, अंदर तक, अंड़स गया, अटक गया, फाड़ दिया रे अंदर तक दरेरते रगड़ते छीलते घिसटते गाण्ड का छल्ला पार हो गया था।



मैं बड़ी जोर से चीखी, और किसी ने भी मेरी चीख रोकने की कोशिश नहीं की। भैय्या ने भी नहीं।



भाभी तो बोलीं- “अरे चीखने दो साल्ली को, बिना चीख पुकार के गाण्ड मरौवल का मजा क्या? रोने दो, चोदो हचक-हचक के। आखिर तेरी बहन भी तो इसका भाई बिना नागा रोज चोदता होगा। चोदो गाण्ड इस छिनार की हचक के, फाड़ दो साली की, मोची से सिलवा लेगी…”



भैय्या पे वही असर हुआ जो भौजी चाहती थीं। वो पूरे जोश में आ गये, हचक-हचक के पूरी ताकत से, दरेरते, रगड़ते, फाड़ते घुसा रहे था।



दर्द के मारे जान निकल रही थी, मैं गाण्ड पटक रही थी, चीख रही थी, आंसू मेरे गाल पे गिर रहे थे।



लेकिन भौजी की गालियां- “काहें छिनरो मजा आ रहा है मोटा लौंडा घोंटने में? अबहिन तो बहुत मोट-मोट लौंड़ा घोंटोगी, मेरी रंडी की जनी। घोंटो घोंटो बहुत चुदवासी हो न… तेरी गाण्ड का भोसड़ा बनवा के भेजूंगी, कुत्ता चोदी…” अनवरत, नान स्टाप।




भाभी तो बोलीं- “अरे चीखने दो साल्ली को, बिना चीख पुकार के गाण्ड मरौवल का मजा क्या? रोने दो, चोदो हचक-हचक के। आखिर तेरी बहन भी तो इसका भाई बिना नागा रोज चोदता होगा। चोदो गाण्ड इस छिनार की हचक के, फाड़ दो साली की, मोची से सिलवा लेगी…”

Mast🔥🔥🔥😍😍😍
 
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छल्ला पार





लेकिन भौजी की लगातार बह रही गाली गंगा में मुश्किल था कुछ कहना। हाँ पल भर के लिए मैं गाण्ड में अंड़से मोटे सुपाड़े को भूल गई और मैंने भी टाँगें लता की तरह भैया की कमर में कस के लपेट ली थी। मेरी बाहें भी उनकी पीठ से चिपकी थीं। और मैं अपने मस्त उभार भैय्या के चौड़े सीने पे जोर-जोर से रगड़ रही थी, मेरे गुलाबी रसीले होंठ उनके होंठों को चूम, चूस रहे थे। और कान भाभी की मस्त गालियों का मजा ले रहे थे।



भाभी- “हरामन की जनी, भंड़ुओं की रखैल, रंडी की औलाद, तू तो पैदायशी खानदानी छिनार है। तेरा सारा खानदान गान्डू है, क्यों इतना नखड़ा दिखा रही है गाण्ड मरवाने में, भाईचोद?”



अचानक बहुत तेज दर्द हुआ। जैसे किसी ने तेजी से छूरा, बल्की तेज तलवार पूरी की पूरी एक बार में घुसा दी हो। हुआ ये की जब मस्ती में मैं डुबी थी, भैया को भाभी ने इशारा किया और भैय्या ने पूरी ताकत और तेजी से, कमर उचका के, उन्होंने दोनों हाथों से चूचियों को कस के दबोच रखा था और नीचे से अपना मोटा खूंटा पूरी ताकत से पुश किया।



भाभी ने भी साथ में कंधे को जोर से दबाया, और, अंदर तक, अंड़स गया, अटक गया, फाड़ दिया रे अंदर तक दरेरते रगड़ते छीलते घिसटते गाण्ड का छल्ला पार हो गया था।

मैं बड़ी जोर से चीखी, और किसी ने भी मेरी चीख रोकने की कोशिश नहीं की। भैय्या ने भी नहीं।


भाभी तो बोलीं- “अरे चीखने दो साल्ली को, बिना चीख पुकार के गाण्ड मरौवल का मजा क्या? रोने दो, चोदो हचक-हचक के। आखिर तेरी बहन भी तो इसका भाई बिना नागा रोज चोदता होगा। चोदो गाण्ड इस छिनार की हचक के, फाड़ दो साली की, मोची से सिलवा लेगी…”





भैय्या पे वही असर हुआ जो भौजी चाहती थीं। वो पूरे जोश में आ गये, हचक-हचक के पूरी ताकत से, दरेरते, रगड़ते, फाड़ते घुसा रहे था।


दर्द के मारे जान निकल रही थी, मैं गाण्ड पटक रही थी, चीख रही थी, आंसू मेरे गाल पे गिर रहे थे।

लेकिन भौजी की गालियां-

“काहें छिनरो मजा आ रहा है मोटा लौंडा घोंटने में? अबहिन तो बहुत मोट-मोट लौंड़ा घोंटोगी, मेरी रंडी की जनी। घोंटो घोंटो बहुत चुदवासी हो न… तेरी गाण्ड का भोसड़ा बनवा के भेजूंगी, कुत्ता चोदी…” अनवरत, नान स्टाप।

तबतक उन्होंने कुछ किया जिससे मेरी बस जान नहीं निकली, आधे से ज्यादा खूंटा मैं घोंट चुकी थी। भइया बजाय धक्का मारने के बस ठूंसे जा रहे थे, गजब की ताकत थी उनमें।



लेकिन भौजी ने मुझे पकड़ के ऊपर खींचा जोर से, और भैया ने भी नीचे, आलमोस्ट लण्ड बाहर हो गया सुपाड़ा भी काफी कुछ बाहर, लेकिन तभी… दोनों ने एक साथ, भौजी ने ऊपर से दबाया और भइया ने नीचे से पेलना शुरू किया और एक बार फिर, मेरी गाण्ड के छल्ले को चीरता फाड़ता वो मोटा सुपाड़ा,



और भौजी ने जोर से मेरे निपल की घुन्डियां मरोड़ दीं, और मुझसे बोलने को कहा-

“बोल छिनार बोल, वरना चाहे जितना चीखेगी छोडूंगी नहीं, बोल की मैं छिनार हूँ, भाईचोदी हूँ, चुदवासी हूँ…”



लेकिन बोलने से भी नहीं जान बची।



भाभी-

“जोर से बोल, और जोर से बोल… अरे पूरी ताकत से बोल, दस-दस बार, वरना गाण्ड में तेरे कुछ भी दर्द नहीं हो रहा है, छिनार की जनी, जिस भोसड़े से शहर भर के भड़ुओं के चोदने के बाद से निकली है न, उसी में इस गाँव के सारे मर्दों के घोड़े दौड़ा दूंगी उसमें…”



मैं- “मैं रंडी की जनी हूँ, मैं गाँव में चुदवाने, गाण्ड मरवाने आई हूँ, पूरे गाँव की रखैल हूँ, मैं पूरे गाँव से गाण्ड मरवाऊँगी। मैं नंबरी छिनार हूँ, और भी…” पांच दस मिनट तक, पूरे जोर से।



भौजी की धमकी-

“अगर एक बार भी धीमे बोली न तो पांच बार और… बोल भड़ुए की औलाद…”

और साथ में धमकी-

“तेरी गाण्ड में तो कुछ भी दर्द नहीं हो रहा है ननद रानी। अगर एक बार भी बोलने में हिचकी न, तो ये अपना हाथ कोहनी तक तेरी बुर में पेल दूंगी, कुँवारी आई थी गाँव में भोसड़ी वाली होकर जायेगी…”



और मुझे उनके बात पे पूरा विश्वास था।



उस दिन रात में मैं चम्पा भाभी के दरवाजे के बाहर से सुन चुकी थी, चम्पा भाभी मेरी भाभी से कह रही थीं की वो और कामिनी भाभी दोनों मिल के मुट्ठी करेंगी, एक गाण्ड में और दूसरी भाभी की बुर में। भाभी की माँ भी तो एक बार अपनी होली का किस्सा सुना रही थी, चम्पा भाभी और मेरी भाभी के सामने। कैसे अपनी शादी के चार पांच साल बाद, होली में मेरी भाभी की बुआ की (यानी अपनी ननद की) इसी आँगन, इसी आँगन में पहले नंगा करके रंग लगाया, रगड़ा और पूरी की पूरी मुट्ठी उनकी बुर में।




इसलिए कामिनी भाभी कर भी सकती थीं, और मैं उनकी बात मान के जोर-जोर से बोल रही थी-

“मैं रंडी की जनी हूँ, मैं गाँव में चुदवाने, गाण्ड मरवाने आई हूँ, पूरे गाँव की रखैल हूँ, मैं पूरे गाँव से गाण्ड मरवाऊँगी। मैं नंबरी छिनार हूँ…”

लेकिन जब पांच दस मिनट बोल के रुकी तो मैंने देखा, भैय्या मुश्कुरा रहे थे और उससे भी ज्यादा, भाभी।

“नीचे देख जरा छिनरो…” भौजी बोलीं।


“तेरी गाण्ड में तो कुछ भी दर्द नहीं हो रहा है ननद रानी। अगर एक बार भी बोलने में हिचकी न, तो ये अपना हाथ कोहनी तक तेरी बुर में पेल दूंगी, कुँवारी आई थी गाँव में भोसड़ी वाली होकर जायेगी…”

😂😂😂
 
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