arushi_dayal
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Part 8Part 7
भाभी तुम अब मेरी टांगों में आओ
पकड़ के मेरा लौड़ा मुँह ने घुसाओ
मेरा लौड़ा मांगे है तुम्हारा दुलार
होठों में लेकर जरा इसको प्यार
आ गई अब मैं उसकी टांगों के बीच
आंखो मैं देख उसकी पैंट लेई खींच
मेरी नज़रो के आगे था ऐसा नज़ारा
काले नाग का जैसा खुला हो पिटारा
देख के उसका मोटा लम्बा सा लंड
मेरे प्यासे कलेजे को पड़ गई ठंड
इतना कड़क था ज़ालिम का लौड़ा
पकड़ा हो जैसे मैंने लोहे का हथौड़ा
चमड़ी से जब बाहर निकला सुपाड़ा
लगे कोई मोटा पहाड़ी आलू बुखारा
पकड़ के उसे प्यार से मैं सहलाऊ
होठों से चुमू और गालो पे लगाऊ
दिल मेरा चाहे लौड़े से जी भर के खेलु
अपने मुलायम लाल सुर्ख होठों में लेलू
भाभी जरा अब तुम भी मेरे पास आओ
अपनी प्यासी मुनिया मुझे तुम दिखाओ
जिसे कितने सालो से मुझको सताया
जिसे सोच मैंने है कितना पानी बहाया
पहले तो उसने मुझको खींचा अपने करीब
फ़िर मेरी गिल्ली चूत पे रख दी उसने जीभ
देवर ने जैसे ही नीचे अपनी चलायी जुबान
मेरे मुँह से आह ऊह की बजने लगी थी तान
सिर पकड़ के मैं चूत में घुसाने लगी
बालो में उसके उंगली फिराने लगी
चूत में मस्ती से रस पिघलने लगा
देवर चटोरा चाट उसे निगलने लगा
मेरी बहती चूत का पी गया सारा रस
बिना चोदे ज़ालिम ने मेरी करादी बस