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फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
मैं, गुड्डी और होटल
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Bahoot bahoot dhabyaavd aapko ye parts acche lage aapne like bhi kiya comment bhi diyaBahut mast likha hai komal ji. Mazaa aa raha hai.
Thanks so much, aap ka support meri har story par rahata hai, a great writer supprting my stories, isase baaki readers ka bhi confidence bhi badhata haiAwesome super duper gazab updates, the best writing
I agree with you fans always remember Doctor Sahiba. Story band hone rukne ke baad bhi Views badh rahe hain, 30 lakh paar ho gaya it shows readers loveOk, np Madam.. fully understand it...take your time. Your fans will certainly wait...
No other meaning pls...thanks and take care.
Rajizexy
Ekdm is story men Reet ka important role hai, Thrill men bhi Romance men bhiReet ki trening. Amezing. Jabardast. Maza aa gaya. Aage reet ko bhi to leed karna he.
Reet ke bahoot se scenes hain 6-7 parts ke baad Reet story men aati hai aur chaa jaati haiAmezing reet ka action likha he Komalji. Trening bhi real ke jese. Isme bhi jeet bahot mushkil. Superb. Lady leed karti he. Vo jyada mazedar he.
Thanks so much, Part 1 aur 2 par aapke detailed comment ka intezaar rahegaZalak me bhi kahani maze de rahi he. Me vo bhi padhungi. Kuchh update to 2 bar padhe.
Are yaar komalji man gae aap ko. Kya shararat he. Amezing mohe rang de me sajan vali alag alag fantasy di. Chhutki ki story se female co cold fantasy. JKG se aapne vo mistrias fantasy. Aur dewar vala aur nandiya vala maza to sab me padha. Par ye chhitthi ka kissaa to ekdam alag hi he. Superbफागुन के दिन चार भाग 1
फागुन की फगुनाहट
भाभी की चिट्ठी
--8128
=
“मेरे देवर कम नंदोई,
सदा सुहागन रहो, दूधो नहाओ पूतो फलो,
तुमने बोला था की इस बार होली पे जरूर आओगे और हफ्ते भर रहोगे तो क्या हुआ? देवर भाभी की होली तो पूरे फागुन भर चलती है और इस बार तो मैंने अपने लिए एक देवरानी का भी इंतजाम कर लिया है, वही तुम्हारा पुराना माल। न सतरह से ज्यादा न सोला से कम। क्या उभार हो रहे हैं उसके।
मैंने बोला था उससे की अरे हाई स्कुल कर लिया पिछले साल, अब इंटर में चली गयी हो तो अब तो इंटरकोर्स करवाना ही होगा, तो फिस्स से हँसकर बोली-
“अरे भाभी आप ही कोई इंतजाम नहीं करवाती। अपने तो सैयां, देवर, ननदोइयों के साथ दिन रात और।“
तो उसकी बात काटकर मैं बोली अच्छा चल आ रहा है होली पे एक, और कौन तेरा पुराना यार, लम्बी मोटी पिचकारी है उसकी और सिर्फ सफेद रंग डालेगा। एकदम गाढ़ा बहुत दिन तक असर रहता है।
तो वो हँसकर बोली की ,”अरे भाभी आजकल उसका भी इलाज आ गया है चाहे पहले खा लो चाहे अगले दिन। बाद के असर का खतरा नहीं रहता,”
और हाँ तुम मेरे लिए होली की साड़ी के साथ चड्ढी बनयान तो ले ही आओगे, उसके लिए भी ले आना और अपने हाथ से पहना देना। मेरी साइज तो तुम्हें याद ही होगी। मेरी तुम्हारी तो एक ही है। 34सी और मालूम तो तुम्हें उसकी भी होगी। लेकिन चलो मैं बता देती हूँ। 30बीबी हाँ होली के बाद जरूर 32 हो जायेगी…”
फागुन चढ़ गया था, फगुनाहट शुरू हो गयी थी, होली कुछ दिन बाद ही थी। भाभी की इस चिठ्ठी पर उसी का असर था, ... मैं अभी ट्रेनिंग में था, पिछले साल ट्रेनिंग में होली में छुट्टी नहीं मिल पायी थी, पर अब कुछ दिनों बाद ही ट्रेनिंग खतम होने वाली थी और मैंने बोला था की अबकी होली में जरूर आऊंगा और हफ्ते भर कम से कम,... छुट्टी मिल भी गयी थी भाभी की चिट्ठी में उसी का दावतनामा था, होली में घर आने का।
मैं समझ गया की भाभी चिट्ठी में किसका जिकर कर रही थी। मेरी कजिन, हाईस्कूल पास किया था उसने पिछले साल। अभी इंटरमीडिएट में थी. जब से भाभी की शादी हुई थी तभी से उसका नाम लेकर छेड़ती थी, आखिर उनकी इकलौती ननद जो थी। शादी में सारी गालियां उसी का बाकायदा नाम लेकर, और भाभी तो बाद में भी प्योर नानवेज गालियां। पहले तो वो थोड़ा चिढ़ती लेकिन बाद में,… वो भी कम चुलबुली नहीं थी।
कई बार तो उसके सामने ही भाभी मुझसे बोलती, हे हो गई है ना लेने लायक, कब तक तड़पाओगे बिचारी को कर दो एक दिन। आखिर तुम भी 61-62 करते हो और वो भी कैंडल करके, आखिर घर का माल घर में। पूरी चिट्ठी में होली की पिचकारियां चल रही थी। छेड़-छाड़ थी,मान मनुहार थी और कहीं कहीं धमकी भी थी। मैंने चिट्ठी फिर से पढ़नी शुरू की।
“माना तुम बहुत बचपन से मरवाते, डलवाते हो और जिसे लेने में चार बच्चों की माँ को पसीना आता है वो तुम हँस हँसकर घोंट लेते हो। लेकिन अबकी होली में मैं ऐसा डालूंगी ना की तुम्हारी भी फट जायेगी, इसलिए चिट्ठी के साथ 10 रूपये का नोट भी रख रही हू, एक शीशी वैसलीन की खरीद लेना और अपने पिछवाड़े जरूर लगाना, सुबह शाम दोनों टाइम वरना कहोगे की भाभी ने वार्निंग नहीं दी…”
लेकिन मेरा मन मयूर आखिरी लाइनें पढ़कर नाच उठा-
“अच्छा सुनो, एक काम करना। आओगे तो तुम बनारस के ही रास्ते। रुक कर भाभी के यहाँ चले जाना। गुड्डी की लम्बी छुट्टी शुरू हो रही है, उसके स्कूल में बोर्ड के इम्तहान का सेंटर पड़ा है, तो पूरे हफ्ते दस दिन की होली की छुट्टी,... वो होली में आने को कह रही थी, उसे भी अपने साथ ले आना। जब तुम लौटोगे तो तुम्हारे साथ लौट जायेगी…”
चिठ्ठी के साथ में 10 रूपये का नोट तो था ही एक पुडिया में सिंदूर भी था और साथ में ये हिदायत भी की मैं रात में मांग में लगा लूं और बाकी का सिंगार वो होली में घर पहुँचने पे करेंगी। आखिरी दो लाइनें मैंने 10 बार पढ़ीं और सोच सोचकर मेरा तम्बू तन गया
Kasam se jaan le logo. Kya seen create kiya he. Kawari jawani ka amezing cinema hall ka andhera. Aur amezing x erotica. Sath me romantic conversation superbगुड्डी -बनारस वाली
गुड्डी- देखकर कोई कहता बच्ची है। मैं भी यही समझता था लेकिन दो बातें।
एक तो असल में वो देखने से ऐसी बच्ची भी नहीं लगती थी, सिवाय चेहरे को छोड़के। एकदम भोला। लम्बी तो थी ही, 5’3” रही होगी। असली चीज उसके जवानी के फूल, एकदम गदरा रहे थे, 30सी।
और दूसरी मेरे सामने डेढ़ साल पहले का का दृश्य नाच उठा। मेरा सेलेक्शन हो गया था, रैंक भी अच्छी थी और मैं श्योर था की कैडर भी मुझे होम कैडर यू पी का मिल जाएगा। फर्स्ट अटेम्प्ट था.पूरे घर में मेरी पूछ भी बढ़ी हुई थी। गर्मियों की छुट्टियां चल रही थी और गुड्डी भी आई थी।
सब लोग पिक्चर देखने गए। डिलाईट टाकिज, अभी भी मुझे याद है। कोई पुरानी सी पिक्चर थी। रोमांटिक। हाल करीब खाली सा था। घर के करीब सभी लोग थे। गुड्डी मेरे बगल में ही बैठी थी। हम लोग मूंगफली खा रहे थे। सामने एक रोमांटिक गाना चल रहा था, उसने मेरा हाथ पकड़कर अपने सीने पे रख लिया।
गुड्डी अच्छी तो लगती ही बल्कि बहुत अच्छी लगती थी और खासतौर से उसके चूजे से जस्ट आ रहे उभार, मैं चुपके चुपके नजर चिपकाए रहता था वही, पर जैसे गुड्डी मेरी ओर नजर करती, मैं आँखे हटा लेता। लेकिन क्या मुझे मालूम था की जवान होती लड़कियों की एड़ी में आँख होती है और कौन नजरों से उन्हें दुलरा रहा है, उनकी नजरें देख लेती। लेकिन मेरी आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ती थी और ये बात वो भी समझ गयी थी।
मैं कुछ समझा नहीं और वहीं हाथ रहने दिया। अच्छा तो बहुत लग रहा था लेकिन आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। थोड़ी देर रहकर उसने दूसरे हाथ से मेरा हाथ हल्के से दबा दिया।
अब मैं इत्ता बुद्धू तो था नहीं। हाँ ये बात जरूर थी की अब तक न तो मेरी कोई गर्लफ्रेंड थी ना मैंने किसी को छुआ वुआ था। मैंने दोनों ओर देखा सब लोग पिक्चर देखने में मशगूल थे। यहाँ तक की गुड्डी भी सबसे ज्यादा ध्यान से देख रही थी।
अब मैंने हल्के से उसके उभार दबा दिए।
उसके ऊपर कोई असर नहीं पड़ा और वो सामने पिक्चर देखती रही और मुझसे बोली, हे जरा मूंगफली बगल में पास कर दो, सब तुम ही खाए जा रहे हो और मैंने बगल में जो मेरी कजिन बैठी थी उसे दे दिया।
थोड़ी देर में गुड्डी ने फिर मेरा हाथ दबा दिया। अब इससे ज्यादा सिगनल क्या मिलता। मैंने उसके छोटे-छोटे चूचियों हल्के से सहलाए फिर दबा दिए और अबकी कसकर दबा दिया। वो कुछ नहीं बोली लेकिन थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ मेरे जीन्स के ऊपर रख दिया।
लेकिन तभी इंटरवल हो गया। हम सब बाहर निकले। वो कोर्नेटो के लिए जिद्द करने लगी और मेरी कजिन ने भी उसका साथ दिया। मैंने लाख समझाया की बहुत भीड़ है स्टाल पे लेकिन वो दोनों। कूद काद के मैं ले आया। लेकिन दो ही मिली। उन दोनों को पकड़ाते हुए मैंने कहा, लो दो ही थी मेरे लिए नहीं मिली।
तब तक पिक्चर शुरू हो गई थी और मेरी कजिन आगे चली गई थी, कोरेनेटो लेकर। लेकिन गुड्डी रुक गई और अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाकर बोली, तुम मेरी ले लेना ना।
मैंने उसी टोन में जवाब दिया, लूँगा तो मना मत करना। इंटरवल के पहले जो हुआ मेरी हिम्मत बढ़ रही थी।
उसने भी उसी अंदाज में जवाब दिया, मना कौन करता है। हाँ तुम्ही घबड़ा जाते हो। बुद्धू
और वो हाल में घुस गई। मैं सीट पे बैठ गया तो वो मेरी कजिन को सुना के बोली, कुछ लोग एकदम बुद्धू होते हैं, है ना। और उसने भी उसकी हामी में हामी भरी और खिस से हँस दी। मैं बिचारा बीच में।
कोरेनेटो की एक बाईट लेकर उसने मुझे पास की और बोलि- देखा मैं वादे की पक्की हूं, ले लो लेकिन थोड़ा सा लेना।
मैंने कसकर एक बाईट ली उसी जगह से जहां उसने होंठ लगाए थे और हल्के से उसके कान में फुसफुसाया- मजा तो पूरा लेने में है।
जवाब उसने दिया- मेरी जांघ पे एक कसकर चिकोटी काटकर, ठीक ‘उसके’ बगल में। और मुझसे कार्नेटो वापस लेकर। बजाय बाईट लेने के उसने हल्के से लिक किया और फिर अपने होंठों के बीच लगाकर मुझे दिखाकर पूरा गप्प कर लिया।
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अगले दिन तो हद हो गई।
Sare sabd to aap pahele hi le chuki. Amezing kawarepan ki bekararari he. Dill khush ho gaya. Vo light jane par char pai se char pai satane vala erotic seen tha. Vo to mano jaan hi le lega. Jabardastगुड्डी
देह की नसेनी
अगले दिन तो हद हो गई।
गरमी के दिन थे। भैया भाभी ऊपर सोते और हम सब नीचे की मंजिल पे।
एक दिन रात में बिजली चली गई। उमस के मारे हालत खराब थी। मैंने अपनी चारपायी बरामदे में निकाल ली। थोड़ी देर में मेरी नींद खुली तो देखा की बगल में एक और चारपाई। मेरी चारपाई से सटी। और उसपे वो सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। हल्की-हल्की खर्राटे की आवाजें। मैंने दूसरी ओर नजर दौड़ाई तो एक-दो और लोग थे लेकिन सब गहरी नींद में।
मैंने हिम्मत की और चारपाई के एकदम किनारे सटकर उसकी ओर करवट लेकर लेट गया और सिर से पैर तक चद्दर ओढ़े। थोड़ी देर बाद हिम्मत करके मैंने उसकी चद्दर के अंदर हाथ डाला। पहले तो उसके हाथ पे हाथ रखा और फिर सीने पे। वो टस से मस नहीं हुई। मुझे लगा की शायद गहरी नींद में है। लेकिन तभी उसके हाथ ने पकड़कर मेरा हाथ टाप के अंदर खींच लिया। पहले ब्रा के ऊपर से फिर ब्रा के अंदर।
पहली बार मैंने जवानी के उभार छुए थे। समझ में ना आये की क्या करूँ। तभी उसने टाप के ऊपर से अपने दूसरे हाथ से मेरा हाथ दबाया, फिर तो।
कभी मैं सहलाता, कभी हल्के से दबाता, कभी दबोच लेता। दो दिन बाद फिर पावर कट हुआ। अब मैं बल्की पावर कट का इंतजार करता था और उस दिन वो शलवार कुरते में थी। थोड़ी देर ऊपर का मजा लेने के बाद मैंने जब हाथ नीचे किया तो पता चला की शलवार का नाड़ा पहले से खुला था। पहली बार मैंने जब ‘वहां’ छुआ तो बता नहीं सकता कैसा लगा। बस जो कहा है ना की गूंगे का गुड बस वही। सात दिन कैसे गुजर गए पता नहीं चला।
कुछ कुछ होता है टाइप जो टीनेज में होता है बस वो शुरू हो गया था, वो टीनेज की मझधार में थी, और मेरे भी टीनेज गुजरे बहुत दिन नहीं हुए थे।
उसे देखकर मुझे कुछ कुछ होता है, मुझसे पहले उसे पता चल गया था।
चार आँखों का खेल चलता रहता था, बस देखना, मुस्कराना और बात जो जबान तक आ के रुक जाए वही हालत थीं, वो सोचती थी मैं कुछ बोलूंगा पर मैं कभी शेरो का सहारा लेता,
क्या पूछते हो शोख निगाहों का माजरा,
दो तीर थे जो मेरे जिगर में उतर गये।
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कौन लेता है अंगड़ाइयाँ,
आसमानों को नींद आती है।
और फिर वो क्या जबरदस्त अंगड़ाई लेती थी, दोनों कबूतर लगता था पिंजरा तोड़ के उड़ जाएंगे, उभार, कड़ाव, ऊंचाई,... और वो जानती थी क्या असर होता था उसका। तम्बू तन जाता था मेरा और वो बेशर्मी से देखती मुस्कराती,
कभी चिढ़ा के बोलती, होता है, होता है। कभी मैंने ज्यादा शायरी की बात करता तो मेरी नाक पकड़ के हिला के बोलती,
" मुझे शेर वेर नहीं मालूम, सर्कस में देखा था। लेकिन एक चीज मालूम है की जो बुद्धू हैं वो बुद्धू ही रहते हैं।"
और मैं उसकी आँखों में डूब जाता।
लेकिन उसे मालूम था की देह की नसेनी लगा के ही मन की गहराई में उतर सकते है, प्यार के अरुण कमल को पाने के लिए,, बिना तन के मन नहीं होता।
दिन भर तो वो खिलंदड़ी की तरह कभी हम कैरम खेलते कभी लूडो। भाभी भी साथ होती और वो मुझे छेड़ने में पूरी तरह भाभी का साथ देती। यहाँ तक की जब भाभी मेरी कजिन का नाम लगाकर खुलकर मजाक करती या गालियां सुनाती तो भी। ताश मुझे ना के बराबर आता था लेकिन वो भाभी के साथ मिलकर गर्मी की लम्बी दुपहरियों में और जब मैं कुछ गड़बड़ करता और भाभी बोलती क्यों देवरजी पढ़ाई के अलावा आपने लगता है कुछ नहीं सिखा। लगता है मुझे ही ट्रेन करना पड़ेगा वरना मेरी देवरानी आकर मुझे ही दोष देगी तो वो भी हँसकर तुरपन लगाती,
"हाँ एकदम अनाड़ी हैं।"
उस सारंग नयनी की आँखें कह देती की वो मेरे किस खेल में अनाड़ी होने की शिकायत कर रही है।
जिस दिन वो जाने वाली थी, वो ऊपर छत पर, अलगनी पर से कपड़े उतारने गई। पीछे-पीछे मैं भी चुपके से- हे हेल्प कर दूं मैं उतारने में मैंने बोला।
‘ना’ हँसकर वो बोली। फिर हँसकर डारे पर से अपनी शलवार हटाती बोली, मैं खुद उतार दूंगी।
अब मुझसे नहीं रहा गया।
मैंने उसे कसकर दबोच लिया और बोला-
हे दे दो ना बस एक बार "
और कहकर मैंने उसे किस कर लिया। ये मेरा पहला किस था। लेकिन वो मछली की तरह फिसल के निकल गई और थोड़ी दूर खड़ी होकर हँसते हुए बोलने लगी.
“ इंतजार बस थोड़ा सा इंतजार। “
एक-दो महीने पहले फिर वो मिली थी एक शादी में धानी शलवार सुइट में, जवानी की आहट एकदम तेज हो गई थी। मैंने उससे पूछा हे पिछली बार तुमने कहा था ना इंतजार तो कब तक?
बस थोड़ा सा और।हंस के वो बोली
मैं शायद उदास हो गया था। वो मेरे पास आई और मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए बोली
पक्का- बहुत जल्द और अगली बार जो तुम चाहते हो वो सब मिलेगा प्रामिस।
मेरे चेहरे पे तो वो खुशी थी की, कुछ देर बोल नहीं फूटे
मैंने फिर कहा सब कुछ।
तो वो हँसकर बोली एकदम। लेकिन तब तक बारात आ गई और वो अपनी सहेलियों के साथ बाहर।
भाभी की चिट्ठी ने मुझे वो सब याद दिला दिया और अब उसने खुद कहा है की वो होली में आना चाहती है और। उसे तो मालूम ही था की मैं बनारस होकर ही जाऊँगा। मैंने तुरंत सारी तैयारियां शुरू कर दी।
ओह्ह… कहानी तो मैंने शुरू कर दी।
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लेकिन पात्रों से तो परिचय करवाया ही नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं।