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मार्च तक का टारगेट था ,लेकिन तब तक उन्होंने सजेस्ट किया नहीं चलिए अगस्त तक बढ़ा देती हूँ अब पंच लोग ही उन्हें समझाएं बुझाएंशायद डॉ राजी कोई शीर्षक सजेस्ट कर दें तो....
मार्च तक का टारगेट था ,लेकिन तब तक उन्होंने सजेस्ट किया नहीं चलिए अगस्त तक बढ़ा देती हूँ अब पंच लोग ही उन्हें समझाएं बुझाएंशायद डॉ राजी कोई शीर्षक सजेस्ट कर दें तो....
कभी कभी टाइमर भी सेट रहता है, दस मिनट से ज्यादा नहींशेरनियों के पंजे में शिकार...
अभी वो खिजा खिजा के खेल रही हैं....
बहनों का नाम ले लेकर छेड़ रही हैं...
लेकिन स्टैचू के केस में जब तक ओवर नहीं बोलते तब तक स्टैचू हीं रहना पड़ता है...
फिर आनंद बाबू स्टैचू से निजात पा के कैसे अपने हाथों को हरकत दे पाए....
लोग भाभियों को बुरा भला कहते हैं लेकिन अभी से अपनी होने वाली ननद का कितना ख्याल रख रही हैं गुड्डी और रीत, ये नहीं की अकेले अकेले खुद ही सारा मजा“आ ना मेरी माँ। क्या वहां से। देख ना तेरे यार ने कितनी कसकर दबोच रखा है। प्लीज गुड्डी। अगर ना आई ना। तो जब तेरी फटेगी ना। तो मैं भी ताली बजाऊँगी…” रीत ने फिर पुकार लगायी।
ताली बजाउंगी नहीं मोटी ताली पकड़ के लगवाउंगी...
वो भी बिना तेल-पानी के...
“हे। हे अच्छा, आएगी ना वो तुम्हारी बहना कम रखैल मेरी पकड़ में। ना अपने सारे भाईयों को चढ़वाया उसके ऊपर। एक निकालेगा दूसरा डालेगा। एक आगे से एक पीछे से…” उसकी गालियां भी मजे दे रही थी, लेकिन उसकी बात गुड्डी ने पूरी की।
“और एक मुँह में…” गुड्डी अब तक पास आ गई थी।
तीनों छेद की बुकिंग पक्की हो गई...
साथ में रॉकी फ्री फ्री फ्री...
देश तरक्की कर रहा है तो जोबन ही क्यों पीछे रह जाएँ“ये कोई तरीका है किसी जवान लड़की से पेश आने का। मेरी तो इत्ती कस-कसकर दबा रहे थे की अब तक दुःख रहा है और उसकी। फूल से छू रहे हो। क्या मजा आएगा बिचारी को और फागुन में सब लोग बनारस में एकदम खुल्लम खुल्ला बोलते हैं और तुम…”
अब तो चंदा भाभी के साथ साथ रीत का भी समर्थन मिल गया...
गुड्डी के बत्तीस से चौंतीस बनाने का कार्यक्रम चालू...
हर मामले में , लेकिन ऐन मौके पे कोई न कोई आ ही जाता हैगुड्डी- “हे हे। क्या करते हो?” कहकर वो नखड़ा दिखा रही थी।
यही नखड़ा .. ठिनकना तो औरतों का गहना है...
अंदर मन तो करता है लेकिन मुँह से...
और आनंद बाबू को चंदा भाभी ने पूरा सिखा पढ़ा दिया है...
तो अब सारी शरम.. गायब करने की जिम्मेदारी भी निभानी है...
“रीत इज बेस्ट…” मैंने उसके कान में फुसफुसाया।
जवाब में वो सिर्फ सिसक दी। खुली छत। लेकिन मैं जैसे पागल हो रहा था। थोड़ा सा बरमूडा सरका के मैंने अपना हथियार सीधे,
“ओह्ह… नहीं फिर कभी अभी नहीं…” वो सिसकियां भर रही थी। लेकिन साथ ही उसने अपनी टांगें चौड़ी कर ली।
सचमुच ... रीत इज बेस्ट....
रीत की दोस्ती, रीत का सिखाना पढ़ानाअब तो हेडमास्टरनी के सामने सबकी बोलती बंद...
किसने किया जवाब देना भारी...
लेकिन आनंद बाबू ने दोनों को साफ बचा लिया....
और सामने हाथों के थापे ने उन एविडेंस की पुष्टि कर दी...
“क्या मस्त रसीला रसगुल्ला है। क्यों अकेले-अकेले…”
शायद दूबे भाभी... चंदा भाभी के रात में हुए कारनामे को भांप गई....
ऊंट की चोरी निहुरे निहुरे,सच कहूँ तो दो चार शब्द चुराने आया था अपने लिये
लेकिन हाय रे लेखनी , आप लिखतीं नहीं बल्कि दिल पर गोदतीं हैं
फिर वो गुदगुदी और आलस होती है , अन्गडाईया उठने लगती है , मिजाज खुश , होठ खिल जाते है और दुनियादारी वो क्या होती है मन होता है कि चादर ओढ़ कर सो जायें ।
इसी आलस मे बाकी कहानियों भी छूट रखी है ।
अत: अब आपसे अनुरोध है कि ऐसा कोई टानिक बता दो कि एक सांस मे आपकी कहानियां पढ लूँ
खैर शुरुवात हुई है पहले अपडेट से देखता हु कहा तक हुन्कारि भर पाता हु
हाय मेरी निन्दिया रे !!
Great.Next part soon