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Erotica सोलवां सावन

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अंड़स गया



















अब मुझे मेरी गाण्ड में घुसा हुआ उनका वो मोटा खूंटा साफ-साफ दिख रहा था।





भौजी, मेरी कमर के पास बैठ गईं और एक बार फिर प्यार से मेरी चुन्मुनिया सहलाते आँख मार के मुझसे बोलीं-






मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?

दोनों हाथ तो कस के बंधे हुए हैं, हिला भी नहीं सकती। सुपाड़ा गाण्ड में धंस गया है, लाख चूतड़ पटको सूत भर भी नहीं हिलेगा। हाँ चीखने चिल्लाने पर कोई रोक नहीं है। फिर कुँवारी ननद की उसके भैय्या गाण्ड मारें और चीख चिल्लाहट न हो, ये तो सख्त नाइंसाफी है। जब तक आधे गाँव को तुम्हारी चीख न सुनाई पड़े तो न गाण्ड मारने का मजा न मरवाने का…”




और फिर उन्होंने भैया को भी ललकारा-

“देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है? तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं, तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के काहें छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दर्द होगा बुरचोदी को लेकिन गाण्ड मारने, मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को…”

और भैया ने, एक बार फिर जोर से मेरी टाँगें कंधे पे सेट की, चूतड़ जोर से पकड़ा सुपाड़ा थोड़ा सा बाहर निकाला, और वो अपनी पूरी ताकत से ठेला की…

मेरी फट गई। बस मैं बेहोश नहीं हुई। मेरी जान नहीं गई।






जैसे किसी ने मुट्ठी भर लाल मिर्च मेरी गाण्ड में ठूंस दी हो और कूट रहा हो-


“उईईई… ओह्ह्ह… नहींईईई…”

चीख रुकती नहीं दुबारा चालू हो जाती।

मैं चूतड़ पटक रही थी, पलंग से रगड़ रही थी, दर्द से बिलबिला रही थी। लेकिन न मेरी चीख रोकने की कोशिश भैया ने की न भाभी ने।

भैया ठेलते रहे, धकेलते रहे।

भला हो बंसती का, जब मैं सुनील से गाण्ड मरवा के लौटी थी, और वो मेरी दुखती गाण्ड में क्रीम लगा रही थी, पूरे अंदर तक। उसने समझाया था की गाण्ड मरवाते समय लड़की के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है, गाण्ड को और खास तौर से गाण्ड के छल्ले को ढीला छोड़ना। अपना ध्यान वहां से हटा लेना।

बसंती की बात एकदम सही थी।

लेकिन वो भी, जब एक बार सुपाड़ा गाण्ड के छल्ले को पार कर जाता तो फिर से एक बार वो उसे खींचकर बाहर निकालते, और दरेरते, रगड़ते, घिसटते जब वो बाहर निकलता तो बस मेरी जान नहीं निकलती थी बस बाकी सब कुछ हो जाता।

और बड़ी बेरहमी से दूनी ताकत से वो अपना मोटा सुपाड़ा, गाण्ड के छल्ले के पार ढकेल देते।






बिना बेरहमी के गाण्ड मारी भी नहीं जा सकती, ये बात भी बसंती ने ही मुझे समझायी थी। छ-सात बार इसी तरह उन्होंने गाण्ड के छल्ले के आर पार धकेला, ठेला। और धीरे-धीरे दर्द के साथ एक हल्की सी टीस, मजे की टीस भी शुरू हो गई। और अब जो उन्होंने मेरे चूतड़ों को दबोच के जो करारा धक्का मारा, अबकी आधे से ज्यादा खूंटा अंदर था, फाड़ता चीरता।

दर्द के मारे मेरी जबरदस्त चीख निकल गई, लेकिन साथ में मजे की एक लहर भी, एकदम नए तरह का मजा।

“दो तीन बार जब कामिनी भाभी के मर्द से गाण्ड मरवा लोगी न तब आएगा असली गाण्ड मरवाने का मजा, समझलू…”

बसंती ने छेड़ते हुए कहा था।

जैसे अर्ध विराम हो गया हो। भैय्या ने ठेलना बंद कर दिया था। आधे से थोड़ा ज्यादा लण्ड अंदर घुस गया था। गाण्ड बुरी तरह चरपरा रही थी। चेहरा मेरा दर्द से डूबा हुआ था।





लेकिन भैय्या ने अब अपनी गदोरी से मेरी चुनमुनिया को हल्के-हल्के, बहुत धीरे-धीरे सहलाना मसलना शुरू किया। चूत में अगन जगाने के लिए वो बहुत था, और कुछ देर में उनका अंगूठा भी उसी सुर ताल में, मेरी क्लिट को भी रगड़ने लगा। भैय्या के दूसरे हाथ ने चूची को हल्के से पकड़ के दबाना शुरू किया लेकिन कामिनी भौजी उतनी सीधी नहीं थी।

दूसरा उभार भौजी के हाथ में था, खूब कस-कस के उन्होंने मीजना मसलना शुरू कर दिया।



बस मैं पनियाने लगी, हल्के-हल्के चूतड़ उछालने लगी। पिछवाड़े का दर्द कम नहीं हुआ था, लेकिन इस दुहरे हमले से ऐसी मस्ती देह में छायी की…

“हे हमार ननदो छिनार, बुरियो क मजा लेत हाउ और गंड़ियो क, और भौजी तोहार सूखी-सूखी। चल चाट हमार बुर…”

वैसे भी कामिनी भाभी अगर किसी ननद को बुर चटवाना चाहें तो वो बच नहीं सकती और अभी तो मेरी दोनों कलाइयां कस के बंधी हुई थीं, गाण्ड में मोटा खूंटा धंसा हुआ था, न मैं हिल डुल सकती थी, न कुछ कर सकती थी।







कुछ ही देर में भाभी की दोनों तगड़ी जाँघों के बीच मेरा सर दबा हुआ था और जोर से अपनी बुर वो मेरे होंठों पे मसल रगड़ रही थीं, साथ में गालियां भी

“अरे छिनरो, गदहा चोदी, कुत्ताचोदी, तेरे सारे मायकेवालियों क गाण्ड मारूं, चाट, जोर-जोर से चाट, रंडी क जनी, हरामिन, अबहीं तो गाण्ड मारे क शुरुआत है, अभी देखो कैसे-कैसे, किससे-किससे तोहार गाण्ड कुटवाती हूँ…”

गाली की इस फुहार का मतलब था की भौजी खूब गरमा रही हैं और उन्हें बुर चूसवाने में बहुत मजा आ रहा है। मजा मुझे भी आ रहा था, गाली सुनने में भी और भौजी की रसीली बुरिया चूसने चाटने में भी।

मैंने अपने दोनों होंठों के बीच भौजी की रसभरी दोनों फांकें दबाई और लगी पूरे मजे ले ले के चूसने।






उधर भैया ने भी अपनी दो उंगलियों के बीच मेरी गुलाबी पुत्तियों को दबा के इतने जोर से मसलना शुरू कर दिया की मैं झड़ने के कगार पे आ गई। और मेरे भैय्या कोई कामिनी भाभी की तरह थोड़ी थे की मुझे झड़ने के किनारे पे ले आ के छोड़ देते।

उन्होंने अपनी स्पीड बढ़ा दी, और मैं, बस… जोर-जोर से काँप रही थी, चूतड़ पटक रही थी, मचल रही थी, सिसक रही थी।

भैया और भाभी ने बिना इस बात की परवाह किये अपनी रफ़्तार बढ़ा दी। भैया ने अपना मूसल एक बार फिर मेरी गाण्ड में ठेलना शुरू कर दिया।

भाभी ने अब पूरी ताकत से अपनी बुर मेरी होंठों पे रगड़ना शुरू कर दिया, और मैं झड़ने से उबरी भी नहीं थी की उन्होंने अपना चूतड़ उचकाया, अपने दोनों हाथों से अपनी गाण्ड के छेद खूब जोर से फैलाया और सीधे मेरे मुँह के ऊपर-







“चाट, गाण्डचट्टो, चाट जोर-जोर से। तोहार गाण्ड हमार सैयां क लण्ड का मजा ले रही है त तनी हमरे गाण्ड के चाट चूट के हमहुँ क, हाँ हाँ ऐसे ही चाट, अरे जीभ गाण्ड के अंदर डाल के चाट। मस्त चाट रही हो छिनार और जोर से, हाँ घुसेड़ दो जीभ, अरे तोहें खूब मक्खन खिलाऊँगी, हाँ अरे गाँव क कुल भौजाइयन क मक्खन चटवाऊँगी, हमार ननदो…”

मैं कुछ भी नहीं सुन रही थी बस जोर-जोर से चाट रही थी, गाण्ड वैसे ही चूस रही थी जैसे थोड़ी देर पहले कामिनी भाभी की बुर चूस रही थी।

खुश होके भौजी ने मेरे दोनों हाथ खोल दिए और मेरी मेरे खुले हाथों ने सीधे भौजी की बुर दबोचा, दो उंगली अंदर, अंगूठा क्लिट पे। थोड़ी देर में भौजी भी झड़ने लगीं, जैसे तूफान में बँसवाड़ी के बांस एक दूसरे से रगड़ रहे हों बस उसी तरह, हम दोनों की देह गुत्थमगुत्था, लिपटी। जब भौजी का झड़ना रुका, भैय्या ने लण्ड अंदर पूरी जड़ तक मेरी गाण्ड में ठोंक दिया था। थोड़ी देर तक उन्होंने सांस ली फिर मेरे ऊपर से उतरकर भैया के पास चली गई।

पूरा लण्ड ठेलने के बाद भैय्या भी जैसे सुस्ता रहे थे। मेरी टाँगें जो अब तक उनके कंधे पे जमीं थीं, सीधे बिस्तर पे आ गई थीं। हाँ अभी भी मुड़ीं, दुहरी। हम दोनों की देह एक दूसरे से चिपकी हुई थी। भौजी ऐसे देख रही थीं की जैसे उन्हें बिस्वास नहीं हो रहा की मेरी गाण्ड ने इतना मोटा लंबा मूसल घोंट लिया।






बाहर मौसम भी बदल रहा था। हवा रुकी थी, बादल पूरे आसमान पे छाए थे और हल्की-हल्की एक दो बूंदें फिर शुरू हो गई थीं। लग रहा था की जोर की बारिश बस शुरू होने वाली है।

मेरे हाथ अब खुल गए थे तो मैंने भी भैय्या को प्यार से अपनी बाहों में भर लिया था।







मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?

दोनों हाथ तो कस के बंधे हुए हैं, हिला भी नहीं सकती। सुपाड़ा गाण्ड में धंस गया है, लाख चूतड़ पटको सूत भर भी नहीं हिलेगा। हाँ चीखने चिल्लाने पर कोई रोक नहीं है। फिर कुँवारी ननद की उसके भैय्या गाण्ड मारें और चीख चिल्लाहट न हो, ये तो सख्त नाइंसाफी है। जब तक आधे गाँव को तुम्हारी चीख न सुनाई पड़े तो न गाण्ड मारने का मजा न मरवाने का…”



“देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है? तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं, तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के काहें छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दर्द होगा बुरचोदी को लेकिन गाण्ड मारने, मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को…”

“चाट, गाण्डचट्टो, चाट जोर-जोर से। तोहार गाण्ड हमार सैयां क लण्ड का मजा ले रही है त तनी हमरे गाण्ड के चाट चूट के हमहुँ क, हाँ हाँ ऐसे ही चाट, अरे जीभ गाण्ड के अंदर डाल के चाट। मस्त चाट रही हो छिनार और जोर से, हाँ घुसेड़ दो जीभ, अरे तोहें खूब मक्खन खिलाऊँगी, हाँ अरे गाँव क कुल भौजाइयन क मक्खन चटवाऊँगी, हमार ननदो…”


Kamuk🔥🔥🔥🔥🔥
 

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****कामिनी भौजी



कामिनी भाभी भी मेरी ही धजा में थी, यानी सिर्फ साड़ी।

दरवाजे का सहारा लेकर मैं खड़ी हो गई और उनकी ओर देखने लगी। लेकिन एक बार फिर हल्की सी चीख निकल गई, वही पीछे से जहाँ रात भर भैय्या का मूसल चला था, जोर की चिलख उठी।



भाभी की निगाह मेरे ऊपर पड़ी और मुश्कुराते हुए उन्होंने छेड़ा-

“क्यों मजा आया रात में?”



यहाँ दर्द के मारे जान निकल रही थी। किसी तरह मुश्कुराते हुये दर्द के निशान मैंने चेहरे से मिटाये और कुछ बोलने की कोशिश की, उसके पहले ही भाभी खड़ी हो गईं और आके उन्होंने कस के मुझे अपनी बाँहों में भींच लिया। कामिनी भाभी हों तो बात सिर्फ अंकवार में भरने से नहीं रुकती ये मुझे अच्छी तरह मालूम था और वही हुआ।



उन्होंने सीधे से लिप-टू-लिप एक जबरदस्त चुम्मी ली। देर तक उनके होंठ मेंरे कोमल किशोर होंठ चूसते रहे और फिर सीधे गाल पे, कुछ देर उन्होंने चूमा, चाटा, फिर कचकचा के काट लिया, और अपने होंठों पे जीभ फिराते बोलीं- “बहुत नमकीन माल हो…”



लेकिन उन्होंने अगली बात जो बोली वो ज्यादा खतरनाक थी-

“एक बार भौजी लोगन का नमकीन शरबत पिए लगोगी न तो एहु से 100 गुना ज्यादा नमकीन हो जाओगी, हमर बात मान लो…”


अब मुझे समझाने की जरूरत नहीं थी कि इससे उनका क्या मतलब था, जिस तरह से बसंती और गुलबिया मेरे पीछे पड़ी थीं और ऊपर से कल तो लाइव शो देख लिया था मैंने, कैसे जबरन नीरू के ऊपर चढ़ के गुलबिया ने, और बसंती ने, कैसे उस बिचारी को दबोच रखा था।

नीरू तो मुझसे भी एक साल छोटी थी।

उधर कामिनी भाभी का एक हाथ साड़ी के ऊपर से मेरे छोटे-छोटे किशोर चूतड़ों को दबा दबोच रही थी। और उनकी उंगली सीधे मेरी गाण्ड की दरार पे। जैसे ही उन्होंने वहां हल्के से दबाया एक कतरा भैय्या की गाढ़ी मलाई का मेरे पिछवाड़े से सरक कर, मेरी टांगों पे। लेकिन भाभी की उंगली साड़ी के ऊपर से ही वहां गोल-गोल घूमती रही।


बात बदलने के लिए मैंने भाभी से पूछा- “भैया कहाँ हैं?”



भाभी- “नंबरी छिनार भाईचोद बहन हो। सुबह से भैया को ढूँढ़ रही हो?”



मैंने हमले का जवाब हमले से देने की कोशिश की-
“आपका भरता है क्या?”

लेकिन हमला उलटा पड़ा, कामिनी भाभी से कौन ननद जीत पाई है जो मैं जीत पाती।


भाभी-

“एकदम सही कहती हो, नहीं भरता मन। सिर्फ मेरा ही नहीं तेरे भैय्या का भी मन नहीं भरा तुमसे, सुबह से तुझे याद कर रहे हैं। लेकिन इसके लिए तो तेरे ये जोबन जिम्मेदार हैं…”

निपल की घुन्डियां साड़ी के ऊपर से मरोड़ती वो चिढ़ाती बोलीं,





फिर जोड़ा- “और तेरी भी क्या गलती, तेरे भैया बल्की तेरे सारे मायकेवाले भंडुए मर्द ही, बहनचोद, मादरचोद हैं…”

बहनचोद तो ठीक, रात भर तो भैय्या मेरे ऊपर चढ़े थे, लेकिन मादरचोद?--मेरी समझ में नहीं आया

और कामिनी भाभी खुद ही बोलीं- “अरे इतना मोटा और कड़ा है तेरे भैय्या का, भोसड़ीवालियों को जवानी के मजे आ जाते हैं। और खेली खाई चोदी चुदाई भोसड़े का रस अलग ही है। और फिर तेरी तरह वो भी बिचारे किसी को मना नहीं कर पाते, जहाँ बिल देखा वहीं घुसेड़ा…”



साथ-साथ भाभी का हाथ मेरे चूतड़ों को सहला रहा था और उनकी उंगली गाण्ड की दरार में घुसी गोल-गोल, साड़ी हल्की-हल्की गीली हो रही थी।

भाभी- “सुबह से तेरे भैया पीछे पड़े थे, बस एक बार। वो तो मैंने मना किया अभी बच्ची है, रात भर चढ़े रहे हो। जैसे तुम सुबह से भैय्या, भैय्या कर रही हो न वो गुड्डी गुड्डी रट रहे थे…”
मैं क्या बोलती। ये भी तो नहीं कह सकती थी की अरे भाभी कर लेने दिया होता ना।

भाभी- “सुबह से तेरे भैया पीछे पड़े थे, बस एक बार। वो तो मैंने मना किया अभी बच्ची है, रात भर चढ़े रहे हो। जैसे तुम सुबह से भैय्या, भैय्या कर रही हो न वो गुड्डी गुड्डी रट रहे थे…”
मैं क्या बोलती। ये भी तो नहीं कह सकती थी की अरे भाभी कर लेने दिया होता ना।
 

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***** *****पिछवाड़े का खेल




भाभी ने कलाई की पूरी ताकत से गचाक से अपनी मंझली उंगली साड़ी के ऊपर से ही दरार के अंदर ठेलने की पूरी कोशिश की। फिर मुश्कुरा के वो बोलीं-


“एकदम ऊपर तक बजबजा रहा है…” और ये कह के वो मेरी हामी के लिए चुप हो गईं।



मैंने हामी भर दी।



बात उनकी सही थी, मैं खुद महसूस कर रही थी, भैया ने जो कटोरी भर रबड़ी मेरे पिछवाड़े डाली थी और फिर डाट की तरह अपना मोटा कसी-कसी गाण्ड में ठूंसे-ठूंसे सो गए थे। उसके पहले आधी बोतल कड़ुवा तेल भी तो भौजी ने वहां उड़ेला था। लेकिन उसके अलावा, ये क्या, मेरी समझ में नहीं आया।



समझाया कामिनी भाभी ने गाण्ड में गोल-गोल उंगली करते-


“अरे सिर्फ तेरे भैय्या की मलाई थोड़ी, इस समय सुबह-सुबह तो तेरा मक्खन भी अंदर, पूरा नीचे तक, बजबज करता है। बस खाली एक बार पेलने की देर है, भले ही सूखा ठेल दो हचक के पूरी ताकत से, और जहाँ गाण्ड का छल्ला पार हुआ, बस… तेरी गाण्ड का मक्खन जहाँ लगा फिर तो सटासट-सटासट, गपागप-गपागप। इससे बढ़िया चिकनाई हो नहीं सकती…”



मैं शर्म से लाल हो रही थी, लेकिन कुछ भाभी की बातों का असर और कुछ उनकी उंगली का… मेरी गाण्ड में फिर से जोर-जोर से कीड़े काटने लगे थे।



तभी उनकी उंगली कुछ इधर-उधर लग गई और मेरी जोर से चीख निकल गई।



भाभी ने उंगली हटा ली और बोलीं-

“इसकी सिर्फ एक इलाज है मेरी प्यारी ननद रानी, तेरी इस कसी कच्ची गाण्ड में चार पांच मर्दों का मोटा-मोटा खूंटा जाय। और घबड़ाओ मत, मैं और गुलबिया मिल के इसका इंतजाम कर देंगे, तेरे शहर लौटने के पहले। गाण्ड मरवाने में एकदम एक्सपर्ट करा के भेजंगे तुझे, चलो बैठो…”

मैं भाभी के साथ पीढ़े पर रसोई में बैठ गई। मुझे बसंती की बात याद आ रही थी बार-बार गुलबिया के मर्द के बारे में और भरौटी के लौंडों के बारे में।



मैं भाभी का काम में हाथ बटा रही थी और भाभी ने काम-शिक्षा का पाठ शुरू कर दिया। कल उन्होंने लौंडों को पटाने के बारे में बताया था तो आज पिछवाड़े के मजे के बारे में। कामिनी भाभी की ये बात तो एकदम ठीक थी की मजा लड़के और लड़कियों दोनों को आता है तो बिचारे लड़के लाइन मारते रहें और लड़कियां भाव ही न दें। लौंडों को पटाने, रिझाने, बिना हाँ किये हाँ कहने की ढेर सारी ट्रिक्स उन्होंने कल रात मुझे सिखाई थी और तब मुझे लगा था मैं कितनी बेवकूफ थी।



स्कूल क्या पूरे शहर में शायद मेरे ऐसी कोई लड़की न होगी, ऐसा रूप और जोबन। लड़के भी सारे मेरे पीछे पड़ते थे, लेकिन ले मेरी कोई सहेली उड़ती थी, फिर उसके साथ कभी पिक्चर तो कभी पार्टी। और ऊपर से मुझे चिढ़ातीं, मुझे सुना-सुना के बोलतीं, मेरे पास तो चार हैं, मेरे पास तो पांच है। और जानबूझ के मुझसे पूछतीं, हे गुड्डी तेरा ब्वयफ्रेंड।



अब मैं अपनी गलती समझ गई थी। मुझे भी उनके कमेंट्स का, लाइन मारने का कुछ तो जवाब देना पड़ेगा। अबकी लौटूँगी शहर तो बताती हूँ,




“अरे सिर्फ तेरे भैय्या की मलाई थोड़ी, इस समय सुबह-सुबह तो तेरा मक्खन भी अंदर, पूरा नीचे तक, बजबज करता है। बस खाली एक बार पेलने की देर है, भले ही सूखा ठेल दो हचक के पूरी ताकत से, और जहाँ गाण्ड का छल्ला पार हुआ, बस… तेरी गाण्ड का मक्खन जहाँ लगा फिर तो सटासट-सटासट, गपागप-गपागप। इससे बढ़िया चिकनाई हो नहीं सकती…”

Mast 😍😍🔥🔥🔥
 

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*चौतीसवीं फुहार - चढ़ जा शूली ओ बाँकी छोरी



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ननद भौजाई

भाभी मुश्कुराते हुए बोलीं।



मैं शर्मा गई।



“हाँ एक बात और, जब आता है न तो खूब ढीला छोड़ दो लेकिन एक बार जब सुपाड़ा अच्छी तरह अंदर घुस जाए न तो बस तब कस के भींच दो, निकलने मत दो साल्ले को, असली मजा तो मर्द को भी और तोहूँ को भी तभी आयेगा, जब दरेरते, फाड़ते, रगड़ते घुसेगा अंदर-बाहर होगा।


और एक प्रैक्टिस और, अपनी गाण्ड के छल्ले को पूरी ताकत से भींच लो, सांस रोक लो, 20 तक गिनती गिनो और फिर खूब धीमे-धीमे 100 तक गिनती गिन के सांस छोड़ो और उसी के साथ उसे छल्ले को ढीला करो, खूब धीमे-धीमे। कुछ देर रुक के, फिर से। एक बार में पन्दरह बीस बार करो। क्लास में बैठी हो तब भी कर सकती हो। सिकोड़ते समय महसूस करो की, अपने किसी यार के बारे में सोच के कि उसका मोटा खूंटा पीछे अटका है…”



वास्तव में कामिनी भाभी के पास ज्ञान का पिटारा था। और मैं ध्यान से एक-एक बात सुन रही थी, सीख रही थी। शहर में कौन था जो मुझे ये बताता, सिखाता।



अचानक कामिनी भाभी ने एक सवाल दाग दिया- “तू हमार असली पक्की ननद हो न?”



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“हाँ, भौजी हाँ… एहु में कोई शक है?” मैंने तुरंत बोला।



“तो अगर तू हमार असल ननद हो तो पक्की गाण्डमरानो बनने के लिए तैयार रहो। असली गाण्डमरानो जानत हो कौन लौंडिया होती है?” भाभी ने सवाल फिर पूछ लिया।





जवाब मुझे क्या मालूम होता लेकिन मैं ऐसी मस्त भाभी को खोना नहीं चाहती थी, तुरंत बोली-

“भौजी मुझे इतना मालूम है की मैं आपकी असल ननद हूँ और आप हमार असल भौजी, और हम आपको कबहुँ नहीं छोड़ेंगे…”

ये कहके मैंने भौजी को दुलार से अंकवार में भर लिया।



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प्यार से मेरे चिकने गाल सहलाते भौजी बोलीं-

“एकदम मालूम है। एही बदे तो कह रही हूँ तोहें पक्की गाण्डमरानो बना के छोडूंगी। असल गाण्डमरानी ऊ होती है जो खुदे आपन गाण्ड चियार के मर्द के लण्ड पे बैठ जाय और बिना मर्द के कुछ किये, मोटा लौंड़ा गपागप घोंटे और अपने से ही गाण्ड मरवाये…”



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मेरे चेहरे पे चिंता की लकीरें उभर आईं। मेरी आँखों के सामने भैया का मोटा लण्ड नाच रहा था।



भाभी मन की बात समझ गईं। साड़ी के ऊपर से मेरे उभारों को हल्के-हल्के सहलाते बोलीं-

“अरे काहें परेशान हो रही हो हम हैं न तोहार भौजी। सिखाय भी देंगे ट्रेनिंग भी दे देंगे…”



“लेकिन इतना मोटा?” मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा थाभाभी- “अरे बताय रही हूँ, न गाण्ड खूब ढीली कर लो और दोनों पैर अच्छी तरह फैलाय के, खूंटे के ऊपर, हां बैठने के पहले अपने दोनों हाथों से गाण्ड का छेद खूब फैलाय लो। उहू क रोज प्रैक्टिस किया करो, बस। अब जब सुपाड़ा सेंटर हो जाय ठीक से, छेद में अटक जाय तो बस जहाँ बैठी हो पलंग पे, कुर्सी पे जमीन पे, दोनों हाथ से खूब कस के पकड़ लो और अपनी पूरी देह का वजन जोर लगाकर, हाँ ओकेरे पहले लण्ड को खूब चूस-चूस के चिक्कन कर लो। धीमे-धीमे सुपाड़ा अंदर घुसेगा। असली चीज गाण्ड का छल्ला है, बस डरना मत। दर्द की चिंता भी मत करना, उसको एकदम ढीला छोड़ देना…”

भाभी की बात से कुछ तो लगा शायद, फिर भी, मुझे भी डर उसी का था, वो तो सीधे लण्ड को दबोच लेता है।



और भाभी ने शंका समाधान किया-

“जब छल्ले में अटक जाय न तो बजाय ठेलने के, जैसे ढक्कन की चूड़ी गोल-गोल घुमाते हैं न… बस कभी दायें कभी बाएं बस वैसे, और थोड़ी देर में बेड़ा पार, उसके बाद तो बस सटासट, गपागप।"



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मारे खुशी के मैंने भाभी को गले लगा लिया और जोर-जोर से उनके गाल चूमने लगी।



वो मौका क्यों छोड़ती, दूने जोर से उन्होंने मुझे चूमा, और साथ में जोर से मेरे उभार दबाती बोलीं-

“इसके बाद तो वो मर्द तुझे छोड़ेगा नहीं। लेकिन ध्यान रखना चुदाई सिर्फ बुर और गाण्ड से नहीं होती, पूरी देह से होती है। जोर-जोर से उसे अपनी बाँहों में भींच के रखना, बार-बार चूमना और सबसे बढ़ के अपनी ये मस्त जानमारू कड़ी-कड़ी चूचियां उसके सीने पे कस-कस के रगड़ना। सबसे बड़ी चीज है आँखें और मन। जो भी तेरी ले न उसे लगना चाहिए की तेरी आँखों में मस्ती है, तुझे मजा आ रहा है, तू मन से मरवा रही है। उसके बाद तो बस…”



कामिनी भाभी कहीं थ्योरी से प्रक्टिकल पर न आ जाएं उसके पहले मैंने बात बदल दी और उनसे वो बात पूछ ली जो कल से मुझे समझ में नहीं आ रही थी- “भाभी, आप तो कह रही थीं की भैय्या कल रात बाहर गए हैं, नहीं आएंगे लेकिन अचानक? मैंने बोला।



वो जोर से खिलखिला के हँसी और बोलीं-

“तेरी गाण्ड फटनी थी न, अरे उन्हें अपनी कुँवारी बहन की चूत की खूशबू आ गई थी…”

फिर उन्होंने साफ-साफ बताया की भैय्या को शहर में दो लोगों से मिलना था। एक ने बोला की वो कल मिलेगा, इसलिए वो शाम को ही लौट आये और बगल के गाँव में अपने दोस्त के यहाँ रुक गए थे। तब तक तेज बारिश आ गई और उन्होंने खाना वहीं खा लिया। लेकिन जब बारिश थमी तो वो…”


बात काट के मैं खिलखिलाते हुए बोली- “तो रात को जो चूहा आप कह रही थीं, वो वही…”



भाभी- “एकदम बिल ढूँढ़ता हुआ आ गया। चूहे को तो बिल बहुत पसंद आई लेकिन बिल को चूहा कैसा लगा?” कामिनी भाभी भी हँसते मुझे चिढ़ाते बोलीं।



“बहुत अच्छा, बहुत प्यारा लेकिन भौजी मोटा बहुत था…” मैंने ने भी उसी तरह जवाब दिया।



तब तक बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज आई। हँसते हुए भाभी बोलीं- “चूहा…”






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“जब छल्ले में अटक जाय न तो बजाय ठेलने के, जैसे ढक्कन की चूड़ी गोल-गोल घुमाते हैं न… बस कभी दायें कभी बाएं बस वैसे, और थोड़ी देर में बेड़ा पार, उसके बाद तो बस सटासट, गपागप।"
 
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मेरी छिनार बिन्नो, असली दर्द तो अब होगा। अभी तक तो कुछ नहीं था। जब ये मोटा खूंटा तेरी गाण्ड के खूब कसे छल्ले को रगड़ते, दरेरते, घिसटते पार करेगा न, बस जान निकल जायेगी तेरी। लेकिन रास्ता ही क्या है, गुड्डी रानी तोहरे पास?

दोनों हाथ तो कस के बंधे हुए हैं, हिला भी नहीं सकती। सुपाड़ा गाण्ड में धंस गया है, लाख चूतड़ पटको सूत भर भी नहीं हिलेगा। हाँ चीखने चिल्लाने पर कोई रोक नहीं है। फिर कुँवारी ननद की उसके भैय्या गाण्ड मारें और चीख चिल्लाहट न हो, ये तो सख्त नाइंसाफी है। जब तक आधे गाँव को तुम्हारी चीख न सुनाई पड़े तो न गाण्ड मारने का मजा न मरवाने का…”



“देख क्या रहे हो तेरी ही तो बहन है? तेरी मायके वाली तो सब पैदायशी छिनार होती हैं, तो इहो है। पेलो हचक के। खाली सुपाड़ा घुसाय के काहें छोड़ दिए हो। ठेल दो जड़ तक मूसल। बहुत दर्द होगा बुरचोदी को लेकिन गाण्ड मारने, मराने का यही तो मजा है। जब तक दर्द न हो तब तक न मारने वाले को मजा आता है न मरवाने वाली को…”

“चाट, गाण्डचट्टो, चाट जोर-जोर से। तोहार गाण्ड हमार सैयां क लण्ड का मजा ले रही है त तनी हमरे गाण्ड के चाट चूट के हमहुँ क, हाँ हाँ ऐसे ही चाट, अरे जीभ गाण्ड के अंदर डाल के चाट। मस्त चाट रही हो छिनार और जोर से, हाँ घुसेड़ दो जीभ, अरे तोहें खूब मक्खन खिलाऊँगी, हाँ अरे गाँव क कुल भौजाइयन क मक्खन चटवाऊँगी, हमार ननदो…”


Kamuk🔥🔥🔥🔥🔥


Thanks soooooooooo much
 
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komaalrani

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“अरे सिर्फ तेरे भैय्या की मलाई थोड़ी, इस समय सुबह-सुबह तो तेरा मक्खन भी अंदर, पूरा नीचे तक, बजबज करता है। बस खाली एक बार पेलने की देर है, भले ही सूखा ठेल दो हचक के पूरी ताकत से, और जहाँ गाण्ड का छल्ला पार हुआ, बस… तेरी गाण्ड का मक्खन जहाँ लगा फिर तो सटासट-सटासट, गपागप-गपागप। इससे बढ़िया चिकनाई हो नहीं सकती…”

Mast 😍😍🔥🔥🔥

Thanks you are enjoying the posts
 

komaalrani

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“अरे अस मालपुआ जस गाल है, खूब मजे ले कचकचा के काटा, दो चार दिन तक तो निशान रहना चाहिए। अरे पूरे गाँव को पता तो चलना चाहिए न की छुटकी ननदिया केहसे गाल कटवा के आय रही हैं…”

🔥🤤


Thanks , next post soon
 

komaalrani

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***** *****छत्तीसवीं फुहार- भैया की गोद में




और जैसे कोई फूल उठा ले, भैय्या ने मुझे उठाकर अपनी गोद में। लेकिन मैं गोद में बैठी नहीं। शायद भाभी पहले से ही ताक में थी। भइया भी शायद,



भाभी ने दोनों अंगूठों को पिछवाड़े के छेद में फंसा कर पूरी ताकत से, मेरी गाण्ड चियार दी थी।





और भैय्या ने अपना तन्नाया, बौराया मोटा, कड़ा खूंटा सीधे मेरे छेद पे सेट कर दिया। उसके साथ ही उन्होंने मेरी पतली कटीली कमरिया में हाथ डाल के मुझे अपने मोटे गुस्सैल सुपाड़े पे दबाना शुरू कर दिया। भौजी ने मेरे छेद को चियार भी रखा था और भैय्या के खूंटे को भी एकदम से सीधे वहीं… और थोड़ी ही देर में, सुपाड़ा मेरी गाण्ड के छेद में फँस गया।



भैया के दोनों हाथ अब मेरी कमर पे थे, और नीचे की ओर वो पूरी ताकत से अपने मोटे लण्ड पे पुल कर रहे थे। भौजी भी अब, उनके दोनों हाथ मेरे कंधे पे थे और वो खूब जोर-जोर से मुझे नीचे की ओर ढकेल रही थीं। मुझे भी कामिनी भाभी की सीख याद आ गई थी, और मैं भी पूरी ताकत से अपनी पूरी देह का वजन, पूरी ताकत से नीचे की ओर अब मैं भी डाल रही थी।



दर्द हो रहा था, एकदम फटा जा रहा था, छरछरा रहा था। लेकिन दाँतो से अपने होंठों को कस-कस के काट के किसी तरह मैं चीख रोक रही थी, दर्द को घोंट रही थी।



भैया का जोर कमर पे, भाभी का कंधे पे और मेरा खुद का प्रेशर, थोड़ी देर तक पूरी ताकत से- “गप्पाक…”



घचाक से मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में समा गया। मेरी गाण्ड ने जोर से भैय्या का सुपाड़ा भींच लिया, जैसे वो अब कभी नहीं छोड़ेगी उसे।



भैय्या का एक हाथ मेरी पतली कमर पे छल्ले की तरह कस के चिपका हुआ था और उनका प्रेशर जरा भी कम नहीं हुआ। लेकिन दूसरा हाथ सीधे वहीं जिसके लिए वो तब से ललचाये थे, जब से उन्होंने पहली बार मुझे गाँव के मेले में देखा था। मेरे रसीले नए-नए आये किशोर जोबन, जवानी के फूल। भैया का हाथ कभी उसे सहलाता, कभी दबाता तो कभी निपल पकड़ के हल्के से पुल कर लेता। दूसरा उभार भी अब उन्हीं के कब्जे में था, उनके होंठों के। कभी वह चूमते, कभी चूसते और कभी काटते।



साथ में भौजी की गालियां-


“साल्ली, हरामजादी, रंडी की जनी, छिनार अब लाख गाण्ड पटक, सुपाड़ा तेरी गाण्ड में अंड़स गया है। अब बिना तेरी गाण्ड मारे बाहर निकलने वाला नहीं, चाहे भोसड़ी के तू खुशी-खुशी गाण्ड मरवाये या रो-रो के, भाईचोद अब तो तेरी गाण्ड के चिथड़े उड़ने वाले हैं। तेरे सारे खानदान की गाण्ड मारूं, मरवा ले अब गाण्ड अपने भैय्या से…”



मेरे मुँह से निकलते रह गया- “भौजी आपके मुँह में घी शक्कर…” मैं भी तो सुबह से यही चाह रही थी।



लेकिन भौजी की लगातार बह रही गाली गंगा में मुश्किल था कुछ कहना। हाँ पल भर के लिए मैं गाण्ड में अंड़से मोटे सुपाड़े को भूल गई और मैंने भी टाँगें लता की तरह भैया की कमर में कस के लपेट ली थी। मेरी बाहें भी उनकी पीठ से चिपकी थीं। और मैं अपने मस्त उभार भैय्या के चौड़े सीने पे जोर-जोर से रगड़ रही थी, मेरे गुलाबी रसीले होंठ उनके होंठों को चूम, चूस रहे थे। और कान भाभी की मस्त गालियों का मजा ले रहे थे।



भाभी- “हरामन की जनी, भंड़ुओं की रखैल, रंडी की औलाद, तू तो पैदायशी खानदानी छिनार है। तेरा सारा खानदान गान्डू है, क्यों इतना नखड़ा दिखा रही है गाण्ड मरवाने में, भाईचोद?”



अचानक बहुत तेज दर्द हुआ। जैसे किसी ने तेजी से छूरा, बल्की तेज तलवार पूरी की पूरी एक बार में घुसा दी हो। हुआ ये की जब मस्ती में मैं डुबी थी, भैया को भाभी ने इशारा किया और भैय्या ने पूरी ताकत और तेजी से, कमर उचका के, उन्होंने दोनों हाथों से चूचियों को कस के दबोच रखा था और नीचे से अपना मोटा खूंटा पूरी ताकत से पुश किया।

भाभी ने भी साथ में कंधे को जोर से दबाया, और, अंदर तक, अंड़स गया, अटक गया, फाड़ दिया रे अंदर तक दरेरते रगड़ते छीलते घिसटते गाण्ड का छल्ला पार हो गया था।



मैं बड़ी जोर से चीखी, और किसी ने भी मेरी चीख रोकने की कोशिश नहीं की। भैय्या ने भी नहीं।



भाभी तो बोलीं- “अरे चीखने दो साल्ली को, बिना चीख पुकार के गाण्ड मरौवल का मजा क्या? रोने दो, चोदो हचक-हचक के। आखिर तेरी बहन भी तो इसका भाई बिना नागा रोज चोदता होगा। चोदो गाण्ड इस छिनार की हचक के, फाड़ दो साली की, मोची से सिलवा लेगी…”



भैय्या पे वही असर हुआ जो भौजी चाहती थीं। वो पूरे जोश में आ गये, हचक-हचक के पूरी ताकत से, दरेरते, रगड़ते, फाड़ते घुसा रहे था।



दर्द के मारे जान निकल रही थी, मैं गाण्ड पटक रही थी, चीख रही थी, आंसू मेरे गाल पे गिर रहे थे।



लेकिन भौजी की गालियां- “काहें छिनरो मजा आ रहा है मोटा लौंडा घोंटने में? अबहिन तो बहुत मोट-मोट लौंड़ा घोंटोगी, मेरी रंडी की जनी। घोंटो घोंटो बहुत चुदवासी हो न… तेरी गाण्ड का भोसड़ा बनवा के भेजूंगी, कुत्ता चोदी…” अनवरत, नान स्टाप।



 
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***** *****छत्तीसवीं फुहार- भैया की गोद में




और जैसे कोई फूल उठा ले, भैय्या ने मुझे उठाकर अपनी गोद में। लेकिन मैं गोद में बैठी नहीं। शायद भाभी पहले से ही ताक में थी। भइया भी शायद,



भाभी ने दोनों अंगूठों को पिछवाड़े के छेद में फंसा कर पूरी ताकत से, मेरी गाण्ड चियार दी थी।





और भैय्या ने अपना तन्नाया, बौराया मोटा, कड़ा खूंटा सीधे मेरे छेद पे सेट कर दिया। उसके साथ ही उन्होंने मेरी पतली कटीली कमरिया में हाथ डाल के मुझे अपने मोटे गुस्सैल सुपाड़े पे दबाना शुरू कर दिया। भौजी ने मेरे छेद को चियार भी रखा था और भैय्या के खूंटे को भी एकदम से सीधे वहीं… और थोड़ी ही देर में, सुपाड़ा मेरी गाण्ड के छेद में फँस गया।



भैया के दोनों हाथ अब मेरी कमर पे थे, और नीचे की ओर वो पूरी ताकत से अपने मोटे लण्ड पे पुल कर रहे थे। भौजी भी अब, उनके दोनों हाथ मेरे कंधे पे थे और वो खूब जोर-जोर से मुझे नीचे की ओर ढकेल रही थीं। मुझे भी कामिनी भाभी की सीख याद आ गई थी, और मैं भी पूरी ताकत से अपनी पूरी देह का वजन, पूरी ताकत से नीचे की ओर अब मैं भी डाल रही थी।



दर्द हो रहा था, एकदम फटा जा रहा था, छरछरा रहा था। लेकिन दाँतो से अपने होंठों को कस-कस के काट के किसी तरह मैं चीख रोक रही थी, दर्द को घोंट रही थी।



भैया का जोर कमर पे, भाभी का कंधे पे और मेरा खुद का प्रेशर, थोड़ी देर तक पूरी ताकत से- “गप्पाक…”



घचाक से मोटा सुपाड़ा मेरी गाण्ड में समा गया। मेरी गाण्ड ने जोर से भैय्या का सुपाड़ा भींच लिया, जैसे वो अब कभी नहीं छोड़ेगी उसे।



भैय्या का एक हाथ मेरी पतली कमर पे छल्ले की तरह कस के चिपका हुआ था और उनका प्रेशर जरा भी कम नहीं हुआ। लेकिन दूसरा हाथ सीधे वहीं जिसके लिए वो तब से ललचाये थे, जब से उन्होंने पहली बार मुझे गाँव के मेले में देखा था। मेरे रसीले नए-नए आये किशोर जोबन, जवानी के फूल। भैया का हाथ कभी उसे सहलाता, कभी दबाता तो कभी निपल पकड़ के हल्के से पुल कर लेता। दूसरा उभार भी अब उन्हीं के कब्जे में था, उनके होंठों के। कभी वह चूमते, कभी चूसते और कभी काटते।



साथ में भौजी की गालियां-


“साल्ली, हरामजादी, रंडी की जनी, छिनार अब लाख गाण्ड पटक, सुपाड़ा तेरी गाण्ड में अंड़स गया है। अब बिना तेरी गाण्ड मारे बाहर निकलने वाला नहीं, चाहे भोसड़ी के तू खुशी-खुशी गाण्ड मरवाये या रो-रो के, भाईचोद अब तो तेरी गाण्ड के चिथड़े उड़ने वाले हैं। तेरे सारे खानदान की गाण्ड मारूं, मरवा ले अब गाण्ड अपने भैय्या से…”



मेरे मुँह से निकलते रह गया- “भौजी आपके मुँह में घी शक्कर…” मैं भी तो सुबह से यही चाह रही थी।



लेकिन भौजी की लगातार बह रही गाली गंगा में मुश्किल था कुछ कहना। हाँ पल भर के लिए मैं गाण्ड में अंड़से मोटे सुपाड़े को भूल गई और मैंने भी टाँगें लता की तरह भैया की कमर में कस के लपेट ली थी। मेरी बाहें भी उनकी पीठ से चिपकी थीं। और मैं अपने मस्त उभार भैय्या के चौड़े सीने पे जोर-जोर से रगड़ रही थी, मेरे गुलाबी रसीले होंठ उनके होंठों को चूम, चूस रहे थे। और कान भाभी की मस्त गालियों का मजा ले रहे थे।



भाभी- “हरामन की जनी, भंड़ुओं की रखैल, रंडी की औलाद, तू तो पैदायशी खानदानी छिनार है। तेरा सारा खानदान गान्डू है, क्यों इतना नखड़ा दिखा रही है गाण्ड मरवाने में, भाईचोद?”



अचानक बहुत तेज दर्द हुआ। जैसे किसी ने तेजी से छूरा, बल्की तेज तलवार पूरी की पूरी एक बार में घुसा दी हो। हुआ ये की जब मस्ती में मैं डुबी थी, भैया को भाभी ने इशारा किया और भैय्या ने पूरी ताकत और तेजी से, कमर उचका के, उन्होंने दोनों हाथों से चूचियों को कस के दबोच रखा था और नीचे से अपना मोटा खूंटा पूरी ताकत से पुश किया।

भाभी ने भी साथ में कंधे को जोर से दबाया, और, अंदर तक, अंड़स गया, अटक गया, फाड़ दिया रे अंदर तक दरेरते रगड़ते छीलते घिसटते गाण्ड का छल्ला पार हो गया था।



मैं बड़ी जोर से चीखी, और किसी ने भी मेरी चीख रोकने की कोशिश नहीं की। भैय्या ने भी नहीं।



भाभी तो बोलीं- “अरे चीखने दो साल्ली को, बिना चीख पुकार के गाण्ड मरौवल का मजा क्या? रोने दो, चोदो हचक-हचक के। आखिर तेरी बहन भी तो इसका भाई बिना नागा रोज चोदता होगा। चोदो गाण्ड इस छिनार की हचक के, फाड़ दो साली की, मोची से सिलवा लेगी…”



भैय्या पे वही असर हुआ जो भौजी चाहती थीं। वो पूरे जोश में आ गये, हचक-हचक के पूरी ताकत से, दरेरते, रगड़ते, फाड़ते घुसा रहे था।



दर्द के मारे जान निकल रही थी, मैं गाण्ड पटक रही थी, चीख रही थी, आंसू मेरे गाल पे गिर रहे थे।



लेकिन भौजी की गालियां- “काहें छिनरो मजा आ रहा है मोटा लौंडा घोंटने में? अबहिन तो बहुत मोट-मोट लौंड़ा घोंटोगी, मेरी रंडी की जनी। घोंटो घोंटो बहुत चुदवासी हो न… तेरी गाण्ड का भोसड़ा बनवा के भेजूंगी, कुत्ता चोदी…” अनवरत, नान स्टाप।



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