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Erotica जोरू का गुलाम उर्फ़ जे के जी

komaalrani

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बूंदो की रुमझुम, देह की सरगम





अब रुक रुक कर बूंदो की आवाज ,कमरे की छत पर से नीचे जमीन पर से ,आम के पेड़ की खिड़कियों पर से ,


अलग अलग एक सिम्फोनी मस्ती की ,

खिड़की से हाथ बाहर निकाल के मैंने चार पांच बूंदे रोप लीं और सीधे अपने उभारों पर मसल दिया।

तब तक वो मेरे पास आके खड़े हो गए थे वही अजय जीजू वाली स्पेशल सिग्गी सुलगा के सुट्टा लगाते ,

क्या जबरदस्त अजय जीजू की वो ,... एक दो सुट्टे में ही बुर की बुरी हालात हो जाती थी , बस मन करता था की कोई लौंडा दिखे तो उसे पटक के रेप कर दूँ।

" साल्ले ,भोंसड़ी के मादरचोद , अकेले अकेले। "


उनके मुंह से सिग्गी छीन कर सुट्टा लगाते मैं बोली।

सच में दो सुट्टे के बाद ही मेरी हालत खराब हो गयी लेकिन मैंने उनके गोरे गुलाबी नमकीन गालों पे कस के चिकोटी काटती मैंने चिढ़ाया ,

" साल्ले , गाली नहीं दे रही सच बोल रही अरे तेरी उस अनारकली ऑफ आजमगढ़ की





जो तुम एक बार सील खोल दोगे तो बस ,अब मेरे जीजू लोगों को तो तुमने उस छमिया की कच्ची अमिया , अपनी छुटकी बहनिया के कच्चे कोरे टिकोरे १०० रुपये में मेरे जीजू लोगों के हाथ बेच ही दिए है
तो फिर जब तुम अपने उस माल की सील तोड़ देगे तो मेरे भाई भी , माना सगे नहीं है ,दूर दराज के पास पड़ोस के ,गाँव मोहल्ले के हैं ,लेकिन ,... और फिर तुम साले ,साल्ले तो बन ही जाओगे न।


और फिर अपनी माँ के पहलौठी के तो हो नहीं ,और तेरी माँ मेरी गारन्टी है , झांटे आने के पहले ही लगवाना चालू कर दिया होगा , तो तुम भोंसड़ी के तो हुए न।

और फिर मादरचोद ,मम्मी की सबसे कड़ी शर्त तूने पूरी कर दी , मम्मी का आज दिन में फोन आया था।बहुत खुश थीं तुमसे ,कह रही थीं मेरी सास से उनकी बात आज भी हुयी थी , आज से ठीक चौदह दिन बाद , तेरी माँ को ले के वो हाजिर। कह रही थीं वो , बस चौदह दिन उस छिनार के जने से कह देना , अपनी माँ चोदने के लिए तैयार रहे , तो साल्ले अब तो मादरचोद बनने से तुझे कोई रोक नहीं सकता। "



मैं कनखियों से देख रही थी , खूँटा अब फिर टनटना रहा था।

मेरी बातों का असर ,या सावन के मौसम की मस्ती का या अजय जीजू के मस्त सिगरेट का , या सबका मिला जुला ,

पर शेर अंगड़ाई ले रहा था।

एक दो सुट्टे और मार के मैंने सिगरेट उनके नदीदे मुंह में खोंस दी और अब वो जम कर सुट्टे लगाने लगे।

बाहर मौसम और जबरदस्त ,...

हवा थोड़ी तेज हो गयी थी , रह रह कर आसमान में बिजली चमक रही थी।





आम का पेड़ मस्ती से झूम रहा था , और अब बौछार थोड़ी तेज हो के हम लोगों को भिगो रही थी।

मैंने शरारत से अपने दो हाथ बाहर कर के अंजुरी में झरती बारिश का ढेर सारा पानी रोप कर जब तक वो सम्हलें ,समझें

कुछ पानी मैंने इनके चेहरे पर डाला और कुछ इनके खड़े खूंटे पर ,उसे मसलते मैं बोली ,

" यार आज तेरे मायके का पहला दिन ,एकदम जैसा मैं सोच रही थी वैसा ही गुजरा तो मेरे मुन्ने को कुछ इनाम तो मिलना ही चहिये न , आओ। "

और ये कह के मैंने उन के मुंह से मसाले वाली सिगी खींच ली और बस दो खूब जोरदार सुट्टे लगा के ख़तम कर बाहर फेंक दी ,

और पलंग पर लेट गयी।

" आओ न "



मैंने बुलाया , मेरी खुली जाँघों को देख के वो समझ गए मैं किस इनाम की बात कर रही हूँ।





उनके होंठ मेरे निचले होंठों पर , जबरदस्त चूत चटोरे तो वो थे ही ,

थोड़े ही देर में सपड़ सपड़ ,... मेरी हालत खराब


क्या मस्त चाट रहे थे वो ,थोड़ी ही देर में बाहर चल रहे तूफ़ान में काँप रहे आम के पेड़ के पत्तों की तरह मेरी देह भी काँप रही थी।

लेकिन इरादा तो मेरा कुछ और चटवाने का था ,



आखिर उनके मायके का मेरा पहला दिन इत्ता स्पेशल गुजरा , खास तौर से अपनी भौजाई के सामने जिस तरह से उन्होंने मेरे तलवे चाटे , एकदम खुल के

मेरी जिठानी की हालत देखते बनती थी ,

तो उनका इनाम भी तो कुछ स्पेशल बनता था न।



और मैंने अपने कूल्हे कुछ और ऊपर उठाये ,

अक्लमंद को इशारा काफी ,

और फिर मम्मी और मंजू ने रोज रोज गांड चटाई में उन्हें ट्रेन भी अच्छा कर दिया था ,

जीभ मेरी चिकनी देह पर फिसलती आगे के छेद से पीछे के छेद की ओर ,




पर तड़पाने में उनका कोई सानी नहीं था ,एकदम मेरी तरह,

जीभ गोलकुंडा के किले के चारो ओर चक्कर काटती रही , बस छोटे छोटे लिक्सऔर फिर उस भूरी सुरंग से बस एक मिलीमीटर दूर छोटे छोटे चुम्बनों की बारिश



बाहर बारिश तेज हो गयी थी ,और

अंदर मेरी गालियों की बारिश ,

साल्ले , भोंसड़ी के , तेरी माँ की फुद्दी मारूँ , रन्डी के जने ,गांड़चटटो

चाट मादरचोद चाट ,चाट गाँड़ ठीक से , चाट डाल दे जीभ अंदर ,


बाहर बारिश बहुत तेज हो गयी थी, छत पर गिर रही टप टप बूंदो की आवाज, दीवारों खिड़कियों से टकराती तेज बौछारों की आवाज के साथ कभी कभी खुली खिड़कियों से तेज हवा के साथ बहकती उड़ के आती बूंदे हम दोनों को भी गीली कर रही थीं,

और तेज होती बारिश के साथ मेरी सास के लड़के की बदमाशी भी तेज होती जा रही थी,


न मैं कहने की हालत में न वो सुनने की हालत,



सिर्फ उसकी जीभ और मेरे पिछवाड़े का छेद, हम दोनों इस हालत में पहुँच गए थे न उसे परवाह थी न मुझे, दोनों हाथों से कस के वो मेरे पीछे का छेद फैलाये अपनी जीभ से बार बार , आधी से ज्यादा जीभ अंदर घुसेड़ के , कभी गोल गोल घुमाता तो कभी अंदर बाहर, ...

मैं सिसक रही थी अपने बड़े बड़े कसे कसे नितम्ब पटक रही थी और बस लग रहा था अब गयी तब गयी,


चुनमुनिया चूसने में तो ये स्साला नंबर १ पहले से था और जो बाकी बची कसर थी, मंजू और गीता ने इसे ट्रेन कर दिया था , पर कोई सिर्फ पिछवाड़े को चूस चूस के किसी को झाड़ सकता है आज मैं पहली बार देख रही थी , महसूस कर रही थी ,


मैंने उसे हटाने की कोशिश की तो उसने कस के मेरे दोनों नरम कलाइयों को दबोच लिया,


और चूड़ियों की चुररर मुरर के बीच चटक चटक आधी दर्जन चूड़ियां मुरुक गयीं , पर उसे कौन परवाह थी वो मुझे आज पागल करने पर तुला था।

पागल मैं हो ही गयी थी और साथ में बाहर बदरिया भी जो आज धरती को सिर्फ गीला करने पर लगी थी बल्कि उसे डुबाने में लगी थी,

मेरी हालत कौन सी अच्छी थी , मैं बार बार गीली हो रही थी , उसकी बदमाश जीभ,...


दो बार चार बार , मैं ऑलमोस्ट थेथर हो गयी थी लेकिन बदमाश की बदमाशी कहीं रुकती है , उसकी आधी जीभ अभी भी मेरे पिछवाड़े धंसी, ....

लेकिन किसी तरह मैं उसे धक्का देकर पलंग पर से ,... एक बार फिर से उस खुली खिड़की के सहारे जहाँ अभी भी बारिश की बौछार,



मैं एक बार फिर से खिड़की के सहारे,
 
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बरसन लागि बदरिया झूम झूम के, ....




मैं एक बार फिर से खिड़की के सहारे,

लेकिन अबकी मेरा चेहरा उसके सामने और पीठ खिड़की की ओर,...

और वो पलंग से उठके मेरी ओर आता तो मैंने स्टैच्यू बोल दिया ,...

मैं उनकी हालत देखकर मुस्करा रही थी, एकदम उत्तेजित, ... और बेचारे हिल भी नहीं नहीं सकते थे चार मिनट तक,...


ये खेल पहली रात से ही इस कमरे में, ... लेकिन सिर्फ इसी कमरे में, मेरे स्टैचू बोलने पर चार मिनट तक,...


और मैं उन्हें ललचा रही थी,



बारिश अभी भी खूब तेज हो रही थी, जब बिजली रह रह के तेजी से चमकती थी, तो बाहर बारिश से भीग रहे पेड़ पौधे, घर के पीछे का एक छोटा सा पोखर, थोड़ी दूर पर गले में पड़ी चांदी की हँसुली की तरह हंसती खिलखलाती नदी, सब कुछ एक पल के लिए दिख जाता था और फिर सब अँधेरे में,...



और मैं भी,...



मैं भी भीग रही थी , खिड़की खुली थी , बारिश के तेज झोंके,,... और मेरे बादल से काले घने बालों की लट से जो मेरे गोरे गालों को वैसे ही सहला रही थी जैसे बदमाश बदरियों ने चांदनी की मुश्के कस के बाँध दी थी, और उन भीगी लटों से पानी की बड़ी बड़ी बूंदे , मेरे मक्खन से चिकने गालों से सरक के, फिसलती हुयी , लुढ़कती, मेरे कड़े कड़े , बड़े बड़े स्तनों पर और फिर कंचे के साइज के निपल पर आ के वो बूँद रुक गयी,




मैं शरारत से उस लड़के को देख रही थी , पहली रात से इस इस कमरे में बहुत तंग किया इस दुष्ट ने, उसे ललचाते उकसाते मैंने अपनी दो उँगलियों से पहले उस शरारती बूँद को छुआ , फिर उसे अपने कड़े निपल पर मसलने लगी थी, मस्ती में मेरी आँखें बंद थी, सिर्फ उँगलियाँ निप्स के चारों ओर चक्कर कार रही थीं , और होंठ बुदबुदा रहे थे , ...



कालिदास की ऋतुसंहार की लाइन,...



और अब यही बात थी हमारे रिश्ते में मेरे कहने के पहले ही वो सुन लेता था ,...

मैंने कहा ही होगा,...

उसने बात पूरी की,... अंग्रेजी में,...





थ्रिल्ड विद द फ्रेश अर्थ सेंटेड एयर


एंड द ड्रिप एंड ड्रिजल आफ फॉलिंग ड्राप्स

यूथफुल वीमेन एक्सप्रेस देयर ज्वाय आफ लाइफ

विद स्ट्रिंग्स ऑफ़ पर्ल्स ऑन देयर डेंटी ब्रेस्ट्स,

द सॉफ्ट व्हाइट लिनन ऑन देयर परफेक्ट हिप्स

एंड द ग्लैमर ऑफ द अनड्युलेंट वेस्ट लाइन,...





और लाइने पूरी होने के पहले पलंग से उतर के मेरे पास,...

लेकिन मेरे पास इतना समय था की मैं उसे देख कर मुस्करायी और मुड़ गयी, ... अब मेरे कड़े कड़े भारी नितम्ब उसकी ओर थे , और मेरा चेहरा खिड़की से बाहर निकला , बारिश की बूंदो से भीग रहा था,

उसे कुछ फरक नहीं पड़ता, उसे तो बस एक चीज चाहिए थी, ...

मैं,



जैसे पेड़ पौधे पत्तियां दीवालें सब कुछ , बूंदे उनसे चिपकी, उनमें घुलती मिलतीं,




बस उसी तरह वो भी मुझसे एकदम चिपका, एक हाथ मेरी कमर पर और दूसरा और कहाँ मेरे कड़े पीन पयोधर पर और वो मेरे नितम्बों से चिपका,

और हम दोनों उसी तरह इस बारिश के हिस्से थे जैसे भीगते, घर, पेड़ पौधे, पोखर, उसी तरह बिन बोले आल्हादित,

भीगती मैं और मुझे से सरक कर , मेरी देह के रस से भीगी गीली पानी की बूंदे उस की देह पर, उसे भिगोती,

बूंदो के पड़ने से मिट्टी की सोंधी सोंधी बारिश में घुली महक में मिली उसकी मैनली मैस्कुलिन महक मुझे पागल बना रही थी, ...



और तभी जोर से बादल कड़के , और लगता है वहीँ पास की बँसवाड़ी में ही बिजली,... देर तक बिजली चमकती रही देर तक रुक रुक कर


और मैं मुस्करा पड़ी , इस कमरे में दूसरी रात थी या शायद तीसरी रात थी और मैं किसी बात पर गुस्सा थी,... इनसे

( शुरू के दिनों में मैं इससे बहुत गुस्सा होती थी बात बात पर , शायद इस लिए इस के चेहरे पर जो घबड़ाहट आती थी और जिस तरह ये मनाते थे , बहुत अच्छा लगता था मुझे )
बाहर बादल थे , और तेजी से बिजली चमकी और मैं डर कर इनकी गोद में, इन्होने मुझे कस के भींच लिया मैं भी एकदम चिपक गयी, इनसे कस के मैंने इन्हे पकड़ लिया , और जब मेरा डर कुछ कम हुआ तो मैंने अपनी बड़ी बड़ी कजरारी आँखों से इनकी ओर मुस्कराते देखा,

ये भी मुस्करा रहे थे और मैं शर्मा गयी,
लेकिन लड़कियां कोई न कोई रास्ता ढूंढ लेती हैं ,

और मैं इसी ऋतू संहार की एक लाइन संस्कृत में ,...




लेकिन इस लड़के ने तुरंत अंग्रेजी में बात पूरी की,...



ओफेन द शीटेड लाइटनिंग

फालोड बाई अ डेफेनिंग क्रैश ऑफ़ थंडर,

एंड इट्स लिंगरिंग टेरिफाईंग साउंड,

स्केयर द यंग वाइफ़ इनटू लांगिंग

शी नेस्ल्स क्लोज एंड एम्ब्रॉसिंग हर लवर,

फारगिव्स द एरर ऑफ़ हिज वेज



और मैंने बारिश की फुहारों से भीगे अपने दोनों दोनों उरोजों पर खींच कर, उस लड़के के दोनों हाथ रख दिए , हम दोनों कुछ नहीं बोल रहे थे बस एक साथ बारिश की आवाज सुन रहे थे,

और उस के दुष्ट हाथों ने मेरे उरोजों को कुचलना मसलना दबाना रगड़ना शुरू कर दिया,

मन मेरा भी यही कह रहा था, जिस तरह ये घास की पत्तियां, बड़े बड़े पेड़ , बँसवाड़ी भीग रही हैं गीली हो रही हैं , मैं भी, ... उसी तरह, ...

बस मैं थोड़ा सा आगे की ओर झुक गयी खिड़की के सहारे, और केले के तने की तरह चिकनी मांसल अपनी दोनों जंघाओं को थोड़ा सा बहुत हलका सा फैला दिया,...इतना इशारा बहुत था,...
बहुत ताकत थी इस लड़के में,

मैं जोर से चीखी, खूब जोर से चीखी,,,, पर उस समय तेजी बादल गरजे, बिजली चमके,... और मेरी चीख बारिश की बूंदो में घुल गयी।

पर अब मेरी देह मेरी थोड़े थी, और जब पहली रात ही इस लड़के ने मन पर कब्ज़ा कर लिया तो बेचारे तन की क्या बिसात,...

मेरी प्रेम गली भी कस के अँकवार भर के कस के जैसे कोई बिछुड़े साजन का स्वागत करे, जोर जोर से उसके ' उसको' भींच रही थी, महसूस कर रही थी, हर बार एकदम नया, पहली बार जैसा लगता था,

जिस तरह पेड़ पौधे, बारिश की ताल पर हवाओं की धुन पर झूम रहे थे नाच रहे थे, बस अब उसी तरह मैं भी उन के साथ, ...

जितनी जोर से वो आगे की ओर, उतनी ही जोर से मैं पीछे की ओर, ...शरम झिझक सब बारिश में घुल गयी थी, और साथ में मेरी प्रेम गली मेरे साजन के चर्मं दंड को कस कस के दबोच भी रही थी,

और वो फिर और जोरसे , जितना जोर वो पीछे से मेरी चुनमुनिया में लगे रहे थे, उससे दूने जोर से मेरे बारिश से भीगते उरोजों को रगड़ने मसलने दबाने में , और ऊपर से मेरे हाथ उनके हाथों पर रोकते नहीं , बल्कि उकसाते, चढ़ाते, दबा दे जित्ती ताकत हो,

काले काले घने बादल न जाने कितने दिनों का रुका, इकठ्ठा पानी , पूरा जोर शश्य श्यामला धरती पर दिखा रहे थे ,

उसी तरह पीछे से वो मेरी मम्मी का दामाद भी, अपनी पूरी ताकत दिखा रहा था और ताकत थी भी बहुत उसके अंदर, और अभी तो पता नहीं कहाँ की ताकत,

सब कुछ जैसे रुका हुआ था
धरती भीग रही थी, गीली हो रही थी, आल्हादित हो रही थी,

मैं भी,

हम दोनों एक दूसरे में डूबे , नाचता मन मयूर,

बरसन लागि बदरिया झूम झूम के, ....

लेकिन बुरा हो इनकी सास का क्या क्या ट्रिक नहीं सिखाया क्या क्या नहीं खिलाया पिलाया अपने दामाद को , की उनकी बेटी का बुरा हाल कर दे,

बुरा हाल तो बुर का पहले भी ये लड़का पहले भी करता था इसी कमरे में लेकिन अब तो ,... थोड़ी देर में


मैं बरसती बदरियों से भी ज्यादा झूम रही थी, काँप रही थी , थरथरा रही थी , बारिश से भीगी हवा में कांपते पीपल के पत्त्ते की तरह कांप रही थी ,



पता उसे भी चल गया था मेरी हालत का , वो धीमे हो गया लेकिन रुका नहीं, मेरी देह ढीली हो गयी थी बस मैं लम्बी लम्बी साँसे ले रही थी , अब मुझे कुछ नहीं पता चल रहा था न कोई और बात , सिर्फ एक बात का अहसास था , ' वो' जड़ तक, पूरी तरह मेरे अंदर धंसा हुआ था , घुसा हुआ मैं एकदम फैली।

वो रुका तो लेकिन उसके होंठ, उँगलियाँ ,... उस बदमाश के तरकश में कोई सिर्फ एक तीर था,

बस थोड़ी देर में ही अब चुम्बनों की बारिश हो रही थी, मेरे कपोलों पर अधरों पर , उन्नत उरोजों पर निप्स पर,


साथ में काम सर्प की तरह उसकी उंगलिया रेंग रही थी कभी मेरी त्रिवली पर, पान से चिकने पेट पर , गहरी नाभी पर , तो कभी सीधे सरक कर मेरी मांसल केले के तने सी चिकनी जांघों पर ,

मैंने कहा न मैं अपनी देह कब की हार चुकी थी, ये जीत हार का खेल भी अजीब है , अपने को हार कर मैंने उसे जीत लिया था।


एक बार फिर मैं सिसक रही थी, पिघल रही थी,... वो बाहर निकला, पर फिर अंदर,



और अबकी , मैंने मुंह बनाया ना नुकुर की , लेकिन मेरी देह... मेरी टाँगे अपने आप फ़ैल गयीं , मेरे नितम्ब भी और वो मेरे पिछवाड़े, अपनी पूरी ताकत से, और साथ में मेरी प्रेम गली मेरे साजन के चर्मं दंड को कस कस के दबोच भी रही थी,
 
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बरसती बूंदों में, पिछवाड़े का मज़ा





और अबकी , मैंने मुंह बनाया ना नुकुर की , लेकिन मेरी देह... मेरी टाँगे अपने आप फ़ैल गयीं , मेरे नितम्ब भी और वो मेरे पिछवाड़े, अपनी पूरी ताकत से,

और अब मैं सब कुछ भूल गयी थी, कुछ भी नहीं दिख रहा था , दर्द से मेरी आँखे एकदम बंद हो गयी थीं, मैंने कस कर , पूरी ताकत से खिड़की के दोनों पल्लों को पकड़ लिया था , कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा था,

बस बारिश की बूंदो की टप टप सुनाई दे रही थी और मेरे पिछवाड़े धंसा हुआ, मुझे चीरता फाड़ता दर्द से फैलाता,

उस ने मेरी पतली कमर को पूरी ताकत से दबोच रखा था जैसे कोई शेर किसी हिरणी का शिकार कर रहा हो, मैं इंच भर भी नहीं हिल सकती थी,...अब मुझे भी मालूम था और उसे भी खेल के इस हिस्से में, दर्द सिर्फ दर्द,

दर्द ही मज़ा है,

दर्द लेनेवाली के लिए भी दर्द देने वाले के लिए भी और बेरहमी के बिना ये खेल होता भी नहीं। वो ठेल रहा था धकेल रहा था, गजब की ताकत थी मेरी मम्मी के दामाद में,


लेकिन मुझे मालूम था दर्द का असली द्वार तो अभी भी बाकी है, और उसे भी, पर इस दर्द को भुलवाने के लिए कुछ और दर्द का सहारा लेते हैं पर उसने मजे का सहारा लिया, अब मेरी देह का हर मंतर तो उसे मालूम पड़ गया था, बस. दो उँगलियाँ एक साथ पूरी जड़ तक तीनों पोर मेरी गुलबिया में और अंगूठा सीधे क्लिट पर, मेरी देह का हर इंच इंच उसने नाप रखा था , तो अंदर धंसी, घुसी दोनों उँगलियों को मेरी प्रेम गली के अंदर जी प्वाइंट ढूंढने में कोई दिक्क्त नहीं हुयी, और साथ में अंगूठे की क्लिट पर रगड़ घिस्स, आगे के मजे के आगे मैं पीछे का दर्द भूल गयी,


मेरी आँखे एक बार फिर खुल गयी थी, आसमान अभी भी काले घनघोर बादलों से घिरा था, एकदम घनघोर हाथ को हाथ न सूझे,



बड़ी जोर से बादल गरजे, गरजते ही रहे, गड़गड़ गड़गड़ , कहीं पास ही बिजली गिरी,

दर्द से मैं दहल उठी , पर पकड़ उसकी, ...


छल्ला पार,... और अब बिना पूरा अंदर किये, दुष्ट छोड़ने वाला नहीं ... मैं दर्द को पी गयी, घूँट घूँट, ...


लेकिन मैं भी उनकी सास की बेटी थी, कुछ देर में जैसे प्रकृति बारिश की ताल पर झूम रही नाच रही थी मैं भी उनके साथ, हिम्मत कर के उनके दो चार धक्कों के बाद एक दो धक्के मैं भी पीछे लगा देती कभी कस के अपने पिछवाड़े उस बदमाश को, मोटे खूंटे को अंदर भींच लेती, मुझे न मेरी कमर को दबोचे उसके हाथों का अंदाजा था , न झुक के मेरे गालों को चूमते होंठों का , सिर्फ मेरे पिछवाड़े धंसे घुसे मोटे बदमाश का , बदमाश तो वो नम्बरी था , लेकिन मीठा मीठा , खूब प्यारा सा,


मैं खिड़की पकड़ एकदम झुकी थी , निहुरी और वो मेरे ऊपर, अंदर धँसा , और उसकी ताकत बाहर चल रही तेज हवाओं का, झमक कर बरसते बादलों का का मुकाबला कर रही थी, और मेरा मरद २ २ होगा , २० भी नहीं, ... और मैं भी उनके साथ कभी धक्के का जवाब धक्के से तो कभी अपने नितम्बों को गोल गोल घुमाती, वो मेरे अंदर मेरे पिछवाड़े पूरी तरह जड़ तक धंसा घुसा फंसा, और मैं उससे एकदम चिपकी



जैसे सावन के झूले में ननद भौजाइयां बारी बारी से पेंग देती हैं न तो बस अब पेंग देने का काम मेरा था , अगर वो मेरी मम्मी के दामाद थे , तो मैं अपनी मम्मी की बेटी थी ,


कुछ देर में पिछवाड़े के उस खेल में हम दोनों साथ साथ, वो निकाल कर पूरी तेजी से तो मैं भी कस के उसे निचोड़ लेती, दबोच लेती अपने अंदर और कभी एक धक्का मैं भी पीछे की ओर, खूब मजे ले लेकर, ...

धक्के दोनों ओर से बराबर की तेजी से लग रहे थे,धक्कों की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी ,


थोड़ी देर पहले ही तो, इस बदमाश लड़के ने मेरे पिछवाड़े चूस चूस के चाट चाट के , बिना और कहीं छुए सिर्फ अपनी जीभ से मेरी हालत खराब कर दी थी,


और अब वही हालत उस लड़के के जादू के डंडे ने मेरी कर दी थी,


और कुछ देर में बाहर बारिश की बूंदे झड़ रही थीं ,


और अंदर मैं, बूँद बूँद , और फिर जैसे कोई बाँध टूट पड़ा हो,

मेरी देह काँप रही थी, मेरे कंट्रोल में नहीं थी , मैं सिसकती , कांपती रूकती और फिर दुबारा,...

जैसे बारिश रुकने के बाद भी पत्तियों पर से घर की अटारी पर से टप टप बूंदे चूती रहती हैं, बस उसी तरह बार बार , मेरी देह में एक लहर रूकती थी की दूसरी शुरू हो जाती थी ,

सावन भादों की बारिश की तरह, कभी धीमी कभी तेज पर बूँद टूटती नहीं, ...


लेकिन तभी जोर की आवाज हुयी कहीं पेड़ की डाल गिरी, और बिजली चली गयी. हम लोगों के कमरे में जल रही नाइट लैम्प की रौशनी गुल हो गयी और पंखा बंद।

एकदम घुप्प अँधेरा,
 
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टिप टिप बरसा पानी





लेकिन तभी जोर की आवाज हुयी कहीं पेड़ की डाल गिरी, और बिजली चली गयी. हम लोगों के कमरे में जल रही नाइट लैम्प की रौशनी गुल हो गयी और पंखा बंद।

एकदम घुप्प अँधेरा,


असल में एकदम अँधेरा तो नहीं था, जैसे झड़ झड़ के मैं थेथर हो गयी थी वही हालत मेरी सहेली कजरारी बदरियों की भी हो गयी थी और चांदनी का सांवला आवरण हल्का हो गया था, हलकी हलकी चांदी, बादलों के परदे को भेदकर छिटक रही थी जैसे नयी दुल्हन का रूप घूंघट के पार छलकता रहता है, देवरों नन्दोईयों को ललचाता रहता है,


एक पल के लिए ऊपर अपने कमरे के बारे में बता दूँ, एक दरवाजा तो था , जो सीढ़ी वाले कमरे से लगा था, जिस सीढ़ी की ओर इनके मायके आने के अगले दिन से ही मैं निहारती थी कब मौक़ा मिले और धड़ धड़ चढ़के मैं इस शैतान लड़के के पास आ जाऊं, एक खिड़की जो घर के पिछवाड़े की ओर थी, जिस ओर पेड़, थोड़ा सा खेत, एक छोटा सा पोखर , और एक दरवाजा था जो छत की ओर खुलता था, पर हमेशा बंद रहता था। पहले दिन से ही मुझे जेठानी ने दस बार बताया होगा , छत पर जाने की कोई जरूरत नहीं। आस पास कुछ घर भी थे , लेकिन हम लोगों के घर से सटे नहीं थोड़ी दूर, एक मकान सड़क के उस पार,...


आज वो दरवाजा भी खुला था, ... और बस थोड़ी देर में ये मुझे अपनी गोद में उठाकर छत पर,

घटाटोप अँधेरा, बूँद बूँद बरसता पानी, अँधेरे में छलकती हलकी हलकी चांदनी, और बड़ी सी छत पर भीगते हम दोनों, एक दूसरे को पकडे, एक दूसरे में डूबे,


और मैंने हलके हलके गाना शुरू कर दिया मेरा इनका दोनों का फेवरिट,

टिप टिप बरसा पानी

आहा हा हा हा आहा.. टिप-टिप बरसा पानी

टिप-टिप बरसा पानी

पानी ने आग लगाई

जल उठा मेरा भीगा बदन अब तू ही बताओ साजन मैं क्या करूं..



और उस दुष्ट लड़के के होंठ मेरे होंठों से सरक कर कुछ देर तक तो मेरे उभारों पर, मेरे कड़े खड़े पथराये निप्स पर, और फिर सीधे शहद के छत्ते पर

उसके हाथ कस के मेरे दोनों नितम्बों को पकडे थे , उसके दोनों होंठ मेरे मेरे भीगे कुछ पानी से कुछ रस से गीले निचले होंठों से चिपके

मुझे पागल करने को ये बारिश ही कम थी क्या की उसके होंठ भी,

बारिश एक बार फिर तेज हो गयी, मेरी सहेली लजीली बदरियों से चाँद की ये शरारत भरी लुका छिपी नहीं देखी गयी और एक बार फिर उन्होंने ने कस के उस की आँखे मूँद दी, ...



भीगते पानी में मैं छत पर लेटी , ये लड़का मेरा छाता बना मेरे ऊपर छाया,

मैंने कस के अपने भुजबंध में इसे बाँध रखा था,

कितनी बार, कैसे क्या, ... मुझे कुछ अहसास नहीं , बस मुझे अपने भीतर अपने चारों ओर इस लड़के का अहसास था, छत पर टप टप बरसती बूंदों का,



हाँ सुबह मेरी नींद खुली तो बस पंखा चल रहा था,बिजली आ गयी थी, दरवाजे खिड़किया अभी भी वैसे ही, ... ये पलंग पर नहीं थे ,... और अलसाते हुए सामने लगी मैंने मैडम टिकटिकी पर निगाह डाली



साढ़े नौ बज रहे थे।
 
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रितु पावस बरसै, पिउ पावा । सावन भादौं अधिक सोहावा॥
पदमावति चाहत ऋतु पाई । गगन सोहावन, भूमि सोहाई॥

कोकिल बैन, पाँति बग छूटी । धनि निसरीं जनु बीरबहूटी॥
चमक बीजु, बरसै जल सोना । दादुर मोर सबद सुठि लोना॥

रँग-राती पीतम सँग जागी । गरजे गगन चौंकि गर लागी॥
सीतल बूँद, ऊँच चौपारा । हरियर सब देखाइ संसारा॥

हरियर भूमि, कुसुंभी चोला । औ धनि पिउ सँग रचा हिंडोला


 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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aapki dwara likhe gaye har shabd hawaon mein bhi ek nasha bikhed de ki thoda sa jo ye nasha yun readers pe bhi chaane laga....
Haan yahi to hai wo wajah jo har update padhne mein aaye readers ko maza...
Aap jis tarah likhti hai... readers ko baithe bithaye jannat dikha de.... :bow:
Update ka har ek shadb jaise pehli barish ki bunde ki tarah hai..... padhte waqt lage ki kirdaar jaise ankhon ke samne bhumika nibha rahe ho.... Sach mein jis tarah se erotic roop mein bhumika nibha rahe hai kirdaar, readers ko majboor kar de unke sath judne ke liye... yahin to aapki lekhni ka jaadu hai.... aise hi likhti rahiye aur aur apni manoram lekhni se hum readers ka manoranjan karte rahiye :bow:
naye post kiye sabhi Update bahot hi dilchasp aur dilkash the...
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills komaalrani ma'am :applause: :applause:
 

Naina

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रितु पावस बरसै, पिउ पावा । सावन भादौं अधिक सोहावा॥
पदमावति चाहत ऋतु पाई । गगन सोहावन, भूमि सोहाई॥

कोकिल बैन, पाँति बग छूटी । धनि निसरीं जनु बीरबहूटी॥
चमक बीजु, बरसै जल सोना । दादुर मोर सबद सुठि लोना॥

रँग-राती पीतम सँग जागी । गरजे गगन चौंकि गर लागी॥
सीतल बूँद, ऊँच चौपारा । हरियर सब देखाइ संसारा॥

हरियर भूमि, कुसुंभी चोला । औ धनि पिउ सँग रचा हिंडोला


Bahot khubsurat kavita hai komal ma'am :superb:
 

komaalrani

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aapki dwara likhe gaye har shabd hawaon mein bhi ek nasha bikhed de ki thoda sa jo ye nasha yun readers pe bhi chaane laga....
Haan yahi to hai wo wajah jo har update padhne mein aaye readers ko maza...
Aap jis tarah likhti hai... readers ko baithe bithaye jannat dikha de.... :bow:
Update ka har ek shadb jaise pehli barish ki bunde ki tarah hai..... padhte waqt lage ki kirdaar jaise ankhon ke samne bhumika nibha rahe ho.... Sach mein jis tarah se erotic roop mein bhumika nibha rahe hai kirdaar, readers ko majboor kar de unke sath judne ke liye... yahin to aapki lekhni ka jaadu hai.... aise hi likhti rahiye aur aur apni manoram lekhni se hum readers ka manoranjan karte rahiye :bow:
naye post kiye sabhi Update bahot hi dilchasp aur dilkash the...
Let's see what happens next
Brilliant update with awesome writing skills komaalrani ma'am :applause: :applause:


Thanks Naina Ji,

This post is entirely spurred by your encouraging comments on the last page, your gracing this thread has invigorated both, this story and me. Savan has always felt me like one of the most erotic seasons, just like Phagun.

Thanks again,...
 
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