तो दुसरी ओर खाना खाते ही पुनम सृतीको लेकर अपने रुममे चली गइ.. ओर दरवाजा बंध करलीया.. फीर दोनो बेडपे जाकर बैठ गइ.. तब पुनम बहुत दुवीधामे पड गइ.. की लखनकी दुसरी हरकतके बारेमे वो सृतीको बताये की ना बताये.. क्युकी आज लखनने हिंमत करते पुनमके साथ वो हरकते कीथी.. जीसे सृतीको भी पता नही था.. जो बात सृतीको बतानेमे पुनम सर्मीनदगी महेसुस कर रही थी..
सृती : (मुस्कुराते) दीदी.. कहीयेनां.. क्या सोच रही हे..? क्या हमारे देवरने कोइ ओर सरारत कीथी..?
पुनम : (सर्मसार होते धीरेसे) हां भाभी.. अब आपसे क्या छुपाना.. अब हमारे देवर हमारी कुछ ज्यादा ही मस्तीया करने लगे हे.. भाभी.. मुजे तो बतानेमे भी सर्म आ रही हे..
सृती : (मुस्कुराते) दीदी.. देवर हे हमारा.. तो मस्तीयातो करेगे ही.. इसमे सरमानेकी क्या बात हे.. उन्होने आपका सीर्फ हाथ ही तो पकडा था.. ओर रही बात रमाभाभी ओर नीलुकी.. तो यही तो हम चाहते थे.. की हमारे देवर इस मामलेमे जल्दसे जल्द आगे बढे.. तो आज वो आगे बढे हे.. तो क्या दिकत हे..?
पुनम : (सरमाते धीरेसे) नही भाभी.. बात सीर्फ हाथ पकडनेकी नही हे.. ओर नाही वो मां बेटीके साथ आगे बढनेकी.. जब वो उन मां बेटीके साथ सरारत कर रहे थे.. तब मेने उनको जांगपे चींटी काटते रोकलीया.. तो पता हे इसके बाद उन्होने मेरे साथ क्या कीया..?
सृती : (मुस्कुराते) क्या..? कुछ ओर भी कीया क्या..?
पुनम : (सर्मसार होते) हां भाभी.. मेने उसे रोका तो.. वो.. वो.. (सरमाते नजरे चुराते) नीचेसे.. मेरी.. मेरी.. जांगोको सहेलाने लगे.. तो मैने फौरन उनका हाथ पकडलीया.. तो मेरी हाथोकी उंगलीओमे उंगलीया फसाकर मेरा हाथ पकडलीया.. ओर अपनी जांगपे रखकर सहेलवाने लगे.. तो मे हाथ खीचने लगी.. तो उसने मेरे हाथको कसके पकडलीया.. ओर छोड भी नही रहेथे.. तो मुजे बहुत सरम आ रही थी.. ओर उपरसे उनपे गुस्सा भी आया.. ओर मैने उनकी ओर गुसेसे देखा तभी मेरा हाथ छोडा..
सृती : (हसते) दीदी.. लगता हे हमारे देवर आजकल कुछ ज्यादाही रोमांटीक हो गये हे.. ओर उपरसे आपको प्यारभी तो करते हे.. तो लगता हे इस बारेमे वो कुछ आगे बढना चाहते हे.. हें..हें..हें..
पुनम : (सरमाकर गंभीर होते) नही भाभी.. मे जानती हु वो मुजसे बहुत प्यार करते हे.. सायद बडे भाइसे भी ज्यादा.. लेकीन मेरे खयालसे वो जडी बुटीकी वजहसे बेकाबु होने लगे हे.. क्युकी कइ दिनोसे वो सेक्ससे दुर रहे हे.. अब इनको जल्द सेक्स करनेको नही मीला तो वो पागल जैसे होने लगेगे.. फीर भी हमे इनको कुछ तो कहेना पडेगा.. क्युकी आज वो अपनी हदसे कुछ ज्यादा ही आगे बढे हे..
सृती : (सरमाकर मुस्कुराते) दीदी.. तो फीर अब हम क्या करे..? देवर हे हमारा.. उसे डांटनेसे ज्यादा तो हम कुछ कर नही सकते..
पुनम : (सर्मसार होते धीरेसे) भाभी.. क्यु नही कर सकते..? आज मेरी जांग तक पहोंचे हे.. अगर मैने उसे नही रोका होता तो हो सकता हे उनकी हिंमत ओर बढ जाये.. ओर रमा भाभीकी तराह कल वो हमारी चु.. आइ मीन वो सारी हदे पार करले..
सृती : (सरमाते थोडा जोरोसे हसते) दीदी.. अब तो खुलकर बोल ही दो.. वैसे भी वो कमीनी मंजुदीने सब छुट तो देदी हे.. ओर आप भी तो केहती हो.. अेक दिन ये सब होने ही वाला हे.. तो क्या फर्क पडता हे.. वो आज हो या कल.. वैसे भी हमारा देवर ही तो हे.. ओर आपको भी सबकुछ पता हे..
पुनम : (सर्मसार होकर मुस्कुराते) भाभी.. तो क्या ये सब इतनी जल्दी.. नही नही.. अभी इसके लीये हम मानसीक तौरपे तैयार नही हे.. भाभी.. ये सब रीलेशन इतनी जल्दीसे अेक्सेप्ट करना कमसे कम मेरे बसकी बात तो नही हे.. इसे अेक बार तो पाठ पढाना ही पडेगा..
सृती : (हसते) दीदी.. तो क्या हम अभी इनको पाठ पढादे..? हें..हें..हें..
पुनम : (सरमाते हसते) हां भाभी.. इनको सबक सीखाना ही पडेगा.. वरना दुसरी बार अैसी सरारत करनेकी उनमे हिंमत आजायेगी.. फीर पता नही अगली बार हमारे साथ क्या सरारत करे..
यहा पुनमने सृतीको लखनकी सभी हरकतोके बारेमे बता दीया.. तो सृती सुनकर मजा लेने लगी.. क्युकी कमसे कम उन्होने तो ये सब रीस्तेको स्वीकार कर ही लीया था.. ओर मनसे वो खुद लखनके साथ आगे बढना चाहती थी.. ओर ये बात पुनम ओर मंजु भी अच्छी तराह जानती थी.. की सृती इस मामलेमे बहुत ही फोरवर्ड ओर अपनी मम्मी भुमीकाकी तराह बहुत ही कामुक ओरत हे..
फीर पुनमने उनके साथ हुइ सरारतके बारेमे बताया तो दोनोने लखनको पाठ पढानेका फैसला कर लीया.. दोनोने कुछ बाते करते लखनको पाठ पढानेकी योजना बनाली.. तो सृती जाकर दरवाजेके पीछे छुप गइ.. ओर पुनमने बहार नीकलकर बहुत ही कातील नजरोसे धीरेसे आंखोके इसारेसे लखनको रुममे आनेके लीये कहा.. तो लखन पुनमकी नजरको पहेचान गया.. ओर उनका लंड जटके मारने लगा..
सबलोग होलमे बैठी बाते कर रही थी.. तब लखनको लगाकी पुनो जरुर उनसे कोइ बात करना चाहती हे.. तो वो धीरेसे टहेलते पुनमके रुममे चला गया तो पुनम बेडपे बैठी थी.. लखनके आते ही आंखोकी सरारतसे लखनको उनके पास आनेको कहा.. तो लखन उनके पास जाकर बैठ गया तो सृतीने धीरेसे दरवाजा बंध करके लोक करदीया.. ओर दोडकर हसते हुअे लखनके पास आगइ..
तो पुनम भी हसते हुअे बेडसे खडी होगइ.. लखन उनकी ओर देखते कुछ समजता इनसे पहेले ही पुनम ओर सृती घुसे ओर लाते मारते लखनपे टुट पडी.. तो लखन भी जोरोसे हसते हुअे दोनोसे बचनेकी कोसीस करते बेडपे गीर गया.. तब पुनम ओर सृती लखनको घुसे मारते गालीया देने लगी.. तब लखन समज गयाकी उसने पुनमकी जांग सहेलाकर उनका हाथ पकडलीया था.. इसीलीये उनको मार पड रही हे.. तो वो छलांग लगाकर बेडसे दुसरी साइडसे उतर गया..
लखन : (जोरोसे हसते बचनेकी कोसीस करते) देखो भाभी.. मुजसे पंगा लेना भारी पडेगा आपको.. मे केह देता हु आप दोनोको.. ओर मे तो अपका काम कर रहा था.. तो मुजे रोका क्यु..?
पुनम : (सरमाते हसते) अच्छा हमारा काम कर रहे थे..? सबके सामने..? सरम नही आइ आपको..? बेचारीकी क्या हालत करदी आपने.. ओर.. फीर मेरे साथ क्या कर रहे थे..? आपको सरम भी नही आइ.. मत भुलो.. मे आपकी भाभीके साथ बहेन भी हु.. कोइ बहेनके साथ अैसा करते हे..?
सृती : (हसते) कीतने कमीने हो आप..? दीदी.. इनको तो आज मार मारके सुधारना पडेगा.. हें..हें..हें..
लखन : (हसते) अच्छा.. अब आप भी मुजे मारोगी..? वैसे भी आज कल आपके भी बहुत हाथ पांव चलने लगे हे.. जब देखो मुजे मारती रहेती हो.. लगता हे आज आपको भी सबक सीखाना पडेगा.. आओ.. दोनो हाथ लगाकर दीखाओ मुजे.. फीर देखता हु.. दोनो क्या करती हो.. हें..हें..हें..
सृती अक्षर लखनको अैसे मजाकमे मारती थी.. तो कभी कभी उनके साथ पुनम मंजु भी सामील हो जाती थी.. तो आज लखनके पास उनको जवाब देनेका अच्छा मौका था.. तो प्रतीकार करते दोनोको मारनेके लीये लखन वापस बेडपे चढ गया तो दोनो समज गइ.. की अब लखन हम दोनोको छोडेगा नही.. तो लखनसे बचनेके लीये जोरोसे हसते हुअे इधर उधर भागने लगी..
तो लखनभी मुस्कुराते अपने दोनो हाथ फैलाकर दोनोको पकडनेकी कोसीस करते इधर उधर भागते दोनोका पीछा करने लगा.. तब भागते भागते दोनो ही बेडके दुसरी साइड रुमके अेक कोनेपे चली गइ.. ओर फस गइ.. क्युकी अब दोनोके पास कही ओर भागनेका रास्ता नही था.. तब लखन जोरोसे हसते अपने दोनो हाथ फैलाकर बेडपे चड गया.. तब सृती ओर पुनमको कही ओर भागनेकी जगाह नही मीली..