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जो बात शायद मैं नहीं कह सकती थी या जितने अच्छे ढंग से नहीं कह सकती थी, उतने अच्छे ढंग से आपने कह दिया।कामुक कहानियों में कोई हीरो नही होता, सर्वाधिक ताकत (बुर, चूंची, गांड़, होंठ) महिला के पास होती है । इसमें चूत ही हीरो है, हीरोइन है, विलेन है। बाकी सारे किरदार चूत के पूरक हैं । कोई उसे मारना चाहता है, कोई उसे रगड़ना चाहता है, कोई चूसना चाहता है, कोई सहलाना चाहता है यानी केंद्र में वही है। वैसे भी कहानी की पृष्ठभूमि ग्रामीण है । और ग्रामीण महिलाओं की बातचीत/किस्से/ कहानी इसी तरह होते हैं शुरू कहीं से होते हैं और खत्म कहीं होते हैं। आपके कहे अनुसार लेखक कहानी लिखे तो बोरियत के सिवा कुछ नही होगा वही घिसी पिटी कहानी बनेगी एक बड़े और मोटे लंड का हीरो है वही सबकी चूत मार रहा है। ऐसी कहानियां भरी पड़ी हैं। किंतु यह कहानी विपरीत दिशा में चल रही है जिसमे एक से अधिक चूत हैं और एक से अधिक लौड़े के इंतजाम हैं । मस्त कहानी चल रही है आनंद लो ।
बहुत बहुत आभार धन्यवाद।
आपकी एक एक बात सही है, इस या कोई भी इरोटिक कहानी का मतलब ही यही है जो आप ने कहा और उसमें एक अदद हीरो ढूंढ़ना, एक प्लाट की अपेक्षा करना और फिर रस का केंद्र स्त्री है, लड़की है तो वो तो कहानी के केंद्र में रहेगी ही। और दूसरी बात भी एकदम सही है की जैसे बात बात से बात निकलती है। छुटकी की बात चीत से ही गीता की बात निकली, छुटकी से होली के दौरान वो गीता से मिली और गीता ने उसे अपना अपने भाई का किस्सा सुनाया, अरविन्द और गीता का किस्सा, फिर बात ननद और भौजाई की कबड्डी की ओर मुड़ी जो होली के बाद हरदम होती थी, फिर भाभियाँ जीती तो उनकी शर्तें ,... लेकिन कहानी के मूल में हर पोस्ट ,में रस है।
एक बार फिर मैं और मेरा थ्रेड आभारी है की आप ऐसे रससिद्ध पाठक मित्र हैं जो अपने कमेंट भी शेयर करते हैं।
धन्यवाद