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Erotica सोलवां सावन

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***** *****सैतीसवीं फुहार-




मोहे कुतिया बना के उर्फ गोलकुंडा पर चढ़ाई


खुली खिड़की से आ रही ठंडी हवा के बावजूद मेरी देह पशीने-पशीने थी।



"रुक काहें गई छिनरी चोदो न, घोंटो अपने भैया का लण्ड, "

भौजी खिलखिलाते बोलीं।



फिर तो जैसे बच्चे मस्ती से ट्रैम्पोलिन पे उछलते हैं बस उसी तरह से, बार-बार आलमोस्ट लण्ड के ऊपर तक से लेकर पूरे जड़ तक, उछल-उछलकर गाण्ड में लण्ड घोंट रही थी। लेकिन मेरी थकान की बात और कौन समझता, भौजी के अलावा।



उन्होंने भैया को चढ़ाया, बहुत देर आई रंडी बैठ ली गोदी में अरे कुतिया की तरह जब तक गाण्ड नहीं मारोगे न,



भैय्या ने उनको बात पूरा करने का मौक़ा भी नहीं दिया। ये बात भइया की माननी पड़ेगी, नंबरी चुदक्कड़ थे और गाण्ड मारने में तो एकदम एक्सपर्ट, इंच क्या एक सूत भी लण्ड टस से मस नहीं हुआ।

पूरा का पूरा लण्ड गाण्ड में और मुझे उन्होंने निहुरा के, और अब जो मेरी गाण्ड मराई शुरू हुई बस लग रहा था, अब तक जो था वो सिर्फ ट्रेलर था।



खूब दर्द, खूब मजा।

मेरी आधी देह बिस्तर पे थी, पेट के बल।

गोल-गोल, पथराई चूचियां बिस्तर से रगड़ती, चूतड़ हवा में उठा हुआ, भैय्या के दोनों हाथ मेरे चूतड़ों को थामे, और पैर मुश्किल से जमीन छूते, हाँ भाभी ने पेट के नीचे कुशन और तकिए लगा दिए थे ढेर सारे, इसलिए चूतड़ एकदम उठे हुए, डागी पोज में।



(मुझे राकी की याद आ गई)।



एक बात और, रात में तो चारों ओर सन्नाटा था, घुप्प अँधेरा था, कमरे में मुश्किल से लालटेन को रोशनी में कुछ झिलमिल-झिलमिल सा दिखता था, लेकिन इस समय तो दिन चढ़ आया था। सुनहली धूप खिड़की से होकर पूरे कमरे में पसरी थी, बाहर टटकी धुली अमराई, गन्ने और धान के खेत दिख रहे थे, धान के खेतों से रोपनी वालियों के गाने की मीठी-मीठी आवाजें सुनाई दे रही थी।



लेकिन मुझे न कुछ सुनाई दे रहा था, न दिखाई दे रहा था, न महसूस हो रहा था, सिवाय मेरी कसी कच्ची किशोर गाण्ड में जड़ तक घुसा हुआ, गाण्ड फाड़ू, भैय्या का खूब मोटा लण्ड। गाण्ड इतनी जोर से परपरा रही थी, फटी पड़ रही थी, की बस।



और भैय्या को भी मेरी कसी कम उम्र वाली गाण्ड के अलावा कुछ भी नहीं दिख रहा था। डागी पोज में भी पूरा रगड़ते दरेरते अंदर तक जाता है। एक बार डागी पोज सेट करने के बाद, भइया ने धक्के लगाने शुरू किये और अब मेरी गाण्ड को भी उनके लण्ड की आदत पड़ती जा रही थी। उनके हर धक्के का जवाब मैंने भी कभी धक्के से तो कभी गाण्ड को सिकोड़ के, कभी निचोड़ के, उनके लण्ड को दबोच के देती थी।



लेकिन दो चार मिनट के बाद कामिनी भाभी ने उन्हें पता नहीं क्या उकसाया?



उन्होंने एक बार फिर मेरे चूतड़ों को हवा में जोर से उठाया, पूरे ऊपर तक, लण्ड को आलमोस्ट सुपाड़े तक बाहर निकाला और फिर एक धक्के में ही, पूरा जड़ तक,



मेरी बस जान नहीं निकली। हाँ चीख निकल गई, बहुत जोर से,-

“उई माँ, ओह्ह्ह… आह्ह… उईईई… उई माँ…”



यहाँ दर्द से जान निकल रही थी, और उधर भौजी खिलखिलाते हुए मुझे चिढ़ाने में लगी थी-


“अरे ओनके काहें याद कर रही हो, का उन्हु क गाण्ड मरवाने का मन है अपने भैय्या से? ले आना अगली बार, उन्हु के ओखली में धान कुटवाय दूंगी, तोहरे भैय्या से…”



चिढ़ाने में वो किसी को नहीं छोड़ती थी तो अपने सैयां को क्यों छोड़ती, उनसे बोली-

“अरे सिर्फ बहनचोद बनने से काम नहीं चलेगा, ये तुझे मादरचोद बनाने पे तुली है। बोलो है मंजूर, मादरचोद बनना?”



भैया ने एक बार फिर अपना मोटा मूसल आलमोस्ट एकदम बाहर निकाला धीमे-धीमे, मेरी गाण्ड के छल्ले से रगड़ते दरेरते, और हँस के कहा-

“एकदम, अरे जिस भोसड़े से ये मस्त सोने की गुड़िया, मक्खन की पुड़िया निकली है, वो भोसड़ा कितना मस्त होगा। उसको तो एक बार चोदना ही होगा, और मैं एक बार छोड़ भी देता लेकिन तुम्हारी छुटकी ननदिया, खुद बार-बार बोल रही है, तो अब तो बिना मादरचोद बने…”

और ये कह के उन्होंने पहली बार से भी करारा धक्का मारा।



दर्द से मेरी जोर से चीख निकल गई।



जवाब भौजी ने दिया-

“अरे बिचारी कह रही है, तो सिर्फ एक बार क्यों, उस छिनार की जिसकी बुर से ये जनी है एक लण्ड से… और एक बार से काम नहीं चलता। फिर सिर्फ भोसड़े से काम थोड़े ही चलेगा, हचक-हचक के उसकी गाण्ड भी कूटनी होगी…”



भैय्या के धक्कों की रफ़्तार अब बढ़ गई थी, और साथ में वो बोल भी रहे थे-

“एकदम सही बोल रही है, और जब इस नई कच्ची बछेड़ी के साथ इतना मजा मिल रहा है तो घाट-घाट का पानी पीकर, न जाने कितने लौंड़े घोंटी होगी, उसके भोसड़े में कितना रस होगा? एक बार क्यों बार-बार, और गाण्ड भी… एक बार इस गांव में आएंगी न अपने समधियाने, तो बस अपने सारे पुराने यारों को भूल जाएंगी…”



भैय्या के इन धक्कों में दर्द के मारे जान निकल जा रही थी





लेकिन एक बात और हो रही थी, न भौजी, न भइया कोई भी न मेरी क्लिट छू रहा था, न मेरी चूची। लेकिन एक अलग ढंग की मजे की लहर मेरी देह में दौड़ रही थी, मेरी चूत बार-बार सिकुड़ रही थी, अपने आप। अच्छी तरह पनिया गई थी। बस जैसे झड़ते समय होता है, वैसे ही। मुझे लग रहा था मैं अब गई तब गई।



पिछ्वाडे भैय्या के न धक्के कम हुए न उनका जोर। दर्द, छरछराहट भी वैसी ही थी, लेकिन अब अच्छा लग रहा था, मन कर रहा था और जोर से, और जोर से।



ये बात चम्पा भाभी ने भी बोली थी और बसंती ने भी, कि गाण्ड मरवाने का असली मजा तो दर्द में है, जिस दिन उस दर्द का मजा लेना आ जाएगा न… खुद गाण्ड मरवाने के लिए पीछे-पीछे दौड़ोगी।



भैय्या ने लण्ड बाहर निकाला, लेकिन अबकी अंदर नहीं घुसेड़ा, रुक गए। मैंने मुड़ के देखा, भौजी उनके कान में… और वो भी एकदम जोरू के गुलाम, मुश्कुरा के हामी भर रहे थे। डाला उन्होंने, लेकिन अबकी खूब धीमे-धीमे, मेरे दोनों पैरों को उन्होंने अपने पैरों के बीच डालकर जोर से सिकोड़ लिया और अब मेरी गाण्ड और भिंच गई। और आधा लण्ड घुसेड़ के वो रुक गए।



फिर एक हाथ से अपने खूंटे के बेस को पकड़ के गोल-गोल घुमाना शुरू कर दिया, पहले धीमे-धीमे, फिर जोर-जोर से चार पांच बार क्लाक वाइज, फिर एंटी क्लाक वाइज। चार पांच मिनट के बाद, मेरे पेट में जो घुड़मुड़ शुरू हो गई और कुछ देर में तो जैसे तूफान।



मैंने इशारे से भाभी को बुलाया और अपनी हालत बताई, बोला भी- “बस दो मिनट, पेट में गड़बड़ हो रहा है, भइया से बोलो न रुक जाएं…”



भाभी-

“धत्त, ऐसे समय कोई मर्द रुकता है क्या? घबड़ा मत तेरी गाण्ड में इतनी जोर की डाट लगी है, इतनी मोटी, एक बूँद भी बाहर नहीं आएगा। न तेरा मक्खन न उनकी मलाई…”



उन्होंने शायद भैया से कुछ बोला और उन्होंने फिर गोल-गोल घुमाना रोक के मुझे फिर से रगड़-रगड़ के गाण्ड मारना शुरू कर दिया।



मेरी देह बिस्तर से रगड़ रही थी मैं एकदम झड़ने के करीब थी। बीच-बीच में वो रोक के जैसे कोई मथानी से माखन मथे, उसी तरह से अपने हाथ से पकड़ के मेरी गाण्ड में। मेरी हालत खराब थी, मैं भी उनका लण्ड निचोड़ रही थी, दबा रही थी।



और कुछ देर में मेरी चूत को बिना कुछ किये मैं झड़ने लगी, खूब जोर-जोर से, इतना तो मैं चुदते समय भी नहीं झड़ती थी। मेरी देह काँप रही थी, मैं जोर-जोर से बोल रही थी-

“हाँ भैय्या हाँ… मार लो मेरी, चोद दो मेरी, मार लो गाण्ड, हो हो उह्ह्ह्ह्ह… आह्ह्ह्ह्ह…” कहकर मैं पलग पर ढेर हो गई, साथ में मेरी गाण्ड भी जोर-जोर से लण्ड निचोड़ रही थी, दबा रही थी।


और उसका असर उनपर भी पड़ा, दो चार धक्के पूरी ताकत से मार के, वो झड़ने लगे। खूंटा एकदम अंदर तक धंसा था। देर तक हम दोनों साथ-साथ झड़ रहे थे। दो कटोरी मलाई उन्होंने मेरी गाण्ड में तो छोड़ी ही होगी। वो मेरे ऊपर लेटे रहे और मैं बिस्तर पर पेट के बल।



मैं कटे पेड़ की तरह बिस्तर पर पड़ गई, संज्ञा शून्य, शिथिल, निश्चल, मेरी पलकें मूंदी हुई थीं, सांसें लम्बी लम्बी धीमे-धीमे चल रही थीं। पूरी देह में एक मीठे-मीठे दर्द की चुभन दौड़ रही थी। बस सिर्फ एक चीज का अहसास था, अभी भी मेरे पिछवाड़े धंसे, अंदर तक गड़े, मोटे खूंटे का।



कुछ देर में धीमे-धीमे हल्के से वो बाहर सरक गया, जैसे कोई मोटा कड़ियल सांप सरकते फिसलते हुए, बिल से निकल जाय। और मैंने अपना छेद भींच लिया, जोर से सिकोड़ के। साजन के जाने बाद जैसे कोई सजनी, अपने घर की सांकल बंद कर ले।



एक तूफान जो अभी-अभी मेरे ऊपर से गुजर गया था, उसका अहसास बस समेट के संजो के, बचा के मैं अपनी बंद पलकों में रखे हुए थी। आँखें भले बंद थी लेकिन मैं महसूस कर सकती थी।


“एकदम, अरे जिस भोसड़े से ये मस्त सोने की गुड़िया, मक्खन की पुड़िया निकली है, वो भोसड़ा कितना मस्त होगा। उसको तो एक बार चोदना ही होगा, और मैं एक बार छोड़ भी देता लेकिन तुम्हारी छुटकी ननदिया, खुद बार-बार बोल रही है, तो अब तो बिना मादरचोद बने…”

😍😍😍
 
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भाभी तो बोलीं- “अरे चीखने दो साल्ली को, बिना चीख पुकार के गाण्ड मरौवल का मजा क्या? रोने दो, चोदो हचक-हचक के। आखिर तेरी बहन भी तो इसका भाई बिना नागा रोज चोदता होगा। चोदो गाण्ड इस छिनार की हचक के, फाड़ दो साली की, मोची से सिलवा लेगी…”

Mast🔥🔥🔥😍😍😍


Thanks soooooooooooo much
 

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“एकदम, अरे जिस भोसड़े से ये मस्त सोने की गुड़िया, मक्खन की पुड़िया निकली है, वो भोसड़ा कितना मस्त होगा। उसको तो एक बार चोदना ही होगा, और मैं एक बार छोड़ भी देता लेकिन तुम्हारी छुटकी ननदिया, खुद बार-बार बोल रही है, तो अब तो बिना मादरचोद बने…”

😍😍😍

Thanks so much
 

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next part now
 

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कामिनी भाभी





नाश्ते के बाद मैं कामिनी भाभी के पीछे, रसोई में। वहां काम में मैं उनका हाथ बंटा रही थी और वो ज्ञान बाँट रही थी, सेक्सोलोजी के बारे में।



शुरुआत उन्होंने मसालों से की, पहले टेस्ट में तो मुझे 10 में 10 मिल गए, मसालों को पहचानने में, और इनाम में दो चुम्मी भी मिल गई, एक गाल पे और दूसरा जोबन पे। लेकिन दूसरे टेस्ट में ज्ञान मेरा शून्य था, लेकिन उसका पर्पज ही मेरा ज्ञान बढ़ाना था।



जायफल मैं पहचान गई थी, लेकिन कामिनी भाभी ने बताया उसका असली फायदा, खड़ा करने में। जिसका मुश्किल से खड़ा होता है न उसका भी इसे खिला देगी तो खड़ा हो जायेगा।



मैं- “और भाभी जिसका पहले ही खड़ा हो जाता हो?” हँसते हुए मेरे दिमाग में मेरे कजिन रवींद्र का चेहरा घूम रहा था, और मेरी सहेली चन्दा ने जो उसके बारे में कहा था की, उसके इतना मोटा और कड़ा इस गाँव में भी किसी का नहीं है।



भाभी- “वो तेरी फाड़ के रख देगा, बिना झड़े रात भर चोदेगा…”



बस मैंने नोट कर लिया अपने दिमाग में। खीर में खिलाऊँगी उसे, फिर देखती हूँ कैसे बचता है, क्योंकी जो दूसरी बात भौजी ने बताई वो मेरे काम लायक थी।



“जायफल का एक और असर होता है, आदमी का मन भी बार-बार करने को करता है। जो बहुत सीधा साधा बनने की कोशिश करे न, उसके लिए अचूक है ये। इलायची भी थकान कम करने में मदद करती है और ताजगी लाती है। और साथ में ब्लड फ्लो भी बढ़ाता है…” भाभी ने समझाया और ये भी की- “आखिर जब मर्द का खड़ा होता है तो वहां पे सारा खून पहुँच जाता है। और जब तक खून वहां पे रहता है तब तक वो…”




उनकी बात काट के मैं हँसते हुए बोली-

“भाभी इसीलिए जब मर्दों का खड़ा होता है तो बस उनकी बुद्धि काम करना बंद कर देती है, दिमाग का खून सीधे वहीं पहुँच जाता है…”




भाभी खिलखिला के हँसी और बोलीं- “अब मेरी ननद पक्की समझदार हो गई है, शहर में लौट के, ये समझदारी दिखाना लौंडों को पटाने में…”



“सौंफ भी…” उन्होंने समझाया-

“जोश बढ़ाने में मदद करती है लेकिन अदरक और लहसून दोनों में वीर्यवर्धक ताकत होती है। लहसुन की एक-एक फांक अलग करके, गाय के घी में हल्का पकाओ और फिर शहद में डुबा दो। बस, मर्द की ताकत दूनी…”
अनार के दाने, गाजर, ये सब बहुत असर करते हैं। और उसके बाद उन्होंने लड़कियों के लिए भी क्या खाने से उभार और मस्त होते हैं, सब बताया।

साथ-साथ हम दोनों काम भी कर रहे थे। दाल बन गई थी, चावल उन्होंने चढ़ा दिया था, फिर वो मुझसे पूछने लगी- बोल सब्जी कौन सी बनाऊँ?



और बिना मेरे जवाब का इन्तजार किये टोकरी से एक लम्बा मोटा बैंगन दिखा के मुझे छेड़ते हुए बोलने लगीं-

तुझे तो बैगन बहुत पसंद है न, मोटा और लम्बा?”




मैं घबड़ा गई कहीं भाभी सीधे मेरी चूत में। मेरी भाभी भी मुझे अक्सर दिखा के चिढ़ाती थीं। लेकिन कामिनी भाभी तो, और ऊपर से रात को उनके सैयां ने इतना हचक-हचक के चोदा है की बुर की अब तक बुरी हालत है।



भाभी ने शायद मेरे चेहरे का डर भांप लिया था, मुश्कुराते हुए वो बोलीं-

“घबड़ाओ मत अभी तोहरी बुरिया में नहीं डालूंगी, लेकिन चल तुझे दिखाती हूँ बुर में बैगन डालते कैसे हैं?” फिर बैठ के टाँगें फैला के, एक हाथ से अपनी बुर फैलाई और दूसरी से उसकी टिप, मुझे पास में बैठा के दिखाया, समझाया।

मैं अचरज से देखती रही, और सीखती रही

बाद में कामिनी भाभी खड़ी हो गई और उसका असली खेल मुझे समझाया,-

“देख असली चीज, घुसाना नहीं है, उसे दबोच के अंदर रखना है…”





सच में भाभी किचेन का सारा काम घूम टहल के कर रही थीं और वो टस से मस नहीं हो रहा था।



“और इसका एक खास फायदा, यार को पटाने का। बस कोई भी चीज, बैगन, गाजर जो तू अपने यार को खिलाना चाहे उसे अपनी चूत में घुसेड़ ले, कम से कम तीस चालीस मिनट, लेकिन जितना देर डालेगी न उतना असर ज्यादा होगा। बार-बार अपनी चूत को सिकोड़ उस पे, सोच तेरे यार का लण्ड तेरी चूत में है। जितना चूत का रस निकलेगा, चूत का रस वो सोखेगा न तो उसका असर और ज्यादा होगा। हाँ और एक बात… अगर लौंडे को उस चीज के नाम से भी नफरत होगी न, तो अगर तेरी चूत के रस से डूबा है तो तुरंत खाने को मुँह खोल देगा…”



मेरे सामने बार-बार रवींद्र का चेहरा घूम रहा था। अब देखना बच्चू, कैसे बचता है मेरे चंगुल से? उसे आम एकदम पसंद नहीं है। बस, दशहरी आम की खूब लम्बी-लम्बी मोटी फांकें अंदर डाल के, सब खिला डालूंगी।



और तबतक कामिनी भाभी ने एक मंत्र भी मेरे कान में फूंका-


“ॐ नमो गुरू का आदेश, पीर में नाथ, प्रीत में माथ, जिसे खिलाऊँ मोहित करूँ…”



“बस जब तक बुर में भींचे रहूं ये मन्त्र थोड़ी-थोड़ी देर में पढ़ती रहूं मन में, जिसे पटाना हो उसका नाम सोच के, और खिलाते समय भी ये मन्त्र बोलना होगा, हाँ साथ में कच्ची सुपाड़ी की एक बहुत छोटी सी डली…”

और उन्होंने ये भी बोला की उनके पास कामरूप की कच्ची सुपारी रखी है, वो मुझे दे देंगी।




उसके साथ ही और बहुत सी ट्रिक्स, कल उन्होंने पिछवाड़े के बारे में बताया था आज अगवाड़े के बारे में। आधे घंटे में उन्होंने बैगन बाहर निकाला, एकदम रस से भीगा और फिर उसका भुर्ता मुझसे बनवाया।



खाना बन गया था, मैंने बोला- भाभी मैं नहा लेती हूँ।



तो वो बोलीं- “एकदम… लेकिन मैं भी चलती हूँ साथ में, तुझे अच्छी तरह से नहला दूंगी…”
 
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***** *****कामिनी भाभी
 
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उन्तालीसवीं फुहार



नहाना धोना, कामिनी भाभी


भाभी की उंगलियां एकदम जादू, और कैसे-कैसे नहलाया उन्होंने, सिर्फ मुल्तानी मिट्टी, काली मिट्टी, न साबुन, न शैम्पू, हाँ गुलाब की सूखी पंखुड़ियां और भी कुछ मिट्टी में ही उन्होंने मिला रखा था। पहले पूरी देह में, फिर बालों में, और जब पानी डाल के साफ किया उन्होंने,

मैं बता नहीं सकती कितनी हल्की लग रही थी मैं। जैसे हवा में उड़ रही हूँ।

ये तो नहीं कि बदमाशी नहीं की हो उन्होंने, लेकिन सिर्फ ऊपर की मंजिल पे, और जितनी उन्होंने की उससे ज्यादा मैंने की।


भाभी के जोबन थे भी एकदम गजब के





और ऊपर से उनके सैयां और भैय्या ने तो रात भर जोबन का मजा लूटा था, तो भाभी के उभार दबाने का रगड़ने का मसलने काम तो ननद के ही जिम्मे आयेगा न। जैसे उन्होंने मुझे नहलाया, फिर उसी तरह मैंने भी उन्हें।

हाँ कुछ खेल तमाशा भी हुआ, कामिनी भाभी हों उनकी छुटकी ननदिया हो और खेल तमाशे न हो, लेकिन वो ट्रेनिंग भी थी साथ-साथ में।



उन्होंने मुझसे कहा उनकी बुर में उंगली करने के लिए, और वो जाँघे फैलाके बैठ गई। मैंने गचाक से अपनी मंझली उंगली पेल दी, सटाक से अंदर। इतना चुदवाने के बाद भी भाभी की बुर काफी कसी थी। थोड़ी देर तक गचागच मैं पेलती रही, सटासट वो लीलती रहीं।





कुछ देर बाद भाभी ने मुझे रुकने का इशारा किया और जड़ तक मंझली उंगली ठेल के मैं रुक गई।



भाभी मुझे देखकर मुश्कुरा रही थीं, फिर अचानक मुझे लगा जैसे किसी अजगर ने अपनी कठिन कुंडलिका में मुझे लपेट लिया है और जोर-जोर से, जैसे कड़क कर टूट जायेगी। उन्होंने आँख से इशारा किया की मैं अपनी उंगली बाहर निकाल लूँ। मैंने लाख कोशिश की, लेकिन उंगली टस से मस नहीं हुई और ऊपर से ये लग रहा था, की बस अब उंगली की हड्डियां चरमरा के टूट जाएंगी।



भाभी जोर से मुश्कुराने लगीं, हँस के बोली- “चल गुड्डी निकाल ले…” और अपनी पकड़ ढीली कर दी।



मैंने निकालने की कोशिश की तो सूत भर भी नहीं निकली होगी की फिर वही पकड़, और अबकी भाभी की बुर की अंदर की मसल्स, जैसे लग रहा था सड़क पर जो गन्ने निचोड़ने वाली जो मशीन होती है, मैंने उसमें अंगुली डाल दी है।



ऐसी जबरदस्त रगड़ाई हो रही थी, और बिना उंगली पर पकड़ ढीली किये भौजी ने उसके फायदे समझाए-


“देख इससे चूत, कितना भी चुदवाना, कित्ते भी मोटे लण्ड से, चाहे मैं कभी मुट्ठी ही डाल दूँ, लेकिन ऐसे ही कसी रहेगी। हफ्ते भर पहले जब तू, छुई मूई बनी कच्ची कोरी इस गाँव में आई थी, जब ढंग से उंगली भी तेरी सोन चिरैया ने नहीं लीला था, वैसे ही रहेगी। लेकिन असली फायदा दूसरा है।



मैं कान फाड़े सुन रही थी।



“देख कभी मर्द थका हो, लेकिन तेरा और उसका मन कर रहा हो, या दो बार वो जबरदस्त चोद चुका हो और तीसरी बार तुम ऊपर चढ़ के… बस उसे कुछ करने की जरूरत नहीं है, न धक्के लगाने की न ठेलने की, न पेलने की। बस तुम सिर्फ चूत सिकोड़-सिकोड़ के, तुम्हें भी ज्यादा थकान नहीं लगेगी और चुदाई का पूरा मजा…”



मैं चीख पड़ी- “भौजी मुझे सीखना है…”



भाभी- “नहीं, ये मैंने आज तक किसी को नहीं सिखाया, मेरा ट्रेड सीक्रेट है और दूसरी बात रोज-रोज प्रैक्टिस करनी पड़ेगी बिना नागा…”



“मैं कर लूंगी, प्लीज भौजी… मेरी अच्छी भौजी सिखाओ न…”



“लेकिन… अच्छा चलो, पर ये ट्रेनिंग फ्री नहीं मिलेगी, बड़ी कड़ी फीस लूंगी मैं इसकी…” कामिनी भौजी आँख नचाते हुए बोलीं।



“मंजूर, मैं आपकी गुलाम बन जाऊँगी, आपकी सब बात मानूंगी। भौजी प्लीज…” मैं बस उनके पाँव नहीं पड़ी और भौजी पसीज गईं।



उन्होंने एक-एक चीज बताई किस मसल्स की कैसे एक्सरसाइज की जाती है, और रोज, फिर मेरी चूत में उंगली डाली उन्होंने।



पहले दो बार तो मैं कुछ नहीं कर पाई, लेकिन तीसरी बार से कुछ मसल्स पर, चार पांच मिनट में इतना सीख गई की भौजी की उंगली भींचने लगी।



भाभी- “चल बहुत अच्छी है तू, मान गई मैं, अभी सात आठ दिन है न तू गाँव में? आधे घंटे रोज मेरे साथ प्रैक्टिस करना होगा, जाने तक काफी सीख लेगी… उसके बाद बस शहर पहुँच के रोज दो बार, नहाते समय और सोते समय, एक उंगली अंदर डाल के, और किसी लड़के के लण्ड के बारे में सोच-सोच के, और उसके अलावा जब क्लास में रहो, टीवी देखती रहो, कभी भी हर घंटे पे, कम से कम पांच मिनट, चूत को धीरे-धीरे खूब सिकोड़ो और वैसे ही 100 की गिनती तक पूरी ताकत से भींचे रहो, फिर धीमे-धीमे छोड़ो, चार पांच बार, और उस समय भी लण्ड का ध्यान जरूर करो।



तब तक भौजी को एक बात याद आ गई- “तुझे कल रात पिछवाड़े वाली एक एक्सरसाइज बताई थी, नहाते समय करने की, चल करके दिखा…”



याद तो मुझे अच्छी तरह थी, पर उनके सामने, लेकिन भौजी के आगे मेरी कुछ चलती क्या? और अपने छोटे चूतड़ उचका के, एक उंगली मुँह में डाल के थूक से गीली करके, पिछवाड़े के छेद पे हल्के से दबा के,



“हाँ ऐसे ही, कलाई के जोर से और ताकत लगाकर दबा…” कामिनी भाभी की निगाह वहीं पे थी।

“गचाक…” थोड़ी सी उंगली घुसी।

“अभी और ठेलो, जायेगी जायेगी…” भौजी ने हिम्मत बढ़ाई।

एक पोर से थोड़ा सा ज्यादा घुसा, तो कामिनी भाभी बोलीं- “अब बस, खाली गोल-गोल घुमाओ, हाँ ऐसे ही…”

कुछ देर मैं गोल-गोल घुमाती रही, तो वो बोलीं- “अरे दूसरी उंगली भी ठेलो अंदर और खुद तरजनी में कड़ुआ तेल लगाकर उसे चिकना कर दिया। और खुद ही उसे गाण्ड के छेद पे सटा दिया।

“ठेलो, इसे भी ठेलो…”



मुश्किल से दूसरी उंगली घुसी वो भी एक पोर।



“चलो पहली बार के लिए इतना काफी है, कल से दोनों के दो पोर…” कहकर भाभी ने थोड़ी छूट दे दी। पर ये जोड़ दिया- “गिन के पचास बार गोल-गोल घुमाओ, खूब धीरे-धीरे…”



थोड़ी देर में ही मुझे अहसास हो गया कि अंगुली अब थोड़ी आसानी से घूम रही है।



और जब मैंने उंगली बाहर निकाली तो, बस सम्हालते-सम्हालते भाभी ने उंगली की टिप को हल्के से अपने होंठों से… मैं घबड़ा गई बोली- अरे भौजी ये क्या?


आँख नचा के चिढ़ाते वो मुश्कुरा के बोलीं- “अरी छिनरो बुरचोदी, तेरे सारे खानदान क भोसड़ा मारूं, सबेरे-सबेरे भूल गई, हमार उंगली से जम के मजा ले ले के…”

मैं जोर से शर्मा गई, सुबह की बात याद करके। भौजी भी न, पहले तो जबरदस्ती, दो उंगली मेरे पिछवाड़े हचक के पेल दीं, चार पांच मिनट गोल-गोल घुमाती रहीं फिर मेरे मुँह में जबरन डाल के मंजन कराया, खूब रगड़-रगड़ के, और मुँह भी नहीं धोने दिया और अब ऊपर से कह रही हैं की, मैंने…



भौजी ने तबतक मुझे कस के अंकवार में भर लिया। और तौलिए से मेरी देह रगड़ते पोंछते बोलीं- “बोल तुझे ये तेरा जोबन कैसा लगता है, है न लौंडों को ललचाने के लायक? सारा गाँव मरता है इस पे, बोल है न दिखाने के लायक?”

मेरे गाल शर्म से गुलाल हो रहे थे, फिर भी मैंने हामी में सर हिलाया।

“अब बोलो ये वाला जोबना दिखाओगी की दुपट्टे में छिपा के रखोगी?” कामिनी भाभी ने फिर पूछा।

कल ही तो उन्होंने सिखाया था। मैं चट से बोली- “अरे भौजी अब दुपट्टा अगर डालूंगी भी तो एकदम गले से चिपका के, आखिर ये जोबन दिखाने ललचाने की तो ही उम्र है…”



एकदम सही, और बोल तुझे मैं कैसी लगती हूँ?



“बहुत प्यारी मस्त माल…” चिढ़ाते हुए मैंने उन्हें भींच के चूम लिया।
 

komaalrani

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देह का दर्शन



city east of osaka crossword



मैं जोर से शर्मा गई, सुबह की बात याद करके। भौजी भी न, पहले तो जबरदस्ती, दो उंगली मेरे पिछवाड़े हचक के पेल दीं, चार पांच मिनट गोल-गोल घुमाती रहीं फिर मेरे मुँह में जबरन डाल के मंजन कराया, खूब रगड़-रगड़ के, और मुँह भी नहीं धोने दिया और अब ऊपर से कह रही हैं की, मैंने…


भौजी ने तबतक मुझे कस के अंकवार में भर लिया। और तौलिए से मेरी देह रगड़ते पोंछते बोलीं-

“बोल तुझे ये तेरा जोबन कैसा लगता है, है न लौंडों को ललचाने के लायक? सारा गाँव मरता है इस पे, बोल है न दिखाने के लायक?”

मेरे गाल शर्म से गुलाल हो रहे थे, फिर भी मैंने हामी में सर हिलाया।

“अब बोलो ये वाला जोबना दिखाओगी की दुपट्टे में छिपा के रखोगी?” कामिनी भाभी ने फिर पूछा।

कल ही तो उन्होंने सिखाया था। मैं चट से बोली-

“अरे भौजी अब दुपट्टा अगर डालूंगी भी तो एकदम गले से चिपका के, आखिर ये जोबन दिखाने ललचाने की तो ही उम्र है…”


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एकदम सही, और बोल तुझे मैं कैसी लगती हूँ?

“बहुत प्यारी मस्त माल…” चिढ़ाते हुए मैंने उन्हें भींच के चूम लिया।



और भौजी ने देह का दर्शन समझाना शुरू कर दिया-

“देखो सब कितना ख्याल करते है देह का, तेल फुलेल, लिपस्टिक, पाउडर, गहना, कपड़ा, सब कुछ तो एही देह को सजाने के लिए, जिससे देह अच्छी लगे, सुन्दर लगे, और जितना सुख है न सब इसी देह से है, चाहे स्वाद का मजा हो, चाहे अच्छी चीज देखने का मजा, छूने का मजा हो, सुनने का मजा हो सब तो इसी देह से, इसी देह को मिलता है। तो फिर देह को देखने में, दिखाने में कौन शर्म लाज? और जब अई शर्म लाज टूटती है न तभी असली मजा खुल के आता है…”


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बात में भाभी के दम था, यहां आने तक मैं एकदम छुईमुई थी, कोई इधर-उधर हाथ भी लगाता था तो मैं बिदक जाती थी। कोई लड़का सामने से गुजर भी जाता था तो बस मुझे लगता था की कहीं मेरे कच्चे टिकोरों को तो नहीं, और मैं दुपट्टे से अच्छी तरह छोटे-छोटे नए आये जोबन को…

लेकिन पहले ही दिन भाभी के गाँव में जब सोहर हो रहा था तो सब लोग इतने खुल के गालियां गा रहे थे, मुझसे भी कम उमर की लड़कियां एकदम खुल के मजा ले रही थीं, और झूले पे तो कितनी भाभियों ने मेरे उभारों पे हाथ डाला, अंदर भी।

रही सही झिझक मेरी सहेली चन्दा ने रात में जब वो मेरे पास सोई तब खत्म कर दी और फिर रतजगे, जब बिना उमर, रिश्ते का लिहाज किये रतजगे में सबके कपड़े उतरे और सबने खूब मजे लिए,

भाभी की बातें खाते समय भी जारी रहीं- “सबसे बड़ा मजा जानती हो का है?”“चुदाई…”

खिलखिलाते हुए मैं बोली, अब मैं अपनी भौजी की पक्की ननद हो गई थी।


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“एकदम…”

हँसते हुए कामिनी भाभी बोलीं-

“और इसलिए की इसमें देखने का, चखने का, छूने का, सुनने का सब मजा मिलता है। और असली चुदाई भी यही है जिसमें अई कुल हो। अच्छा एक बात बताओ? जब झड़ते समय तोहार भैय्या कटोरा भर रबड़ी तोहरी चूत में डलले रहलें तो मजा मिला था की नहीं?”


और जब तक मैं उनकी बात का जवाब देती भौजी ने दूसरा सवाल दाग दिया-

“और जब तोहरे पिछवाड़े आपन पिचकारी से मलाई छोड़ले रहें तब?”


मैं खिलखिला पड़ी-

“अरे भौजी आई कौन पूछने की बात है। सबसे ज्यादा मजा तो ओहि टाइम आता है। और उस मलाई का स्वाद भी कितना मीठा होता है…”

मुझे गाँव के लड़कों की याद आ गई, अजय, सुनील, दिनेश सबने अपनी मलाई चखाई थी।


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“और उस मलाई का एक फायदा और है?” कामिनी भाभी का क्विज टाइम चल रहा था।

कुछ देर मैंने सिर खुजाया, सोचा, फिर मेरी चमकी-

“अरे भौजी अगर उसको, ओहि से तो दुनियां चलती है। मर्द देता है, औरत घोंटती है तभी तो केहाँ केहाँ होता है सृष्टि चलती है, यू तो अमृत है…”

मैं भी कामिनी भाभी की तरह बोलने लगी थी।

भौजी बड़ी जोर से मुश्कुरार्ई-

“तू और तोहार सारे खानदान वाली, मजा ले ले के लण्ड चूसती हो, उसकी मलाई गटकती हो, तो उँहा से निकलने वाली बाकी चीज में, और फिर अपने खुद की देह से निकली, काहें मुँह बिचकाती हो…”


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मैं समझ गई, कामिनी भाभी का इशारा।

सुबह भइया ने मेरे पिछवाड़े कटोरी भर मलाई निकालने के बाद अपना खूंटा मेरे मुँह में, मैं बहुत ना-नुकुर कर रही थी, लेकिन भला हो भोजी और भैया का, जबरदस्ती उन्होंने, और उसके बाद भौजी ने मंजन भी… मैंने ऐसा भोला सा चेहरा बनाई थी, जैसे मानो कह रही हो ऊप्स भाभी गलती हो गई, आगे से नहीं होगी।

और भाभी ने गुरुज्ञान दे दिया-

“अरे जउने देह से मजे ही मजे है, उससे निकलने वाली चीज भी…”

भौजी की बात में ब्रेक लग गया था क्योंकी वो एक दूसरे काम में लग गई थीं, खाने के बाद। मेरी कुछ खास जगहों का साज सिंगार करने में, वो मुझे उस जगह ले गई जहाँ उनके लेप, लोशन, क्रीम, मलहम, सौंदर्य प्रसाधन, जड़ी बूटियां, वटी, लेप आदि रहते थे। सबसे पहले उन्होंने मेरे जोबन पे उरोज कल्प नामक लेप किया, स्तनों को सुदृढ़ और बड़ा करने वाला।


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और फिर उनकी अपनी बनायी कुछ खासी जड़ी बूटियों से बनी एक क्रीम, मेरी दोनों जाँघे अच्छी तरह फैला के मेरी योनि में जड़ तक भरा। कुछ लेप फिसल कर बाहर भी आ गया। भौजी ने उसे चूत के चारों ओर फैला के रगड़ दिया, और मुझे बोला की मैं कस के अपनी बुरिया भींच लूँ।



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और फिर यही काम उन्होंने पलटकर पिछवाड़े के छेद में भी किया, एकदम बचाबच ऊपर तक क्रीम भर दिया।

और उसे भी मैंने भींच लिया। कुछ ही देर में एक अजब सनसनाहट, ठंडक और चुनचुनाहट आगे-पीछे महसूस होने लगी।

भौजी मेरी हालत देखकर मुश्कुरा रही थीं, चिढ़ाते हुए बोलीं- कैसा लग रहा है?

फिर उन्होंने समझाया- “इसका असर होने में टाइम लगता है, मैंने अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों ही तेरा सील कर दिया है। कल सुबह तक कुछ भी नहीं जाना चाहिए इसके अदंर, फिर चाहे जम के मूसल चलवाना। जो भी रगड़ा रगड़ी में अंदर गड़बड़ हुआ होगा, छिल विल गया होगा, सब कुछ ठीक हो जाएगा कल सुबह तक। उसके अलावा एकदम टाइट कर देगी…”

असर अब धीरे-धीरे मेरी पूरी देह पर हो रहा था, एक अजीब मस्ती, गनगनाहट, आँखें मुंदी जा रही थी,



“अरे तुझे खाने के बाद कुछ मीठा तो खिलाया नहीं…” भाभी बोलीं, और खींच के मुझे पलंग पे। हाँ इस बार धान के खेत और अमराई वाली खिड़की अच्छी तरह बंद थी।
 

komaalrani

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भाभी ने समझाया-

“इसका असर होने में टाइम लगता है, मैंने अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों ही तेरा सील कर दिया है। कल सुबह तक कुछ भी नहीं जाना चाहिए इसके अदंर, फिर चाहे जम के मूसल चलवाना। जो भी रगड़ा रगड़ी में अंदर गड़बड़ हुआ होगा, छिल विल गया होगा, सब कुछ ठीक हो जाएगा कल सुबह तक। उसके अलावा एकदम टाइट कर देगी…”

असर अब धीरे-धीरे मेरी पूरी देह पर हो रहा था, एक अजीब मस्ती, गनगनाहट, आँखें मुंदी जा रही थी,

“अरे तुझे खाने के बाद कुछ मीठा तो खिलाया नहीं…”

भाभी बोलीं, और खींच के मुझे पलंग पे। हाँ इस बार धान के खेत और अमराई वाली खिड़की अच्छी तरह बंद थी।



‘मिठाई’ भाभियां मुझे पहले भी चखा चुकी थीं, गांव में आने के बाद, चम्पा भाभी, बंसती भौजी।


और मुझको भी शहद से भरी उस ‘मिठाई’ को खाने की लत लग गई थी।

पल भर में हम दोनों बिस्तर पर थे, आज खिड़की दरवाजे सब बंद थे, इसलिए एक मखमली अँधेरा छाया था। भाभी ने मुझे एक साथ अपनी ओर खींचा, टाँगें फैलाई और साड़ी ऊपर।

(गाँव में आके साड़ी का यही फायदा मैंने सिखा भी और उठाया भी। बस मौका पाते ही, जैसे टांग उठाओ, साड़ी अपने आप खुल के प्रेम गली का रास्ता दिखा देती है। और जब शटर डाउन करना हो तो बस, उठ जाइये, साड़ी अपने आप सब कुछ ढक लेती है।)

और मेरे होंठ सीधे भौजी के शहद के छत्ते पे। पहले थोड़ा खेल तमाशा, इधर-उधर चुम्मी और फिर सीधे, थोड़ा लिकिंग, फिर किसिंग और अंत में सकिंग।



कामिनी भाभी मान गईं कि उनकी छुटकी ननदिया उतनी नौसिखिया नहीं है। मेरा सर पकड़ के कस-कस के उन्होंने अपनी बुर पे दबाया,

मैंने जीभ बुर की दोनों फांकों को फैला के अंदर घुसेड़ा, और अपने दोनों होंठों के बीच भौजी की गद्देदार, मांसल बुर की पत्तियों को भर के जोर-जोर से चूसना शुरू किया, और भौजी कुछ ही देर में चूतड़ पटकने लगीं।

भौजी की बुर उनकी पनिया गई।

लेकिन ऐसा नहीं है कि इस खेल में कामिनी भाभी ने मुझे कुछ नहीं सिखाया, कभी हाथों के इशारे से, कभी पैरों के सहारे से, तो कभी बुदबुदाकर, कभी बोलकर, कभी उकसाकर, कभी रोक कर, कभी पेंग लगाके तो कभी ब्रेक लगाकर। और मैं समझ गई, चाहे चुदाई हो या चुसाई, एमे जीतना नहीं मजा लेना होना चाहिए।





टारगेट अगले को जल्दी झड़ाना नहीं, बल्की साथ-साथ कितनी देर तक, कितने अलग ढंग से, कितने तरह से मजा दे सकते हैं, ले सकते हैं, होना चाहिए।



और ट्रिक भी सीखी नई-नई… कैसे सिर्फ जीभ के टिप से सुरसुरी करके, टीज करके आग लगा सकते हैं किसी मर्द से भी बेहतर सिर्फ जीभ से बुर को कैसे चोद सकते हैं? दो चार बार भाभी को मैं झड़ने के करीब ले गई, फिर रुक गई। यही तो वो चाहती थीं, उन्होंने इशारे से मुझे बुर और पिछवाड़े की बीच की जगह को चाटने को कहा।



दोनों हाथ से उनके बड़े-बड़े चूतड़ उठा के मैंने कस-कस के चाटना शुरू कर दिया। ‘वहां’ से इंच दो इंच ही तो दूर थी मैं, मेरा मतलब, मेरी लालची, नदीदी, शरारती जीभ।


आज कितना हचक-हचक के मेरे पिछवाड़े मूसल चला था, रात में भी और आज सुबह सुबह भी। माना मूसल मेरे भैय्या का था, लेकिन उन्हें उकसाने वाली तो मेरी ये प्यारी-प्यारी भाभी ही थीं। और फिर मेरे हाथ बांधने से लेकर, कुशन तकिए लगाकर चूतड़ उठाने, उसमें आधी बोतल कड़ुवा तेल डालने से लेकर मेरे मुँह को अपनी मोटी-मोटी चूची से बंद करने तक का सारा काम तो कामिनी भाभी ने ही किया था।


बस… मेरी जीभ उधर की ओर मुड़ चली, चाटते हुए मैंने अब पीछे की ओर जीभ, लेकिन पिछवाड़े के छेद से, दो चार मिलीमीटर दूर ही मैं रुक जा रही थी। साथ में मेरी उंगली गोल दरवाजे के चारों ओर, हल्के-हल्के गोल-गोल घूम रही थी।



भौजी पे असर जो हो रहा था मैं महसूस कर रही थी, फिर अचानक चाटते-चाटते मेरी जीभ ने जैसे गलती से पिछवाड़े का छेद छू लिया, वहां छू दिया। कुछ देर में ये गलती बार-बार हो रही थी। पिछवाड़े के छेद के आर पार, मेरी जीभ महसूस कर रही थी, भौजी की गाण्ड कैसे दुबदुबा रही थी। मुझे बहुत मजा आ रहा था उन्हें छेड़ने में, और जो काम मेरी उंगली कर रही थी वह अब जीभ की टिप ने शुरू कर दिया। पहले हल्के-हल्के फिर जोर से।


लेकिन मन तो मेरा भी कर रहा था, और अब बहुत हो गई थी छेड़छाड़, मुझसे नहीं रहा गया, मैंने दोनों हाथ से कस के भाभी के कटे तरबूज ऐसे चूतड़ों को पूरी ताकत से फैलाया, और अब उनका भूरा-भूरा छेद साफ दिख रहा था, थोड़ा खुला, पुच पुच। मैंने अपने रसीले किशोर होंठ वहां सटाए और चार पांच चुम्मी जोर-जोर से ले ली, और फिर एक थूक का बड़ा सा गोला बना के सीधे उस छेद में, जीभ की नोक जो कुछ देर पहले किनारे-किनारे चक्कर काट रही थी, अब गहराई में उतर गई थी और जोर से उस कुएं की दीवारों पे चक्कर काट रही थी।



बिचारी भौजी, अब सिसक रही थीं, तड़प रही थी, चूतड़ पटक रही थीं और मैं… मैं उनकी ननद उन्हें तड़पा रही थी। कभी चूमती थी, कभी चाटती थी और रह रह के जोर-जोर से चूस लेती थी, पिछवाड़ा। मौका भी था।



भौजी ने खुद मेरे आगे-पीछे क्रीम लगाकर बोला था, अब ये कल सुबह के लिए सील हो गई उंगली तक नहीं,

मतलब मेरे ऊपर कोई खतरा नहीं था, भौजी किसी तरह बदला नहीं ले सकती थीं।

लेकिन भौजी तो भौजी थीं- “साल्ली छिनार, हरामी की जनी, गाण्ड चट्टो, बहुत गाण्ड चाटने का शौक है न चल चटवाती हूँ गाण्ड तुझे, तेरा ये शौक भी पूरा हो जाए?”



और जब तक मैं सम्हलती समझती, उन्होंने खींच के मुझे अपने बगल में लिटा लिया, और वो मेरे ऊपर, उनकी मोटी-मोटी जाँघे मेरे चेहरे के दोनों ओर, कुछ उन्होंने एडजस्ट किया और भौजी की गाण्ड का छेद सीधे मेरे होंठों के ऊपर-

“खोल मुँह, भड़ुए की औलाद, रंडी की जनी, कुत्ताचोदी, खोल वरना…”

और मैंने मुँह खोल दिया। मुझे मालूम था भाभी बिना मुँह खुलवाए मानेंगे नहीं।

थोड़ा और सरकी वो दोनों हाथों से पूरी ताकत से उन्होंने अपने बड़े-बड़े 38++ साइज के चूतड़ फैलाए और अब उनकी खुली गाण्ड का छेद सीधे मेरे मुँह में, फंसा, उसके ऊपर मैं टस से मस भी नहीं हो सकती थी- \

“ले चाट, चाट कस के… जीभ ननद रानी, एकदम अंदर तक जानी चाहिए समझ लो, बाहर-बाहर से न तुझे मजा आयेगा न मुझे, तुझे बहुत शौक है तो पक्की गाण्डचट्टो तुझे बना के छोडूंगी चल चाट…”



कुछ देर तक तो मेरी समझ में नहीं आया, लेकिन मेरे समझ में न आने से क्या होता है, मेरी जीभ को तो समझ में आ गया था, कि भौजी का हुकुम क्या है। और कुछ देर बिचकने, हिचकिचाने के बाद, जीभ की टिप, हल्के-हल्के, सम्हलते-सम्हलते, गोलकुंडा के अंदर प्रवेश और उसकी दीवालों को,

भौजी खुश। और लगीं आशिसने-

“मस्त चाट रही है, साली छिनार, खानदानी गाण्ड चट्टो है, लगता है पेट से सीख के आई है हाँ… अरे भोसड़ी के और अंदर, पूरा, और डाल गदहे की जनी…”

मैंने और कोशिश की, कुछ, ऐसा वैसा, मन गिनगिना सा गया।



एक पल के लिए की लिए रुकी की भौजी फिर, ऐसा हड़काया उन्होंने की-

“रुक क्यों गई साल्ली, तेरे सारे खानदान की गाण्ड मारूं, अरे सबेरा अपना तो, भैया के लण्ड से सपड़-सपड़, तो मेरे में, जब तक भौजाई का, ननद को, चल और अंदर डाल घुमा गोल-गोल…”



और उसके साथ ही, जैसे कोई अति अनुभवी खेली खाई प्रौढ़ा किसी नई उमर की नई फसल टाइप लड़के पे, खुद चढ़के, उसके बांस पे उछल-उछल के। कामिनी भाभी ने उसी तरह बागडोर अपने हाथ में ले ली। मेरी जीभ जैसे उस नौसिखिए लड़के का खूंटा हो, बस… कभी गोल-गोल, तो कभी आगे-पीछे, उनके चूतड़ और उनकी गाण्ड में घुसी जीभ ने धीमे-धीमे उसी सुर ताल पे चाटना, चूसना।


और भौजी ने वो बात कहनी शुरू कर दी , जिसे सोच के मेरा मन बिचकता भी था घबड़ाता भी था ,

और भौजी ने समझाया भी हड़काया भी लेकिन उसके पहले खुश हो के बोलीं

" हाँ हाँ , सही चाट रही है , तुझे तो पक्की गंडचट्टों बनाउंगी , हाँ अरे स्साली जीभ अंदर घुसेडो हाँ और , और ,... अरे जब तक अंदर वाले का स्वाद न लिया न भौजाइयों क , पिछवाड़े क,... "

फिर समझाने लगीं,

" देख तोहरे भैया हचक के गाँड़ मारे न आज तोहार और तुंहु उनकी गोदी में बैठ के लंड पर चढ़ के, निहुर के कुतिया बन के , कातिक क कुतिया मात , अइसन गाँड़ मराई हो है की नहीं ,... मजा आया की नहीं "

मुंह तो मेरा भाभी के पिछवाड़े से सील था लेकिन सर हिला हिला के मैंने हुंकारी भरी , मैंने गाँड़ मरवाई भी और मजा भी खूब आया गाँड़ मरवाने में भैया से ,

भाभी जारी थीं और मैं शरमा रही थी , लेकिन बात भाभी की सोलहो आना सही थी , वो समझा रही थी

" सुन ननद रानी , गाँड़ मरवावे के बाद क्या किया , अपने भैया का लंड , मुंह में ले के , सपड़ सपड़ , खूब रस ले ले के चाट चूस रही थी , और आँख भी खोल के देख रही थी , नही की हाँ ? और कहाँ से निकला था लंड और का का,... एकदम चिक्कन कर के , तो आखिर अपने पिछवाड़े का खूब स्वाद लिया की नहीं , और ओकरे बाद जब हम तोहे मंजन कराये, खूब दांते पर , और उहि मुंह ,... एक बात समझ लो ननद रानी , आज तो हम सील कर दीहै हैं , अगवाड़ा पिछवाड़ा दोनों , लेकिन कल से बिना नागा ई गाँड़ तोहार खूब हचक हचक के मारी जायेगी और कोई मरद लौंडा ऐसा नहीं जो गाँड़ मारने के बाद चटवाये चुसवाये नहीं , एकदम साफ़ कर दोगी तभी छोड़ेगा जैसे आज तोहरे भैया चटवाये , तो रोज अपने पिछवाड़े क तो चटबै करोगी,... "

मैं सुन भी रही थी और कस कस के भाभी का पिछवाड़ा चूस भी रही थी बात उनकी सोलहो आना सही थी ,



और अब भाभी हड़काने वाली मुद्रा में आ गयीं और साथ में अपने पिछवाड़े का छेद मेरे मुंह पर रगड़ने लगीं,

और यह गाँव क भौजाई कुल , अभिन तो थोड़ बहुत , अब देखना,... तीन चार मिल के पकड़ लेंगी , घरे में , अरहर के खेत में, अमराई में , झूला झूले जाबू उंहा ,एक तोहार हाथ पकड़ी दोनों , दूसरकी कस के नाक दबाई , बस चिरैया की तरह चोंच खोल दोगी तुम सांस लेने के लिए बस तिसरकी , आपन साडी कमर तक सरकायी और सीधे आपन पिछवाड़े का छेद तोहरे खुले मुंह पर कुप्पी की तरह, तनिको एहर ओहर करबू न , तो बस दो चांटा सीधे चूँची चूतड़, और घुंडी पकड़ के नोंच लेंगी, ... और फिर आराम से धीरे धीरे अपने पिछवाडे क सब कुछ ,... जितना छटपटाओगी न उतने ज्यादा उनको मजा आएगा,... तो आपन तो चख ली हो स्वाद ले ली हो तो भी भौजाइयों का,...



“जिस दिन गुलबिया के हाथ पड़ोगी न, बिना भर पेट खिलाए पिलाए वो छोड़ेगी नहीं। चार-चार बच्चों की माँ ननदें, होली में उससे पनाह मांगती है। और इस बात की गारंटी, तुम्हें तो छोड़ेगी नहीं वो, और उसकी क्या गलती, माल ही तुम इतनी नमकीन हो। कितनो चिचियाओगी, चूतड़ पटकोगी न,गुलबिया के आगे…”



तब तक दरवाजे पर खटखट हुई।





मैं और कामिनी भाभी झट से पलंग के नीचे, खड़े हो गए।





मैंने पहले ही कहा था साड़ी का यही फायदा, सब कुछ ढँक गया।
 
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