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अपडेट पोस्टेड - एक मेगा अपडेट, जोरू का गुलाम - भाग २३९ -बंबई -बुधवार - वॉर -२ पृष्ठ १४५६
कृपया पढ़ें, आनंद लें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें
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Search jkg on titbut they have some old stories of exbii.Try using opera browser with vpn,and use xforum instead of exforum.ms word on mobile phone doesn't allow to post in Hindi fonts.I fully agree but i am aware about this issue, anything with INCEST tag in the story is likely to garner million eyeballs just because of the tag,... and erotica is shunned, in the erotica category there are only three stories which have more than 1 million views ( two of them are mine , this one and mohe rang de) but in the incest tag there are dozens and dozens.
I am not aware about any forum where they had published my original version. You need not give the link but may be can share the name if moderators permit and they dont permit they will certainly delete it . So i have a handful of readers but they are my friends and lovers of this genre. I have nothing against incest as a genre but preference of most of the readers as you mentioned is clear. Now, after your suggestion, may be as i am reaching here the place where monologue happened and i too like that, so may be i will share it in this story itself, ( not as a part of story but with a footnote and history and i am sure my readers will appreciate it. ) Thanks again. But meanwhile my story is being threatened by some problem in this forum which i had mentioned before and i use a lappy with a very convoluted way of writing. I type in google internet tools in Hindi save in MS word, check it and then from there after opening this forum transfer it from MS word and if their are some suggestions and i want to incorporate again i make changes. I have created a library of jpg,png and gif ( mostly non-erotic) and from there pic pictures to add.
and i am not very smart in typing on smart phones so please have a look
Abhi na jao chod k.....भाग १५२
वापसी की तैयारी
Bhut hi shandaar update bhabhi.....भाग १५२
वापसी की तैयारी
और मेरी निगाह एक बार फिर दीवाल पर टंगे कैलेण्डर पर चिपकी थी , आज बुधवार ,आज हम लोग दो तीन घंटे में इनकी बुलबुल को लेके अपने घर पहुँच जायेंगे।
और बृहस्पतिवार ,शुक्रवार , उसके ठीक एक हफ्ते बाद , अगले शुक्रवार को मम्मी मेरी सास को लेके दोपहर तक हमारे घर पहुँच जाएंगी।
जैसा तय था ,एक दो दिन पहले ही इनकी किशोर बहन ,मेरी ननद गुड्डी रानी मेरे गाँव ,
शुक्रवार को ,
मेरी जेठानी कोठे पर चढ़ जाएंगी ,.... रात भर एक से एक मोटे लौंड़े घोंटेंगीं।
मेरी सास उस दिन रात में अपने बेटे का , जिस भोंसडे से ये निकले हैं उसी भोंसडे में इनका ,..
वो भी मेरे और इनकी सास के सामने ,..... गपागप सास मेरी घोंटेंगी।
मैंने आने वाले ११ दिन बाद के शुक्रवार को , लाल रंग से घेर दिया।
दिया ने जेठानी को ब्लाउज दे दिया था , वही जिसकी नाप कल दिया ने मॉल में दिलवाया था और बाद में सिल कर दिया को मिला था।
हाँ ब्रा नहीं दिया ,लेकिन उस ब्लाउज के साथ ब्रा पहनी भी नहीं जा सकती थी। सिर्फ दो ढाई इंच की पट्टी मुश्किल से ,पीछे से एकदम बैकलेस बस एक पतली सी डोरी , आगे से भी बस जेठानी के भारी भारी गदराये उभारों को बस जैसे वो सपोर्ट कर रही थी , निप्स भी आधे दिख रख थे। पूरा क्लीवेज , सब उभार का कड़ापन ,कटाव ,शेप साइज ,सब कुछ।
जेठानी अपना वो ब्लाउज पहन ही रहे थीं की बाहर हंसने खिलखिलाने की आवाज सुनाई पड़ी ,
गुड्डी और उसके भइया ,मेरे सैंया।
तब मुझे याद आया की वो दोनों सामान पैक करने गए थे ,पता नहीं कुछ सामान छोड़ न दिया हो और अब चलने का भी टाइम हो रहा था।
" हे ऊपर खाली चुम्मा चाटी अपने भैय्या के साथ कर रही थी या पैकिंग भी ,.. "
" देखिये ना ,आपका सारा सामान ,.. " गुड्डी हँसते हुए बोली।
सच में मेरा सूटकेस इनके हाथ में था और बैग भी था।
" और तेरे कपडे ,... तू भी तो अपना सामान पैक करके लायी थी न सुबह ,..तेरे कपडे . " मैंने गुड्डी को याद दिलाया।
और जवाब कमरे के अंदर से आया ,दिया और गुड्डी की बड़की भाभी एक साथ हँसते बोलीं ,
" ये क्या करेगी कपडे , ... इसके भैय्या इसको कपडे पहनने देंगे तब न। "
" क्यों इसी लिए कपडे यहीं छोड़ के चल रही थी ,.. " मैं क्यों अपनी ननद को छेड़ने का मौक़ा छोड़ देती।
गुड्डी बिचारी ,... जोर से ब्लश किया उसने ,और उसके ब्लश करते गालों को चूमने का मौका कौन भाभी छोड़ देती।
तो मैंने चूम लिया और ऊपर अपने कमरे में ,लेकिन मेरा मन कही और था।
अगर मेरी इस दुष्ट जेठानी की चाल चल गयी होती ,
तो मुस्कराती खिलखलाती मेरी ननद और मेरे सैयां ,.... दोनों के मुंह लटके होते। सिर्फ इस बार नहीं हमेशा के लिए दोनों के मिलने का चांस ख़तम हो जाता ,जो वो जब से हाईस्कूल में आयी ,तब से उसकी कच्ची अमियों को देख के ललचा रहे थे ,वो सब बस ,
एक बार अगर मेरी जेठानी मेरी सासु को पटा लेती और वो गुड्डी के घर वालों को मना कर देतीं तो फिर हम लाख कोशिश कर लेते , ...गुड्डी यहीं पढ़ती और जेठानी की ताबेदार बन के , .. मेरी कभी हिम्मत नहीं पड़ती न जेठानी से आँखे मिलाने की न गुड्डी से।
और ये बिचारे , मैं कितने दिनों से इन्हे चिढ़ा भी रही थी , चढ़ा भी थी की मैं अपनी ननद के ऊपर इन्हे चढ़ा के ही मानूंगी ,... वो सब ख्याल ख्याल ही रह जाता।
लेकिन सब मेरी जेठानी का प्लान धरा का धरा रह गयामेरे साजन की इतने दिनों की चाहत अब पूरी होनेवाली है ,बेचारी जेठानी।
और ये सब दिया का करा धरा था , उसकी प्लानिंग एकदम पक्की।
मम्मी ने मुझे वार्न भी किया था की अगर मैं गुड्डी को ले कर चली भी जाउंगी तो जब तक मैं जेठानी का कोई पक्का इंतजाम नहीं करुँगी , तो वो बाद में भी ,...
और दिया ने मुझे पूरा भरोसा दिलाया ,... वो तो रहेगी न यहां।
और जिस तरह चम्पा बाई के कोठे वाला उसने प्लान रचा , खुद जेठानी के मोबाईल से और फेसबुक पर भी , अब जेठानी जाल में पूरी तरह फंसी थी।
मैं ऊपर अपने कमरे में पहुँच गयी थी।
सच में गुड्डी और इन्होने पैकिंग पूरी तरह की थी , गुड्डी के सूटकेस के अलावा कुछ भी नहीं था।
लेकिन मेरा दिमाग जेठानी में लगा था , ये जरूरी था की ११ दिन बाद शुक्रवार को वो चंपा बाई के कोठे पर एक बार , ... लेकिन उसके लिए जरूरी था की मेरी सास मम्मी के साथ , ११ दिन बाद शुक्रवार को दोपहर तक हम लोगों के घर पहुँच जाए , तभी तो।
मम्मी भी मेरी,
किस तरह सास को उन्होंने शीशे में उतारा ,...
चिढ़ाती तो वो पहले से थीं इनको मादरचोद कह के और मुझसे उन्होंने बोला था की इसे बहनचोद बनाने की जिम्मेदारी तेरी है,
तो मैं क्यों पीछे रहती मैं ने भी उन्हें चढ़ा दिया
"लेकिन ठीक है मम्मी ,उसके बाद मादरचोद बनाने की जिम्मेदारी आपकी। "