- 22,118
- 57,290
- 259
फागुन के दिन चार भाग २७
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
मैं, गुड्डी और होटल
is on Page 325, please do read, enjoy, like and comment.
Last edited:
Thanks for remembering dear favorite but I am sorry dear, still I have not decided about writing.
Not sure yet about the timing.
Ok, np Madam.. fully understand it...take your time. Your fans will certainly wait...Missing my writing ability & readers badly.
Bahut mast likha hai komal ji. Mazaa aa raha hai.शलवार सूट वाली
पता चला की क्राइसिस ये थी की रेल इन्क्वायरी से बात नहीं हो पा रही थी की गाड़ी की क्या हालत है और दो लोगों की बर्थ भी कन्फर्म नहीं हुई थी। नीचे कोई थे जिनकी एक टी टी से जान पहचान थी लेकिन उनसे बात नहीं हो पा रही थी।
मैं डरा की कहीं इन लोगों का जाने का प्रोग्राम गड़बड़ हुआ तो मेरी तो सारी प्लानिंग फेल हो जायेगी।
“अरे इत्ती सी बात भाभी आप मुझसे कहती…” मैंने हिम्मत बंधाते हुए कहा ओर एक-दो लोगों को फोन लगाया- मेरा एक बैचमेंट , वो मसूरी में मेरा रूम मेट भी था और टेनिस में पार्टनर भी उसे, रेलवे मिली थी और बनारस में ही ट्रेनिंग कर रहा था। और एक सीनियर थे हॉस्टल के वो भी रेलवे में यही थे,
“बस दस मिनट में पता चल जाएगा। भाभी आप चिंता ना करें…”
मैंने उन्हें एश्योर किया, बोल मैं भाभी, गुड्डी की मम्मी से रहा था लेकिन मेरी निगाह गुड्डी के चेहरे पर टिकी थी, वो भी परेशान लग रही थी। चार लोगों को जाना और दो की बर्थ नहीं तो कैसे, अब उसकी बहने इत्ती छोटी भी नहीं की एडजस्ट हो जाएंगी, एक बर्थ कम से कम,... और अगर कहीं उन लोगों का जाना टला लगा तो उस की भी होली पे ग्रहण लग जाएगा। वो उम्मीद से मेरी ओर देख रही थी।
मैंने एक बार फिर से मैंने फोन लगाया,
और थोड़ी देर में फोन आ गया।
“चलो मैं तो इतना घबड़ा रही थी…” चैन की साँस लेते हुए वो चली गई लेकिन साथ में गुड्डी को भी ले गईं…” चल पैकिंग जल्दी खतम कर और अपना सामान भी पैक कर ले कहीं कुछ रह ना जाय…”
मैंने जाकर भाभी को बता दिया। गुड्डी भी अपनी दोनों छोटी बहनों को तैयार होने में मदद कर रही थी।
मेरी तरह से वो भी बस यही सोच रही थी, इन लोगों के कानपुर जाने के प्रोग्राम में कोई विघ्न न पड़े, टाइम पे स्टेशन पहुँच जाए, ट्रेन में बैठें तो कल के उसके प्रोग्राम में कोई अड़चन न पड़े, दूसरे यह भी था की उसकी मम्मी के जाने के बाद मेरी रगड़ाई वो और अच्छी कर सकती थी, मम्मी के जानते बाद ये वतन चंदा भाभी के हवाले होना था और चंदा भाभी तो उसकी सहेली सी ही थीं। वैसे गुड्डी की दोनों छोटी बहने, सब उन्हें मझली और छुटकी ही कहते थे, इत्ती छोटी भी नहीं थी, एक नौवें में दूसरी आठवें में।
चन्दा भाभी भी वहीं बैठी थी।
“गाड़ी पंद्रह मिनट लेट है तो अभी चालीस मिनट है। स्टेशन पहुँचने में 20 मिनट लगेगा। तो आप लोग आराम से तैयार हो सकते हैं। “
मैंने उन्हें बताया
“नहीं हम सब लोग तैयार हैं। गब्बू जाकर रिक्शा ले आ…” पड़ोस के एक लड़के से से वो बोली।
“और रहा आपकी बर्थ का। तो पिछले स्टेशन को इन लोगों ने खबर कर दिया था। तो 19 और 21 नंबर की दो बर्थें मिल गई हैं। आप सब लोगों को वो एक केबिन में एडजस्ट भी कर देंगे। स्टेशन पे वो लोग आ जायेंगे। मैं भी साथ चलूँगा तो सब हो जाएगा…”
मैं बोल भाभी से रहा था लेकिन नजर गुड्डी के चेहरे से चिपकी थी। मैं बदलता रंग देख रहा था, अब वह एकदम खुश, अपनी सबसे छोटी बहन छुटकी को हड़का रही थी. एक नजर जैसे इतरा के उसने मुझे देखा,... फिर जब मुझे देखते पकड़ा, तो सबकी नजर बचा के जीभ निकल के चिढ़ा दी।
समझ तो वो भी रही थी की मैंने ये सब चक्कर किस लिए किया है,
“अरे भैया ये ना। बताओ अब ये सीधे स्टेशन पे मिलेंगे। अगर तुम ना होते ना। लेकिन मान गए बड़ी पावर है तुम्हारी। मैं तो सोच रही थी की,… एक बर्थ भी मिल जाती और तो बैठ के भी चले जाते, लेकिन तुम ने तो सब, जरा मैं नीचे से सबसे मिलकर आती हूँ…”
और वो नीचे चली गईं।
और अब गुड्डी खुल के मुझे देख के मुस्करायी।
चन्दा भाभी ने गुड्डी को छेड़ते हुए कहा- “अरे असली पावर वाली तो तू है। जो इत्ते पावर वाले को अपने पावर में किये हुए हैं…”
वो शर्माई, मुस्करायी और बोली- “हाँ ऐसे सीधे जरूर हैं ये जो, …”
मैंने चंदा भाभी से कहा अच्छा भाभी चलता हूँ।
“मतलब?” गुड्डी ने घूर के पूछा।
“अरी यार 9:00 बज रहा है। इन लोगों को छोड़कर मैं रेस्टहाउस जाऊँगा। और फिर सुबह तुम्हें लेने के लिए। हाजिर…” मैंने अपना प्रोग्राम बता दिया।
“जी नहीं…” गुर्राते हुए वो बोली- “क्या करोगे तुम रेस्टहाउस जाकर। पहले आधा शहर जाओ फिर सुबह आओ, कोई जरूरत नहीं। फिर सुबह लेट हो जाओगे। कहोगे देर तक सोता रह गया। तुम कहीं नहीं जाओगे बल्की मैं भी तुहारे साथ स्टेशन चल रही हूँ। दो मिनट में तैयार होकर आई…”
और ये जा वो जा।
चंदा भाभी मुस्कराती हुए बोली- “अच्छा है तुम्हें कंट्रोल में रखती है…”
मेरे मुँह से निकल गया लेकिन मेरे कंट्रोल में नहीं आती।
तब तक वो तैयार होकर आ भी गई। शलवार सूट में गजब की लग रही थी।
आकर मेरे बगल में खड़ी हो गई।
“क्या मस्त लग रही हो?” मैंने हल्के से बोला।
लेकिन दोनों नें सुन लिया। गुड्डी ने घूर के देखा और चन्दा भाभी हल्के से मुश्कुरा रही थी। मुझे लगा की फिर डांट पड़ेगी। लेकिन गुड्डी ने सिर्फ अपने सीने पे दुपट्टे को हल्के से ठीक कर लिया और चंदा भाभी ने बात बदल कर गुड्डी से बोला-
“हे तू लौटते हुए मेरा कुछ सामान लेती आना, ठीक है…”
“एकदम। क्या लाना है?”
“बताती हूँ लेकिन पहले पैसा तो ले ले…”
“अरे आप भी ना। खिलखिलाती हुई, मेरी और इशारा करके वो बोली-
“ये चलता फिरता एटीएम तो है ना मेरे पास…” और मुझे हड़काते हुए उसने कहा- “हे स्टेशन चल रहे हैं कहीं भीड़ भाड़ में कोई तुम्हारी पाकेट ना मार ले, पर्स निकालकर मुझे दे दो…”
चन्दा भाभी भी ना। मेरे बगल में खड़ी लेकिन उनका हाथ मेरा पिछवाड़ा सहला रहा था। वो अपनी एक उंगली कसकर दरार में रगड़ती बोली-
“अरे तुझे पाकेट की पड़ी है मुझे इनके सतीत्व की चिंता हैं कहीं बीच बाजार लुट गया तो। ये तो कहीं मुँह दिखाने लायक नहीं रहेंगे…”
गुड्डी मुस्कराती हुई मेरे पर्स में से पैसे गिन रही थी।
तभी उसने कुछ देखा और उसका चेहरा बीर बहूटी हो गया।
मैं समझ गया और घबड़ा गया की कहीं वो किशोरी बुरा ना मान जाए। जब वो कमरे से बाहर गई थी तो उसके दराज से मैंने एक उसकी फोटो निकाल ली थी, उसके स्कूल की आई कार्ड की थी, स्कूल की यूनिफार्म में। बहुत सेक्सी लग रही थी। मैं समझ गया की मेरी चोरी पकड़ी गई।
“क्यों क्या हुआ पैसा वैसा नहीं है क्या?” चन्दा भाभी ने छेड़ा।
मेरी पूरे महीने की तनखाह थी उसमें।
“हाँ कुछ खास नहीं है लेकिन ये है ना चाभी…” मेरे पर्स से कार्ड निकालकर दिखाते हुए कहा।
“अरी उससे क्या होगा पासवर्ड चाहिए…” चन्दा भाभी ने बोला।
“वो इनकी हर चीज का है मेरे पास…” ठसके से प्यार से मुझे देखकर मुश्कुराते हुए वो कमलनयनी बोली।
उसकी बर्थ-डेट ही मेरे हर चीज का पास वर्ड थी, मेल आईडी से लेकर सारे कार्डस तक।
लेकिन चन्दा भाभी के मन में तो कुछ और था- “अरे इनके पास तो टकसाल है। टकसाल…” वो आँख नचाते बोली।
“इनके मायके वाली ना, एलवल वाली, जिसका गुण गान आप लोग खाने के समय कर रही थी…” गुड्डी कम नहीं थी।
“और क्या एक रात बैठा दें। तो जित्ता चाहें उत्ता पैसा। रात भर लाइन लगी रहेगी…” चंदा भाभी बोली।
“और अभी साथ नहीं है तो क्या एडवांस बुकिंग तो कर ही सकते हैं ना…” गुड्डी पूरे मूड में थी। फिर वो मुझे देखकर बोलने लगी।
कुछ लोगों को चोरी की आदत लग जाती है,
मैं समझ रहा था किस बारे में बात कर रही है फिर भी मैं मुस्कराकर बोला-
“भाभी ने मुझे आज समझा दिया है, अब चोरी का जमाना नहीं रहा सीधे डाका डाल देना चाहिए…”
फिर बात बदलने के लिए मैंने पूछा- “भाभी आप कह रही थी ना। बाजार से कुछ लाना है?”
“अरे तुम्ह क्या मालूम है यहाँ की बाजार के बारे में, गुड्डी तू सुन…” चंदा भाभी ने हड़का लिया
“हाँ मुझे बताइये। और वैसे भी इनके पास पैसा वैसा तो है नहीं…” हवा में मेरा पर्स लहराते गुड्डी बोली।
“वो जो एक स्पेशल पान की दुकान है ना स्टेशन से लौटते हुए पड़ेगी…”
“अरे वही जो लक्सा पे है ना। जहां एक बार आप मुझे ले गई थी ना…” गुड्डी बोली।
“वही दो जोड़ी स्पेशल पान ले लेना और अपने लिए एक मीठा पान…”
“लेकिन मैं पान नहीं खाता। आज तक कभी नहीं खाया…” मैंने बीच में बोला।
“तुमसे कौन पूछ रहा है। बीच में जरूर बोलेंगे…” गुड्डी गुर्रायी। ये तो बाद में देखा जाएगा की कौन खाता है कौन नहीं। हाँ और क्या लाना है?”
“कल तुम इनके मायके जाओगी ना। तो एक किलो स्पेशल गुलाब जामुन नत्था के यहाँ से। बाकी तेरी मर्जी…” चंदा भाभी ने अपनी लिस्ट पूरी की
पर्स में से गुड्डी ने मुड़ी तुड़ी एक दस की नोट निकाली और मुझे देती हुई बोली-
“रख लो जेब खर्च के लिए तुम भी समझोगे की किस दिलदार से पाला पड़ा है…”
तब तक नीचे से आवाज आई। रिक्शा आ गया। रिक्शा आ गया।
हम लोग नीचे आ गए। मैंने सोचा की गुड्डी के साथ रिक्शे पे बैठ जाऊँगा लेकिन वो दुष्ट जानबूझ के अपनी मम्मी के साथ आगे के रिक्शे पे बैठ गई ओर मुझे मुड़कर अंगूठा दिखा रही थी।
वो जान रही थी, की मेरा इरादा प्लानिंग, रिक्शे पे साथ बैठता तो कम से कम कंधे पे तो हाथ रखी लेता अगर उसके आगे नहीं बढ़ता, दस पंद्रह मिनट का अकेले का टाइम मिलता बतियाने का। लेकिन वो मुझसे ज्यादा चालाक थी, मैं जब तक प्लानिंग करता वो चाल चल देती थी। एक तो मुझे तंग करने का इन्तजार करने का , दूसरे मम्मी के साथ बैठ के रस्ते भर उनसे बतिया सकती थी.
मुझे उसकी बहनों के साथ बैठना पड़ा।
गनीमत थी की गाड़ी ज्यादा लेट नहीं थी इसलिए देर तक इंतजार नहीं करना पड़ा। बर्थ भी मिल गई और स्टेशन पे स्टाफ आ भी गया था। स्टेशन पहुँचने के पहले रास्ते में ही टीटी ने पैसेंजर से बात करके इनकी कन्फर्म बर्थ और खाली बर्थों को मिला के एक केबिन करवा दिया था, दो लोवर दो अपर एक ही केबिन में , डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट ने खुद उन लोगो को केबिन में पहुंचाने के बाद टी टी को भी बोल दिया। उसके पापा मम्मी इत्ते खुश थे की,… गुड्डी की मम्मी तारीफ़ से बार बार मुझे देख रही थीं।
मैं भाभी की निगाह में देख रहा था वो कितनी इम्प्रेस्ड थीं, स्टेशन के स्टाफ यूनिफार्म में, एक जी आर पी वाला भी कही से आ गया था, हम लोगो को सामान की चिंता भी नहीं करनी पड़ी स्टेशन स्टाफ ने सामन सेट कर दिया, यहाँ तक की केबिन में चारों बर्थ पे बिस्तर भी लगा था. गुड्डी के पापा के कोई परिचित मिल गए थे तो वो पास के केबिन में उनके पास चले गए थे, हम लोगों के केबिन में गुड्डी, उसकी मम्मी दोनों बहिने और मैं। दोनों उधम मचा रही थीं, तबतक डिप्टी स्टेशन सुपरिंटेंडेंट आये और बोले, " सर, इंजन चेंज होगा तो पंद्रह बीस मिनट लगेगा, आप लोग आराम से बैठिये, ट्रेन रेडी हो जायेगी तो मैं बता दूंगा। "
उन के जाते ही भाभी फिर मुझे देख के मुस्करायीं, मैंने छुटकी और मझली से कहा चलो अभी टाइम है तुम दोनों को चॉकलेट दिलवा देता हूँ,
मुझे चिप्स भी चाहिए छुटकी बोली, मंझली ने जोड़ा कॉमिक्स, पांच मिनट बाद मैं दोनों को लेकर वापस,... चॉकलेट, चिप्स, कॉमिक्स, पेप्सी
और मैंने भाभी से बोला, कानपुर में भी इन लोगो ने बोल दिया है कोई सामान उतरवाने कोई आ जाएगा और आप लोग लौटिएगा कब,...
" अभी पता नहीं हो सकता है होली के दो दिन बाद, हो सकता है तीन दिन बाद, अभी तो लौटने का रिजर्वेशन "
उनकी बात काट के मैं बोला, " अरे आप गुड्डी को बोल दीजियेगा, उसकी चिंता मत करियेगा, लौटने का रिजर्वेशन भी हो जाएगा, स्टेशन पर कोई आ भी जाएगा, मैं भी होली के चार पांच दिन बाद ही लौटूंगा, तब तक आप लोग आ जाइयेगा तो मुलाकात हो जायेगी, ... "
अब भाभी आपने रूप में आ गयीं, हंस के बोली,
" मुलाकात नहीं तोहार रगड़ाई होइ,... और कम से कम दो तीन दिन, ... हमार तोहार फगुआ उधार बा, एक इंच जगह बचेगी नहीं न अंदर न बाहर,... "
---
फिर सीरियस होके बोलीं, भैया तोहार तो,... और ये बनारस में भी तोहार,... "
उनकी बात ख़तम होते ही मैं बोला, " एकदम भाभी,... अरे हो सकता है मई से ही दो तीन महीने की ट्रेनिंग बनारस में ही हो, यहाँ आफिसर्स मेस है, रेस्टहाउस,
भाभी एकदम आग, गुड्डी गुर्राने लगीं ऊपर से उसकी दोनों बहने भी कान पारे,
" एकदम नहीं, घर में रहना होगा, और खाना दोनों टाइम घर में " भाभी और गुड्डी दोनों साथ साथ बोली, और दोनों बहनों ने भी ऊपर से हामी भरी,...
सोचना भी मत कहीं और रहने को " भाभी भी बोलीं, तीन बार मुझसे हामी भरवाई और फिर जब मैंने कबूल कर लिया,... कान पकड़ा, तो भाभी अपने रंग में
" अरे दिन में ट्रेनिंग आफिस में करना, रात में मैं ट्रेनिंग दूंगी, रोज बिना नागा। "
गुड्डी मंद मंद मुस्करा रही थी फिर बोली और खाने के साथ गारी भी रोज सुननी पड़ेगी ये भी बोल दीजिये, ...
" वो कोई कहने की बात है, बिना गारी के खाना कैसे पचेगा,... " हँसते हुए वो बोलीं फिर अपने रूप में एकदम कह मुझसे रही थी बोल गुड्डी से रही थीं
" और गारी क्या सब सही सही बोल रही थी , तुम तो जा ही रही हो इनके साथ, इनके बहन का हाल देख लेना, और जहाँ तक इनकी महतारी का हाल है , मैं अपने मन से कुछ नहीं कहती। बिन्नो की तिलक में जितने तिलकहरु गए थे, नाइ बारी कहार पंडित सब उनके पोखरा में डुबकी लगा के आये थे, कई कई बार, वही सब बता रहे थे,... "
तबतक डिप्टी एस एस आ गए, ... गाडी चलने वाली है और मैं और गुड्डी उतर पड़े। हाँ गुड्डी के कान में भाभी ने कुछ समझाया भी।
----
Reet ki trening. Amezing. Jabardast. Maza aa gaya. Aage reet ko bhi to leed karna he.थ्रिलर २
समुद्र और बनारसी बाला -रीत
रात 11:30 अरब सागर- ‘टेरर’ एल॰पी॰जी॰ शिप के स्टर्न के ऊपर की ओर। दोनों सी किंग हेलीकाप्टर जो उनके साथ चले थे, अब टेरर शिप के स्टर्न के ऊपर पहुँच चक्कर काट रहे थे और उन्होंने अपनी उंचाई कम करनी शुरू कर दी। वो शिप से पचास मीटर ऊपर रहे होंगे, की शिप से टक-टक टक-टक, ऐंटी एयर क्राफट गन की आवाजें शुरू हो गई थी। अब कोई शक नहीं था की वो एनमी शिप था।
लेकिन वो हेलीकाप्टर और उसके चालक इस सिच्युएशन के लिए तैयार थे, उन्होंने पहले तो डक किया लेकिन फिर अचानक ऊपर उड़ गए और दोनों अलग-अलग दिशाओं में दायें बाएं ऊपर उड़ चले। ऐंटी एयर क्राफ्ट गन, लाइट गन्स की गोलियां अब भी उनका पीछा कर रही थी।
रीत और उनके साथी मार्कोस, अब एकदम शिप के पास पहुँच गए थे और शिप में चढ़ने के लिए रोप लैडर का इश्तेमाल शुरू करने वाले थे। शिप के सारे लोगों का ध्यान उन दोनों हेलीकाप्टर पर था। और उसी बीच, एक और हेलीकाप्टर ठीक शिप के बीच इतना नीचे आ गया, की लगा वो शिप पर लैण्ड कर रहा है। उसके पंखों की हवा से शिप की छोटी मोटी चीजें उड़ने लगी थी। और जब तक शिप की ऐंटी एयर क्राफ्ट गन अपना निशाना बदलते, हेलीकाप्टर की गन चालू हो गईं थी। लेकिन वो गोलियों की जगह बाम्ब्स थ्रो कर रही थी- स्मोक बाम्ब।
और उसी के साथ रीत की टीम शिप के वाल पे चढ़ चुकी थी। सबसे आगे मार्कोस का लीडर था, जिसने नेवी सील्स के साथ एक साल ट्रेनिंग की थी, कई ऐक्चुअल एंटी टेरर आपस में भाग लिया था। उसने गैस मास्क लगा लिया और उसके साथ बाकी लोगों ने भी।
सबसे पहले उसने शिप के फ्लोर पर दो स्मोक बाम्ब लुढ़का दिए और फिर पूरी ताकत से आँसू गैस के कैनिस्टर फेंके। जब तक स्मोक बाम्ब्स का धुँआ छा जाता, वो चारों शिप के अंदर थे। उधर हेलीकाप्टर के होल्ड से अब पैराट्रूपर शिप पर उतर रहे थे।
एक, दो, चार, छः और तब दायें बाएं वाले हेलीकाप्टर भी आ गए और उनसे भी शिप के दोनों साइड पर पैराट्रूपर उतर रहे थे। शिप के अंदर के लोग सब उनके मुकाबले को आ गये। लेकिन तब तक तीनों हेलीकाप्टर से स्मोक बाम्ब्स तेजी से फेंके गए और शिप पे धुँआ, कुहासा छा गया। वो पैराट्रूपर सारे डमी थे।
नार्मण्डी लैंडिंग में ब्रिटेन ने एक सीक्रेट आपरेशन लांच किया था, आपरेशन टाइटैनिक, जिसमें ये डमी पैराट्रूपर इश्तेमाल हुए थे और उन्हें रूपर्ट कहा गया था। ये भी बिलकुल उसी तरह थे लेकिन थोड़े एडवांस। एल॰पी॰जी॰ चलते असली गोली तो चला नहीं सकते थे, इसलिए उनमें गोली की आवाज रिकार्ड थी और नकली पिस्तौल फ्लैश करती थी।
कोई उन्हें छूने की या पकड़ने की कोशिश करता था तो टेजर नीडल्स निकलती थी, जिनमें 440 वोल्ट का झटका होता था। और शिप के फ्लोर से लड़ते ही स्टेन ग्रेनेडस निकलते। उसका असर ये हुआ की ढेर सारे लोग काम के काबिल नहीं रहे और रीत की टीम को काम करने का मौका मिल गया।
शिप पर बहुत कन्फ्यूजन था। पहले स्मोक बाम्ब्स, और फिर ये डमी पैराट्रूपर्स। लग रहा था चारों ओर गोलियां चल रही है और जो उनके पास आता वो शाक का शिकार हो रहा था। और गोलियों का उनपर असर हो नहीं रहा था। होता भी कैसे? वो तो डमी थे।
हाँ, डी॰आर॰डी॰ओ॰ ने उनमें रोबोटिक्स का इतना अच्छा इश्तेमाल किया था की चलने फिरने में, वो एक पैरा की तरह लगते थे। यहाँ तक की कुछ पैरा में तो उन्होंने गालियां तक रिकार्ड कर रखी थी, वो भी एक से एक बनारसी, शुद्ध। लेकिन सबसे इम्पॉर्टेंट बात थी उनकी आँखें चारों ओर थी और वो कैमरे रिकार्ड कर लाइव फीड, ऊपर हेलीकाप्टर तक भेज रहे थे, जहाँ से वो कोस्टगार्ड शिप में जा रहा था। और उसे मार्कोस टीम के कैप्टेन के पास भी एनलाइज करके भेजा जा रहा था।
रीत की टीम काम पे लग गई थी। उनके पास बस पन्दरह मिनट का टाइम था, लेकिन उन्हें 11 से 12 मिनट के बीच में शिप एवैकयूएट कर देना था। पहला शिकार रीत के ही हाथ लगा। कमांडो टीम कैप्टेन ने आगे बढ़कर एक दरवाजा था उसे सिक्योर कर दिया। चारों प्वाइंट उसके इसी॰ओ॰र थे। और उसके बाद शिप के कम्युनिकेशन और पावर केबल स्नैप कर दिए।
टीम का रियर एंड भी मार्कोस का एक कमांडो सिक्योर कर रहा था। लेकिन हमला बीच में हुआ। रीत और उसका साथी जगह लोकेट कर रहे थे, तभी एक केबिन खुला और बिजली की तेजी से किसी ने रीत पर हमला किया।
हर कमांडो के चार आँखें चार कान होते हैं, लेकिन रीत के दस थे। वो फुर्ती से पीछे हटी, उसका घुटना अटैकर के पेट में और हाथ से कराते का चाप, गरदन पे। और जब तक वो सम्हलता, रीत ने उसके माथे के पास एक नस दबा दी, जिससे उसके ब्रेन पे सीधे असर पड़ा और वो आधे घंटे से ज्यादा के लिए बेहोश हो गया।
लेकिन ये शुरुवात थी। उसके बाद दो ने और हमला किया, एक साथ। उन दोनों के हाथ में चाकू था। और वो दोनों जूडो के एक्सपर्ट थे। चाकू का पहला हमला गर्दन पर हुआ। रीत झुक गई। हमला बेकार हो गया, लेकिन उसकी कैप गिर गई और उसके लम्बे बाल नीचे तक फैल गए।
“अरे ये तो लौंडिया है…”
Amezing reet ka action likha he Komalji. Trening bhi real ke jese. Isme bhi jeet bahot mushkil. Superb. Lady leed karti he. Vo jyada mazedar he.रीत, रिजक्यू
लेकिन दूसरी परेशानी हो गई, मार्कोस के टीम के कमांडर को पकड़ लिया गया। उसके मेसेंजर पर मेसेज आया।
कमांडर, स्टर्न साइड से एंट्री सिक्योर किये हुए था, और साथ ही उसे उस लोकेशन की कील और हल में बाम्ब भी लगाने थे। जब वह झुक कर दूसरा बाम्ब लगा रहा था, उसी समय पीछे से हमला हुआ। उसने बिना उठे अपनी कुहनी और एक पैर से हमला करके उस अटैंकर को न्यूट्रलाइज कर दिया। लेकिन हमला करने वाले तीन थे। दोनों ने एक साथ अपना पूरा बाडी इंतेजार उसपर डाल दिया। और एक तेज धारदार चाकू की नोक उसके गर्दन पर रख दी। वो पूछ रहते थे उसके साथ कौन है?
उन्हें क्या मालूम, उसके साथ पूरा देश था, वो हर इंसान था जो आतंक के खिलाफ है। रीत भी तेजी से उस जगह की ओर बढ़ी, लेकिन जो हुआ, वो देखकर वह सन्न रह गई।
उसके आगे के कमांडो के हाथ से बिजली की तेजी से खुखरी निकली, और उसने जिस तेजी से वो फेंकी, अगले पल जिस दुष्टात्मा ने, कमांडो कमांडर के गले पे चाकू लगा रखा था, उसका हाथ फर्श पर छटपटा रहा था, चाकू समेत। कटा हुआ अलग। और जब तक उसकी चीख निकलती, कमांडो उसके ऊपर सवार था, और उसकी गरदन उसने मरोड़ दी थी।
बाकी दोनों से निपटना रीत और कमांडो कमांडर के लिए बाएं हाथ का खेल था। एक ने जान खुखरी से गंवाई और दूसरे ने रीत की उंगलियों से। लेकिन मौत तुरंत आई, बिना आवाज, चीख पुकार के। रीत ने कमांडो कमांडर से कुछ खुसुर पुसुर की। और ये तय हुआ की बाम्ब्स लग गए हैं इसलिए दोनों मार्कोस के कमांडो तुरंत शिप से निकलकर, बाहर पहुँचकर एक्जिट प्वाइंट सिक्योर करेंगे, और इन्फ्लेटेबल बोट को रेडी रखेंगे।
उनके सपोर्ट के लिए आये हेलीकाप्टर को और कोस्ट गार्ड शिप को रेड़ी होने का अलर्ट देंगे। चार मिनट के अंदर, रीत और कमांडर वापस आएंगे, झाड़ू लगाकर। कुछ ही पलों में दोनों मार्कोस के कमांडो शिप के बाहर थे।
कमांडर ने बताया था की डमी पैराट्रूपर्स ने जो बातें रिकार्ड की हैं उनसे ये पता चला है की, शिप के कैप्टेन (असली) और कुछ सेलर्स को कहीं बंद करके रखा है। उसका प्लान ये था की बचे हुए समय में अगर वो मिल जाते हैं तो उन्हें रिस्क्यू करा सकते हैं और साथ में शिप के लाइफ बोटस को अलग कर देंगे, जिससे जब शिप सिंक हो तो टेरर वाले लोग निकल न भागे। बस एक बात का ध्यान रखना था की उनके शिप से निकलने के टाइम में कोई फेर बदल नहीं होगा। कमांडर के मेसेज देने के तुरंत बाद, रीत को एस्केप प्लेस पर पहुँच जाना होगा।
कुल चार मिनट थे उनके पास। एक ओर से रीत ने काम्बिंग शुरू की और दूसरी ओर से कमांडो कमांडर ने। लेकिन रीत के मन में कुछ और था, वो चाहती थी कुछ सबूत इकठ्ठा करना।
Dono bucket list me daal di, pahli fursat me padhta hoonमैं अपनी दो लघु कथाओ के लिंक दे रही हूँ
कैसी हैं आप कभी खुद पढ़ कर बताइयेगा
१. It’s a hard rain
When the evening is spread out against the sky
Like a patient etherized upon a table…
Dusk was dawning on the glass panes of his window, smoke rubbing its muzzle, peeping from outside, streets following like tedious argument, …every evening, it reminded him of Prufrock’s love poem, more than 12 years had gone, him occupying this cabin, but today was to be last day , last evening,
The clock on the wall reminded him, 10 minutes more, 10 minutes to move out, move out forever.
When the day started, it was like any other.Non-Erotic - It’s a hard rain
It’s a hard rainWhen the evening is spread out against the sky Like a patient etherized upon a table…Dusk was dawning on glass panes of his window, smoke rubbing its muzzle, peeping from outside , streets following like tedious argument, …every evening, it reminded him of Prufrock’s love...exforum.live
और दूसरी
लला ! फिर खेलन आइयो होरी ॥
______________________________
ये कहानी ' नेह गाथा ' है , गाँव गंवई की एक किशोरी के मन की ,
रोमांटिक ज्यादा इरोटिक थोड़ी कम ,
फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी ।
भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी ॥Erotica - होली है - होली के किस्से , कोमल के हिस्से
लला ! फिर खेलन आइयो होरी ॥______________________________ये कहानी ' नेह गाथा ' है , गाँव गंवई की एक किशोरी के मन की ,रोमांटिक ज्यादा इरोटिक थोड़ी कम ,फागु के भीर अभीरन तें गहि, गोविंदै लै गई भीतर गोरी । भाय करी मन की पदमाकर, ऊपर नाय अबीर की झोरी ॥छीन पितंबर कंमर तें, सु बिदा दई...exforum.live
Dono bucket list me daal di, pahli fursat me padhta hoon
एकदम सही कहा आपने, चंदा भाभी और गुड्डी की मम्मी की जुगलबंदी, और चंदा भाभी गुड्डी की सहेली सी भी हैं तो और ज्यादा,कहानी की यही हाजिरजवाबी तो मन लुभा लेती है...
लगता है कि जैसे घटनाएं कहीं आस-पास घटित हो रही है...
चंदा भाभी तो सचमुच गुड्डी की मम्मी से दो हाथ आगे हैं...
देवर वो भी किशोर, कुंवारा ससुराल में पकड़ में आ जाये, फिर मौका होली काआनंद बाबु को अपने ससुराल (बल्कि भाई के ससुराल और उनकी होने वाली ससुराल) का असली मजा मिलने वाला है....
सही कहा आपनेहोली हो और मालपुआ ना हो..
तो होली अधूरी...
लेकिन इस गुड्डी के भी तो मालपुए जैसी होगी..
आनंद बाबु चूक कैसे रहे हैं...